रामबाण :- 38 -:
#- नागरमोथा (nagarmotha) का लैटिन नाम साइपीरस स्केरिओसस् (Nagarmotha Botanical Name, Cyperus scariosus R.Br., Syn-Cyperus corymbosus var. scariosus (R.Br.) Kuk) है, और यह Cyperaceae (साइपरेसी) कुल का है। नागरमोथा को अन्य इन नामों से भी जाना जाता है।
#- आँखरोग - नागरमोथा (nagarmotha) को बकरी के दूध व जल में घिसकर आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे आँखों में होने वाली जलन, लालिमा, कालापन व रात में कम दिखने की बीमारी ठीक होती है।
#- नेत्ररोग - नागरमोथा प्रकंद का काढ़ा बनाकर ठंडा कर लें। इससे आँखों को धोने से नेत्र रोग में लाभ होता है।
#- दांतरोग - नागरमोथा, सोंठ, हरीतकी, मरिच, पिप्पली, वायविडंग तथा नीम को पीस लें। इसमें गोमूत्र मिलाकर छाया में सुखा लें। इसकी वटी बना लें। रात में 1-2 मुंह में रखने से दाँतों के रोग में लाभ होता है।
#- सूखी खाँसी - नागरमोथा, पिप्पली, मुनक्का तथा बड़ी कटेरी के अच्छे पके फलों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह घोट लें। इसे गाय का घी और मधु के साथ मिलाकर चाटें। इससे टीबी के कारण होने वाली सूखी खाँसी और अधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।
#- सुखी खाँसी व साँस रोग - अडूसा, सोंठ, नागरमोथा, भारंगी, चिरायता तथा नीम की छाल का काढ़ा बना लें। इसे 10-20मि.ली. काढ़ा में मधु डालकर पिलाएं। इससे सूखी खाँसी तथा सांस के फूलने की समस्या ठीक होती है।
#- बुखार - नागरमोथा, पित्तपापड़ा, उशीर (खस), लाल चन्दन, सुगन्धबाला, सोंठ को डालकर काढ़ा बना लें। इसे ठंडा करके रोगी को पिलाने से अधिक प्यास लगने की समस्या तथा बुखार ठीक होता है।
#- उल्टियाँ - नागरमोथा, इंद्रजौ, मैनफल तथा मुलेठी को समान मात्रा में लेकर कूट-पीसकर लें। इसे कपड़े से छान लें। इसके चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से उलटी बंद होती है।
#- अपच - नागरमोथा की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मि.ली. मात्रा में पिलाने से पाचनक्रिया तेज होती है।
#- पेट के कीड़े - 5-10 ग्राम नागरमोथा चूर्ण (nagarmotha churna) का सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
#- अपच - नागरमोथा, सोंठ तथा अतीस से बने काढ़े का सेवन करने से अनपच की समस्या ठीक होती है।
#- अपच - नागरमोथा, अतीस, हरड़ अथवा सोंठ चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से अपच की समस्या ठीक होती है।
#- भूख न लगना - 10 ग्राम नागरमोथा तथा 10 ग्राम पित्तपापड़ा का काढ़ा बना लें। इसे सुबह और शाम भोजन से 1 घण्टा पहले पिएं। इससे बुखार तथा बुखार के कारण भूख न लगने की परेशानी ठीक होती है।
#- अपच - नागरमोथा का काढ़ा बनाकर सुबह, दोपहर तथा शाम को सेवन करने से अनपच के कारण होने वाली दस्त की समस्या ठीक होती है।
#- अपच - अदरक और नागरमोथा को पीस लें। इसे 2.5 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ सेवन करें। इससे अनपच के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है।
#- दस्त रोग - बराबर मात्रा में सुंगधबाला, नागरमोथा, बेल, सोंठ तथा धनिया का काढ़ा बना लें। इससे 10-40मि.ली. की मात्रा में पीने से दस्त में लाभ होता है।
#- पिलिया - 3-6 ग्राम नागरमोथा चूर्ण (nagarmotha powder) में 125 मि.ग्रा. लौह भस्म मिलाकर खैर सार काढ़ा के साथ पीने से पीलिया (हलीमक) रोग में लाभ होता है।
#- हैज़ा , विसुचिका - नागरमोथा का ठंडा काढ़ा पीने से हैजा रोग ठीक होता है।
#- सन्धिवात , गठिया - पिप्पली मूल, अकरकरा, नागरमोथा, अजगंध, वच, पीपर तथा काली मिर्च एक-एक भाग लें। इन सबके समान भाग में सोंठ तथा गुड़ मिलाकर 2.5 ग्राम की गोली बनाएं। सुबह और शाम एक-एक गोली सेवन करने से सन्धिवात (गठिया), जोड़ों का दर्द (ग्रन्थिवात) तथा वात दोष के कारण होने वाले अन्य रोग ठीक होते हैं।
#- गठिया रोग - नागरमोथा, हल्दी तथा आंवला को काढ़ा बनाकर ठंडा होने दें। इसे मधु मिलाकर सेवन करने से गठिया रोग में लाभ होता है।
