Thursday 25 March 2021

रामबाण :-19-:

रामबाण :-19-:


#- दूब घास , दूर्वा ( बरमूडा ग्रास Bermuda grass ) दूब घास का रस यदि शीतल लोहे पर नियमित डाला जाये तो उसे भी गला देती है।

#- कफपित्तशामक - श्वेत दूर्वा कषाय , मधुर, तिक्त, शीत, तथा कफपित्तशामक होता है तथा शरीर को शीतलता प्रदान करता है।

#- शिर:शूल - दूबघास तथा चूने को समान मात्रा मे लेकर पानी में पीसकर सिर पर लेप लगाने से शिर:शूल का शमन होता है।

#- नेत्रशूल - दुर्वा को पीसकर पलकों पर बाँधने से नेत्रशूल का शमन होता है तथा नेत्रों से मल बाहर आना बन्द हो जाता है।

#- नकसीर - अनार पुष्प स्वरस को दूबघास के रस के साथ या लाक्षारस या हरड़ के साथ मिश्रित कर 1-2 बूँद नाक में डालने से नासिका द्वारा प्रवृत्त त्रिदोषज रक्त रूक जाता है।

#- नकसीर - दूबघास स्वरस या मुनक्का , ईख स्वरस या गाय का दूध या जवासा मूल स्वरस या प्याज़ स्वरस या दाड़िम के फूल का स्वरस का अवपीड नस्य लेने से नासिका से निकलने वाला रक्त पित्तज रक्त शीघ्र शान्त हो जाता है।

#- दूबघास स्वरस को 1-2 बूँद नाक में डालने से नासागत रक्तस्राव का स्तम्भन तुरन्त होता है।

#- मुखपाक - दुर्वा क्वाथ का कुल्ला करने से मुँह के छालों में लाभ होता है।


#- छर्दि - 5 मिली दूब का रस पिलाने से उल्टी बन्द हो जाती है।

#- छर्दि, उल्टी - दुर्वा पञ्चांग को पीसकर चावलों के धोवन के साथ पिलाने से उल्टियाँ बन्द होती है।

#- वमन - दूर्वाघास को मण्ड ( माण्ड ) के साथ सेवन करने से वमन में लाभ मिलता है ।

#- त्रिदोषज छर्दि - चावल के धोवन के साथ दूर्वाघास का स्वरस को पिलाने से त्रिदोषज छर्दि का शमन होता है।

#- जलोदर - दूबघास को कालीमिर्च के साथ पीसकर दिन में तीन बार भोजन के पहले पिलाने से मूत्रवृद्धि होकर जलोदर और सर्वांग शोथ का शमन होता है।

#- अतिसार - दूर्वाघास के ताज़े पञ्चांग स्वरस का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है ।

#- आमातिसार - दूबघास को सोंठ और सौंफ के साथ उबालकर पिलाने से आमातिसार का शमन होता है।

#- प्रवाहिका - 10-30 मिलीग्राम दुर्वा क्वाथ का सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।

#- जलशोफ , एडेमा Edema : - 10-30 मिलीग्राम दूर्वाघास का क्वाथ पीने से जलशोफ में लाभ होता है।

#- अर्श - दूर्वाघास के पञ्चांग को पीसकर गो- दधि में मिलाकर देने से और इसके पत्तों को पीसकर बवासीर पर लेप करने से अर्श में लाभ होता है।

#- ख़ूनी बवासीर - दूर्वाघास के स्वरस से विधिवत गौघृतपाक कर अथवा घृत को दूबघास स्वरस में भलीभाँति मिलाकर अर्श के अंकुरों पर लेप करने से तथा शीतल - चिकित्सा करने से रक्तस्राव शीघ्र रूक जाता है।

#- रक्तार्श , खूनीबवासीर - दूर्वाघास का फाण्ट बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में पीने से रक्तार्श व मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- गुर्दे की पथरी - दूबघास सवरस 30 मिलीग्राम, एक चम्मच गोमूत्र पानी में मिश्री मिलाकर सुबह- सायं पीने से पथरी टूट- टूटकर निकलती है ।

#- मूत्रविकार - दूबघास की जड़ का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में पीने से वस्तिशोथ , सूजाक, मूत्रदाह का शमन होता है।

