Sunday, 18 April 2021

रामबाण :- 37 -:

रामबाण :- 37 -:

#- मुस्तक ( मोथा ) का वानस्पतिक यानी लैटिन भाषा में नाम साइपीरस रोटन्डस (Cyperus rotundus Linn. Syn-Pycreus rotundus Linn. Hayek) है। यह साइपरेसी (Cyperaceae) कुल का पौधा है। मोथा या मोठा(cyperus rotundus in hindi) स्वाद में कसैला, तीखा तथा कड़ुआ, पचने पर ठंडा, पचने में हल्का और फाइबरयुक्त होता है। यह भूख बढ़ाता है और भोजन को पचाता भी है। यह प्यास को समाप्त करता है, चर्मरोगों विशेषकर खुजली को नष्ट करता है, माताओं के दूध को शुद्ध करता है और योनी के संक्रमण को समाप्त करता है।

#- नेत्राभिष्यंद यानी कन्जेक्टिवाइटिस- मोथा के जड़ के प्रकन्द (Motha Rhizome) को गाय के घी में भूनकर पानी से घिस लें। इसे रात को आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे नेत्राभिष्यंद यानी कन्जेक्टिवाइटिस तथा आँखों के अन्य रोगों में काफी लाभ होता है।

#- खाँसी रोग - खाँसी

होने

के

दो

कारण

होते

हैं।

कफ

के

कारण

तो

खाँसी

होती

है

,

कई

बार

अनियमित

खान

-

पान

से

पित्त

यानी

एसिडिटी

बढ़ती

है

और

उससे

भी

खाँसी

होती

है।

बाजार

में

उपलब्ध

सामान्य

कफ

सिरप

पित्तजन्य

खाँसी

को

ठीक

नहीं

कर

पाते।

मोथा

(muthanga) 

का

प्रयोग

दोनों

ही

प्रकार

की

खाँसी

में

लाभदायक

होता

है।


#- खाँसी रोग - शक्कर, सफेद चंदन, द्राक्षा यानी मुनक्का, मधु, आँवला, नीलकमल, मोठा (motha grass) और काली मिर्च का अवलेह यानी चटनी बना लें। इस 5 ग्राम अवलेह में गाय का घी मिलाकर सेवन करने से खाँसी ठीक होती है।

#- पित्तज विकार खाँसी - पिप्पलीमोथा, मुलेठी, द्राक्षा, मूर्वा तथा सोंठ से निर्मित अवलेह (5 ग्राम) में गाय का घी और मधु मिला कर सेवन करने से पित्तज विकार के कारण होने वाली खांसी ठीक होती है।

#- दमा खाँसी - सोंठ, हरड़ तथा मोथा लें। इन तीनों द्रव्यों का चूर्ण बना लें। 1-3 ग्राम चूर्ण में गुड़ मिलाकर प्रयोग करने से सभी प्रकार के दमा तथा खाँसी में लाभ होता सामान्यतः सर्दियों में कफ बढ़ने से कभी बार उल्टी होने लगती है।

#- कफ के कारण उल्टियाँ - मोथा तथा कर्कट शृंगी के (1-2 ग्राम) चूर्ण में मधु मिला कर सेवन करने से बढ़े हुए कफ के कारण होने वाली उलटी बंद होती है।

#- पेचिश - 50 ग्राम मोथा (motha grass) को 400 मिली गाय का दूध तथा 1200 मिली जल में (दूध शेष रहने तक) उबालकर ठण्डा कर लें। इस मिश्रण को 50 मिली की मात्रा में पीने से आँवयुक्त पेचिश तथा पेटदर्द ठीक होता है।

#- आमदोष - मोथा तथा पित्तपापड़ा को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़े को पीने से आमदोष यानी पेट में जमा अनपचे भोजन का पाचन हो जाता है और इससे पेट की सभी समस्याएं ठीक होती हैं।