#- महिलाओं के दूषित को शुद्ध व दूध को बढ़ाने के लिए- यदि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दूध कम हो रहा है तो नागरमोथा को जल में उबाल लें। इसे पिलाने से दूषित दूध शुद्ध हो जाता है। तथा दुग्ध वृद्धि होती है।
#- स्तन लेप - ताजे नागरमोथा को पीसकर माता के स्तनों पर लेप करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
#- सूखी खाँसी - नागरमोथा, पिप्पली, मुनक्का तथा बड़ी कटेरी के अच्छे पके फलों को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसे अच्छी तरह घोटकर गाय का घी और मधु के साथ मिलाकर चाटें। इससे सूखी खाँसी में फायदा होता है।
#- सूखी खाँसी - अडूसा, सोंठ, नागरमोथा, भारंगी, चिरायता तथा नीम की छाल का काढ़ा बना लें। 10-20मि.ली. काढ़ा में मधु डालकर पिलाने से सूखी खाँसी ठीक होती है।
#- सूजाक रोग - नागरमोथा का काढ़ा बनाकर 50 मि.ली. मात्रा में सुबह और शाम पिलाने से सूजाक में लाभ होता है।
#- सूजाक - नागरमोथा, दारुहल्दी, देवदारु तथा त्रिफला को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसे 10-40 मि.ली. काढ़ा सुजाक के रोगी को सुबह और शाम देना चाहिए।
#- जोड़ो का दर्द - एक ग्रामीण रोगियों को घुटने के दर्द का कैप्सूल गाय के दूध के साथ देता था। इस कैप्सूल को खाने से रोगी ठीक हो जाता है। जब उस व्यक्ति से सम्पर्क किया तो पता चला कि वह केवल नागरमोथा की जड़ का चूर्ण कैप्सूल में भर कर लोगों को देता था। जब हमनें रोगियों पर यह प्रयोग किया तो पाया कि उससे तुरन्त आराम मिलता है।
#- कण्ठ में जोंक - अगर कंठ में जोंक चिपक गई हो तो नागरमोथा के कन्द को मुंह में रखने से निकल जाती है ।
#- मासिकधर्म - 10 ग्राम नागरमोथा को पीस लें। उसमें 50 ग्राम गुड़ मिलाकर 5-5 ग्राम की गोलियां बनाकर गाय के दूध के साथ खाने से मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभ होता है।
#- मासिकधर्म - नागरमोथा की जड़ का पेस्ट एवं काढ़े का गोमूत्र के साथ सेवन करने से मासिक धर्म विकारों में फायदा होता है।
#- फुन्सियां - नागरमोथा, मुलेठी, कैथ की पत्ती तथा लाल चंदन को समान मात्रा में लेकर पीसकर गाय का घी मिलाकर , इसका लेप लगाने से फुंसियां ठीक होती हैं।
#- घाव - नागरमोथा के ताजे प्रकंद को घिसकर गाय का घी मिला लें। इसे घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है।
#- मिरगी अपस्मार - उत्तर-दिशा की तरफ से नागरमोथा को पुष्य नक्षत्र में उखाड़ लें। इसे गाय के दूध के साथ पिलाने से अपस्मार (मिरगी) रोग में लाभ मिलता है।
#- नकसीर - नागरमोथा, सिंघाड़ा, धान का लावा, खजूर, कमल तथा केशर को समान भाग लें। इनका चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण को मधु के साथ रक्तपित्त के रोगी को दिन में तीन से चार बार चटाएं। इससे लाभ होता है।
#- उपदंश, सिफ़लिस - नागरमोथा की जड़ के काढ़े का गोमूत्र के साथ सेवन और काढ़े से घाव को धोने से उपदंश (सिफलिस) रोग में लाभ होता है।
#- बुखार - नागरमोथा और गिलोय का काढ़ा बना लें। इसे 20-30 मि.ली. मात्रा में पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार व पाचनशक्ति - नागरमोथा और पित्तपापड़ा का काढ़ा बनाकर 20-40मि.ली. की मात्रा में पिलाएं। इससे ठंड लगकर आने वाले बुखार में लाभ होता है। इससे पाचन-शक्ति बढ़ती है।
#- बुखार - नागरमोथा, सोंठ तथा चिरायता को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा कफ, वात, अपच तथा बुखार को ठीक करता है, तथा पाचन-क्रिया को बढ़ाता है।
#- बुखार - नागरमोथा की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-40 मि.ली. मात्रा में पीने से बुखार उतर जाता है।
