Tuesday 13 January 2015

(१२)- गौ - चिकित्सा . मूत्ररोग ।

(१२)- गौ - चिकित्सा . मूत्ररोग ।

मूत्ररोग ( पेशाब सम्बन्धी रोग )
=================================

१ - मूत्र में ख़ून आना ( Hamaturia )
==============================

कारण व लक्षण - ठण्डे तथा खराब मौसम का प्रभाव , गुर्दे मे रक्ताधिक्यता , मूत्र - पथरी तथा अन्य कारणों से यह रोग होता हैं । इस रोग मे रक्तयुक्त गहरे लाल रंग का पेशाब ( मूत्र ) होता हैं । प्राय यह रोग पशुओं पीठ ( कमर ) पर गहरी चोट लग जाने की वजह से या कोई ज़हरीली घास खा लेने से या अधिक तेज गर्मी , या धूप मे काम करने या पथरी हो जाने , गूर्दो की भीतरी खाल छिल जाने से , या मूत्रनली मे किसी प्रकार का घाव हो जाने आदि कारणों से हो जाता हैं । इस रोग में ग्रसित से ग्रसित पशु को ख़ून मिला हुआ लाल रंग का पेशाब ( मूत्र ) आता हैं कभी- कभी तेज ज्वर भी हो जाता हैं , पशु के अक्सर क़ब्ज़ भी रहने लगता हैं और कभी - कभी दस्त भी होने लगते हैं ।

१ - औषधि - अमचूर १२५ ग्राम , सायं के समय मिट्टी के सकोरे ( बर्तन ) में डालकर पानी में भिगोकर रख दें । दूसरे दिन प्रात: काल के समय इसको हाथों से मसलकर तथा कपड़े से छानकर रोगी पशु को यही छना हुआ पानी नाल द्वारा पिलाना गुणकारी हैं ।

२ - औषधि - इलायची , राल , व शेलखडी प्रत्येक २-२ तौला , हराकसीस ६ माशा तथा गेरू १ तौला , लेकर इन सभी को पीसकुटकर गाय के दूध की लस्सी या मट्ठा अतिगुणकारी होगा वरना ठन्डे पानी मे भी घोलकर रोगी पशु को पिलाने से लाभ होता हैं ।

३ - औषधि - कीकर के पत्ते ४ छटांक और हल्दी दो तौला लें इन दोनो द्रव्यों को भाँग की भाँति घोट-पीसकर पानी के साथ छानकर पशु को पिलाना अति गुणकारी होता हैं ।

४ - औषधि - बारीक पीसी हुई फिटकर १ तौला , गाय का दूध आधा लीटर मे मिलाकर पशु को पिला दें , यह अत्यन्त लाभदायक योग हैं ।

५ - औषधि - यदि गर्मी की अधिकता के कारण पशु को ख़ूनी पेशाब आ रहा हो तो ऐसी दशा में पीपल व बेरी की लाख , ( गोंद ) बहरोजा, छोटी इलायची - प्रत्येक १-१ तौला और कीकर के पत्ते ५ तौला लें । इन समस्त द्रव्यों को बारीक पीसकर गाय के दूध की लस्सी या छाछ मे मिलाकर पिलाना गुणकारी होता हैं ।

६ - औषधि - पशु को यदि रूक- रूककर थोड़ी - थोड़ी मात्रा मे पेशाब आता हो तो ऐसी स्थिति में - गेरू १ छटांक , गाय का घी १२५ ग्राम , सौँफ १ छटांक लें , पहले सौँफ व गेरू को पीसकर ,गाय का आधा लीटर दूध की लस्सी में घोलकर उसमे घी मिलायें और फिर नाल द्वारा पशु को पिलाना चाहिए । ऐसा करने से पेशाब मे ख़ून आने का लक्षण भी दूर हो जाता हैं ।


