रामबाण :- 46 -:
#- निसोथ (Turpethum or Nishoth) को कई तरह से लिखा जाता है। कई लोग निसोथ को निसोत तो अनेक लोगनिशोथ लिखते हैं। इसे संस्कृत में त्रिवृत् भी बोला जाता है। आप निशोथ के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते होंगे। यह एक बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है। आयुर्वेदिक किताबों में निसोथ के फायदे के बारे में कई अच्छी बातें बताई गई हैं। निशोथ के कई सारे औषधीय गुण हैं। क्या आप यह जानते हैं कि बुखार, सूजन, पेट की बीमारी, और ह्रदय रोग में निसोत के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। इतना ही नहीं, कंठ से जुड़ी बीमारियों, तिल्ली विकार, एनीमिया, घाव आदि रोगों में भी निसोथ के औषधीय गुण से लाभ मिलता है। आप पेट के कीड़े की समस्या, टीबी की बीमारी, फोड़ा, और एनीमिया में भी निसोथ से लाभ ले सकते हैं। निशोथ की लता अनेक सालों तक जीवित रहती है। इसकी जड़ मोटी, स्थूल, मांसल, शाखायुक्त होती है। रंगों के आधार पर निशोथ दो तरह की होती हैः-
(1) श्यामला (2) सफेद , सफेद निशोथ की जड़ सफेद रंग की और काली निशोथ की जड़ श्याम रंग की होती है। चिकित्सा कार्य के लिए त्रिवृत् की जड़ का प्रयोग किया जाता है। बाजार में इसके भूरे या सफेद-भूरे रंग के मोटे टुकड़े मिलते हैं। ये टुकड़े एक ओर फटे हुए से मिलते हैं। कई स्थानो पर जड़ के टुकड़े में इसके तने के टुकड़े को भी मिलाकर बेचा जाता है। निसोथ का वानस्पतिक नाम Operculina turpethum (Linn.) Silva Manso (ऑपरक्युलिना टरपिथम) Syn-Ipomoea turpethum (Linn.) R. Br., Merremia turpethum (Linn.) Shah & Bhatt. है, और यह Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) कुल की है। हिन्दी में निसोथ कहते है। सफेद त्रिवृत् मधुर, कषाय, कटु, उष्ण, लघु, सर, रूक्ष, तीक्ष्ण होती है। श्यामले त्रिवृत् तीक्ष्ण, विरेचक, मूर्च्छाकारक, दाहकारक, मदकारक और भम कारक होती है। दोनों प्रकारों में सफेद रंग युक्त जड़ उत्तम मानी जाती है। व्यक्तियों और बालकों को इसकी जड़ का प्रयोग करने से बहुत लाभ मिलता है। हल्के कब्ज वाले व्यक्तियों को भी लाभ होता है।
श्यामले जड़ वाली निशोथ दस्त का कारण बन सकती है। यह रस, रक्त आदि धातुओं को क्षीण करके बेहोशी उत्पन्न कर देती है। क्षीण होने के कारण हृदय और कण्ठ में खिंचाव उत्पन्न कर देती है। यह दोषों को तुरंत ठीक करती है।
#- आँख फुलने का रोग - काली निशोथ के चूर्ण में मधु और शर्करा मिला लें। इसे आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के फूलने की बीमारी में लाभ होता है।
#- आँखों की पलक रोग - काली निशोथ की जड़ का रस निकाल लें। इसमें बराबर मात्रा में मधु मिलाकर आँखों में काजल की तरह लगाने से पलकों से जुड़ी बीमारी ठीक होती है।
#- पित्तजविकार - पित्तज विकार में त्रिवृत् ( निशोथ ) के औषधीय गुण के फायदे मिलते हैं। आप त्रिवृत् का पेस्ट बना लें। पेस्ट और एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाएं। इसके लिए दोनों को गाय के दूध और जल में पकाएं। इसे पीने से पेट साफ होता है और पित्तज विकार खत्म होते हैं।
#- वात विकार - निशोथ, मधुशिग्रु और जड़ी के बीज को तेल में पकाएँ। इसे पीने और इससे मसाज करने से वात दोष के कारण होने वाले विकार ठीक होते हैं।
#- पेट फुलना - निशोथ के पत्ते की सब्जी पेट के फूलने की बीमारी में लाभ पहुंचाती है।
#- पेट फुलना - रोगी की बीमारी और पाचनशक्ति के अनुसार निशोथ एवं शुण्ठी के 1-2 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध या अंगूर के रस के साथ सेवन करने से पेट के फूलने की बीमारी में लाभ होता है।
#- पेट फुलना - गुग्गुलु, निशोथ, दंती, द्रवन्ती, सेंधा नमक और वचा चूर्ण को गोमूत्र, मद्य को दूध या अंगूर के रस के साथ सेवन करने से पेट के फूलने की बीमारी में लाभ होता है।
#- क़ब्ज़ में पेट फुलना - दो भाग त्रिवृत्, चार भाग काली मिर्च और पाँच भाग हरीतकी के चूर्ण लें। इन सभी के बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर, गोली बना लें। गोली का सेवन करने से कब्ज के कारण पेट के फूलने की समस्या में लाभ होता है।
