Friday, 30 April 2021

रामबाण योग :- 48 -:

रामबाण योग :- 48 -:

#- करी पत्ता (Curry tree leaf) का प्रयोग भारतीय पकवानों में किया जाता है। शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां करी पत्ता उपयोग में नहीं लाया जाता होगा। करी पत्ता, को कैडर्य, कटनीम, मीठा नीम, पर्वत निम्ब और गिरिनिम्ब जैसे कई नामों से जाना जाता है, लेकिन आप लोग इसे करी पत्ता या मीठा नीम के नाम से ही जानते होंगे। क्या आपको पता है कि जिस करी पत्ता को आप लोग व्यजंनों के लिए प्रयोग में लाते हैं उसके कई सारे औषधीय गुण हैं। क्या आपको यह पता है कि करी पत्ता एक जड़ी-बूटी भी है, और आप सिर दर्द, मुंह के अनेक रोग में करी पत्ता (मीठा नीम) के इस्तेमाल से फायदे (Curry tree leaf benefits and uses) ले सकते हैं। इतना ही नहीं, मोतियाबिंद, पित्त विकार, कफज विकार आदि रोगों में भी मीठी नीम (करी पत्ता) के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।
आयुर्वेद में करी पत्ता (मीठा नीम) के गुण के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं जो आपको जानना जरूरी है, क्योंकि आप मीठा नीम (करी पत्ता) के औषधीय गुण के फायदे बदहजमी, दस्त, उल्टी, पेट दर्द, डायबिटीज आदि में तो ले ही सकते हैं, साथ ही मूत्र रोग, दाद-खाज-खुजली आदि त्वचा रोग, बुखार, कीड़े-मकौड़े के काटने पर भी करी पत्ता (मीठा नीम) से लाभ ले सकते हैं।
मीठा नीम का उपयोग भारत में बहुत साल पहले से किया जा रहा है। इसके गीले और सूखे पत्तों को घी या तेल में तल कर कढ़ी या साग आदि में छौंक लगाने से भोजन अति स्वादिष्ट, सुंधित हो जाते हैं। करी पत्ता के पत्तों को दाल में छौंक देने से दाल स्वादिष्ट बन जाती है। करी पत्ता को चने के बेसन में मिलाकर पकौड़ी बनाई जाती है।

  1. मीठी नीम (करी पत्ता) के पत्तों का प्रयोग खाद्य पदार्थों में छौंक लगाने के लिए किया जाता है।
  2. आम, इमली आदि के साथ इसके पत्तों को पीसकर बनाई गई चटनी अत्यन्त स्वादिष्ट सुगन्धित होती है।
  3. मीठी नीम के पत्तों को नारियल तेल में डालकर कुछ दिनों तक धूप में रखने से तेल सुगन्धित हो जाता है।


करी पत्ता (मीठा नीम) का वानस्पतिक नाम Murraya koenigii   (Linn.) Spreng. (मुराया कोईनीगी) है, -
मीठी नीम कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, पित्तशामक, कण्ठ्य और संज्ञास्थापक होती है। इसके पत्ते और जड़ की छाल वमनरोधी, वातानुलोमक, आमाशयिक सक्रियतावर्धक, जीवाणुरोधी, बलकारक होती है। इसके पत्ते का काढ़ा शीत, लघु; अतिसाररोधी और प्रवाहिकारोधी होता है।
 


#- सिरदर्द - सिर दर्द होने पर करी पत्ता के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। आप करी पत्ता (मीठी नीम) के फूलों को पीस लें। इसे सिर पर लगाएं। इससे सिर दर्द ठीक होता है।

 #- तिमिर रोग - मीठी नीम के ताज़े पत्रस्वरस को आँखों में अञ्जन करने से तिमिर रोग में लाभ होता है।

#- मोतियाबिंद - मोतियाबिंद में भी मीठी नीम के उपयोग से लाभ होता है। मीठी नीम के ताजे पत्ते लं। इसका रस निकाल लें। इसे आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद की बीमारी में लाभ होता ै।

#- मुखरोग - मीठी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुख रोगों का शमन होता है।

#- मुखदौर्गन्धय - मुंह से बदबू आने से परेशान हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से मुंह की बदबू का इलाज करना चाहते हैं तो मीठी नीम की 2-4 पत्तियों को चबाकर खाएं। इससे मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।

