रामबाण :- 41 -:
#- गठिया - नीम
के
पत्ते
20
ग्राम
,
कड़वे
परवल
के
पत्ते
20
ग्राम
को
300
मिली
पानी
में
पकाएं।
एक
चौथाई
कप
शेष
रहने
पर
शहद
मिला
कर
सुबह
-
शाम
सेवन
करने
से
खून
की
शुद्धि
होती
है। वातदोषों का पाचन व वात
दोष
शांत
होता
है।
इससे
गठिया
रोग
में
लाभ
होता
है।
इसके
साथ
ही
नीम
के
पत्तों
को
कांजी
या
गौतक्र (
छाछ
)
में
उबालकर
तथा
पीसकर
जोड़ों
पर
लेप
करते
रहना
चाहिए।
#- आमवात - 20 ग्राम नीम के अन्दर की छाल को पानी के साथ खूब महीन पीसकर दर्द के स्थान पर गाढ़ा लेप करें। सूख जाने पर लेप उतार कर दुबारा लेप करें। इससे 3-4 बार में ही जोड़ों के दर्द में आराम होता है।
#- 10-20 बूँद नीम के छाल के अर्क का 2-4 दिन तक सेवन करें। इसके दो घंटे के बाद ताजी बनी हुई रोटी को गाय के घी के साथ खाएं। इससे लकवा व गठिया में लाभ होता है व कई प्रकार के अन्य दर्द भी दूर होते हैं।
#- गठिया रोग - नीम के बीज के तेल (Neem ka Tel) की मालिश करने से आमवात यानी गठिया में लाभ होता है।
#- ऐंठन तथा वातविकार - नीम के बीज के तेल की कुछ बूँदों को पान में लगाकर खिलाने से तथा रास्नादि काढ़े में इसकी 30 बूँदें डाल कर पिलाएं। इससे ऐंठन तथा कई तरह के वात-विकार दूर हो जाते हैं।
#- हाथीपाँव - नीम की छाल और खदिर 10-10 ग्राम को 50 मिली गोमूत्र में पीसकर छान लें। इसमें 6 ग्राम मधु मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से हाथीपाँव या फाइलेरिया रोग में लाभ होता है।
#- चेचक रोग से रोकथाम - नीम की सात लाल कोमल पत्तियां (Neem ki patti) और सात दाने काली मिर्च को मिला लें। इनका एक महीने तक नियमपूर्वक खाने से एक साल तक चेचक निकलने का डर नहीं रहता।
#- चेचक रोग से रोकथाम - नीम के बीज, बहेड़े के बीज और हल्दी को बराबर मात्रा में लें। इसे ठण्डे पानी में पीस-छानकर कुछ दिनों तक पीने से चेचक निकलने का डर नहीं रहता है।
#- चेचक रोग से रोकथाम - तीन ग्राम नीम की कोंपलों को 15 दिन तक लगातार खाने से छह मास तक चेचक नहीं निकलती। अगर निकलती भी है तो आँखें खराब नहीं होती।
#- चेचक रोग में दानों मे गर्मी - चेचक के दानों में अगर बहुत गर्मी हो तो नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीस लें। इसका रस बहुत पतला कर लेप करना चाहिए। चेचक के दानों पर कभी भी मोटा लेप नहीं करना चाहिए।
#- चेचक रोग में दानों मे जलन - नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक के दानों की जलन शांत होती है।
#- चेचक रोगी को प्यास - चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो ।नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास बुझ जाती है अगर प्यास इससें भी शान्त न हो तो एक लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबाल लें। जब आधा पानी रह जाये, तब छान कर पिलाएं। प्यास के अतिरिक्त यह चेचक के विष एवं तेज बुखार को भी हल्का करता है। इससे चेचक के दाने भी जल्दी सूख जाते हैं।
