रामबाण :- 45 -:
#- निर्गुण्डी एक बहुत ही गुणी औषधि है जो कफ और वात को नष्ट करता है और दर्द को कम करता है। इसको त्वचा के ऊपर लेप के रूप में लगाने से सूजन कम होता है। घाव को ठीक करने, घाव भरने आदि में निर्गुण्डी के फायदे मिलते हैं। यह बैक्टीरिया और कीड़ों को नष्ट करता है। खाए जाने पर यह भूख बढ़ाता है, भोजन को पचाता है। लीवर रोग में भी निर्गुण्डी से लाभ मिलता है। कुष्ठ रोग के इलाज में भी निर्गुण्डी के फायदे मिलते हैं। यह पेशाब बढ़ाता है, स्त्रियों में मासिक धर्म विकार को ठीक करता है। यह ताकत बढ़ाने वाला, रसायन है जो आँखों के लिए लाभकारी होता है। यह सूखी खाँसी ठीक करने वाला, खुजली तथा बुखार विशेषकर टायफायड बुखार को ठीक करने वाला है। कानों का बहना रोकता है। इसका फूल, फल और जड़ आदि पांचों अंगों में भी यही गुण होते हैं। फूलों में उलटी रोकने का भी गुण होता है। आइए जानते हैं कि निर्गुण्डी से और क्या-क्या लाभ ले सकते हैं।
आयुर्वेद में कहा गया है – निर्ग़ुंडति शरीरं रक्षति रोगेभ्य तस्माद् निर्गुण्डी। इसका मतलब है जो शरीर की रोगों से रक्षा करे, वह निर्गुण्डी कहलाती है। इसके झाड़ स्वयं पैदा होते हैं और सभी जगह पाए जाते हैं। इसके पत्तों को मसलने पर एक विशिष्ट प्रकार की दुर्गन्ध आती है। यह बूटी वात दोष के रोगों के लिए एक प्रसिद्ध औषधि है।
निर्गुण्डी को अनेक नामो से जाना जाता है जैसे सम्भालू, सम्हालू, सन्दुआर, सिनुआर, मेउड़ी।
#- सिरदर्द - निर्गुण्डी फल के 2-4 ग्राम चूर्ण को दिन में दो-तीन बार शहद के साथ सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है।
#- सिरदर्द - निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर सिर पर लेप करने से सरदर्द शांत होता है।
#- सिरदर्द - निर्गुंडी, सेंधा नमक, सोंठ, देवदारु, पीपर, सरसों तथा आक के बीज को ठंडे जल के साथ पीसकर गोली बना लें। इस गोली को जल में घिसकर मस्तक पर लेप करने से सरदर्द ठीक होता है।
#- कान का बहना - निर्गुण्डी के पत्तों के रस में पकाए तेल को 1 – 2 बूंद कान में डालने से कान का बहना बंद होता है।
#- मुँह के छालें - निर्गुण्डी के पत्तों को पानी में उबालकर, उस पानी से कुल्ला करने से मुँह के छालों में लाभ होता है।
#- मुँह के छालें - निर्गुंडी तेल (Nirgundi Oil) को मुंह, जीभ तथा होठों में लगाने से तथा हल्के गर्म पानी में इस तेल को मिलाकर मुंह में रखकर कुल्ला करने से मुँह के छाले एवं फटे होंठों में लाभ होता है।
#- गले की ख़राश व कण्ठदाह - हल्के गुनगुने पानी में निर्गुण्डी तैल को मिलाकर तथा थोड़ा पिसा नमक मिलाकर गंडूष करने से गले की ख़राश में , कण्ठदाह , पाद, तथा गले की सूजन आदि में लाभ होता है ।
#- फटे होंठ - फटे होंठों पर निर्गुण्डी तैल लगाने से आराम आता है।
#- गण्डमाला - संभालू ( निर्गुण्डी ) जड़ को जल से यथावत पीसछानकर 1-2 बूँद स्वरस नाक में डालने से गंडमाला में लाभ होता है।
#- बालरोग - निर्गुण्डी की जड़ को बालक के गले में लटकाने से दाँत जल्दी निकल आते है।
#- पाचनशक्तिवर्धनार्थ - 10 मि.ली. निर्गुण्डी पत्तों के रस में 2 दाने काली मिर्च और अजवायन चूर्ण मिला लें। इसे सुबह-शाम सेवन करने से पाचन-शक्ति बढ़ती है, पेट का दर्द ठीक होता है, और पेट में भरी गैस निकलकर उदरशूल व अफारा में लाभ होता है।
