Tuesday 9 March 2021

रामबाण :-10-:

रामबाण :-10-:


#- रक्तातिसार - तिनिश ( सान्दन Sandan ) , प्रियाल , सेमल , प्लक्ष, शल्लकी, 1-1 ग्राम कल्क में बकरी का दूध तथा मधु मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका - 2-3 ग्राम तिनिश - त्वक चूर्ण को सेवन करने से अतिसार तथा पेचिश ( प्रवाहिका ) में लाभ होता है।

#- अतिसार - 1 ग्राम तिनिश गोंद का चूर्ण बनाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है।

#- आमातिसार - तिनिश की गोंद 1 ग्राम में 1 ग्राम सोंठ तथा मिश्री मिलाकर खाने से आमातिसार में लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - 10-20 मिलीग्राम तिनिश क्वाथ का सेवन करने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- प्रमेह - 10-20 मिलीग्राम तिनिशत्वक का क्वाथ बनाकर पीने से प्रमेह में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - तिनिश त्वक का क्वाथ बनाकर उस क्वाथ का स्नान ,पान, लेप , आदि के रूप में प्रयोग करने से कुष्ठ में अत्यन्त लाभ होता है ।

#- त्वचा विकार- तिनिश छाल का क्वाथ बनाकर व्रणों को धोने से व्रण जल्दी भरते है।

#- खुजली - तिनिश छाल का कल्क बनाकर लगाने से खुजली में लाभ होता है।

#- ज्वर - तिनिश छाल का क्वाथ बनाकर 5-10 मिलीग्राम मात्रा मे पिलाने से ज्वर मे लाभ होता है।

#- केशविकार - तिल ( सिसेम जिनजली Sesame Gingelli ) की जड़ और पत्र स्वरस का क्वाथ बनाकर क्वाथ से बाल धोने से बाल सफेद नहीं पड़ते ।

#- बाल लम्बे व घने - समभाग आँवला , कालातिल कमल केसर तथा मुलेठी आदि का चूर्ण कर मधु में मिलाकर शिर पर लेप लेप करने से बाल लम्बे तथा काले व घने होते है।

#- सूर्यावर्त - गोदूग्ध मे तिल को पीसकर वेदनायुक्त स्थान पर लगाने से या मस्तक पर लगाने से सूर्यावर्त नामक शिरोरोग में लाभ होता है।

#- शिरशूल - तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से शिरशूल का शमन होता है।

#- रसायन वाजीकरण - रसायन - एक वर्ष तक 5 ग्राम तिनिश त्वक कल्क या स्वरस को गोदूग्ध के साथ प्रात: काल पीने से या मधु, या गौघृत मिलाकर चाटने से , ओर केवल गोदूग्ध व भात का भोजन करने से ज़रा व्याधि रहित दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।

#- नेत्ररोग - तिल पुष्पों पर शरद्- ऋतु में पड़ी ओस की बूँदों को मलमल के कपड़े या किसी ओर प्रकार से उठाकर शीशी में भरकर रख लें । इन ओस कणों को आँख मे डालने से लाभ होता है।

#- काले तिल के तैल को शुद्ध अवस्था में , बालों मे लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते है, प्रतिदिन सिर मे तैल की मालिश करने से बाल सदैव मुलायम, काले और घने बने रहते है।

#- तिल के पुष्प तथा गोक्षुर को बराबर लेकर गौघृत तथा मधु में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन तथा रूसी दूर होती है।

#- नेत्रविकार - काले तिलों का क्वाथ बनाकर नेत्रों को धोने से नेत्रविकारों का शमन होता है।

#- नेत्रविकार - 80 तिल पुष्प, 60 पिप्पली , 50 जाती पुष्प , तथा 16 कालीमिर्च , को जल में पीसकर , वर्त्ति बनाकर , घिसकर अञ्जन करने से तिमिररोग , अर्जून , नेत्रशुक्र , मांसवृद्धि आदि नेत्ररोगों का शमन होता है।

#- दृष्टिशक्तिवर्धनार्थ - तिल तैल , बेहडा तैल , भृगराज रस तथा विजयसार क्वाथ को मिलाकर लोहे की कढ़ाई में तैल पाक कर प्रतिदिन 1-2 बूँद नस्य लेने से दृष्टिशक्ति बढ़ती है।

#- दन्तरोग - तिल दातों के लिए हितकर है , प्रतिदिन 25 ग्राम तिलों को चबा- चबाकर खाने से दाँत मज़बूत होते है।

#- दन्तरोग - मुँह मे तिल को भरकर 5-10 मिनट रखने से पायरिया मे लाभ होता है तथा दाँत मज़बूत होते है।

#- खाँसी - तिल के 30-40 मिलीग्राम काढ़े में 2 चम्मच शक्कर डालकर पीने से खाँसी में लाभ होता है ।

#- खाँसी - तिल और मिश्री को उबालकर पिलाने से सूखी खाँसी मिटती है ।

#- रक्तातिसार - तिलों के 5 ग्राम चूर्ण मे बराबर मिश्री मिलाकर बकरी के चार गुने दूध के साथ सेवन करने से रक्तातिसार मे लाभ होता है।

#- आमातिसार - तिल के पत्तों को पानी मे भिगोने से पानी मे जो लूआब आ जाता है यह लूआब को पिलाने से विसुचिका , अतिसार , आमातिसार , प्रतिश्याय और मूत्रविकारो मे लाभदायक होता है।

#- अर्श - तिल को जल के साथ पीसकर गाय के दूध से बने मक्खन के साथ दिन में तीन बार भोजन से 1 घन्टा पहले खाने से अर्श में लाभ होता है तथा रक्त का निकलना बन्द हो जाता है।