#- चेचक निकलने मे कठिनाई - यदि चेचक खुलकर न निकले और रोगी बेचैन हो, छटपटाने और रोने लगे तो नीम की हरी पत्तियों का रस 10 मिली सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाना चाहिए।
#- चेचक में स्नान - जब चेचक ठीक हो जाये तो नीम के पत्तों के काढ़े से नहाना चाहिए।
#- चेचक के दाग धब्बें - जब चेचक के दानों के खुंड ( खुरंड ) सूखकर उतर जाते हैं तो उनकी जगह पर छोटे-छोटे गड्ढे दिखाई देते हैं और आकृति बिगड़ जाती है। इन स्थानों पर नीम का तेल (Neem ka Tel) अथवा नीम के बीजों की मगज को पानी में घिसकर लगाया जाए तो दाग मिट जाते हैं।
#- चेचक रो के बाल झड़ना - चेचक के रोगी के अगर बाल झड़ जाये तो सिर में कुछ दिनों तक नीम का तेल लगाने से बाल फिर से जम जाते हैं।
#- चेचक रोग - 10 ग्राम नीम के काढ़े में 5 नग काली मिर्च का चूर्ण बुरककर, रोज सुबह कुछ दिन सेवन करने से चेचक जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है।
#- नीम मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों में लाभकारी है,परन्तु नीम का प्रधान क्षेत्र कुष्ठ , चर्मरोग और रक्तरोग है। चर्मरोगो को दूर करने के लिए संसार में इसके तुल्य कोई औषधि नहीं है।कुष्ठ रोगी को निम्ब नियमों का पालन करना चाहिए :-
- कुष्ठ रोगी को बारह महीने नीम के पेड़ (neem ka ped) के नीचे रहना चाहिए।
- नीम की लकड़ी की दातुन करनी चाहिए।
- बिस्तर पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछानी चाहिए।
- नीम की पत्तियों के काढ़े से नहाना चाहिए।
- नीम के तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर जहाँ पर भी सफेद दाग हो गया हो वहाँ पर रोज लगाना चाहिए।
- रोज सुबह 10 मिली नीम के पत्ते का रस पीना चाहिए।
- पूरे शरीर में नीम के पत्ते का रस व नीम के तेल की मालिश करनी चाहिए।
- भोजन के बाद दोनों समय 50-50 मिली नीम का मद पीना चाहिए।
#-कुष्ठ रोग - एक-एक किलो नीम की छाल और हल्दी तथा दो किलो गुड़ को मिट्टी के बड़े मटके में भरें। इसमें 50 लीटर पानी डालकर मुंह बन्दकर घोड़े की लीद से मटके को ढक दें। 15 दिन बाद निकाल कर अर्क निकाल लें। 10-20 मिली की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से शरीर को गलाने वाले कुष्ठ में लाभ होता है। दवा सेवन के बाद खाने में बेसन की रोटी गाय के घी के साथ सेवन कराएं।
#- कुष्ठ रोग - नीम पंचांग का 10 ग्राम चूर्ण ब्रह्मचर्य पूर्वक नियमित रूप से खैर के 20 मिली काढ़े के साथ सेवन करें। इससे कुष्ठ आदि चर्म रोगों में बहुत लाभ होता है।
#- मधुमेह, कुष्ठ - नीम के पंचांग एक-एक भाग लेकर सूखा चूर्ण बना लें। इसमें त्रिकटु व त्रिफला के प्रत्येक द्रव्य और हल्दी का चूर्ण 1-1 भाग मिलाकर सुरक्षित रखें। 2 से 3 ग्राम तक शहद, गाय के घी या गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से खाँसी, विष, डायबिटीज-पिडका एवं कुष्ठ आदि रोग ठीक होते हैं।