२ - पेशाब ( मूत्र ) में ख़ून आना
#####################

कारण व लक्षण - गर्मी के कारण अचानक चोट लगने से यह रोग हो जाता है । इस रोग में पशु की पेशाब में ख़ून आता है । और पशु सुस्त रहता है । उसकी कमज़ोरी दिनों दिन बढ़ती जाती है । उसे साधारणँ ज्वर भी रहता है । उसे रक्तमिश्रित पेशाब होती है ।

१ - औषधि -:- गेहूँ का मैदा ४८० ग्राम , पानी १४४० ग्राम , एक बर्तन में पानी भरकर तथा उसमें हाथ से थोड़ा मैदा डालकर हिलाते रहना चाहिए । नहीं तो एकदम डालने पर गाँठें पड़ जायेगी और मैदा अच्छी तरह घुल नहीं सकेगा । रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक यह दवा पिलायी जाय।

२ - औषधि - नीम की हरी पत्ती १२० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , पानी २४० ग्राम , नीम की पत्ती को पीसकर तथा पानी मिलाकर , कपड़े द्वारा छानकर , बाद में घी को गुनगुना करके नीम की पत्ती के रस में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

३ - औषधि - जामुन की अन्तरछाल ३० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , गाय का घी ३६० ग्राम , अन्तरछाल को बारीक कूटकर , पानी में मिलाकर , छान लेना चाहिए । फिर रस को दही के साथ घोटकर , रोगी पशु को दोनों समय , पिलाया जाय । और ध्यान रहे की रोगी पशु को क़ब्ज़ करनेवाली कोई वस्तु न खिलाया जाय ।

आलोक-:-
#- रोगी पशु को शीशम की पत्ती , बरसीम, हरे जौ आदि खिलाये जाय । और रोगी पशु को गाजर , नीम की पत्ती पीसकर पिलायी जाय । सुखी घास नहीं खिलानी चाहिए ।

#- दवा देने के पहले पशु को जुलाब देना आवश्यक है । रोगी पशु को जुलाब के लिए इन वस्तुओं का प्रयोग करे--

# - अरण्डी का तैल ५०० ग्राम , सेंधानमक या साधारण नमक ६० ग्राम , नमक को अरण्डी के तैल में मिलाकर गरम गुनगुना कर पिलाना चाहिए । और इसके बाद २ लीटर ऊपर अरण्डी का तैल और नमक का जुलाब बताया गया है उसे देने के आधे घन्टे बाद गोमूत्र देना चाहिए । गोमूत्र न मिले तो बकरी का मूत्र भी लिया जा सकता है । गाभिन पशु का मूत्र अधिक लाभदायक होता है ।




३ - पेशाब का रूक- रूककर आना
######################

कारण व लक्षण - गुर्दे की कमज़ोरी के कारण और दाने के साथ पत्ती , रेत अधिक खा जाने से यह रोग हो जाता है । सूखी घास अधिक खाने से और बाद में पानी पीने से भी यह रोग हो जाता है । इस रोग में पशु अधिक बेचैन रहता है । उसकी पेशाब रूक जाती है । वह पेशाब करने की बार - बार चेष्टा करता है । बार- बार उठता है । परन्तु बार - बार यत्न करने पर भी उसे पेशाब नहीं होती । रोगी पशु पाँव चौड़े करता हैं ।

१ - औषधि - अजवायन का तैल ६० ग्राम , मीठा तैल २४ ग्राम , रोगी पशु को तत्काल इन दोनों चीज़ों को मिलाकर , बोतल द्वारा , पिलाना चाहिए । इससे वह गोबर भी करेगा और उसे पेशाब भी अवश्य होगी । अगर एक मात्रा में आराम न हो तो आधे घन्टे बाद दूसरी बार इसी मात्रा में यह दवा पिलानी चाहिए ।

२ - औषधि - मिरचा १२० ग्राम , लहसुन १२० ग्राम , कालीमिर्च ६० ग्राम , ज़ीरा ६० ग्राम , फिटकरी ६० ग्राम , पानी ६ लीटर , सबको बारीक पीसकर पिलायें । पशु को घुमना - फिरना भी चाहिए ।

