Tuesday 13 January 2015

(३८)- गौ - चिकित्सा .आग से जलना ।

(३८)- गौ - चिकित्सा .आग से जलना ।

१ - आग से जल जाना
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कारण व लक्षण - पशु जिस स्थान पर बँधे होते है उस स्थान पर आग लग जाने से या किसी भी कारण से आग से जल जाने पर इलाज इस प्रकार करें ।

१ - औषधि - अलसी का तेल १२० ग्राम , चूने का पानी ६० ग्राम , राल ( बारूद ) १२ ग्राम , राल को पीसकर तीनों आपस में मिलाएँ फिर रोगी पशु को दिन में तीन बार अच्छा होने तक लगायें।

२ - औषधि - असली शहद २४० ग्राम , बढ़िया सिन्दुर ( कामियाँ सिन्दुर ) १२० ग्राम , दोनों को आपस में ख़ूब फैंट कर रोगी पशु को दिन में तीन बार लगाये , ठीक होने तक लगाते रहे। या पहले शहद लगाकर ऊपर से सिन्दुर भी लगा सकते है ।

३ - औषधि - उँधा फूली के पत्तों का रस ( पाना चोली ) १२ ग्राम , अलसी का तेल ६० ग्राम , दोनों को आपस में फैटकर रोगी पशु को अच्छा होने तक दिन में दो तीन बार लगाते रहे ।

४ - औषधि - कई बार मक्खियाँ बहुत अधिक सताती है तो ऐसी स्थिति में हमें डीकामाली ( मालती बेल ) ६० ग्राम , अलसी का तैल १२० ग्राम , डीकामाली को महीन पीसकर तथा तैल में भिगोकर रोगी पशु को ठीक होने तक दिन में तीन बार लगायें। कई बार अलसी के तैल के स्थान पर नारियल का तैल भी उक्त स्थान पर लगा सकते है। इससे ज़्यादा फ़ायदा होगा। एक बात और ध्यान रखना चाहिए कि डीकामाली को पीसकर रख लें । लगाने से पहले ही तैल में मिलाएँ क्योंकि मिलाकर अधिक समय रखने पर डीकामाली की गन्ध उड़ जाती है।

५ - औषधि - मोरपंख को जलाकर उसकी राख को चलनी में छानकरनारियल के तैल में मिलाकर पशु को अच्छा होने तक दिन में दो बार लगाते रहें।
मोरपंख व नारियल तैल को आप किसी भी घाव पर लगा सकते है जहाँ मक्खियाँ ज़्यादा सताती हो वहाँ प्रयोग करें ।

६ - औषधि - बेर की पत्ती ( बोर की पत्ती ) २४ ग्राम , अलसी का तैल ६० ग्राम , पत्तियों को ख़ूब महीन पीसकर तथा तैल में मिला कर रोगी पशु को दिन में दो बार लगाते रहे ठीक होने तक।

७ - औषधि - घृतकुमारी ( एलोविरा ) गूद्दा ४८० ग्राम गाय के दूध की दही ९६० ग्राम , पानी २४० ग्राम , घृतकुमारी के गूद्दे को दही में मिलाकर ख़ूब मथकर इसमें पानी मिला कर रोगी पशु को दिन में तीन बार अच्छा होने तक रोज़ पिलाते रहें।

८ - औषधि - बेल ( बिल्व फल ) का गूद्दा ४८० ग्राम , गाय के दूध की दही ९६० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , पहले बेल फल के गूद्दे को पानी में मथकर छान लें, फिर उसे दही में मथकर रोगी पशु को दिन में तीन बार अच्छा होने तक पिलाते रहें ।

९ - औषधि - मेंथी के बीज ४८० ग्राम , गाय के दूध की दही ९६० ग्राम , पानी १८२० ग्राम , पहले मेंथी के दानों को महीन पीसकर पानी मे गलाये फिर दही में मिलाकर रोगी पशु को दिन में दो बार पिलाते रहे अच्छा होने तक। पशु अवश्य ठीक होगा ।

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२ - गरम पानी से जल जाना
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कारण व लक्षण - कभी- कभी अज्ञानतावश पशु को अधिक गरम पानी से सेंक देतें हैं या गरम - गरम पानी फैंक देत है उसके ऊपर , जिससे पशु जल जाता है । उसकी चमड़ी सुन्न पड़ जाती है और तिडक जाती है ।

१ - औषधि - गेरू ६० ग्राम , अलसी का तैल १२० ग्राम , गेरू को महीन पीसकर कपडछान करके तैल में मिलाकर रोगग्रस्त स्थान पर दोनों वक़्त , सुबह- सायं ठीक होने तक लगाते रहे ।

२ - औषधि - चूने का पानी ६० ग्राम , अलसी का तैल ६० ग्राम , दोनों को मिलाकर ख़ूब हिलायें और उसके बाद में रोगी पशु को लगायें ।

३ - औषधि - सिन्दुर ६० ग्राम , शहद ६० ग्राम , दोनों को मिलाकर जले हुए स्थान पर लेप कर दें । और ठीक होने तक करते रहें ।





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