#- अर्श - तिल को पीसकर गरमकरके पुलटीश बाँधने से अर्श में लाभ होता है ।

#- अर्श - बवासीर मे तिल तैल की बस्ति ( एनिमा ) देने से लाभ होता है।

#- पथरी - तिल की छाया- शुष्क कोमल कपोलों 124-250 मिलीग्राम को प्रतिदिन खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

#- पथरी - तिल पुष्पों के 1-2 ग्राम क्षार में 2 चम्मच मधु और 250 मिलीग्राम गोदूग्ध मिलाकर पिलाने से पथरी गलकर बाहर आ जाती है।

#- पथरी - 125-250 मिलीग्राम तिल पञ्चांग भस्म को सिरके के साथ प्रात: सायं भोजन से पहले सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है।

#- गर्भाशय विकार - तिल की आधा- आधा चम्मच दिन मे 2-3 बार सेवन करने से गर्भाशय विकारों मे लाभ होता है।

#- मासिक विकार - 30-40 मिलीग्राम तिल क्वाथ का सेवन करने से मासिक विकारों मे लाभ होता है।

#- मासिक विकार - तिल के 100 मिलीग्राम क्वाथ में 2 ग्राम सोंठ , 2 ग्राम कालीमिर्च , 2 ग्राम पिप्पली चूर्ण बुरककर दिन मे तीन बार पिलाने से मासिकविकारों मे लाभ होता है।

#- श्वेतप्रदर - रूई के फ़ाहे को तिल के तैल में भिगोकर योनि में रखने से श्वेतप्रदर मे लाभ होता है।


#- मासिक विकार- 10 ग्राम तिल और 10 ग्राम गोखरू को रातभर पानी में भिगोकर प्रात: काल उनका प्रक्षेप निकालकर उसमें थोड़ा बूरा डालकर पिलाने से मासिक विकारों में लाभ होता है।

#- मासिकधर्म - 1-2 ग्राम तिल चूर्ण को दिन में 3-4 बार जल के साथ लेने से ऋतुस्राव नियमित हो जाता है।

#- मासिकधर्म - तिल का काढ़ा बनाकर 30-40 मिलीग्राम काढ़े को सुबह सायं पीने से मासिकधर्म नियमित हो जाता है।

#- वीर्य- पुष्टि - 5 ग्राम तिल तथा 1 ग्राम गोखरू चूर्ण को 200 मिलीग्राम बकरी के दूध में पकाकर ठंडा करके उसमें शहद मिलाकर पिलाने से वीर्य की पुष्टि होती है।

#- पूयमेह , मूत्रदाह - तिल के ताज़े पत्तों को 12 घन्टों तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 1-2 ग्राम क्षार को गोदूग्ध व शहद के साथ देने से पूयमेह में लाभ होता है तथा मूत्रदाह का शमन होता है।

#- पुरूषत्व - तिल और अलसी का क्वाथ बनाकर 30-40 मिलीग्राम मात्रा में लेकर प्रात: सायं भोजन से पहले पिलाने से पुरूषत्व की वृद्धि होती है।

#- संधिवात - तिल तथा सोंठ चूर्ण को समभाग मिलाकर प्रतिदिन 5-5 ग्राम की मात्रा तीन से चार बार सेवन करने से संधिवात में लाभ होता है।

#- त्वचारोग, नासूर - काले तिल को पीसकर नासूर पर लगाने से तथा कम्पिल्लक को पानी में घिसकर लेप करने से नासूर मे लाभ होता है।

#- वाजीकरण रसायन- रसायन - काले तिल और जल भांगरे के पत्तों को लगातार एक मास तक सेवन करने से जरावस्थाजन्य विभिन्न प्रकार के रोग मिटते है तथा भोजन मे केवल गोदूग्ध का ही सेवन करे।

#- शैय्यामूत्रता - रात्रि मे जो बच्चे बिस्तर पर मूत्रविसर्जन कर देते है उनके लिए तिल का लम्बे समय तक सेवन करना बहुत लाभकारी होता है।

#- विष - तिल व हल्दी को पानी में पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से मकडी का विष उतर जाता है।

#- बिल्ली का विष - तिल को पानी मे पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से बिल्ली का विष उतर जाता है।

#- भीरड, बर्रे का विष - तिल को सिरके मे पीसकर दंश स्थान पर मलने से भीरड, बर्रे का विष उतर जाता है।

#- वृश्चिक दंश - तिल की खली ( पिण्याक ) को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से वृश्चिकदंशजन्य वेदना आदि का शमन होता है।

#- कीटविष - वात प्रधान कीट के काटने पर तिल की खली ( पिण्याक ) का लेप करके तिल तैल की मालिश करने से लाभ होता है ।

#- विषमज्वर - तिल की लूगदी को गौघृत के साथ लेने से विषमज्वर में लाभ होता है ।

#- तिल का तैल त्वचा के लिए लाभकारी है । प्रतिदिन तिल तैल की मालिश करने से मनुष्य कभी बिमार नहीं होता है। तिल तैल की मालिश से रक्तविकार , कटिशूल , अंगमर्द , वातव्याधि जैसे रोगों का शमन होता है।

#- अग्निदग्ध - तिल को पीसकर जले हुए स्थान पर लेप करने से दाह तथा वेदना का शमन होता है।

#- मस्तक पीड़ा - तिल के पत्तों को सिरके या पानी मे पीसकर मस्तक पर लेप करने से मस्तक पीड़ा मिट जाती है।

#- कील- मुँहासे - तिल और सिरस की छाल को सिरके के साथ पीसकर मुँह पर लगाने से कील-मुँहासे ठीक हो जाते है।


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