३ - औषधि - नौसादर ७२ ग्राम , पानी ४०० ग्राम , नौसादर को महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , रोगी पशु को पिलाया जाय । एक बार में आराम न हो , तो दूसरी बार , इसी मात्रा में , आधे घन्टे बाद पिलाया जाय ।

४ - औषधि - काँसे के फूल ३६ ग्राम , पलास के फूल १२० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , काँसे के फूल और पलाश को बारीक पीसकर , पानी में उबालकर , छानकर गुनगुना होने पर रोगी पशु को , चार - चार घन्टे बाद , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

५ - औषधि - मोरपंखी के पौधे की पत्ती ६० ग्राम , शक्कर का पानी ५०० ग्राम , शक्कर के पानी में उबालकर , छह- छह घन्टे में यह दवा पिलायी जाय ।

६ - औषधि - पशु को यदि रूक- रूककर थोड़ी - थोड़ी मात्रा मे पेशाब आता हो तो ऐसी स्थिति में - गेरू १ छटांक , गाय का घी १२५ ग्राम , सौँफ १ छटांक लें , पहले सौँफ व गेरू को पीसकर ,गाय का आधा लीटर दूध की लस्सी में घोलकर उसमे घी मिलायें और फिर नाल द्वारा पशु को पिलाना चाहिए । ऐसा करने से पेशाब मे ख़ून आने का लक्षण भी दूर हो जाता हैं ।


------------ ० -----------


४ - मूत्रावरोध , मूत्रबन्द , मूत्र का रूक जाना
===============================

कारण व लक्षण - पुट्ठों तथा गुर्दो की दुर्बलता , पथरी हो जाने , सुखा चारा अधिक खा जाने व पानी का कम मिलना व पशु द्वारा पानी कम पीना , आदि कारणों से से पशु का पेशाब आना बन्द हो जीता हैं । पेशाब रूक जाने के कारण पशु परेशान हो जाता है । पेशाब रुकने के ये ही मुख्य करण होते हैं । इस रोग से ग्रसित पशु को पेशाब नही होता हैं । बेचैन होकर उठता बैठता हैं और बार- बार पेशाब करने की कोशिश करता हैं । पथरी के कारण जिस पशु चिकित्सकों के विचार से इस रोग का निदान ओपरेश्न मानते हैं । पर मेरे अनुभव के आधार पर पशुओं का आपरेशन कराने के बाद भी लाभ होते देखा नही गया हैं तथा आपरेशन के बाद भी फिर से पथरी वही उसी स्थान पर हो जाती हैं इसलिए बिमारी के कारण का इलाज होगा तो वह ठीक स्वत: ही हो जायेगी और दुबारा नही नही होगी । रोग के प्रारम्भ के तीन दिनों तक यह निश्चित नही हो पाता हैं कि - उपर्युक्त तीनों कारणों मे से किस कारण से पशु बिमार हैं या किस कारण से पेशाब का बन्द लगा हैं । इसलिए हमें ऐसी दवाओं का प्रयोग करना पड़ता हैं कि जो सबसे पहले मूत्रबन्द को खोल दे वरना पशु की मृत्यु भी हो जाती हैं ।

१ - औषधि - कलमीशोरा ३० ग्राम , गाय का दूध १ लीटर मिलाकर पशु को दिन मे कई बार पिलाने से रोगी पशु पेशाब करने लगता हैं । चाहे उसके मूत्रावरोध का कारण पथरी , गुर्दो की कमज़ोरी या पेट मे पानी की कमी हो पशु को आराम आ जाता हैं ।

२ - औषधि - गाय का घी १२५ ग्राम , देशी शराब १२५ ग्राम , दोनों को मिलाकर पिलाने से मूत्रबन्द खूल जाता हैं यह योग तीनों ही दशा के बन्द को खोलने मे सक्ष्म हैं ।

