रामबाण :-13-:
#-नासास्राव - तुलसीपत्र स्वरस की कुछ बूँदे नाक मे टपकाने से नाक से होने वाले स्राव को रोकता है।
#- सूजाक रोग- 10-11 पत्ते तुलसी के नियमित रूप से खाने से सूजाक रोग मे लाभदायक होता है।
#- अर्द्धांग पक्षाघात - 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस नित्यप्रति दोनों समय देने से अर्द्धांग पक्षाघात मे लाभ होता है।
#-हिक्का - 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस प्रतिदिन सुबह - सायं देने से हिक्का ( हिचकी ) ठीक होता है।
#- अनिद्रा रोग - 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस लेने से रात को नींद अच्छी आने लगती है तथा अनिद्रा रोग दूर होता है।
#- यकृत विकार यकृत अशमरी - 2 ग्राम तुलसी मञ्जरी व 2 ग्राम तुलसीपत्र पीसकर स्वादानुसार कालानमक मिलाकर गौतक्र मिलाकर नित्यप्रति प्रातःकाल पीने से गुर्दे की पथरी व गुर्दे के रोगों मे लाभकारी सिद्ध होता है।
#- रतिज रोग - ( Venereal Diseases ) यौन संचारित रोग या रति संचारित संक्रमण ( Sexually transmitted Infections ) रति या मैथुन के द्वारा उत्पन्न रोगों का सामुहिक नाम है । ये वो रोग है जिनकी मानवों पशुओ तथा जानवरों में यौन सम्पर्क के कारण फैलने की अत्यधिक सम्भावनाएँ रहती है। यौन सम्पर्क मे योनि सम्भोग ,मुख मैथुन , गुदा मैथुन आदि सम्मिलित है । कई बार रतिरोग प्रारम्भ में अपने लक्षण नहीं दिखाते है इससे दूसरों को भी यह रोग लग जाने का ख़तरा अधिक बना रहता है। 30 से भी अधिक प्रकार के जीवाणु ( बैक्टीरिया ) , विषाणु और परजीवी रतिक्रिया के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मे चले जाते है। यौनसंचारित रोगों के बारे में जानकारी आयुर्वेद के प्रारम्भिक काल से है, उपदंश ( Syphilis ) तथा सूजाक ( Gonorrhoea ) तथा लिंफोग्रेन्युलोमा ( Lyphogranuloma Vanarium ) तथा रतिज व्रणाभ ( Chancroid ) तथा एड्स ( Aids ) आदि रोग प्रधान है । ऐसी स्थिति में 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस पान नित्यप्रति सुबह- सायं होना चाहिए तथा तुलसीमूल व तुलसीपत्र समभाग लेकर पानी मे पकाकर गुनगुने पानी से सुबह- सायं गुप्तांगों को धोना चाहिए।
#-शिरोरोग - बर्बरी तुलसी ( कामन स्वीट बैसिल Common sweet basil ) वनतुलसी पत्र स्वरस का नस्य देने से मुर्छा , पीनस तथा शिरशूल का शमन होता है।
#- नेत्राभिष्यंद - वनतुलसी पत्र स्वरस का अंजन ( आँखों मे लगाना ) करने से नेत्राभिष्यंद ( आँखें लाल होना पानी बहना तथा छूतरोग है) में लाभ होता है।
#-शिरोरोग - बर्बरी तुलसी ( कामन स्वीट बैसिल Common sweet basil ) वनतुलसी पत्र स्वरस का नस्य देने से मुर्छा , पीनस तथा शिरशूल का शमन होता है।
#- नेत्राभिष्यंद - वनतुलसी पत्र स्वरस का अंजन ( आँखों मे लगाना ) करने से नेत्राभिष्यंद ( आँखें लाल होना पानी बहना तथा छूतरोग है) में लाभ होता है।
#-शिरोरोग - बर्बरी तुलसी ( कामन स्वीट बैसिल Common sweet basil ) वनतुलसी पत्र स्वरस का नस्य देने से मुर्छा , पीनस तथा शिरशूल का शमन होता है।
#- नकसीर - वन तुलसीपत्र स्वरस का नस्य ( कुछ बूँदे नाक मे डालना ) देने से नकसीर का शमन होता है।
#- कर्णस्राव - वन तुलसीक्लाथ मे बकरी का मूत्र , सैंधानमक , सुवर्चल, विड्नमक तथा गौ-दही को मिलाकर इससे तिल तैल का पाक करके छानकर 1-2 बूँद तैल कान मे डालने से कर्णस्राव ( कान बहना ) बन्द हो जाता है।
#- कर्णशूल - वन तुलसीपत्र स्वरस की 1-2 बूँद कान मे डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
#- कण्ठविकार - 5-10 मिलीग्राम वन तुलसीपत्र स्वरस में शहद मिलाकर चाटने से कण्ठ विकार तथा कुक्कुर खाँसी का शमन होता है।
#- अतिसार - वन तुलसी के 10-15 मिलीग्राम फाण्ट में 500 मिलीग्राम जायफल चूर्ण डालकर पिलाने से अतिसार में लाभ होता है ।