#- मुँह के छालें - मुंह में होने वाली बीमारी जैसे मुंह के छाले की समस्या में आप मीठी नीम के फायदे ले सकते हैं। इसके लिए मीठी नीम के पत्तों का काढ़ा बना लें। इससे गरारा करें। इससे बीमारी ठीक होती है।
 
#- कफज विकार - कफज विकार को दूर करने के लिए 5-10 मिली मीठी नीम के पत्ते का रस निकाल लें। इतनी ही मात्रा में शहद मिला लें। इसका सेवन करें। इससे कफज विकार ठीक होता है।


#- अजीर्णजन्य छर्दि - मीठी नीम के पत्ते के रस में निम्बू का रस और शर्करा मिला लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह के समय पिएं। इससे उल्ट, मुंह से पानी आने (लार गिरना) की समस्या और बदहजमी के साथ-साथ बदहजमी के कारण होने वाली उल्टी भी ठीक होती है।


#- अतिसार - दस्त पर रोक लगाने के लिए मीठी नीम के औषधीय गुण से फायदा होता है। इसके लिए मीठी नीम के 2-4 फलों को पीसकर खिलाएं। इससे दस्त पर रोक लगती है।

#- उल्टियाँ - आप उल्टी को रोकने के लिए भी करी पत्ता का सेवन कर सकते हैं। उल्टी होने पर मीठी नीम के 5-10 पत्तों को पानी के साथ पीसकर पिएँ। उल्टी रुक जाती है।


#- पित्तज विकार - पित्तज विकार दूर करने के लिए 1-2 ग्राम करी पत्ता की जड़ लें। इसका चूर्ण निकाल लें। इसे शहद के साथ चाटें। इससे पित्तज-विकारों में लाभ होता है।


#- पेट के कीड़े - 10-15 मिली मीठी नीम पत्ते के रस को पिलाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।

#- पेटदर्द - 10-20 मिली मीठी नीम की जड़ के काढ़ा में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है।

#- मधुमेह, प्रेमह - मीठी नीम की 10 पत्तियों का रोज सुबह खाएं। इससे डायबिटीज और डायबिटीज के कारण होने वाली बीमारियों में लाभ होता है।

#- मूत्ररोग - पेशाब से जुड़ी बीमारी होने पर करी पत्ता का सेवन करने से फायदा होता है। इसके लिए करी पत्ता के 5 मिली रस को पिएं। इससे लाभ होता है।
 
#- बुखार - बुखार होने पर भी करी पत्ता के इस्तेमाल से फायदा मिलता है। मीठी नीम के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पीने से बुखार ठीक होता है।

#- कीटदंश - कीड़े-मकौड़े के काट लेने पर करी पत्ता से इलाज कर सकते हैं। इसके लिए करी पत्ता की जड़ लें। इसकी छाल निकाल लें। इसे पीसकर कीटों के काटने वाले स्थान पर लगाएं। इससे दर्द, सूजन आदि विकार ठीक होते हैं।

#- पित्ति उछलना - करी पत्ता के रस में नींबू रस मिलाकर लेप करें। इससे खुजती, पित्ती निकलना और दाद का इलाज होता है।

#- त्वचा विकार - करी पत्ता के फलों का तेल निकाल लें। इसे त्वचा पर लगाएं। इससे त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है।

#- पामा - मीठी नाम पत्रस्वरस में नींबू स्वरस मिलाकर लेप करने से पामा रोग , पत्तीरोग , तथा दाद में लाभ होता है।

#- विस्फोट - मीठी नीम के पत्तों को पीसकर पुल्टिश का लेप लगाने से लाभ होता है।

#- बालरोग - ताज़े फलों से प्राप्त सार में नींबू स्वरस तथा शर्करा मिलाकर एक चम्मच मात्रा में प्रयोग करने से बालकों के दन्तोदभवजन्य विकार ( दाँतो के निकलते समय होने वाले बालरोग ) , मुखपाक , तंत्रिका- दौर्बल्य ( नसों की कमज़ोरी ) तथा अस्थिदौर्बल्य ( हड्डियों की कमज़ोरी ) में लाभ होता है।

#- कीटदंश - मीठी नीम की जड़ की छाल को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से दंशजन्य विकार में लाभ होता है।

