Thursday 24 July 2014

८-गौसंहिता -पञ्चगव्य

८-गौसंहिता -पञ्चगव्य
.................पञ्चगव्य चिकित्सा ....................
१. आक की छाल तथा आक की कोंपले या छोटी-छोटी कोमल पत्तियाँ ५०-५० ग्राम इन दोनों को २०० ग्राम आक के दूध में पीसकर गोला बनाकर मिट्टी के पात्र मे मूंह बन्दकर रखकर ५ कि. ग्राम गाय के गोबर से बने कण्डों की आग में फूँक कर भस्म बनालें । फिर निकालकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर एक दो गोली पानी के साथ लेने से भगन्दर व नासूर में लाभ होता है ।

२. नपुंसकता और ध्वजभंग मे छुवारों के अन्दर की गुठली निकालकर उनमें आक का दूध भर दें ,फिर इनकें उपर आटा लपेटकर पकावें, उप्र का आटा जल जाने पर छुवारों को पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बना लें ,रात्रि के समय एक दो गोली खा कर गाय का दूध पीने से स्तम्भन होता है ।

३. आक की छाया शुष्क जड़ के २० ग्राम चूर्ण को आधा किलो गाय के दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें , इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है ।

४. आक का दूध और असली मधु और गाय का घी , सम्भाग ४-५ घण्टे खरल कर शीशी में भरकर रख लें इन्द्री की सीवन और सुपारी को बचाकर इसकी धीरे - धीरे मालिश करें और उपर से खाने का पान और अरण्ड कापत्ता बाँध दें ,इस प्रकार सात दिन मालिश करें । फिर १५ दिन छोड़कर पुनः मालिश करने से शिशन के समस्त रोगों में लाभ होता है ।

५. बांझपन -सफ़ेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीस , १-२ ग्राम की मात्रा से २५० ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करायें शीतल पदार्थ का पथ्य देवें । इससें बन्द ट्युब व नाड़ियाँ खुलती है व मासिकधर्म व गर्भाशय की गाँठों में लाभ होता है।

६. आक के २-४ पत्तों को कूटकर पोटली बना , तवें पर गाय का घी लगाकर गर्म करके सेंक लें ।सेंकने के पश्चात् आक के पत्तों पर गाय का घी चुपड़कर गरम करकें बाँध दें ।

७. आक की जड़ २ ग्राम चूर्ण को २ चम्मच गाय के दूध की दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है ।

८. आक के ताज़े पत्तों का रस १ किलोग्राम , गाय का दूध २ किलोग्राम सफ़ेद चन्दन लाल चन्दन ,हल्दी , सोंठ , और सफ़ेद ज़ीरा ६-६ ग्राम इनका कल्क कर १ किलोग्राम गाय के घी में पकायें ।घी मात्र शेष रहने पर छान कर रख लें । मालिश करने से खुजली - खाज आदि में लाभ होता है ।

९. आक का दूध ताज़ा , व सुखाया हुआ १ भाग १०० बार जल से धोया हुआ गाय का मक्खन ख़ूब खरल करके मालिश करें व २ घंटे तक शीत जल व वायु से रोगी को बचाये रखें ।

१०. अर्कमूल की छाल १० ग्राम , त्रिफला चूर्ण १० ग्राम , एकसाथ आधा क़िलों जल मे अष्टमांस क्वाथ सिद्ध कर प्रतिदिन प्रात: उसमें एक ग्राम मधु और ३ ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करावें और साथ ही अर्कमूल को गाय की छाछ में पीसकर श्लीपद पर लेंप करे । ४० दिन में पूर्ण लाभ होगा ।


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