३ - औषधि - कब्जियत के कारण ख़ून जाने में - अमचूर १०० ग्राम , पानी २०० ग्राम , गाय का घी १०० ग्राम , १ मिट्टी का बर्तन जिसमे आधा किलो पानी आ सकें , सायं को मिट्टी का बर्तन लेकर उसमे साबुत अमचूर को पानी मे भिगोकर रख दें । प्रात:काल होने पर अमचूर को पानी मे ही मसलकर निचोड़ लें और घी को हल्का गरम करके दोनो को आपस मे मिलाकर नाल द्वारा पशु को पिलायें ।यह लाभदायक योग हैं ।

४ - औषधि - प्याज़ , लहसुन , हल्दी ,मेंथी , अजवायन , बकायन ,कलौंजी तथा ककड़ी की पत्तियाँ व भटकटैया २०-२० ग्राम , लेकर २ किलो पानी मे काढ़ा बनाकर दिन में २ बार पिलाना हितकर रहता हैं ।

५ - औषधि - सफ़ेद तिल २०० ग्राम , पानी मे भिगोकर पिलाना लाभदायक रहता हैं । लेकिन इन सबसे पहले यदि हम सरसों का तेल आधा लीटर व सोंठपावडर आधा छटांक मिलाकर पिलायें इससे पशु को जूलाब होकर पेट साफ़ होकर जल्दी आराम आयेगा ।

# - पथ्य - रोग ठीक होने पर नमकयुक्त चावल का माण्ड व हरा मुलायम चारा ही पशु को खिलायें ।

६ - गर्मी के कारण पेशाब की जगह ख़ून आने पर १ किलो बकरी के दूध में २५० ग्राम ककड़ी की पत्तियाँ पीसकर मिलायें और पशु को पिला दें । लाभदायक रहेगा।

७ - औषधि - ताजा जल में २० ग्राम , बबूल की पत्तियाँ बारीक पीसकर पानी मे मिलाकर पिलाने से गर्मी शान्त होकर मूत्रमार्ग से ख़ून आना बन्द हो जाता हैं ।

८ - औषधि - नमक मिलाकर चावल का माण्ड अथवा अलसी देना भी लाभदायक हैं ।

९ - औषधि - दिन में तीन - चार बार कई दिन तक छाछ में गुड मिलाकर पिलाने से इस रोग से छुटकारा प्राप्त हो जाता हैं ।

५ - मूत्रावरोध नाशक ( बन्द खोलने के अन्य उपाय )
================================

१ - औषधि - कलमीशोरा १ तौला , धनिया ५ तौला , कपूर ३ माशा , इन सब द्रव्यों को लेकर ठण्डे पानी में घोट- पीसकर को पशु को पिलायें ।

# - इस दवा को पिलाने के साथ ही नीचे लिखी दवाओं मे से किसी एक दवा का बाहृारूप से मूत्रेन्द्रिय पर लगाना चाहिए । तो पशु को अतिशीघ्र लाभ होकर खुलकर मूत्र आने लगता हैं ।

२ - औषधि - नीम के पत्ते २०० ग्राम ,पानी ३०० ग्राम ,में उबाल कर घोट- पीसकर पेस्ट बना लें और मुत्रेन्द्रिय पर लेप लगाने से भी लाभदायक सिद्ध होगा ।

३ - औषधि - पशु की मुत्रेन्द्रिय मे एक साबुत लालमिर्च रख देवें और जब पेशाब आ जायें तो मिर्च को निकाल दें अगर पशु नर हैं तो मिर्च का लेप बनाकर लिंग ( मुत्रेन्द्रिय ) पर लगा दे और पेशाब आने पर मुत्रेन्द्रिय को धोकर गाय के घी का लेप लगा दें जिसके कारण जलन शान्त हो जायेगी ।

२ - औषधि - कलमीशोरा के काढ़े से पेस्ट की बत्ती बनाकर मुत्रेन्द्रिय में अन्दर चढ़ा दें अथवा नर पशु की मुत्रेन्द्रिय पर बाहृा लेप कर दें ।



Sent from my iPad

No comments:

Post a Comment