#- कुष्ठ - कुष्ठ रोगी को पहला दिन नीम के बीजों की 1 गिरी, दूसरे दिन 2 गिरी, इसी प्रकार क्रमशः 1-1 गिरी बढ़ाते हुए सौ गिरी तक खिलाएं। इसे घटाते हुए वापस 1 गिरी पर आ जाएं। इसके बाद सेवन बन्द कर दें। इस प्रयोग के दौरान रोगी को चने की रोटी और गाय के घी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देना चाहिए। कुष्ठ रोग में यह तरीका परम लाभदायक है।
#- श्वेत कुष्ठ - पांच ताजे नीम के पत्ते और हरा आँवला 10 ग्राम (हरे आँवले के अभाव में छह ग्राम सूखे आँवले) लें। सुबह सूर्योदय के पहले ही ताजे पानी में पीस-छान कर पीएं। इसके साथ ही केले के क्षार, हल्दी व गाय के पेशाब के साथ पीसकर सफेद दागों यानी सफेद कुष्ठ पर लगाते रहने से लाभ होता है।
#- श्वेत कुष्ठ - गोरखमुंडी के फूल, कच्ची हल्दी और गुड़ को बराबर भाग कूटकर मटके में भर लें। इसमें 10 गुना पानी डालकर अच्छी तरह मुंह बन्द कर 15 दिन घोड़े की लीद में दबाकर रख दें। इसके बाद अर्क निकाल लें। 10 मिली की मात्रा में सुबह-शाम 3-4 महीने तक सेवन करने से पूरे शरीर का सफेद कुष्ठ ठीक हो जाता है। सेवन के समय में दूध, दही तथा छाछ का सेवन नहीं करें। नमक का प्रयोग कम करें। यह उपाय सफेद कुष्ठ के अतिरिक्त अन्य कुष्ठ पर भी लाभकारी है।
#- श्वेत कुष्ठ - नीम के पत्ते , फूल तथा फल को बराबर भाग लेकर पानी के साथ महीन पीस लें। 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से सफेद कुष्ठ में लाभ होता है।
#- चर्मरोग - नीम
की
जड़
की
ताजी
छाल
और
नीम
के
बीज
की
गिरी
10-10
ग्राम
को
अलग
-
अलग
नीम
के
ताजे
पत्ते
के
रस
में
पीस
लें।
इसे
अच्छी
तरह
मिला
लें।
मिलाते
समय
ऊपर
से
पत्तों
का
रस
डालते
जायें।
जब
मिलकर
उबटन
की
तरह
हो
जाये
,
तब
प्रयोग
में
लायें।
यह
उबटन
खुजली
,
दाद
,
वर्षा
तथा
गर्मी
में
होने
वाली
फुन्सियां
,
शीतपित्त
(
पित्त
निकलना
)
तथा
शारीरिक
दुर्गन्ध
आदि
त्वचा
के
सभी
रोगों
को
दूर
करता
है।
#- चर्मरोग - छाजन, दाद , खुजली , फोड़ा , फुन्सियां , उपदंश आदि पर 100 वर्ष पुराने नीम के पेड की सूखी छाल को महीन पीस लें , रात्रि में 3 ग्राम चूर्ण को 250 मिलीग्राम जल में भिगोए दें और प्रात: छानकर शहद मिलाकर पिलाएँ ।
#- एक्जिमा - एक्जिमा सूखा हो या पीव वाला। नीम के पत्ते के रस में पट्टी को तर कर बाँधने से और बदलते रहने से लाभ होता है। नीम के पत्तों को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है।
#- असाध्य एक्ज़िमा - असाध्य/दुसाध्य छाजन में 10 ग्राम छाल के साथ बराबर मात्रा में मंजिष्ठादि काढ़े के द्रव्य तथा पीपल की छाल, नीम तथा गिलोय मिला काढ़ा बना लें। रोज नियमपूर्वक 10-20 मिली की मात्रा सुबह-शाम एक महीने तक पिलाने से पूर्ण लाभ होता है।
#- गीला छाजन - नीम के 8-10 पत्तों को गौदधि (दही ) व शहद के साथ पीसकर लेप करने से दाद तथा घावों में लाभ होता है।
#- दाद - नीम के पत्ते के रस में कत्था, गन्धक, सुहागा, पित्त-पापड़ा, नीलाथोथा व कलौंजी बराबर भाग मिलाकर खूब घोट-पीसकर गोली बना लें। गोली को पानी में घिसकर दाद पर लगाएं। इससे चर्म रोग में लाभ होता है।
