Sunday, 4 April 2021

रामबाण :- 30-:

रामबाण :- 30-:


#- शिरोरोग - धतुरा ( Thorn apple ) मस्तक पीड़ा में धतूरे के 2-3 बीजों को नित्य निगलने जीर्ण शिर:शूल ( पुरानी मस्तक पीड़ा ) का शमन होता है।

#- सिर की जूँए- सरसों का तैल 400 मिलीग्राम , धतूरे के पत्तों का रस 1.6 ली तथा धतूरे के पत्तों का कल्क 1.6 किलोग्राम , इन सबको धीमी आँच पर पकाकर तैल मात्र शेष रह जाये तो छानकर बोतल में भरकर रख ले, इस तैल को बालों में लगाने से सिर की जूएँ नष्ट हो जाती है।

#- नेत्रशूल - धतुरा पत्र स्वरस को नेत्र के बाहर चारों तरफ़ लगाने से नेत्रशूल का शमन होता है।

#- वातज नेत्राभिष्यन्द - अपामार्ग मूल धत्तूर मूल को ताम्रपत्र पर घिसकर नेत्रों में अंजन करने से नेत्राभिष्यन्द का शमन होता है।

#- पीनस - सिद्ध किये हुए कृष्ण धतूरे के बीज को कूठ के क्वाथ की भावना देकर 30-30 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर आठ दिन तक सेवन करे , यह ग्राही तथा पीनस शामक होता है।

#- कर्णमूलशोथ - धतूरे के पत्रस्वरस को आग पर गाढ़ा करके , कर्णमूलशोथ पर लेप करने से शोथ का शमन होता है।

#- कर्णपूय - कान से अगर पूय ( पीब ) निकलता हो तो 8 भाग सरसों तैल , 1 भाग गंधक तथा 32 भाग धतुरा पत्रस्वरस मिलाकर विधीपुर्वक तैल सिद्ध करके , इस तैल की 1 बूँद कान मे सुबह- सायं डालनी चाहिए ।

#- कर्णगत नाडीव्रण - 50 ग्राम हल्दी , गंधक तथा 1.6 किलोग्राम धतूरे का पत्रस्वरस से सिद्ध 400 ग्राम सरसों तैल से कर्णपूरण करने से कर्णगत नाड़ीव्रण का सम्यक् रोपण होता है ।

#- श्वास रोग - धतूरे के फल शाखा तथा पत्तों को कूटकर और सुखाकर उसके चूर्ण का धूम्रपान करने से श्वासरोग में लाभ होता है।

#- दमारोग - धतूरे के आधा सूखे हुए पत्तों के टुकड़ों को 500 मिलीग्राम की मात्रा में लेकर धूम्रपान कराना चाहिए । अगर अगर 10 मिनट तक दमे का दौरा शांत न हो तो अधिक से अधिक 15 मिनट बाद कराना चाहिए । यदि तब भी आराम न हो तो फिर नहीं कराना चाहिए और जिन्हें धतुरा अनुकूल न पड़े तो उन्हें नहीं देना चाहिए।

#- दमे का दौरा - धतुरा , तम्बाकू , अपामार्ग और जवासा इन चीज़ों को समान भाग लेकर चूर्ण बना लें, इसमें से 2 चूटकी चिलम मे रखकर पीने से दमे का दौरा बन्द हो जाता है।

#- दमे का दौरा- धतूरा , काली चाय , शोरा और तम्बाकू को समान भाग लेकर चूर्ण करके, इस चूर्ण की बीड़ी बनाकर पीने से दमे का दौरा रूक जाता है।

#- विसुचिका - धतूरा पुष्प की पुकेंसर ( केसर ) को बतासे में रखकर सेवन करने से विसुचिका में लाभ होता है।

#- स्तनों की सूजन - धतूरे के पत्तों को गर्म करके स्तनों पर बाँधने से स्तनों ( स्तनशोथ ) में लाभ होता है।

#- स्तनों में दूध की अधिकता - स्तनों में दूध की अधिकता होने से स्तन पर धतूरे के पत्ते बाँधने चाहिए ।

#- कामशक्तिवर्धनार्थ - धतूरे के बीज , अकरकरा और लौंग इन तीनों की गोलियाँ बनाकर खिलाने से कामशक्ति बढ़ती है।

#- धतूरे बीज तैल को पुरूषों के पैरों के तलवों पर मालिश करने के बाद स्त्री के साथ सहवास करने से स्तम्भन
लम्बा चलता है यानि देर से वीर्य स्खलित होता है।

#- लिंग शिथिलता - धतूरा के एक फल को बीज सहित लेकर , पीसकर , 1.5 लीटर गौदुग्ध में पकाकर दही जमा दें, अगले दिन दही को बिलोकर ( मथकर ) घी निकाल ले, इस घी की 125 मिलीग्राम की मात्रा को पान में रखकर खाने से वीर्य का स्तम्भन होता है। तथा लिंग पर मलने से उसकी शिथिलता दूर होती है।