#- सर्पदंश - मीठी नीम की जड़ का क्वाथ बनाकर पिलाने से सर्प दंशजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन करता है।


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रामबाण योग :- 47 -:

रामबाण योग :- 47 -:

#- बकायन - इसकी जड़ तीक्ष्ण, तिक्त, स्तम्भक, तापजनक, वेदनाहर, विशोधक, क्षतिविरोहक, पूयरोधी होती है। इसके पत्ते तिक्त, स्तम्भक होते हैं। इसकी जड़ की छाल प्रदाहनाशक और विषरोधी होती है। इसके बीज तिक्त, कफनिसारक, कृमिघ्न एवं वाजीकारक होते हैं। इसका बीज का तेल विरेचक, कृमिघ्न, विशोधक, शीघ्रपाकी एवं बलकारक होता है।

 # संक्रामक बिमारियों से रोक - महानिम्ब के फलों की माला बनाकर दरवाज़े व खिड़कियों पर टाँगने से संक्रामक बिमारियों का प्रभाव तथा महानिम्ब के फलों की माला पहनने से संक्रामक रोगों का शरीर पर आक्रमण नहीं होता है।प्रसवकाल के दौरान महानिम्ब के फलो की माला या गुच्छों सहित जच्चा कि चारपाई व खिड़की दरवाज़ों में आज भी बाँधा जाता है, इसका कारण यही है कि जच्चा- बच्चा की प्रसव के दौरान सारी गन्दगी की बहुत ज़्यादा सफ़ाई नहीं हो पाती है और दोनों ( जच्चा- बच्चा ) की स्थिति बड़ी नाजूक होती है, उन्हें संक्रामक रोगों का डर बना रहता है इसलिए महानिम्ब का प्रयोग किया जाता है और बच्चा पैदा होते ही काँसें की थाली बजाकर जच्चा- बच्चा व पूरे घर को संक्रमण से मुक्त किया जाता है क्योकि कांसें कि ध्वनि तरंगें जहाँ तक पहुंच जाती है , वहाँ तक सब वायरस व बैक्टियां मुक्त क्षेत्र हो जाता है। एक वैज्ञानिक मान्यता यह भी है कि वायरस सन्धिकाल ( सुबह- सायं ) में ही सक्रीय होता है उसी समय काँसे की थाली बजाया जाये तो वह तुरन्त मर जाता है । इसी कारण पूजा ( आरती ) में काँसे के घण्टे, चंग,मञ्जिरें बजाने का विधान है , मन्दिरों में काँसे के घण्टे लगाये जाने के कारण वहाँ का वातावरण शुद्ध होता है तथा शान्ति मिलती है।


#- आँख रोग, काजल - बकायन के एक किग्रा हरे ताजे पत्तों को पानी से धोकर अच्छी प्रकार से कूट-पीसकर रस निकाल लें। रस को पत्थर के खरल में घोटकर सुखा लें। इसे दोबारा 1 से 2 बार खरल करें। खरल करते समय 3 ग्राम तक भीमसेनी कपूर मिला दें। इसको सुबह और शाम आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिन्दु और आंखों की अन्य बीमारियों जैसे आंखों से पानी बहने, लालिमा, आंखों में खुजली , कंडू, रोहे होने और अंधेपन की बीमारी में लाभ होता है।

#- आँखें फुलना - महानिम्ब के फलों की छोटे टुकड़े को आंखों पर बाँधने से पित्तज दोष के कारण होने वाली बीमारी में लाभ होता है।बकायन के फलों को पीसकर छोटी टिकिया बना लें। इसे आंखों पर बाँधते रहने से आंखों के फूलने की समस्या ठीक होती है।
 
#- प्रसूतिकाल का दर्द - प्रसूति काल में गर्भाशय में दर्द और मस्तक के दर्द हो तो बकायन के पत्तों और फूलों को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें। इसे सिर और पेड़ू पर बाँधने से लाभ होता है।

#- सिर के फोड़े व जूएँ - बकायन के फूलों और पत्तों को पीसकर सिर पर लगाने से सिर की जुएं मर जाती हैं। बकायन के फूलों के 50 मिली रस को सिर पर लगाने से त्वचा, सिर और मुंह पर फोड़े होने की समस्या में फायदा होता है।