#- टाइफाइड - टायफायड में यदि रोगी की तिल्ली और लीवर बढ़ गए हो तो दो ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों के चूर्ण में एक ग्राम हरड़ तथा 10 मि.ली. गोमूत्र मिलाकर लेने से लाभ होता है। अथवा दो ग्राम निर्गुण्डी चूर्ण में काली कुटकी व 5 ग्राम रसोत मिलाकर सुबह-शाम लेना चाहिए।
#- सूजाक - 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सूजाक की शुरुआती अवस्था में निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बहुत फायदेमन्द होता है।
#- पेशाब का बन्द - जिस रोगी का पेशाब बंद हो गया हो, वह 20 ग्राम निर्गुण्डी को 400 मि.ली. पानी में उबालकर एक चौथाई शेष रहने तक काढ़ा बना लें। इस काढ़ा को 10-20 मि.ली. दिन में तीन बार पिलाने से पेशाब आने लगता है।
#- मासिकधर्म - दो
ग्राम
निर्गुंडी
बीज
के
चूर्ण
का
सेवन
सुबह
-
शाम
करने
से
मासिक
धर्म
विकारों
में
लाभ
होता
है।
#- सुखप्रसव - निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर नाभि, बस्ति प्रदेश और योनि पर लेप करने से प्रसव आसानी से हो जाता है।
#- कामशक्तिवर्धनार्थ - 40 ग्राम निर्गुंडी और 20 ग्राम सोंठ को एक साथ पीसकर आठ खुराक बना लें। एक खुराक रोज गाय के दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य की काम शक्ति बढ़ती है।
#- लिंग का ढीलापन - निर्गुण्डी मूल को घिसकर शिश्न पर लेप करने से लिंग का ढीलापन व शिथिलता दूर होता है।
#- स्तनों में दूग्धवृद्धि के लिए- निर्गुण्डी के पत्तों का लेप स्तनों पर करने से दुग्ध वृद्धि होती है।
#- गृध्रसी - 5 ग्राम निर्गुण्डी चूर्ण या पत्रक्वाथ को मंदआंच पर पकाकर 20मिली की मात्रामें दिन में तीन बार देने से लाभ होता है।
#- मन्दअग्नि पर पकाये गये निर्गुण्डीपत्र क्वाथ को पीने से दुर्निवाय गृध्रसी रोग में भी अत्यन्त लाभ होता है।
#- कटिशूल - 10-20 ग्राम निर्गुण्डीमूल चूर्ण को तिलतैल के अनुपान के साथ सेवन करने से संधिवात , कटिवात तथा कम्पवात का शमन होता है।
#- कटिप्रदेश के वातविकार - 5-10 मिली निर्गुण्डी पत्रस्वरस में समभाग एरण्ड तैल मिलाकरसेवन करने से कटिप्रदेश में होने वाले वातविकारों का शमन होता है।
#- जोड़ो का दर्द - जोड़ों के दर्द में निर्गुंडी मूल का काढ़ा 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में लेने से फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार निर्गुंडी में वात के शमन का गुण पाया जाता है जो कि वात को शांत कर जोड़ों के दर्द में फायदेमंद होता है।
#- फोड़ो का इलाज - निर्गुंडी के पत्तों के लेप का प्रयोग फोड़ों के इलाज में किया जाता है क्योंकि निर्गुंडी में एन्टीबैक्ट्रियल और एंटीफंगल का गुण पाया जाता है जो कि घाव को फैलने नहीं देता है और फोड़े को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
#- हाथ पैरों की जलन - अगर आप के हाथ-पैरों में जलन है तो निर्गुंडी आपके लिये फ़ायदेमंद हो सकता है क्योंकि निर्गुंडी में एंटी-इन्फ्लामेटोरी और एनाल्जेसिक गुण पाये जाते है जो कि जलन के साथ -साथ दर्द भी कम करने में सहायक होता है।