#- पेट फुलना - निशोथ, हरीतकी और काली निशोथ के चूर्ण में स्नुही क्षीर की भावना देकर (किसी द्रव्य के रस में उसी द्रव्य के चूर्ण को सुखाना) गोली बना लें। इसे गोमूत्र के साथ सेवन करने से पेट का फूलना ठीक होता है।
#- क़ब्ज़ - अगर पेट की बीमारी के कारण रोगी को कब्ज हो जाए तो खाने के पहले यवतिक्ता, थूहर, निशोथ, दंती और चिरबिल्व के पत्तों की सब्जी खिलाना लाभदायक होता है।
#- क़ब्ज़ - 1-2 ग्राम निशोथ का चूर्ण लें। इसमें एक चौथाई भाग दालचीनी, तेजपत्ता और मरिच का चूर्ण मिला लें। इसे शर्करा और शहद के साथ सेवन करने से कब्ज की समस्या ठीक होती है।
#- पेट के कीड़े - आप पेट में कीड़े होने पर निसोत के फायदे ले सकते हैं। 1-2 ग्राम त्रिवृतादि पेस्ट को गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
#- आँतरोग - रात में 2-3 ग्राम भूरे त्रिवृत् के चूर्ण को कलाकन्द के साथ सेवन करें। इससे सुबह पेट साफ हो जाता है, और आंतों से जुड़े रोग में लाभ होता है।
#- बवासीर - 20 मिली त्रिफला के काढ़ा में 2 ग्राम निशोथ का चूर्ण मिलाकर पीने से पेट साफ होता है। इससे गुदा से जुड़े रोग जैसे बवासीर का इलाज होता है।
#- बवासीर - निशोथ के पत्ते की सब्जी को गाय के घी या तेल में भूनकर गौदधि ( दही ) के साथ सेवन करने से बवासीर का उपचार होता है।
#- बवासीर - रोज त्रिफला के काढ़ा के साथ निशोथ चूर्ण का सेवन करें। इससे बवासीर का इलाज होता है।
#- बवासीर - निशोत और दंती के पेस्ट का सेवन करने से गैस की समस्या से तो आराम मिलता ही है, साथ ही बवासीर का उपचार होता है।
#- पिलिया - 2-3 ग्राम निशोथ के चूर्ण को त्रिफला के काढ़ा के साथ सेवन करें। इससे पीलिया की बीमारी का इलाज होता है। आप इसे बराबर मात्रा में मिश्री के साथ भी सेवन कर सकते हैं।
#- गठिया रोग - गठिया में निशोथ, विदारीकंद और गोक्षुर का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे गठिया के उपचार में मदद मिलती है।
#- विसर्प - विसर्प रोग होने पर निसोत के औषधीय गुण से फायदा मिलता है। 1-2 ग्राम निशोथ चूर्ण को गाय का घी, गाय का दूध, अंगूर के रस के साथ पीने से विसर्प रोगी को लाभ मिलता है।
#- फोड़ा - कच्चा फोड़ा की अवस्था में निसोत के प्रयोग से फायदा मिलता है। फोड़ा होने पर निशोथ और 1-2 ग्राम हरीतकी के चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे कच्चे फोड़े की समस्या में लाभ होता है।
#- बुखार - बुखार उतारने के लिए मधु, गाय के घी युक्त 1-2 ग्राम निशोथ के चूर्ण का सेवन करें।
#- बुखार - बुखार में आप गाय के दूध के साथ निशोथ चूर्ण का प्रयोग भी कर सकते हैं।
#- जहरीलें कीड़े के काटने पर- जहरीले कीटों के काटने पर बराबर मात्रा में चौलाई की जड़ और 1-2 ग्राम निशोथ का चूर्ण लें। इसमें गाय का घी मिलाकर पीना चाहिए। इससे कीटों के काटने का इलाज होता है।
#- टी बी रोग - निसोत के फायदे से टीबी रोग में लाभ होता है। काली निशोथ के चूर्ण को शर्करा, मधु और गाय के घी या अंगूर रस, गम्भारी रस, विदारीकंद रस आदि के साथ दें। इससे टीबी की बीमारी का इलाज होता है।
#- इनफ़्लुएंज़ा - पुष्य नक्षत्र में काली निशोथ की जड़ निकाल लें। इससे लाल रंग के धागे में बाँधकर रोगी को बाँधें। इससे इंफ्लुएंजा का इलाज होता है।
#- नाक, कान से ख़ून बहना - रक्तपित्त (आंख-नाक-कान से खून निकलने पर) में निशोथ का चूर्ण (1-2 ग्राम) लें। इसके साथ ही निसोत रस (5-10 मिली) या काढ़ा (10-20 मिली) में अधिक मात्रा में मधु और शर्करा मिलाकर सेवन करना चाहिए।
#- चूहे का विष - थूहर के दूध में पिसी हुई निशोथ और मंजिष्ठा के चूर्ण (1-2 ग्राम) का सेवन करें। इससे चूहे के काटने पर लगने वाला विष या विष के कारण होने वाले नुकसान ठीक होते हैं।
#-टाइफाइड - त्रिफला , त्रायमाण, अंगूर और कुटकी के काढ़ा (10-20 मिली) में एक चौथाई भाग शर्करा और निशोथ का चूर्ण मिला लें। इसका सेवन करने से टाइफाइड बुखार का इलाज होता है।
#- टाइफाइड - निशोथ के चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से टाइफाइड का उपचार होता है।
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