#- बुखार - गिलोय, सोंठ, नागरमोथा, हल्दी तथा धमासा का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. काढ़ा में 500 मिग्रा पिप्पली का चूर्ण डालकर पीने से वातज-बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - मुनक्का, अमलतास, नागरमोथा, पित्तपापड़ा तथा हरड़ का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. काढ़ा में शहद मिलाकर पीने से पित्तज-बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - नागरमोथा, सोंठ, चिरायता, पित्तपापड़ा तथा गिलोय का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. मात्रा में पिलाने से वात-पित्तज बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - धान्यक, नेत्रवाला, नागरमोथा, हल्दी, हरड़ तथा जीरा का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. मात्रा में पीने से कफ-पित्तज बुखार में लाभ होता है।
#- टाइफाइड - नागरमोथा, छोटी कटेरी, गुडूची, शुण्ठी तथा आँवला से काढ़ा बना लें। इसमें पिप्पली चूर्ण 2.5-5 ग्राम तथा मधु 5 ग्राम मिलाकर पीने से टायफॉयड ठीक हो जाता है।
#- टाइफाइड - नागरमोथा, गिलोय, सोंठ, धमासा, आँवला, दोनों कटेरी, नीम की छाल तथा भृंगराज को समान भाग लेकर काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मि.ली. में मधु डालकर पिलाने से भी टायफॉयड में लाभ होता है।
#- मिरगी रोग - मिर्गी रोग में नागरमोथा का प्रयोग फायदेमंद हो सकता है। एक रिसर्च के अनुसार नागरमोथा मिर्गी के लक्षणों को दूर करने में सहायक होता है क्योंकि इसमें एंटीकॉन्वेलसेंट और एंटीऑक्सिडेंट का गुण होता है। नागरमोथा 10-20 मिलीग्राम मे मधु मिलाकर को चूर्ण के रूप में प्रयोग कर सकते है।
#- कोलेस्ट्राल - नागरमोथा का सेवन हृदय रोग से बचाव करने में मदद करता है क्योंकि नागरमोथा का सेवन कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को रक्त में नियंत्रित करने में मदद करता है। इससे हृदय रोग के होने की संभावनाएं कम हो जाती है। नागरमोथा का सेवन चूर्ण 5-10 ग्राम या काढ़ा 10-20 मिली की मात्रा के रूप में किया जा सकता है।
#- पेचिश - पेचिश की समस्या होने पर नागरमोथा चूर्ण 5-10 ग्राम का सेवन फायदेमंद हो सकता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार नागरमोथा में दीपन -पाचन के साथ -साथ ग्राही का गुण भी होता है जो कि पेचिस के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
#- खूनी दस्त - खूनी दस्त में नागरमोथा का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार इसमें ग्राही का गुण पाया जाता है जो कि दस्त की प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है। खूनी दस्त या डीसेंट्री में नागरमोथा चूर्ण 5-10 ग्राम को अदरक और मधु के साथ दे सकते हैं।
#- सिरदर्द - सिरदर्द में नागरमोथा का प्रयोग फायदेमंद हो सकता है क्योंकि नागरमोथा की तासीर शीत होती है जो की पित्त प्रकोप के कारण होने वाले सिरदर्द में आराम देता है। नागरमोथा का सेवन 5-10 ग्राम चूर्ण रूप में कर सकते है।
#- बवासीर - बवासीर में नागरमोथा का सेवन फायदेमंद होता है क्योंकि बवासीर के निदान में पाचन शक्ति का कमजोर होना भी शामिल होता है। नागरमोथा का सेवन पाचन शक्ति को बढ़ाता है जिससे बवासीर के तकलीफ के आराम मिलता है। नागरमोथा का बवासीर में क्वाथ के रूप में 10-20 मिली प्रयोग कर सकते है।
#- त्वचारोग - नागरमोथा का चूर्ण 5-10 ग्राम मधु मे मिलाकर खाने से व नागरमोथा मूल का लेप बनाकर लगाने त्वचा संबंधी रोगों में फायदेमंद हो सकता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार नागरमोथा में त्वक रोगहर का गुण पाया जाता है।
#- कमज़ोरी - नागरमोथा की जड़ का पेस्ट एवं काढ़ा बनाकर सेवन करें। इससे एनीमिया (खून की कमी), शारीरिक कमजोरी, कमर का दर्द तथा सूजन आदि में लाभ होता है।
#- मूत्ररोग - गौतक्र ( छाछ ) के साथ नागरमोथा के चूर्ण 5-10 ग्राम का सेवन करने से पेशाब खुल कर आता है। पेशाब से संबंधित रोग में नागरमोथा का प्रयोग लाभदायक होता है।
#- बिच्छुदंश - नागरमोथा कंद को पीसकर बिच्छु या अन्य कीड़े-मकौड़ों के काटने वाले स्थान पर लेप के रूप में लगाएं। इससे बिच्छू के डंक से होने वाला दर्द ठीक होता है।
#- भिलावा विष - देवदारु, सरसों तथा नागरमोथा के समान भाग चूर्ण को मक्खन में मिलाकर लेप करने से भिलावे का विष उतर जाता है।
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