Sunday 13 July 2014

गौसंहिता-गोमूत्र

२३- गौसंहिता
 ़़़़़़़़़़़़़़गोमूत्र ़़़़़़़़़़,

१. गोमूत्रं कटू तीक्ष्णोष्णं सक्षारत्वान्नवातलम् ।
लघ््वग्निदीपनं मेध्यं पित्तलं कफवातजित् ।।
शूलगुल्मोदरानाहधिरेकास्थापनादिषु ।
मूत्रप्रयोगसाध्येषु गव्यं मूत्रं प्रयोजयेत ।।
अर्थात-
गोमूत्र कटु तीक्ष्ण और उष्ण होता है तथा क्षारयुक्त होने से वातवर्धक नही होता है एंव यह लघु ,अग्निदीपक ,मेध्य ,पित्तजनक तथा कफ ,वात का नाश होता है ।शूल, गुल्म,उदररोग,आनाह
विरेचनकर्म,आस्थापनबस्ति एंव मूत्र के प्रयोग ठीक होने वाले रोगों में गोमूत्र का प्रयोग करना चाहिए ।
२. गोमूत्र तीखा व कड़वा रस होता है जो क्षारयुक्त है ।गोमूत्र मे का कार्बोलिकएसिड होने से उसकी स्वच्छता और पवित्रता बढ जाती है फास्फेट,पोटाश,लवण,नाईट्रोजन,यूरिकअम्ल, हारमोन, साईटोकाइन्स व जीवाणु एंव व िषाणु नाशक तत्व होते है यहलघुअग्निदीपक,मेधाकारक, पित्त कारक तथा कफ,वातनाशक है ।

३. गोमूत्र के सेवन से भूख बढ़ता है ।यह शूल, उदर रोग तथा पेट के भारीपन को ठीक करता है ।यह अपच व कब्ज को दूर करता है ।इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में पँचकर्म क्रियाएँ तथा व्रण धावणार्थ, स्वेदनार्थ,विरेचनार्थ तथा निरूहवस्ति में एंव विभिन्न प्रकार के लेपों में होता है ।

४. आयुर्वेद में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियाँ गोमूत्र से ही बनायी जाती है ।गोमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण (कफनाशक ) मेदोहर अर्क (मोटापानाशक ) है इसके अतिरिक्त आयुर्वेद जन्य औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है तथा कुछ औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह देते है ।

५. डा. क्राफोड़ हैमिल्टन का दावा है कि गोमूत्र के प्रयोग से हृदयरेग दूर होता है तथा पेशाब खुलकर आता है उनका कहना है कि कुछ दिन गोमूत्र के सेवन से धमनियाँ प्रसारित होती है जिससे रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता है और यह पुराने गुर्दारोग (रीयल फेल्योर/किडनी फेल्योर ) की एक उत्तम औषधि है

६. डा.सिमर्स,ब्रिटेन का तर्क है कि गोमूत्र रक्त में बहने वाले दूषित किटाणुओ का नाश करता है ।यह कटु ,तीक्ष्ण ,उष्ण होता है तथा क्षारयुक्त होने से वातवर्धक नहीं होता ।यह लघु ,अग्निदीपक ,मेध्य ,पित्तजनक तथा कफ -वातनाशक है ।शूल,गुल्म ,उदररोग ,आनाह,विरेचन कर्म आस्थापन ,बस्ति आदि व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग करना उत्तम रहता है ।

७. गोमूत्र से कुष्ठ आदि चर्मरोग दूर होते है ।कान में डालने से कर्णशूल,को नष्ट करता है ।गोमूत्र पाण्डुरोग को दूर करता है ।आयुर्वेद में जहाँ भी मूत्र शब्द का उपयोग हुआ है वह गोमूत्र का ही चर्चा है ऐसा ही माने और स्वर्ण ,लौह ,धतूरा ,तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से ही शुद्ध करने का विधान है ।

८. गोमूत्र द्वारा शुद्धीकरण होने पर द्रव्य दोषरहित होकर अधिकगुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते है ।रोगनिवारण हेतु विभिन्न विधियों द्वारा गोमूत्र का सेवन किया जाता है ।जिनमें गोमूत्रपान,माँलिश करना,पट्टीरखना,एनिमा तथा गर्मसेंक,प्रमुख है ।पीने हे ताजा तथा माँलिश हेतु २से७ दिन पुराना गोमूत्र उत्तम माना गया है ।गाय के मूत्र में कार्बोलिकएसिड होने के कारण इसकी स्वच्छता और पवित्रता बढ़ जाती है ।

९. गोमूत्र मनुष्य जाति को प्राप्त होने वाला अमूल्य अनुदान है ।यह धर्मानुमोदित तथा प्राकृतिक सहज प्राप्य ,हानिरहित,कल्याणकारी ,एंव आरोग्यरक्षक ,रसायन है ।स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य रक्षण तथा आँतो के विकार प्रशमन हेतु आयुर्वेद में गोमूत्र को द्विव्य औषधि माना गया है ।
१०. आधुनिकदृष्टिसेगोमूत्रमेंपोटेशियम,कैल्शियम,मैग्निशियमक्लोराइड,यूरियाफासफेट,अमोनिया , क्रियेटीन आदि विभिन्नपोषक क्षार विद्धमान रहते है ।जिनके कारण इसमें औषधिय गुणों की भरमार है ।इतना सुलभ व सस्ता होते हूए भी हम जानकारी के अभाव में उसे दवा मानते ही नहीं है ।पेट के रोगों के लिए तो गोमूत्र रामबाण औषधि है ।


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