#- रक्तदोष पेचिश - मोथा के महीन पेस्ट यानी चटनी में बराबर मात्रा में गाय का दूध मिलाकर एक चौथाई शेष रहने तक पकाएं। ठंडा होने पर इसमें मधु मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से कफ तथा रक्तदोष के कारण होने वाले पेचिश में लाभ होता है।

#- उदर रोग - दो किग्रा मोथा को 640 मिली गाय का दूध तथा जल में मिला ले। दूध शेष रहने तक पका कर फिर ठंडा करके उसका दही जमा लें। इस दही का सेवन करने से पेचिश तथा पेट की अन्य समस्याएं ठीक होती हैं।

#- मोथा, मोचरस, लोध्र, धाय का फूल, बेलगिरी तथा कुटज के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इस 1-2 ग्राम चूर्ण को गुड़ तथा छाछ ( गौतक्र ) में मिलाकर सेवन करने से तेज पेचिश में लाभ होता है।

#- पेचिश - मोथा (mustaka) को पानी में पीसकर चटनी बना लें। इस चटनी की 1-2 ग्राम मात्रा में मधु एवं शक्कर मिलाकर पीने से पेचिश ठीक होता है।

#- पुराना पेचिश - मोथा के 10-30 मिली काढ़े को ठण्डा करके मधु मिलाकर पीने से पित्त यानी एसिडिटी तथा रक्तदोष के कारण होने वाले पुराना पेचिश ठीक होता है।

#- पेचिश - मोथतथा इन्द्रयव को 50-50 ग्राम लेकर महीन पीस लें। इसे 400 मिली पानी में डाल कर चौथाई शेष रहने तक उबालें। इस काढ़े में 10 ग्राम मधु मिलाकर पीने से खूनी पेचिश में लाभ होता है।

#- पेचिश - मोथा आदि द्रव्यों से बने बृहद गंगाधर चूर्ण लें। चूर्ण की 1-3 ग्राम मात्रा में छाछ( गौतक्र ) , मधु, चावल के धोवन तथा गुड़ के साथ करने से कब्ज, दस्त तथा पेचिश में लाभ होता है।

#- दस्त के समय प्यास - 1-3 ग्राम मोथा को जल के साथ सेवन करने से दस्त के कारण लगने वाली प्यास मिटती है।

#- गठिया दर्द - रोजाना नियमित रूप से मोथा, आँवला तथा हल्दी को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। 10-30 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पीने से सामान्य तथा कफयुक्त गठिया में लाभ होता है। मोथा (mustaka) के कन्द को पीसकर लगाने से गठिया के दर्द में लाभ होता है।


#- कुष्ठ

रोग

- 1-2

ग्राम

मुस्तादि

चूर्ण

(

बराबर

भाग

नागरमोथा

,

व्योष

,

त्रिफला

,

मंजिष्ठा

,

देवदारु

,

सप्तपर्ण

,

दशमूल

,

नीम

,

इंद्रायण

,

चित्रक

,

मूर्वा

तथा

9

भाग

सत्तू

)

को

विषम

मात्रा

में

मधु

और

गाय का

घी

के

साथ

रोज

सेवन

करे।

इससे

कुष्ठ

,

सूजन

,

कब्ज

,

घाव

,

बवासीर

आदि

रोग

ठीक

होते

हैं।


#- कुष्ठ रोग - काले तिलों में बाकुची चूर्ण और मोथा चूर्ण को मिलाकर गुड़ के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।



#- बाहरी घाव - मोथा को पीसकर, गाय का शतधौतघृत मिला लें। इसे बाहरी चोट और उसके कारण हुए घाव पर लेप करें। इससे घाव शीघ्र भर जाता है।

#- व्रण व खुजली - मोथा की जड़ को गोमूत्र में पीसकर लगाने से कटे-फटे, घाव, कुष्ठ तथा खुजली रोग में लाभ होता है।