#- गण्डमाला, कुष्ठ - 5 ग्राम महानिम्ब की छाल को छाया में सूखा लें। इसमें 5 ग्राम पत्ते को कूटकर 500 मिली पानी में पकाएं। जब काढ़ा एक चौथाई बच जाए तो इससे गले पर लेप करें। इससे गंडमाला और कुष्ठ रोग में लाभ होता है।

#- मुँह के छालें - बकायन की छाल और सफेद कत्था को 10-10 ग्राम की मात्रा में लें। इनका चूर्ण बनाकर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

#- मुखरोग - 20 ग्राम महानीम की छाल को जला लें। इसे 10 ग्राम सफेद कत्थे के साथ पीसकर मुंह के अंदर लगाने से लाभ होता है।

#- श्वासनली की सूजन - महानीम की जड़ और पत्तों का काढ़ा बना लें। काढ़ा को 15-30 मिली मात्रा में पिलाने से खांसी और सांस की नली की सूजन ठीक होती है।


#- पेटदर्द - पेट दर्द होने पर महानीम के औषधीय गुण से फायदा होता है। आप 3-5 ग्राम पत्तों का काढ़ा बना लें। इसमें 2 ग्राम शुंठी का चूर्ण मिलाकर पिलाने से पेट दर्द ठीक होता है।

#- पेड के कीड़े - महानीम के 50 ग्राम ताजी छाल को कूटकर, 300 मिली जल में मिला लें। इसका काढ़ा बनाएं। जब पानी एक चौथाई बच जाए तो इसे बच्चों को एक बड़ा चम्मच सुबह और शाम पिलाएं। इससे आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।

#- पेट के कीड़े - 20 ग्राम बकायन की छाल को 2 लीटर पानी में उबालें। 750 मिली पानी शेष रहने पर थोड़ा गुड़ मिला लें। इसे तीन दिन तक 20-50 मिली की मात्रा में पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। 

#- पेट के कीड़े - 20 मिली बकायन के पत्ते के काढ़ा को सुबह-शाम पिलाएं। इससे भी पेट के कीड़े मर जाते हैं।
 
#- पित्त की थैली की पथरी - महानीम के 5 मिली पत्ते के रस में 500 मिग्रा यवक्षार मिला लें। इसे पीने से गालब्लैडर स्टोन की बीमारी में फायदा होता है। गालब्लैडर की पथरी टूट-टूट कर निकल जाती है।


#- मधुमेह - महानीम के एक या दो बीजों की गिरी को चावल के पानी के साथ पीस लें। इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलाकर सेवन करं। इससे डायबिटीज पर नियंत्रण पाने में सफलता मिलती है।


#- बवासीर - महानीम के औषधीय गुण से बवासीर का इलाज किया जा सकता है। आप बकायन के सूखे बीजों को कूट लें। इसे लगभग 2 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करें। इससे खूनी और बादी तरह के बवासीर में बहुत लाभ होता है।

#- बवासीर - महानीम के बीजों की गिरी और सौंफ को समान मात्रा में पीस लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें। 2 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

#- बवासीर - बकायन के जमीन पर गिरे हुए पके फलों के अन्दर के 8-10 बीजों को जल के साथ पीस लें। इसकी 50 मिग्रा की गोलियां बनाकर छाया में सूखाकर रख लें। सुबह और शाम एक-एक गोली बासी जल के साथ सेवन करें। इसके साथ ही 1-2 गोली गुड़ के शरबत में घिसकर मस्सों पर लेप करें। इससे बवासीर का उपचार होता है।

#- ख़ूनी बवासीर - बकायन के बीजों की गिरी में समान-भाग एलुआ हरड़ मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कुकरौंधा के रस के साथ घोटकर 250-250 मिग्रा की गोलियां बना लें।इसे सुबह और शाम 2-2 गोली जल के साथ लेने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। इससे रक्तस्राव बंद हो जाता है, और कब्ज दूर होता है।
 
#- गर्भाशय व मासिक विकार - 5 मिली महानिम्ब के पत्ते के रस को पिलाने से गर्भाशय और मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभ होता है।

#- गर्भाशय की सफ़ाई - बकायन के 10 मिली पत्ते के रस में 3 मिली अकरकरा का रस मिला लें। इसे सुबह-शाम खाली पेट पिलाने से गर्भाशय साफ होता है।

