रामबाण :- 42 -:
#- ज्वर - एन्फ्लुएंजा में नीमपत्र, गिलोय, तुलसीपत्र , हुरहुर के पत्र 20-20 ग्राम तथा कालीमिर्च 6 ग्राम को मिलाकर महीन पीसकर जल के साथ खरल कर 250-250 मिलीग्राम की गोली बनायें तथा 2-2 घन्टे के अन्तर पर 1-1 गोली गर्म जल से सेवन करें।
#- नियतकालिक ज्वर - नीम की छाल 5 ग्राम , लौंग 500 मिलीग्राम या दालचीनी 500 मिलीग्राम को मिलाकर चूर्ण कर 2 ग्राम की मात्रा में सुबह सायं जल के साथ लेने से साधारण ज्वर , नियतकालिक ज्वर एवं रक्त विकार दूर होते है।
#- नीम की छाल , धनिया , लाल चन्दन, पद्मकाष्ठ , गिलोय और सोंठ का क्वाथ 10-30 मिली मात्रा में बनाकर सेवन करने से सब प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
#- ज्वर - नीम मूल की अन्त: छाल 20 ग्राम को यवकूट कर , इसमें 160 मिली जल मिलाकर मटकी में रातभर भिगोकर प्रात: काल पकाएँ , 40 मिली रह जाने पर छानकर सुखोष्ण कर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।
#- मलेरिया ज्वर मे रामबाण - नीम की मूल की अन्तछाल 50 ग्राम को यवकूट कर 600 मिली जल में 18 मिनट तक उबाल कर छान लें, मलेरिया ज्वर में जब किसी औषधि से लाभ न हो तो इस फाण्ट को 40-60 मिलीग्राम की मात्रा में ज्वर चढ़ने से पूर्व 2-3 बार पिलाने से लाभ होता है।
#- ज्वर - नीम छाल , सोंठ , पिपलामूल , हरड़ , कुटकी , अम्लतास को सम्भाग लेकर 1 लीटर पानी में पकायें । अष्टमांश शेष क्वाथ रहने पर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह सायं सेवन करने से लाभ होता है।
#- ज्वर - निम्बछाल , मुन्नका और गिलोय को समभाग मिलाकर 100 मिली जल में क्वाथ कर 20 मिली की मात्रा में सुबह सायं दोपहर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।
#- सब प्रकार के ज्वर व मलेरिया - नीम की कोमल पत्तों में आधा भाग फिटकरी भस्म मिला खरल कर 500-500 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें । 1-1 गोली मिश्री के शर्बत के साथ लेने से सब प्रकार के ज्वर विशेषत: मलेरिया में लाभ होता है।
#- रक्त विकार - नीममूल छाल रक्तशुद्धिकारक द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसका क्वाथ या शीतनिर्यास बनाकर 5-10 मिलीग्राम की मात्रा में नित्य पीने से रक्तविकार दूर होते है।
#- रक्तपित्त - 10 ग्राम नीमपत्र का कल्क बनाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
#- रक्तपित्त - 20 मिलीग्राम नीमपत्र स्वरस और अडूसा पत्रस्वरस में मधु मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने सें लाभ होता है।
#- रक्तपित्त - नीम के पञ्चांग को पानी में कूट- छानकर 10-10 मिलीग्राम की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाने और गाँठों पर इसके पत्तों की पुल्टीस बाँधने तथा आसपास इसकी धूनी करते रहने से प्लेग के रोग में लाभ होता है। ( जब प्लेग फैला हो , उस समय नीम के सेवन से प्लेग का आक्रमण नहीं होता है। नीम एक योगवाही द्रव्य है। जो शरीर के छोटे छोटे छिद्रों में पहुँचकर वहाँ के जन्तुओं को नष्ट करता है।
#- अगर
आप
किसी
प्रकार
के
जीवाणु
के
संक्रमण
से
परेशान
है
तो
नीम
क
े तैल का
प्रयोग
आपके
लिए
फायदेमंद
हो
सकता
है
क्योंकि
रिसर्च
के
अनुसार
नीम
में
जीवाणुरोधी
गुण
पाए
जाते
हैं।
#- एंटीबायोटिक - नीम कोमल पत्तियों का सेवन आपको मदद कर सकता है क्योंकि नीम में एक रिसर्च के अनुसार एंटी डायबिटिक की क्रियाशीलता पायी जाती है जिस कारण से यह शर्करा की मात्रा को रक्त में नियंत्रित करने में मदद करता है।
#- अस्थमा - नीम का प्रयोग अस्थमा के लक्षणों को कम करने सहायक होता है, क्योंकि नीम में कफ हर गुण होते है जो कि अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद करते है।
#- कैंसररोधी- रिसर्च में पाया गया है कि नीम पत्रस्वरस 10-20 मिलीग्राम का सेवन कैंसर को फैलने से रोकने में सहायक होता है, क्योंकि इसमें एंटी कैंसरकारी गुण होता है जिस कारण ये कैंसर को शरीर में फैलने से रोकता है।
#- रक्तशोधक - अगर आपके रक्त में अशुद्धियों के कारण आप त्वचा संबंधी विकरो से परेशान हैं तो, नीम पत्रस्वरस का सेवन आपके लिए रामबाण इलाज है, क्योंकि नीम में रक्त शोधक का गुण पाया जाता है।
#- जोड़ो का दर्द - अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो आप नीम के पत्तों का लेप का प्रयोग कर सकते है, क्योंकि नीम में एंटी इंफ्लेमेटरी का गुण पाया जाता है जो कि जोड़ों के सूजन को दूर कर दर्द में आराम देता है।