#- रक्तजमूत्र - दूबघास को मिश्री के साथ घोट- छानकर पिलाने से पेशाब के साथ ख़ून आना बन्द हो जाता है।

#- मूत्रदाह - 2-5 ग्राम दूर्वाघास स्वरस को गौदुग्ध मे मिलाकर पिलाने से मूत्रदाह का शमन होता है।

#- रक्तप्रदर - दूबघास के स्वरस मे सफेद चन्दन का चूर्ण व मिश्री मिलाकर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

#- रक्तप्रदररोग - प्रदर रोग में तथा रक्तस्राव , गर्भाशय व योनिविकारों में इसका प्रयोग करते है । इससे रक्त बहना रूक जाता है। गर्भाशय को शक्ति मिलती है तथा गर्भ को पोषण मिलता है।

#- विसर्प - दूर्वाघास स्वरस से सिद्ध गौघृत का सेवन करने से विसर्पजन्य व्रण में लाभ होता है।

#- विसर्प, मसूरिका - तैल तथा गौघृत युक्त दूर्वाघास के लेप से ग्रन्थिविसर्प तथा विषादि रोगों को दूर करता है । और दूर्वाघास पञ्चांग स्वरस को गौदूग्ध के साथ सेवन करने से पैत्तिक - मसूरिका में लाभ होता है।

#- विसर्प - गौघृत में दूर्वाघास को पकाकर लगाने से विसर्प में लाभ होता है।

#- व्रण - दूर्वाघास कल्क एवं स्वरस से सिद्ध तिल तैल को व्रण पर लगाने से व्रण रोपण होता है।

#- व्रण - आर्द्र-दूर्वाघास स्वरस को लगाने से नवीन क्षत व व्रण का शीघ्र रोपण होता है। दूर्वाघास के स्वरस मे तैल को पकाकर लेप करने से व्रणरोपण होता है।

#- कण्डू - दूर्वाघास स्वरस चार गुना तैल मे पकाकर तैल से अभ्यंग करने से कण्डू , पामा , विवर्चिका आदि में लाभ होता है ।

#- कण्डू, दाद - दूबघास , हरीतकी, सैन्धव, चक्रमर्द के बीज और वनतुलसी के पत्तों को समान मात्रा में लेकर गौ-तक्र ( छाछ ) में पीसकर लेप करने से कण्डू तथा दाद, में लाभ होता है।

#- कृमि, शीतपित्त - दूर्वाघास व दारूहल्दी को समान मात्रा में लेकर गौतक्र के साथ पीसकर लेप करने से कण्डूरोग, पामा, दाद- खाज, कृमिरोग , तथा शीतपित्त आदि रोगों मे लाभ होता है।

#- कण्डूरोग , दाद - दूर्वाघास , हरताल , सैन्धवनमक , इन तीनों को गोमूत्र में पीसकर लेप बनाकर लगाने से दाद, कण्डूरोग का शमन करता है।

#- दाद, खाज, खुजली - दूबघास को हल्दी के साथ पीसकर एक चम्मच गौमूत्र मिलाकर लेप करने से खुजली और दाद जैसी बिमारियों से छुटकारा मिलता है।

#- पामा तथा विवर्चिका - दूबघास को तैल मे पकाकर इस तैल का लेप करने से पामा तथा विवर्चिका में लाभ होता है।

#- शीतपित्त - दूबघास व हल्दी के कल्क में गौघृत मिलाकर लेप करने से कण्डू, पामा दद्रू तथा शीतपित्त आदि में लाभ होता है।

#- रक्तपित्त, नकसीर - दूबघास , भद्र श्री , लाल चन्दन , पुंडरिया , लालकमल , नीलकमल, वानीर , मृणाल तथा मुलेठी इनका क्वाथ बनाकर पीने से रक्तपित्त रोग में लाभ होता है।

#- रक्तपित्त , नकसीर - दूर्वाघास तथा बरगद के पत्तों स्वरस या कल्क में मधु मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।

#- रक्तपित्त , नकसीर - सफेद दूबघास को जल में पीसकर कपडछान कर मिश्री मिलाकर पिलाने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।


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