#- शीतपित्त - नीम के अन्दर की छाल को रात भर पानी मे भिगो दें। सुबह इस पानी को छान कर चार ग्राम आँवले के चूर्ण के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से पुराना शीतपित्त (पित्त निकलने की परेशानी) ठीक हो जाता है।
#- नासूर व्रण - हमेशा बहते रहने वाले जख्म को नीम के पत्तों के काढ़े से अच्छी प्रकार धो लें। इसके बाद नीम के छाल की राख को उसमें भर दें। 7-8 दिन में घाव पूरी तरह ठीक हो जाता है।
#- आग से जले का मरहम - 100 ग्राम नीम की गिरी तथा 20 ग्राम मोम को 100 ग्राम तेल में डालकर पकाएं। जब दोनों अच्छी तरह मिल जायें तो आग से उतार कर 10 ग्राम राल का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह हिलाकर रख लें। यह मलहम, आग से जले हुए और अन्य घावों के लिए लाभदायक है।
#- आग से जलना - आग से जले हुए स्थान पर नीम के तेल को लगाने से जल्द लाभ होता है। इससे जलन भी शांत हो जाती है।
#- घाव - 50 मिली नीम के तेल में 10 ग्राम कपूर मिला कर रख लें, इसमें रूई का फाहा डुबोकर घाव पर रखने से घाव सूख कर ठीक हो जाता है। इससे पहले घाव को फिटकरी मिले हुये नीम के पत्ते का काढ़े से साफ कर लें।
#- भगन्दर , घाव - भगन्दर एवं अन्य स्थानों के घावों पर नीम के तेल में कपूर मिला लें। इसकी वर्त्ती (बत्ती) बनाकर अन्दर रखें एवं ऊपर भी इसी तेल की पट्टी बाँधने से लाभ होता है।
#-जीर्ण भगन्दर - 6 ग्राम निम्ब पञ्चांग चूर्ण को नित्य नियमपुर्वक सेवन करने से जीर्ण भगन्दर मे लाभ होता है।
#- 1-3 ग्राम चूर्ण के प्रयोग से कंठमाला गलगंड (घेंघा रोग) आदि में भी लाभ होता है।
#- भगन्दर - छह ग्राम नीम के पंचांग के चूर्ण को रोज नियमपूर्वक सेवन करने से पुराने भगन्दर में लाभ होता है।
#- व्रण रोपण व शोधन - 8-10 नीम के पत्तों को शहद के साथ पीसकर घाव पर लेप करने से व्रण का रोपण व शोधन होता है।
#- फोड़- फुन्सियां - वर्षा ऋतु में बच्चों के फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं। ऐसी अवस्था में नीम की 6-10 पकी निबौली को 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें। इससे फुन्सियां खत्म हो जाती हैं।
#- रक्तार्बुद - रक्तार्बुद रोग में शरीर में पकने और बहने वाली गाँठे निकल आती हैं। नीम की लकड़ी को पानी में घिसकर लगभग एक इंच यानी 2.5 सेमी मोटा लेप करने से रक्तार्बुद रोग में लाभ होता है।
#- बुखार - 20-20
ग्राम
नीम
,
तुलसी
तथा
हुरहुर
के
पत्ते
तथा
गिलोय
और
छह
ग्राम
काली
मिर्च
को
मिला
लें।
इसे
महीन
पीसकर
पानी
के
साथ
मिलाकर
2.5-2.5
ग्राम
की
गोली
बना
लें।
2-2
घंटे
के
अन्तर
पर
1-1
गोली
गर्म
पानी
से
सेवन
करें।
बुखार
जल्द
ही
ठीक
हो
जाएगा।
#- टाइफाइड - नीम
की
छाल
5
ग्राम
और
आधा
ग्राम
लौंग
या
दाल
चीनी
को
मिलाकर
चूर्ण
बना
लें।
इसे
दो
ग्राम
की
मात्रा
में
सुबह
-
शाम
पानी
के
साथ
लेने
से
साधारण
वायरल
बुखार
,
मियादी
