Thursday 24 July 2014

१- गौसंहिता -पञ्चगव्य

१- गौसंहिता -पञ्चगव्य
पंञ्गव्य-चिकित्सा

१. गौदूग्ध को गरम करके रखने से थोड़ी देर बाद उस पर मलाई जमने लगती है ।मलाई का उपयोग त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है ,मलाई को रात्री में सोने से पहले नाभि में लगाने से होंठ फटने बंद होते है तथा फटे होंठो पर मलाई लगाने से वह तुरन्त ठीक होने लगते है तथा चेहरे पर लगाने से चेहरे पर ओज बढ़ता है तथा तेज बढ़ता है और कान्तिवान होता है ।

२. गाय का घी स्वास्थ्य के साथ बु्द्धि एंव स्मरणशक्ति को बढ़ाता है तथा आँखों के लिए हितकारी होता है ।गाय का घी जितना पुराना होता है ,उसी स्तर पर उसकी औषधिय उपचार -क्षमता में वृद्धि होती रहती है ।ज्वरजनित ताप में गाय के पुराने घी की माँलिश लाभदायक होती है

३. हड्डी टूटने पर बाॅखडी का एक गिलास दूग्ध में स्वादानुसार खाण्ड मिलाकर गरम करें ।गरम होने पर उसमें एक चम्मच घी व दस ग्राम लाख का चूर्ण डालकर ठण्डा करके पिलाए,
तो टूटी हुई हड्डी जूड़ जाती है ।

४. कफ (बलगम) होने पर गरम दूध में मिश्री और कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीलायें ।
तो कफ निकल जायेगा और शान्ति मिलेगी ।
५. आँख में जलन होने पर गाय के दूध रूप को तर करके उसके उपर फिटकरी का बारीक चूर्ण डालकर आँख पर रखें और पट्टी बाँध दें ।

७. धतुरा अथवा कनेर के विष पर एक गिलास दूध में दो चम्मच शक्कर मिलाकर पीलायें ।

८. मैनसिल के जहर में एक गिलास दूध लेकर उसमें शहद मिलाकर तीन दिन तक सुबह -शाम पीलायें ।
९. जीर्णज्वर में गाय के एक गिलास दूध में एक चम्मच घी ५ ग्राम सोंठ का चूर्ण ,एक छुआरा,और १०ग्राम काली दाख मिलायें ।उसमें आधा गिलास पानी डालकर गरम करे ।जब
पानी जल जाय ,तब ठण्डा करके पीलायें ।

१०- मधुमेह व मूत्र रोगों में गाय का दूध गर्म करके और एक गिलास दूध में स्वादानुसार गुड़ तथा एक चम्मच घी डालकर सुबह -शाम पीलायें ।

११. काँच का चूर्ण यदि पेट में चला जाये तो उपर से गाय का दूध गर्म करके पीलायें ।

१२ . आधा शीशी दर्द में गाय के दूध का मावा बनाकर खिलाये या गाय के दूध की खीर बनाकर उसमें ५ ग्राम बादाम के बारीक टुकड़े डालकर खिलाये ।

१३. संखिया ,नीला थोथा,बछनाग,मुर्दा संख इत्यादि के विष पर ,जब तक उलटी न हो जाय ,तब तक फीका या मीठा मिला हुआ गाय का गुनगुना दूध पिलाते रहें ।

१४. बलवीर्य की वृद्धि ,गाय के एक गिलास दूध को गर्म करके उसमें एक चम्मच घी व २० ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह- शाम पियें ।इससे बढ़कर पथ्य,तेज और बल वृद्धि करने वाला अन्य कोई योग नहीं हो सकता ।

१५. प्रवाहिका (दस्त) तथा रक्त पित्त होने पर एक गिलास दूध में एक गिलास पानी मिलाकर उबाले ।जब पानी जल जाये तब उस दूध को प्रवाहिका व रक्त पित्त के रोगी को पीलायें तो रोग दूर हो जायेगा ।


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