#- गर्भाशय विकार - महानीम के 10 मिली पत्ते के रस में 3 मिली अकरकरा चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम खाली पेट पिलाने से गर्भाशय संबंधी विकार ठीक होता है।

#- मासिकधर्म विकार - 6 मिली महानीम के फूलों के रस में 1 चम्मच मधु मिला लें। इसे सुबह के समय चाटने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।

#- मासिकधर्म विकार - 10-20 मिली बकायन की छाल का काढ़ा पीने से मासिक धर्म खुलकर होने लग जाता है।


#- ल्युकोरिया - बकायन के बीज और सफेद चन्दन को बराबर भाग में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में बूरा मिला लें। इसे 6 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।


#- गठिया - गठिया में महानीम के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। आप इसके लिए महानीम के बीज लें। इसे सरसों के साथ पीस लें। इसे गठिया वाले अंग पर लेप करें। इससे गठिया में तुरन्त लाभ होता है।
 
#- सायटिका रोग - 10 ग्राम बकायन की जड़ की छाल लें। इसे सुबह और शाम जल में पीस-छानकर पिएं। इससे सायटिका की गंभीर बीमारी में भी लाभ होता है।


#- त्वचारोग - बकायन के 10-20 फूलों को पीसकर लेप लगाने से त्वचा के फोड़े, पुंसी और खुजली आदि रोगों में लाभ होता है।

#- घाव - घाव के इलाज में महानीम के औषधीय गुण से फायदा होता है। आप घाव के उपचार के लिए महानीम के पत्ते लें। इसका रस निकालकर घाव को धोएँ। इससे लाभ होता है।

#- घाव, चोट - त्वचा पर फोड़ा, चोट, और घाव हो तो बकायन के 8-10 पत्तों का पेस्ट बना लें। इससे लेप करना लाभकारी होता है।

#- घाव - बकायन के पत्तों का काढ़ा बना लें। इससे घाव को धोने से घाव ठीक होता है।


#- सूजन - शरीर के किसी भी अंग में सूजन हो तो महानीम के फायदे ले सकते हैं। इसके लिए महानीम के 10-20 पत्तों को पीस लें। इसे सूजन वाले अंग पर लगाकर पट्टी बांध दें। इससे सूजन कम होता है।


#- त्वचा के कीड़े - 50 मिली सिरका में महानीम के 8-10 सूखे फल चूर्ण को मिलाकर पेस्ट बना लें। इससे त्वचा पर लेप करने से त्वचा के कीड़े खत्म होते हैं।

#- त्वचा के कीड़े - बकायन के 8-10 सूखे फलों को 50 मिली सिरके में पीस लें। इसे त्वचा पर लगाने से त्वचा पर  कीड़े लगने वाली बीमारी में लाभ होता है।

#- फोड़े , फुन्सियां - बकायन के फूलों के रस का लेप करने से खुजली, त्वचा पर होने वाले फोड़े, और पस वाले फोड़े ठीक होते हैं।

#- बकायन को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिएः- बीज का चूर्ण-1 से 3 ग्राम, छाल- 6 से 12 ग्राम , छाल का काढ़ा- 50-100 मिली , पत्ते का रस- 5 से 10 मिली , पत्ते का चूर्ण- 2 से 4 ग्राम । महानिम्ब का अधिक मात्रा में यदि उपयोग होने के कारण कोई उपद्रव होता है तो सौंफ खाने से सभी उपद्रव शान्त होते है।मंजीठ तथा जावित्री भी प्रतिनिध द्रव्य है।
 
#- महानिम्ब का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसके अधिक प्रयोग से विषाक्त लक्षण उत्पन्न होते हैं।यह लिवर संबंधी नुकसान व आमाशय संबंधी नुकसान तथा बीमारी होने की स्थिति में मंजीठ और जावित्री का इस्तेमाल करें।

#- पुराना ज्वर - महानिम्ब की कच्ची ताज़ा गुठली सहित फलों को कुटकर उनके रस में समान- भाग गिलोय का रस मिलाकर तथा दोनों का चौथाई भाग देशी अजवायन का चूर्ण मिलाकर खुब खरल कर 500 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर दिन में तीन बार एक- एक गोली ताज़े जल के साथ सेवन करने से पुराने से पुराना ज्वर ठीक होता है। यह रक्तशोधक व वातनाशक भी है।