टायफायड
बुखार
एवं
खून
विकार
दूर
होते
हैं।
#- सभी प्रकार के बुखार - नीम की छाल, धनिया, लाल चन्दन, पद्मकाष्ठ, गिलोय और सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से सब प्रकार के बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - 20 ग्राम नीम के जड़ की अन्दर के छाल को मोटा-मोटा कूट लें। इसमें 160 मिली पानी मिलाकर मटकी में रात भर भिगोकर सुबह पकाएं। एक चौथाई यानी 40 मिली पानी शेष रहने पर छानकर गुनगुना पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - 50 ग्राम नीम के जड़ की अन्दर के छाल को मोटा-मोटा कूट लें। इसे 600 मिली पानी में 18 मिनट तक उबाल कर छान लें। तेज बुखार में जब किसी दवाई से लाभ न हो तो इस काढ़े को 40 से 60 मिली की मात्रा में बुखार चढ़ने से पहले 2-3 बार पिलाने से लाभ होता है।
#- बुखार - नीम की छाल, सोंठ, पीपलामूल, हरड, कुटकी और अमलतास को बराबर भाग लें। इसे एक लीटर पानी में आठवाँ भाग शेष बचने तक पकाएं। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। बुखार समाप्त हो जाएगा।
#- बुखार - नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर भाग मिला लें। 100 मिली पानी में काढ़ा बना कर 20 मिली की मात्रा में सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
#- तेज़ बुखार - नीम के कोमल पत्तों में आधा भाग फिटकरी की भस्म मिलाकर पीस लें। आधे-आधे ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली मिश्री के शरबत के साथ लेने से सब प्रकार के बुखार विशेषकर तेज बुखार में बहुत लाभ होता है।
#- स्प्लेग में नीम - नीम
के
जड़
का
छाल
खून
साफ
करने
वाले
में
सर्वश्रेष्ठ
होता
है।
जब
प्लेग
फैला
हुआ
हो
,
उस
समय
नीम
के
सेवन
से
प्लेग
का
दुष्प्रभाव
नहीं
होता।
नीम
एक
योगवाही
द्रव्य
है
,
जो
शरीर
के
छोटे
-
छोटे
छिद्रों
में
पहुंचकर
वहाँ
के
हानिकारक
जन्तुओं
को
नष्ट
करता
है।
#- रक्तविकार - नीम का काढ़ा या ठंडा रस बनाकर 5-10 मिली की मात्रा में रोज पीने से खून के विकार दूर होते हैं।
#- ख़ून की गर्मी - 10 ग्राम नीम के पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन करने से खून की गर्मी में लाभ होता है।
#- ख़ून साफ - 20 मिली नीम के पत्ते का रस और अडूसा के पत्ते का रस में मधु मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से खून साफ होता है।
# - प्लेग की गाँठें - नीम के पंचांग को पानी में कूट-छानकर 10-10 मिली की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाएं। इसके साथ ही प्लेग की गाँठों पर इसके पत्तों की पुल्टिस (गीली पट्टी) बाँधें तथा आसपास इसकी धूनी करते रहने से प्लेग में लाभ होता है।
#- लू लगना - 10
ग्राम
नीम
पंचांग
का
चूर्ण
तथा
10
ग्राम
मिश्री
को
मिला
लें।
इसे
पानी
के
साथ
पीस
-
छानकर
पिलाने
से
शरीर
की
गर्मी
निकल
जाती
है
तथा
लू
से
होने
वाली
परेशानियां
दूर
हो
जाती
है।
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