Thursday 25 March 2021

रामबाण -:21-:

रामबाण -:21-:


#- स्तन्यवर्धनार्थ-छोटी दूधी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली , एक दाना लहसुन नारियल गिरी 10 ग्राम मात्रा में पीसकर पिलाने से स्तन्य (दुग्ध) स्तनों मे दूध की वृद्धि होती है।


#- शुष्क पत्र से निर्मित फाण्ट (10-20 मिली) को पीने से रक्तनिष्ठीवन में लाभ होता है।

#- उदर विकार-पत्रों का फाण्ट बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से आमातिसार तथा अतिसार का शमन होता है।

#- अश्मरी-छोटी दूधी के पत्रों का क्वाथ बनाकर एक चम्मच गोमूत्र मिलाकर पीने से अश्मरी का शमन होता है।

#- प्रदर-छोटी दूधी के शुष्क पत्रों से निर्मित फाण्ट का सेवन करने से रक्तप्रदर तथा श्वेतप्रदर में लाभ होता है।

#- चर्मकील-छोटी दुग्धिका के आक्षीर को लगाने से चर्मकील का शमन होता है।

#- रोमान्तिका-छोटी दुग्धिका को पीसकर लगाने से रोमान्तिका में लाभ होता है।

#- उदरशूल - छोटी दूधी का 5 मिली पत्र-स्वरस का प्रयोग गाय के दुग्ध के साथ करने से बच्चों के उदरशूल में लाभ होता है।

#- शिर:शूल - लताक्षीरी , दमबेल, ( इण्डियन या कन्ट्री इपिकेकुआन्हा Indian or Country Ipecacuanha ) लताक्षीरी की मूल को घिसकर सिर पर लेप करने से वातज शिरोवेदना का शमन होता है।

#- श्वास - लताक्षीरी मूल एवं पत्र का क्वाथ बनाकर 10-15 मिलीग्राम मे सेवन करने से श्वास , श्वासनलिकाशोथ तथा श्वासकष्ट में लाभ होता है।

#- दमा - लताक्षीरी 3-5 पत्तों को 6-7 दिन तक चबाने से दमा में लाभ होता है ।

#- कुक्कुर कास - 250 मिलीग्राम लताक्षीरीमूल चूर्ण में 250 ग्राम वचा चूर्ण तथा 1 ग्राम मुलेठी चूर्ण मिलाकर शहद के साथ खाने से कुक्कुर कास में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

#- श्वासनलिकाशोथ - 1 ग्राम लताक्षीरीमूल चूर्ण का सेवन करने से जीर्ण श्वासनलिकाशोथ तथा कुक्कुर कास की प्रारम्भिक अवस्था में लाभ होता है।

#- अस्थमा - लताक्षीरी बेल के पत्ते को कालीमिर्च के साथ मिलाकर गोली बनाकर प्रात:सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करने से अस्थमा में लाभ होता है।

#- श्वास- कास :- लताक्षीरी बेल के पंचाग का क्वाथ बनाकर सेवन करने से श्वास- कास में लाभ होता है।

#- 1 ग्राम लताक्षीरी बेल पंचाग चूर्ण मे 1 ग्राम मुलेठी तथा 1 ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर , काढ़ा बनाकर शहद के साथ सेवन करने से कुक्कुर कास में लाभ होता है।

#- अतिसार - लताक्षीरीमूल एवं पत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से अतिसार तथा आमयुक्त अतिसार में लाभ होता है।

#- अतिसार - 500 मिलीग्राम लताक्षीरीमूल चूर्ण को जल के साथ सेवन करने अतिसार में लाभ होता है।

#- अतिसार - लताक्षीरी के 2-3 पत्तों का रस निकालकर पिलाने से अतिसार में लाभ होता है।

#- गर्भाशय-शोथ :- 2 भाग लताक्षीरी बेल के पंचाग में 1 भाग अजवाइन मिलाकर काढ़ा बनाकर प्रात:सायं पिलाने से प्रदररोग तथा गर्भाशयगत शोथ में लाभ होता है।

#- वातशूल - लताक्षीरी पत्र को पीसकर लगाने से वातरक्त ( यूरिक एसिड ) में लाभ होता है।

#- शोथ - लताक्षीरी बेल के पत्तों की पुल्टीस बनाकर बाँधने से शोथ मे लाभ होता है।

#- लताक्षीरी - के पत्ते व मूल को पीसकर लेप तैयार करके लगाने से व्रणशोधन करती है तथा क्षत (चोट ) , अर्बुद ( रसोली ) तथा अर्श व रक्तार्श मे लाभ होता है।

#- गर्भ गिराना - हल्दी चूर्ण व दालचीनी चूर्ण सममात्रा में लेकर 5 ग्राम की मात्रा माने गरम पानी के साथ लेने गर्भाशयोत्तेजक होकर गर्भ गिरता है जो महिला गर्भधारण नहीं करना चाहती है वह पीरियड के तीन- चार दिन इसका प्रयोग करती है।

#- दर्भ वूलीग्रास - गठिया में दर्भ के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। आप दर्भ की जड़ का काढ़ा बना लें। काढ़ा को 10-30 मिली मात्रा में पीने से गठिया में लाभ होता है।

#- नाक रोग - दर्भ की जड़ को पीसकर रस निकाल लें। 1-2 बूंद रस को नाक में डालने से नाक से जुड़ी बीमारी ठीक होती है।

#- आँख रोग -दर्भ और गुन्द्रा आदि द्रव्यों को गुन्द्रादि गाय के घी में पका लें। इसे नाक से लेने से आंखों के रोग खत्म होते हैं।

#-दौर्बल्य - गोक्षुर और दर्भ आदि को श्वदंष्ट्रादि गौघृत में पका लें। इसे मात्रानुसार सेवन करने से ह्रदय की कमजोरी, दर्द, शारीरिक कमजोरी, और किसी बड़ी या छोटी बीमारी के कारण होने वाली शारीरिक कमजोरी में लाभ होता है।
#- तृष्णा, प्यास - बेल की छाल, अरहर की जड़, लघुपंचमूल और दर्भ का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से कफज दोष के कारण अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।

#- तृष्णा - दर्भ तृणपंचमूल को जल में गर्म कर लें। इसे पीने से भी फायदा होता है।

#- तृष्णा - बेल मज्जा या पत्ते, अरहर के पत्ते, पिप्पली, पिप्पली की जड़, चव्य, चित्रकमूल, सोंठ और दर्भपंचक लें। इनसे काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा को ठंडे पानी के  साथ पिएं। इससे अधिक प्यास लगने की परेशानी में फायदा होता है।

#- पेटदर्द - बला की जड़, एरण्ड की जड़, दर्भ की जड़, देवनल और सोंठ से बने काढ़ा को 10-30 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे पेट दर्द, ने से उदरशूल, पीठ दर्द में फायदा होता है।

#- बदहजमी , मधुमेह, कीड़े - जमी हो तो दर्भ का सेवन लाभ दिलाता है। दर्भ की जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली में पिएँ। इससे पाचन-तंत्र विकार और बहहजमी ठीक होती है। इससे दस्त, पेचिस, पेट के कीड़े, डायबिटीज, रक्तस्राव आदि में फायदा मिलता है।

#- सूजाक - दर्भ की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पिएं। इससे सुजाक में लाभ में लाभ होता है।

#- पथरी - पुनर्नवादि योग (दर्भादि युक्त) को गाय के दूध, फल, मद्य या गन्ने के रस (किसी एक के साथ) के साथ पीस लें। इसे पीने से पथरी की बीमारी में फायदा होता है।


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