#- कण्ठविकार - 5-10 मिलीग्राम वन तुलसीपत्र स्वरस में शहद मिलाकर चाटने से कण्ठ विकार तथा कुक्कुर खाँसी का शमन होता है।
#- अतिसार - वन तुलसी के 10-15 मिलीग्राम फाण्ट में 500 मिलीग्राम जायफल चूर्ण डालकर पिलाने से अतिसार में लाभ होता है ।
#- आमातिसार - 2 ग्राम सौंफ चूर्ण को गौघृत मे भूनकर , मिश्री मिलाकर सेवन कर तत्पश्चात 10-15 मिलीग्राम वन तुलसी का फाण्ट पिलाएँ ,इससे आमातिसार मे लाभ होता है।
#- उदरशूल - 5-10 मिलीग्राम वन तुलसीपत्र स्वरस में मे मिश्री मिलाकर सेवन करने से उदरशूल में लाभ होता है ।
#- मूत्रकृच्छ - वन तुलसीपत्र स्वरस 10 मिलीग्राम मे मिश्री मिलाकर प्रतिदिन पीने से मूत्रकृच्छ मे लाभ होता है।
#- वृककरोग -वन तुलसी के बीजों का फाण्ट बनाकर 10-15 मिलीग्राम की मात्रा में पिलाने से वृक्कविकारों में लाभ होता है।
#- प्रजननस्सथान का वृद्धिरोग- 5-10 मिलीग्राम बर्बरी तुलसीपत्र स्वरस प्रतिदिन सेवन करने से रोग मे लाभ होता है।
#- संधिवात - वन तुलसीपत्र का क्वाथ बनाकर 15-30 मिलीग्राम क्वाथ में 1 ग्राम सोंठ चूर्ण तथा 500 मिलीग्राम मरिच चूर्ण मिलाकर पिलाने से संधिवात तथा वातनाडी की वेदना का शमन होता है।
#- मोच - वन तुलसीपत्र स्वरस को लगाने से मोच का शमन होता है।
#- व्यंग , चेहरे पर दाग - धब्बें :- बकरी के दूध मे वनतुलसी मूल को पीसकर मुँह पर लेप करने से व्यंग आदि त्वक - विकारों का शमन करता है।
#- चर्मरोग - वन तुलसीपत्र स्वरस को लगाने से दाद' शोथ, विसर्प, खुजली में लाभ होता है।
#- घाव - वन तुलसी के पत्रों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव का इन्फैक्सन को रोककर घाव को शीघ्रता से भरता है।
#- शोथ - वन तुलसी के बीज का लेप बनाकर लगाने से सूजन व जलन तथा वेदना को दूर करता है । 2 ग्राम बीजों को खाने बाह्य व आन्तरिक सूजन भी कम होती है।
#- नाडीव्रण - वन तुलसी के पत्रों को पीसकर लगाने से नाडीव्रण ( नसों मे या उनके उपर के घाव ) ठीक होते है।
#- जीर्ण वातकफज ज्वर - ज्वर मे यदि शीत की अनुभूति हो तो पलास , तुलसी- श्वेत व बर्बरी तथा सहजने के पत्ते पीसकर कल्क बनाकर लेप लगाने से लाभ होता है।
#- वेलाज्वर - कृष्ण तुलसी के 21 पत्ते तथा 21 कालीमिर्च को पीसकर 125 मिलीग्राम की वटी बनाकर 1-1 वटी को प्रात: सायं प्रयोग करने से वेलाज्वर का शमन होता है।
#- ज्वरजन्यदाह- वन तुलसी को पीसकर लेप बनाकर लगाने से ज्वर जन्य दाह का शमन होता है।
#- ज्वर - वन तुलसी 5 ग्राम बीजों को पीसकर उसका शर्बत बनाकर पिलाने से ज्वर का शमन होता है।
#- कण्ठमाला - 1 ग्राम चालमोगरा फल गिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से कण्ठमाला मे लाभ होता है।
चालमोगरा के तैल को गाय के दूध से बने मक्खन में मिलाकर गाँठों पर लेप करने भी लाभ होता है।
#- क्षयरोग - तुवरक तैल की 5-6 बूँदों को गोदूग्ध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तथा गौ- मक्खन मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से क्षयरोग में लाभ होता है।
#- हैज़ा - तुवरकफल की गिरी के 1 ग्राम चूर्ण को जल में पीसकर 2-3 बार पिलाने से विसुचिका ( हैज़ा ) मे लाभ होता है।
#- मधुमेह - एक चम्मच तुवरकफलगिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से मूत्र-शर्करा ( पेशाब में शक्कर का जाना, मधुमेह ) कम हो जाती है , जब मूत्र में शक्कर जाना बंद हो जाये तो प्रयोग बंद कर दें।
#- मधुमेह - 1-2 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में 2-3 बार जल के साथ सेवन करने से मधुमेह मे लाभ होता है।
#- योनिदौर्गन्धय - तुवरक के क्वाथ से योनि का प्रक्षालन ( धोने ) से अथवा तुवरक कल्क की वर्ति ( बत्ती ) बनाकर योनि के अन्दर रखने से योनि से आने वाली दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।
