रामबाण :- 29 -:
#- आँखरोग - आंखों के रोग में द्रोणपुष्पी के औषधीय गुण से लाभ होता है। इसके लिए द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस से सिर पर लेप करें। इसके साथ ही नाक के रास्ते लें। इससे सिर का दर्द ठीक होता है।
#- सिरदर्द - द्रोणपुष्पी पंचांग को पीस लें। इसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मस्तक पर लगाएं। इससे भी सिर दर्द ठीक होता है।
#- सर्दी - द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर भाप दें। स्नान के दौरान इस काढ़ा का उपयोग करें। इससे सर्दी में फायदा होता है।
#- सर्दी- ज़ुकाम - 10 मिली गूमा के पत्ते के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस और शहद मिला लें। इससे सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
#- सर्दी ज़ुकाम - 5-10 ग्राम द्रोणपुष्पी के पत्ते में बराबर मात्रा में वनफ्शा और मुलेठी चूर्ण मिलाकर, काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में मिश्री मिलाकर पीने से सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
#- पीलिया - द्रोणपुष्पी को चावल के धुले हुए पानी से पीस लें। इसे 1-2 बूंद की मात्रा में नाक से लें। इससे आंखों के रोग में लाभ होता है। इसके साथ ही इसे काजल की तरह लगाने से पीलिया रोग में भी लाभ होता है।
#- सर्दी ज़ुकाम - 5 मिली द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस में बराबर मात्रा में शहद मिला लें। इसे पीने से खांसी और सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
#- बदहजमी - आप बदहजमी के इलाज के लिए भी द्रोणपुष्पी का सेवन कर सकते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं। इससे बदहजमी में लाभ होता है, और भूख बढ़ती है।
#- पीलिया - द्रोणपुष्पी के रस को काजल की तरह लगाने और नाक के रास्ते लेने से एनीमिया और पीलिया में फायदा होता है। आपको 5 मिली रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाना है, और इस्तेमाल करना है।
#- पीलिया - 5-10 मिली द्रोणपुष्पी के रस में 500 मिग्रा काली मरिच का चूर्ण और सेंधा नमक मिला लें। इसे दिन में तीन बार सेवन करने से एनीमिया और पीलिया में लाभ होता है।
#- लिवर, तिल्ली रोग - लिवर और तिल्ली विकार में द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण लें। इसमें एक भाग पिप्पली चूर्ण मिला लें। 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लिवर और तिल्ली विकारों में लाभ होता है।
#- द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर सेकने से गठिया रोग ठीक होता है।
#- द्रोणपुष्पी पंचांग का बना लें। 10-30 मिली काढ़ामें 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर पिलाने से गठिया का इलाज होता है।
#- रोम शोथ - रोम छिद्र की सूजन के इलाज के लिए द्रोणपुष्पी का उपयोग लाभदायक होता है. द्रोणपुष्पी के पत्ते का भस्म बना लें। इसको घोड़े के मूत्र में मिला लें। इसका लेप करें। इससे रोम छिद्र की सूजन कम होती है।
#- दाद खाज - आप दाद-खाज-खुजली में भी द्रोणपुष्पी के फायदे ले सकते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस या पेस्ट से लेप करें। इससे घाव, शरीर की जलन, दाद और खुजली ठीक होता है।
#- अनिद्रा - अनिद्रा की परेशानी में द्रोणपुष्पी का सेवन फायदेमंद होता है। अनेक आयुर्वेदाचार्य इसका इस्तेमाल करते हैं। 10-20 मिली द्रोणपुष्पी के बीज का काढ़ा का सेवन करें। इससे नींद अच्छी आती है।
#- हिस्टीरिया - हीस्टीरिया के लिए द्रोणपुष्पी फायदेमंद है। द्रोणपुष्पी का काढ़ा बनाकर स्नान करें। इससे हीस्टीरिया का इलाज होता है।
#- बुखार - इसके पत्तों से रस निकाल लें। 5-10 मिली रस में नमक मिलाकर पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
#- बुखार - इसके पत्ते के रस को काजल की तरह लगाने से बुखार में लाभ होता है।
#- द्रोणपुष्पी काढ़ा से स्नान और अंगों को पोछने से भी बुखार में लाभ होता है।
#- 10-30 मिली द्रोणपुष्पी के रस में 5-5 ग्राम पित्तपापडा चूर्ण, नागरमोथा चूर्ण और चिरायता चूर्ण मिला लें। इसे पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
#- जलन, दाह - द्रोणपुष्पी के पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने से बुखार के कारण होने वाली शरीर की जलन में लाभ होता है।
#- न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर - द्रोणपुष्पी का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता है। आप इसके लिए द्रोणपुष्पी के पत्ते का काढ़ा बना लें। इसका सेवन करने से स्नायविक विकारों (न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) में लाभ होता है।
#- मलेरिया - 5 मिली द्रोणपुष्पी के पत्ते के रस में 1 ग्राम काली मरिच का चूर्ण मिला लें। इसका सेवन करने से मलेरिया बुखार में फायदा होता है।
#- विषमज्वर - 10-30 मिली पंचांग काढ़ा का सेवन करने से विषमज्वर में लाभ होता है।
#- टाइफाइड बुखार - द्रोणपुष्पी पंचांग में पित्तपापड़ा, सोंठ, गिलोय और चिरायता को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा को पीने से टाइफाइ बुखार में लाभ होता है।
#- वातदोष - द्रोषपुष्पी वात दोष को भी ठीक करता है। 10 मिली द्रोणपुष्पी रस में मधु मिलाकर पिलाएं। इससे वात दोष से संबंधित विकारों ठीक होता है।
#- बिच्छू डंक मारे तो घबराएं नहीं। द्रोणपुष्पी के पत्तों को पीसकर डंक वाले स्थान पर लगाएं। इससे बिच्छू के डंक से होने वाले नुकसान कम हो जाते हैं।
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