#- मासिकधर्म - मोथा का चूर्ण 5-10 ग्राम का प्रयोग महिलाओं की मासिक धर्म संबंधी समस्याओं जैसे कष्टार्तव में फ़ायदेमंद होता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार मोथा का प्रयोग मासिक धर्म की अनियमिताओं को ठीक करने में मदद करता है। 
 
#- शोथ, सूजन - शोथ या सूजन एवं दर्द में मोथे का चूर्ण 5-10 ग्राम का उपयोग फायदेमंद है क्योंकि इसमें शोथहर और दर्द निवारक गुण पाये जाते है। इसलिए इसके उपयोग से जल्दी आराम मिलता है। 


#- प्रसूता स्तन विकार - मोथाचूर्ण 5-10 ग्राम का सेवन प्रसूता स्त्री के लिए फ़ायदेमंद होता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार स्तन्य विकारों को दूर करने में सहायता करता है। इसके  साथ ही आयुर्वेद चिकित्सा में इसका प्रयोग स्तन्य वृद्धि के लिए भी किया जाता है। 


#- पेट के कीड़े - अगर आप उदर कृमियों से परेशान है तो आपके लिए मोथा चूर्ण 5-10 ग्राम का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार मोथा में कृमिघ्न का गुण पाया जाता है, जिसके कारण पेट से कृमियों को निकालने में मदद मिलती है। 

#- बुखार - बुखार में मोथा (nutgrass) तथा पित्तपापड़ा का प्रयोग करना काफी लाभकारी होता है। मोथा, पित्तपापड़ा, खस, चन्दन, सुगन्धवाला तथा सोंठ के काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में पीने से बुखार ठीक होता है।

#- बुखार - मोथा (motha plant) तथा पित्तपापडा के बराबर भाग का काढ़ा (10-30 मिली) अथवा देशी चिरायता, कालमेघ, गिलोय, मोथा तथा सोंठ का काढ़ा (10-30 मिली) या पीने से बुखार में लाभ होता है। काढ़ा बनाना चाहें तो उपरोक्त पदार्थों बारीक कूट को छह गुणा पानी में रात भर भिगो कर रख दें। सुबह इसे छान लें, इस प्रकार तैयार पानी को शीतकषाय या हिम कहते हैं। इस शीतकषाय पानी को भी 10-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से बुखार उतर जाता है।

#- बुखार - मोथा, जवासा, नेत्रबाला तथा कुटकी का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।

# - बुखार - गिलोय, नीम, पटोलपत्र, नागरमोथा, हरड़, बहेड़ा, आँवला तथा धनिया इनको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस 10-30 मिली काढ़े में शहद तथा शक्कर मिलाकर सेवन करने से बुखार समाप्त हो जाता है।

#- बुखार - कमलनाल, आँवला, चन्दन, गिलोय, मोथा (nutgrass), पित्तपापड़ा तथा धनिया को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े की 10-30 मिली मात्रा में शहद अथवा शक्कर मिलाकर सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।

#- बेहोशी समाप्त - समभाग सेंधा नमक, मोथा, बड़ी कटेरी तथा मुलेठी के चूर्ण का नस्य लेने (नसवार की तरह नाक में डालने या सूँघने से) से बुखार के कारण होने वाली बेहोशी समाप्त होती है।

#- बुखार - गिलोय, सोंठ, मोथा तथा पर्पट का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़े को पीने से पित्त के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है। कफ के कारण होने वाले बुखार में सोंठ, वासा तथा मोथा के काढ़े को पीएं। अवश्य लाभ होगा।

#- मलेरिया , बुखार - गुडूची, मोथा (motha plant) तथा आँवला से निर्मित क्वाथ (10-30 मिली) में मधु मिलाकर पीने से विषम बुखार यानी मलेरिया में लाभ होता है।


#- नशा उतारना - 200

मिली

जल

में

, 5

ग्राम

मोथा

(nutgrass)

तथा

पित्तपापड़ा

डालकर

पकाएं।

ठंडा

होने

पर

छानकर

पीने

से

तेज

चढ़ा

नशा

उतर

जाता

है।





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