#- गर्भस्तम्भनार्थ - धतूरे की मूल को 3-4 इंच के टुकड़ों में काटकर एक ऊनी धागे में बाँधकर कमर में पहनने से गर्भस्राव या गर्भपात नहीं होता है। जब तक गर्भस्राव की आशंका हो तबतक इस जड़ी को कमर में धारण करें।

#- गठिया रोग - तैल की मालिश करके ऊपर धतूरा के पत्ते बाँध देने से गठिया दर्द मिट जाता है , इस तैल का लेप करने से सूखी में भी लाभ होता है।

#- सूखी खुजली खारीश - धतूरा पञ्चांग का रस निकालकर उसको तिल तैल में पकाकर जब तैल शेष रह जाये , इस तैल का लेप करने से सूखी खुजली व खारीश में भी लाभ होता है।

#- जोड़ो का दर्द - धतूरा सत को आधी ग्रेन की मात्रा में तीन बार सेवन करने से जोड़ो के दर्द में लाभ होता है।

#- जोड़ो का दर्द - धतूरे के पत्तों को पीसकर संधियों पर लेप करने से वेदना का शमन होता है।

#- श्लीपद - धतूरे के बीजों को शीतल जल वर्धमान क्रम में सेवन करने से कफज श्लीपद ( हाथीपाँव ) का शमन होता है।

#- श्लीपद - समभाग धतूरापत्र , एरण्डमूल , निर्गुण्डी पत्र, पुनर्नवा , सहजन की छाल तथा सरसों को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से जीर्ण दू:साध्य श्लीपद ( हाथीपाँव ) रोग में लाभ होता है।

#- विपादिका, बिवाई - धतूरे के बीज तथा मानकन्द क्षार से सरसों के तैल का विधिवत पाक कर फटे हुए तथा पीड़ा युक्त पैरों पर नियमित लगाने से विपादिका रोग का शमन होता है।

#- नारू रोग - नारू की बिमारी में धतूरे के पत्तों की पुलटीश बाँधने से बहुत लाभ मिलता है।

#- व्रण - जिस व्रण मे गहरा पीब या छिछडें जम गये हो , उसको गुनगुने पानी से धोकर दिन में तीन बार धतूरा के पत्तों की पुलटीश बाँधनी चाहिए।

#- उन्माद - काले धतूरे के शुद्ध बीजों को पित्तपापड़ा के रस में घोटकर पीने से उन्माद मे लाभ होता है।

#- उन्माद रोग - शुद्ध धतूरा के बीज और कालीमिर्च को बराबर लेकर , महीन चूर्ण करके जल के साथ खरल करके 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बना ले, 1-2 गोली सुबह व रात्री को गाय के मक्खन के साथ खाने से उन्माद रोग मे लाभ होता है।

#- शोथ - धतूरे के पीसे हुए पत्तों में शिलाजीत मिश्रित कर,लेप करने से अण्डकोष की सूजन , उदरशोथ , फुफ्फुस शोथ तथा संधियों की सूजन में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

#- ज्वर - 125 मिलीग्राम धतूरा के बीजों की भस्म को मलेरिया ज्वर के रोगी को सुबह दोपहर सायं देने से लाभ होता है।

#- ज्वर - 65 मिलीग्राम धतूरा बीज का चूर्ण का सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।

#- ज्वर - 5 मिलीग्राम धतुरा पत्रस्वरस को गाय के दूध से बनी दही के साथ पिलाने से 1 दिन के अन्तर पर आने वाले ज्वर में लाभ होता है।

#- प्रमेह - धतूरे के पत्ते , पान और कालीमिर्च को बराबर गिनती में लेकर , पीसकर 65 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें, दिन में दो बार एक- एक गोली देने से ज्वर में लाभ होता है। इसको सौंफ के अर्क के साथ लेने से प्रमेह मे लाभ होता है।

#- बिच्छुदंश - धतूरे के पत्तों को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से दंशजन्य वेदना , दाह, तथा शोथ का शमन होता है।

#- धतूरा तैल - 400 मिलीग्राम धतूरा के रस रस में चटनी की तरह पीसी हुई हल्दी 25 ग्राम और तिल का तैल 100 मिलीग्राम लेकर मंद आँच पर पकाएँ , तैल शेष रहने पर छानकर रख ले, इस विधी से धतूरा तैल निर्मित होता है।

# धतूरे का दर्पनाशक - कपास के फूल और पत्र , इनका शीतनिर्यास देने से धतूरे का विष शान्त होता है।

#- दोष - अधिक मात्रा मे धतूरा विष है । यह अपनी खुशकी की वजह से शरीर को सून्न कर देता है और सिर में दर्द पैदा करता है तथा उन्माद और बेहोशी पैदा कर मनुष्य को मार देता है ।

#- धतूरा शोधन विधी - धतूरे के बीज विषाक्त होते है इनका सेवन करने से उन्मत्ता उत्पन्न हो सकती है , अत: सेवन से पूर्व इनका सेवन आवश्यक है । धतूरे के बीजों को पोटली में रखकर 1 पहर तक गौदूग्ध में डालकर दोलायंत्र में स्वेदन करें और फिर निकालकर गर्म जल से धोकर सूखा ले इस विधी से धतूरा बीज शोधन होता है।


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