#- कोलेस्ट्राल - नीम पत्ती का एक्सट्रैक्ट आपके कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है क्योकि रिसर्च के अनुसार नीम पत्ती मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ने नहीं देती है।
#- मुँह के छालें - यदि आप छालों से परेशान है तो आपके लिये नीम की पत्ती चबाना साथ ही उनको खाना फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में रोपण (हीलिंग) का गुण होता है जो कि छालों को जल्दी भरने में मदद करता है।
#- मुँहासे - त्वचा विकार ठीक करने वाला सबसे प्रसिद्ध प्राकृतिक साधन है। साथ ही ये मुंहासो पर दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है यानि की नीम को चेहरे पर सीधे ही लगा सकते है और इसको खाने से भी त्वचा के विकार या बीमारियां ठीक होते है।
#- लीवर - यदि आप लीवर के कारण पाचन संबंधी समस्याओं से परेशान हैं तो, आप नीम पत्रस्वरस का सेवन शुरू कर सकते हैं। क्योकि नीम में हेपटो प्रोटेक्टिव का गुण होता है, जो कि लीवर को स्वस्थ रख कर पाचन की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है ।
#- एंटीवायरल - त्वचा में संक्रमण से राहत दिलाने में नीम पत्रस्वरस से अच्छा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि नीम में एन्टीबैट्रिअल और एंटीवायरल जैसे गुण पाये जाते है जो कि त्वचा के संक्रमण को दूर करने मदद करते हैं।
#- जीव जन्तु विष - दो भाग निबौली में 1-1 भाग सेंधा नमक तथा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद या गाय का घी मिलाकर सेवन करने से वनस्पति तथा जीव-जंतु के विष के प्रभाव नष्ट होते हैं।
#- उलटियाँ - 8-10 पकी व कच्ची निबौलियों को पीसकर गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से उलटी हो जाती है।
#- विष के दुष्प्रभाव - इससे अफीम, संखिया, वत्सनाभ आदि के विषों का असर जल्द ही खत्म हो जाता है।
#- विष निषप्रभाव - कहा जाता है कि जब सूर्य मेष राशि में हो तब नीम के पत्ते साग के साथ मसूर की दाल सेवन करने से एक वर्ष तक विष से कोई डर नहीं रहता तथा विषैले जन्तु के काटने पर भी कोई प्रभाव नहीं होता है।
#- दातुन - सुबह उठते ही नीम की दातुन करने तथा फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूड़े निरोग और मजबूत होते हैं।
#- आरोग्य - नीम के पेड की छाया , दोपहर को नीम की शीतल छाया में आराम करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
#- मच्छर भगाये- शाम को इसकी नीम की सूखी पत्तियों के धुएँ से मच्छर भाग जाते हैं।
#- पाचन - नीम की मुलायम कोंपलों को चबाने से हाजमा ठीक रहता है।
#- कीड़ों से बचाव - नीम की सूखी पत्तियों को अनाज में रखने से उनमें कीड़े नहीं पड़ते।
#- जुएँ - नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर स्नान करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिल जाती है। सिर-स्नान से बालों के जुएं मर जाते हैं।
#- कीलमुहासें - नीम की जड़ को पानी में घिसकर लगाने से कील-मुंहासे मिट जाते हैं और चेहरा सुन्दर हो जाता है।
#- गर्भनिरोधक - नीम के तेल में डुबोकर तैयार पोटली को योनि में रखने से गर्भ नहीं ठहरता। इसलिए यह परिवार नियोजन का अच्छा साधन है।
#- रक्तशोधक - नीम के पत्तों का रस खून साफ करता है और खून बढ़ाता भी है। इसे 5 से 10 मिली की मात्रा में रोज सेवन करना चाहिए।
#- बवासीर - रोज नीम के 21 पत्तों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीस लें। बिना मसाला डाले, गाय के घी में पकौड़ी तल कर 21 दिन खाने से और खाने में केवल गौतक्र ( छाछ ) और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ हो जाता है। इस दौरान नमक बिल्कुल न खाएं (थोड़ा सेंधा नमक ले सकते हैं)।
#- कामशक्ति -दुर्बलकामशक्ति वालें प्रयोग न करें , नीम कामशक्ति को घटाता है। इसलिए जिनको ऐसी परेशानी हो उन्हें नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
#- शराबियो को नहीं - सुबह-सवेरे उठकर मद्यपान (शराब का सेवन) करने वालों को भी नीम का सेवन नहीं करना चाहिए।
#- नीम के दुष्प्रभाव - नीम के खाने से कोई परेशानी हो रही हो तो सेंधा नमक, गाय का घी और गाय का दूध इसके दुष्प्रभाव को दूर करते हैं।
Sent from my iPhone
No comments:
Post a Comment