#- विषमज्वर - 10-10 ग्राम बकायन की छाल और धमासा तथा 10 ग्राम कासनी के बीजों को मिलाकर जौकुट कर लें तथा 50-100 मिलीग्राम पानी में भिगोकर कुछ समय बाद अच्छी तरह हाथ से मसलकर - छानकर पिला देवें । दो खुराक देने से ही ज्वर में लाभ होने लगता है।

#- नेत्राभिष्यन्द - महानिम्ब के फलों की पिण्डिका बनाकर नेत्रों पर बाँधने से पित्तज अभिष्यन्दी में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - 3 ग्राम बीजों को रात में जल में भिगोकर , प्रात: पीसकर सेवन करने तथा भोजन में बेसन की रोटी तथा गौघृत का प्रयोग करने से कुष्ठ में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - बकायन के पके हुएे बीजों को लेकर उनमें से 3 ग्राम बीजों को 50 मिलीग्राम पानी में रात को भिगोकर रखें , प्रातःकाल महीन पीसकर सेवन करे । बीस दिनों तक निरन्तर सेवन करने से कुष्ठ रोग में अवश्य लाभ होता है। पथ्य में बेसन की रोटी गौघृत के साथ खाने से लाभ होगा।

#- कुष्ठ रोग - बकायन बीज कल्क अथवा बीज तैल का लेप करने से कुष्ठ मे लाभकारी होता है।

#- पामा- बकायन पुष्पस्वरस का लेप करने से त्वचागत पिडिका , कण्डूरोग तथा पूययुक्त पिडिका का शमन होता है।

#- क्षत - क्षत हो जाने पर बकायन के पत्रों की पुल्टिश बनाकर लेप करने से लाभ होता है।

#- व्रण - व्रणों पर बकायन के पत्तों की पुल्टिश बनाकर लगाने से लाभ होती है।

#- अर्बुद - अर्बुद 10-20 बकायनपत्रों की पुल्टिश बनाकर लेप करने से लाभ होता है।

#- विस्फोट - बकायनपत्र- कल्क का लेप करने से क्षत, त्वकरोग, व विस्फोट ( बालतोड़ ) में लाभकारी होता है।

#- आवेश रोग - बकायन के 10 ग्राम पत्तों को 500 मिलीग्राम पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष क्वाथ को स्त्रियों को पिलाने से लाभ होता है।

#- विष व प्रदाहनाशक - बकायन की जड़ की छाल 6-12 ग्राम को तीन कप पानी में पकाकर 50-100 मिलीग्राम की मात्रा में लेने से यह प्रदाहनाशक व विषरोधी साबित होता है।

#- कफनि: सारक, बाजीकारक , कृमिघ्न - बकायन बीज चूर्ण 3 ग्राम नित्यप्रति गरम पानी से लेने से कफ को बाहर निकालता है तथा पेट के कीड़ों को मारता है व स्तम्भन व बलवर्धन तथा बाजीकरण भी करता है।

#- चूहों का विष - तीन ग्राम बकायन बीज चूर्ण गरम पानी से लेने से चूहों का विष उतरता है।

#- पूयरोधी - बकायन पत्रस्वरस कान मे डालने से कान का पूय ठीक होता है ।

#- पूयरोधी - किसी भी प्रकार के घाव या फोड़ - फुन्सियां या त्वचा मे मवाद पड़ गया हो ऐसे मे बकायन पत्रस्वरस लगाने से लाभ होता है।

#- मलबन्धन - बकायन बीज चूर्ण 3 ग्राम प्रतिदिन ताज़े पानी से लेने से मलबन्धन का कार्य करता है।

#- कफनि: सारक - 3 ग्राम बीज चूर्ण नित्यप्रति गरम पानी से लेने से छाती मे से कफ को बाहर निकालने का काम करता है।

#- बहुमूत्रता - 3 ग्राम बकायन बीज चूर्ण नित्यप्रति सेवन करने से मूत्रस्तम्भक का कार्य करता है।यदि पेशाब आने में कोई दिक़्क़त हो तो उसे भी दूर करता है।

#- अमाशय की सक्रीयता - 3 ग्राम बकायन बीज चूर्ण नियमित लेने से यह अमाशय की सक्रीयता को बढ़ाकर भोजन शीघ्र हज़म करके बल को बढ़ाने का काम करता है।


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