#- जंघाओं का सून्न होना - उरूस्तम्भ (जांघों का सुन्न होना) के इलाज में निर्गुंडी का प्रयोग फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि निर्गुंडी में कफ- वात दोनों दोषों को शांत करने का गुण पाया जाता है जिससे उरूस्तम्भ (जांघों का सुन्न होना) में निर्गुंडी फायदेमंद होता है।
#- सिर की फुन्सियां - सिर की फुंसियां, अरुंषिका (वराही) के इलाज को दूर करने में निर्गुंडी के
पत्तों के रस को सिर पर लगाने से फायदेमंद होता है क्योंकि निर्गुंडी में एन्टीबैट्रिअल और एंटीफंगल का गुण पाया जाता है जो कि त्वचा के इन समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
#-स्लिपडिस्क - स्लिपडिस्क के इलाज में निर्गुंडी के पत्तों का लेप व पत्रस्वरस 10-20 मिलीग्राम का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार निर्गुंडी में वात दोष को शांत करने का गुण होता है जिसके कारण स्लिपडिस्क में होने वाले दर्द और जकड़ाहट को निर्गुंडी कम करने में मदद करता है।
#- नाड़ी दर्द - नाड़ी यानि नसों के दर्द में भी निर्गुंडी के पत्तों का लेप व पत्रस्वरस 10-20 का उपयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार जहाँ भी दर्द होता है वहाँ का प्रकोप जरूर मिलता है। निर्गुंडी में वात को शान्त करने का गुण होता है इसलिए निर्गुंडी नाड़ी दर्द में राहत देती है।
#- साईटिका, गठिया - 10-12 ग्राम निर्गुण्डी की जड़ के चूर्ण को तिल तेल के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के गठिया रोगों में लाभ होता है।
#- 5-10 मि.ली. निर्गुन्डी रस में समान मात्रा में एरण्ड तेल (कैस्टर आइल) मिलाकर सेवन करने से वातविकार के कारण होने वाले कमरदर्द में आराम होता है।
#- गठिया दर्द - निर्गुण्डी के पत्तों से पकाए तेल की मालिश करने से तथा हल्का गर्म करके तेल लगाकर कपड़ा बाँधने से भी सभी प्रकार के गठिया के दर्दों में अत्यन्त लाभ होता है।
#- साइटिका - पाँच ग्राम निर्गुण्डी के चूर्ण या पत्तों का काढ़ा बना लें। इसकी 20 मि.ली. की मात्रा दिन में तीन बार पिलाने से साइटिका का दर्द दूर होता है।
#- चोट, मोच , सूजन - निर्गुण्डी के पत्तों को कुचल कर उसकी पट्टी बाँधने से मोच तथा मोच के कारण होने वाले दर्द तथा सूजन ठीक होते हैं।
#- निर्गुण्डी पत्रकल्क का उपनाम बाँधने से मोच तथा मोचजन्य वेदना का शीघ्र शमन होता है।
#- हाथीपाँव , श्लीपद - धतूरा, एरंड मूल, संभालू, पुनर्नवा, सहजन की छाल तथा सरसों को एक साथ मिला कर लेप करने से पुराने से पुराने हाथीपाँव (फाइलेरिया) में भी लाभ होता है।
#- नारू रोग - 10-20 मिली निर्गुण्डी के पत्तों का रस सुबह-शाम पिलाने, और फफोलों पर पत्तों की सेंक करने से नारू रोग ठीक होता है।
#- पुराना घाव, एक्ज़िमा - निर्गुण्डी के पत्तों से पकाए तेल को लगाने से पुराने घाव, खुजली,एक्जीमा आदि चर्म रोग ठीक होते हैं।
#- निर्गुण्डी मूल व पत्तों से सिद्ध किये हुएे तैल को लगाने से दुष्ट व्रण , पामा, खुजली, विस्फोट ( बालतोड़ ) व सब प्रकार के घाव ठीक हो जाते है।
#- बदगांठ - निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके बाँधने से बद गाँठ बिखर जाती है।