#- उपदंश, व्रण - तुवरक के बीजों के साथ जंगली मूँग को मिलाकर यवकूट कर भांगरारस की 3 भावना देकर चौथे दिन महीन पीसकर उसमें थोड़ा चन्दन या नारियल तैल या आँवला तैल मिलाकर उबटन बनाकर उपदंश व्रणों पर लगायें , फिर 3-4 घन्टे बाद स्नान करने से लाभ होता है।
#- उपदंश ( Syphilis सिफ़लिस )- पूरे शरीर मे फैले हुआ सिफ़लिस रोग और पुरानी गठिया में तुवरकतैल की 5-6 बूँदों से शुरू करके मात्रा को बढ़ाते हुए 60 बूँद तक सेवन करने से उपदंश मे लाभ होता है । जब तक इस औषध का सेवन करे तबतक मिर्च- मसाले , खटाई का परहेज़ रखें। गाय के दूध व घी तथा मक्खन का अधिक प्रयोग करे।
#- गठिया रोग - 1 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से गठियारोग में आराम आता है।
#- दाद - तुवरकतैल में नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर दाद मे मालिश करने से एक माह के अन्दर मे ही दाद ठीक हो जाते है।
#- दाद - तुवरकतैल व नीमतैल मे आवश्यकतानुसार सफेद वैसलीन मिलाकर रख ले ! इस मरहम को दाद पर लगाने से दाद मे आराम आता है।
#- खाज- खुजली :- तुवरक तैल को एरण्डतैल मे मिलाकर उसमें गंधक , कपूर और नींबू का रस मिलाकर लगाने से खाज तथा खुजली में लाभ आता है।
#- पामा, छाजन, एक्ज़िमा रोग - तुवरक बीजों को छिलके सहित पीसकर एरण्डतैल में मिलाकर पामा पर लेप करने से पामा मिट जाता है।
#- पामा, छाजन- तुवरक बीजों को गोमूत्र में पीसकर 2-3 बार लेप करने से पामा रोग दूर होता है।
#- खुजली रोग- तुवरक बीजों को गोमूत्र मे पीसकर लगाने से खुजली रोग मे आराम आता है।
#- कुष्ठ रोग- कुष्ठ रोगी को पहले तुवरकतैल की 10 बूँद पिलानी चाहिए , जिससे वमन होकर शरीर के सब दोष बाहर आ जाये । तत्पश्चात 5-6 बूँदों को कैप्सूल मे डालकर या गाय के दूध व मक्खन में भोजनोपरान्त सुबह- सायं दें। धीरे- धीरे मात्रा बढ़ाकर 60 बूँद तक लें जायें , तुवरकतैल को नीमतैल मे मिलाकर बाह्य लेप करें , कुष्ठ की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषध सेवन करे तथा मिर्च- मसाले व खटाई न खायें।
#- घाव, व्रण - तुवरक बीजों को ख़ूब महीन पीसकर उनका बारीक चूर्ण घाव पर लगाने से रक्तस्राव ( ख़ून बहना ) बन्द हो जाता है और घाव को बढ़ने से रोकता है तथा घाव शीघ्रता से भरने लगता है।
#- व्रण , घाव, कुष्ठ - तुवरक बीज , भल्लातक-भिलावा बीज , बाकुची मूल , चित्रकमूल , अथवा शिलाजीत का चिरकाल तक सेवन करने से कुष्ठ मे लाभ होता है।
#- नाडीशूल - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर खाने से नाडीशूल ( नसों मे होने वाला दर्द ) बन्द हो जाता है।
#- महाकुष्ठ, कण्डू तथा चर्मरोग - तुवरकतैल को लगाने से महाकुष्ठ , कण्डूरोग, चर्मरोग व त्वकरोगों मे लाभ होता है।
#- मुर्छा रोग - चालमोगरा ( तुवरक बीज ) बीज चूर्ण को मस्तक पर मलने से मुर्छा दूर होती है।
#- रक्तशोधनार्थ - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर या गाय के मक्खन के साथ भोजन के आधा घन्टे पश्चात सुबह- सायं खाने से रक्त का शोधन होकर रक्तजविकारों का शमन होता है।
#- रक्तजविकार - तुवरकतैल , नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर लेप करने से रक्त विकारों मे लाभ होता है।
#- रसायनार्थ - तुवरक रसायन का सेवन करने से मनुष्य वली , पलित, आदि व्याधियों से मुक्त होकर स्मृतिवान तथा रसायन गुणों से युक्त हो जाता है । इसका प्रयोग सावधानीपुर्वक करना चाहिए क्योंकि यह अमाशय को हानि पहुँचाता है । तैल को गौ- मक्खन मे मिलाकर या कैप्सूल मे भरकर भोजन के बाद लेना चाहिए । यदि तैल के सेवन से किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है तो गाय के दूध व घी को खिलाना चाहिए ।
Sent from my iPhone
No comments:
Post a Comment