#- चर्मरोग, विसर्प - बराबर मात्रा में निर्गुण्डी के पत्ते, काकमाची तथा शिरीष के फूल को कुचल लें। इसमें गाय का घी मिला कर लेप करें। इससे चर्म रोग और कफजविसर्प रोग व अतिशयाय में काफी लाभ होता है।
#- दाद - दाद से प्रभावित स्थान पर निर्गुण्डी पत्तों को घिस लें। इसके बाद निर्गुण्डी रस में मिलाकर लेप करें। इससे शीघ्र लाभ होता है।
#- नासूर आदि - निर्गुण्डी की जड़ एवं पत्तों के रस से पकाए हुए तिल तेल को पीने और उसकी मालिश आदि करने से नाडीव्रण , वातज वेदना,नासूर, कुष्ठ, गठिया के दर्द, पामा,एक्जीमा , अपची आदि ठीक होते हैं।
#- निमोनिया बुखार - निर्गुण्डी के 20 ग्राम पत्तों को 400 मि.ली. पानी में चौथाई शेष रहने तक उबालकर काढ़ा बनायें। 10-20 मि.ली. काढ़े में दो ग्राम पिप्पली का चूर्ण मिलाकर पिलाने से निमोनिया बुखार में लाभ होता है।
#- गठिया - निर्गुन्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 मि.ली. पानी में उबालकर सुबह और शाम देने से बुखार और गठिया में लाभ होता है।
#- मलेरिया - मलेरिया यानी ठंड लगकर होने वाले तेज बुखार और कफ के कारण होने वाले बुखार के साथ अगर छाती में जकड़न हो तो निर्गुण्डी के तेल की मालिश करनी चाहिए। प्रयोग को ज्यादा असरदार बनाने के लिए तेल में अजवायन और लहसुन की 1 – 2 कली डाल दें, और तेल हल्का गुनगुना कर लें।
#- कण्ठदर्द - निर्गुण्डी के पत्तों को पानी में उबालें। इस पानी से कुल्ला करने से गले का दर्द ठीक होता है।
#- निर्गुंडी तेल (Nirgundi Oil) को मुंह, जीभ तथा होठों में लगाने से, तथा हल्के गर्म पानी में इस तेल को मिलाकर मुंह में रख कर कुल्ला करने से गले का दर्द, टांसिल में लाभ होता है।
#- गले की गाँठें - निर्गुण्डी जड़ को जल से पीस-छानकर 1 – 2 बूँद रस नाक में डालने से गंडमाला यानी गले में गांठों का रोग ठीक होता है।
#- अण्डकोष की सूजन - निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप करने से अंडकोषों में होने वाली सूजन, जोड़ों की सूजन, आमवात आदि रोगों में सूजन के कारण होने वाली पीड़ा में लाभ होता है।
#- कमर की सूजन - निर्गुण्डी के काढ़ा में कमर को डुबो कर बैठने ( कटिस्नान ) से सूजन से आराम मिलता है।
#- ठंड के दिनों मे पानी मे काम करने से पड़े छालें - ठंड में अधिक पानी के साथ काम करने से हाथ और पैरों में छाले पड़ जाते हैं तो उसमें निर्गुन्डी का तेल लगाने से फायदा होता है।
#- कट- फटना व रगड़ लगना - शरीर में किसी भी जगह कट-फट जाने पर, रगड़ लगने या छिल जाने निर्गुण्डी का तेल लगाना बहुत लाभदायक है।
#- रक्तस्राव व घाव - यदि रक्त निकलता हो और घाव बन जाये तो उस पर निर्गुन्डी पत्रस्वरस डालकर पिसी हुई हल्दी बुरककर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
#- बच्चो के दाँत निकलते समय होने वाली परेशानी - बच्चों के दांत निकलने की परेशानी में निर्गुण्डी की जड़ को बालक के गले में पहनाने से आराम मिलता है। दांत जल्दी निकल आते हैं।
#- निर्गुन्डी की जड़, फल और पत्तों के रस से पकाए 10-20 ग्राम गाय के घी को नियमित पिलाने से बच्चों का शरीर पुष्ट होता है, तथा शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
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