Monday 15 March 2021

रामबाण -: 17 :-

रामबाण -: 17 :-

#- रक्तमेह - तोदरी पञ्चांग का फाण्ट बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से रक्तमेह में लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - तोदरी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- पूयमेह - 7-7 ग्राम शतावरी, मूसली, केवॉच , तोदरी , तालमखाना, प्रवाल पिष्टी तथा रजत भस्म ,6-6 ग्राम , विदारीकन्द , छोटी इलायची , गोखरू तथा मुस्ता, 3-3 ग्राम सालिम, शिलाजीत , 6-6 ग्राम कंकोल तथा मोचरस , 12 ग्राम वंगभस्म तथा 200 ग्राम मिश्री के बारीक चूर्ण को मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में दाड़िम शर्करा के साथ सेवन करने से पूयमेह तथा पित्तज प्रमेह में लाभ होता है ।

#- स्तन्यवर्धनार्थ - 2-3 ग्राम तोदरी चूर्ण में समभाग शतावरी चूर्ण तथा मिश्री मिलाकर गाय का दूध के साथ सेवन करने से स्तन्य ( स्तनों ) की वृद्धि होती है।

#- आमवात - तोदरी पञ्चांग को पीसकर लगाने से आमवात में लाभ होता है।

#- सन्धिवात - तोदरी के फूलों को ज़ैतून या तिल के तैल में पकाकर , छानकर तैल की मालिश करने से सन्धिवात में लाभ होता है।

#- दौर्बल्य - 2-3 ग्राम तोदरी चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होता है तथा शरीर की पुष्टी होता है।

#- शोथ - तोदरी को पीसकर लेप करने से शोथ एवं व्रण का शमन होता है।

#- शिर:शूल - स्थौणेयक , थुनेर ( यु Yew ) थुनेर की सूचियों से निर्मित टिंक्चर ( मूलार्क ) का प्रयोग शिरशूल तथा शंखक की चिकित्सा में किया जाता है ।

#- श्वास - थुनेर पञ्चांग का क्वाथ बनाकर पीने से कफ का निस्सारण होकर कास तथा श्वास में लाभ होता है।

#- उदरशूल -2 भाग थुनेर पत्र चूर्ण में 1भाग सोंठ चूर्ण तथा 1 भाग कुटकी चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से उदरशूल मेंल लाभ होता है ।

#- यकृतविकार तथा ज्वर - थुनेरु पत्र तथा कुटकी का काढ़ा बनाकर प्रात: सायं पिलाने से यकृत विकार तथा ज्वर विकारों का शमन करता है।

#- आमवात - इसके सूचियों ( पत्रों ) से निर्मित टिंक्चर ( मूलार्क ) का प्रयोग वातरक्त तथा पुराने आमवात की मे देने से लाभ होता है।

# - ज्वर - थुनेर आदि द्रव्यों से निर्मित अगुर्वादि तैल की शरीर पर मालिश करने से ठंड लगकर आने वाले ज्वर का शमन होता है।

#- वातज शोथ - शरीर पर शैलेय ,थुनेर आदि द्रव्यों के कल्क तथा क्वाथ से सिद्ध तैल की मालिश करने से वातज शोथ का शमन होता है।

#- कैंसर रोग - 2-5 ग्राम थुनेर पंचाग का क्वाथ बनाकर पीने से कैंसर तथा। कैंसर से उत्पन्न उपद्रव में लाभ होता है। कैंसर के रोगियों को इसके को इसके क्वाथ के साथ- साथ इसके घनसत्व से निर्मित गोलियों का सेवन करना चाहिए ।

#- इन्द्रलुप्त - सेहुंड ( इण्डियन स्पर्ज ट्री Indian spurge tree ) स्नूही आक्षीर को समान मात्रा में सर्षप ( सरसों ) तैल के साथ मिलाकर सिर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है।

#- नेत्रविकार- स्नूही क्षीर( थूहर दूध ) का स्थानिक प्रयोग चक्षु विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।

#- कर्णशूल - छिलका रहित थूहर का तना को अग्नि में पकाकर रस निकालकर 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।

#- कर्णस्राव - थूहर की त्वचा को अर्कपत्र में लपेटकर , अग्नि पर गर्म कर उससे प्राप्त रस को प्रात:काल 1-2 बूँद कान में डालने से वातज तथा पित्तज कर्णस्राव में शीघ्र लाभ होता है।

#- बाधिर्य ( बहरापन ) 10-20 मिली थूहर के दूध को सरसों तैल में पकाये , जब तैल शेष रह जाय , तब 2-2 बूँद तैल कान में डालने से बहरापन दूर होता है।

#- कृमिदन्त - थूहर के मूल रो मुँह मे धारण करने से दाँत के कीड़े नष्ट होते है।

#- दाँत निकालने के लिए - थूहर का दूध हिलते हुए दाँत पर लगाने से वह दाँत सहज ही गिर जाता है , परन्तु दूसरे दाँत पर दूध नहीं लगना चाहिए ।

#- गलशुण्डी - थूहर के दूध का लेप लगाने से गलशुण्डी का शमन होता है।

#- खाँसी - थूहर के दो पत्तों को आग पर गर्म करके , मसलकर , रस निकालकर थोड़ा - सा नमक मिलाकर , पीने से खाँसी में आराम आता है।

#- खाँसी - थूहर के कोमल डण्डों को आग में गर्म कर उनका रस निकालकर , उसमें गुड मिलाकर पिलाने से बच्चों को वमन व विरेचन होकर खाँसी मिटती है।

#- खाँसी - त्रिधारा सेहुंड के रस में अडूसे के 10-20 पत्तों को पीसकर छोटी- छोटी गोलियाँ बनाकर 1-2 गोली दिन में दो बार चूसने से खाँसी ठीक हो जाती है।

#- विरेचनार्थ - उदर रोगों में कालीमिर्च को थूहर के दूध मे डुबोकर सुखा लें । तीव्र रेचन की आवश्यकता होने पर 1-2 दाने खिलाने से रेचन होता है।

#- जलोदर, अफारा- हरड़, पीपल, और निशोथ आदि रेचक औषधियों को थूहर के दूध में तर करके खिलाने पर तीव्र विरेचन होता है।जलोदर सूजन व अफारा भी मिट जाता है।

#- जलोदर , विस्फोट - जिस व्यक्ति को लम्बे समय तक ज्वर आया हो और उस रोगी को जलोदर या विस्फोट हो गया हो ऐसे रोगी को 5-10 मिलीग्राम थूहर के रस का अनुपान कराना चाहिए ।

#- सूजन - माँस पेशियों की सूजन पर थूहर का दूध लगाने से सूजन बिखर जाती है और पकती भी नहीं , शीघ्र ठीक होती है।

#- आकाशीय बिजली से बचाओ - जिस घर की छत पर त्रिधारा सेहुंड के गमले रखे हो उस घर पर कभी भी आकाश से बिजल कड़क कर नहीं गिरती है।

#- सोराइसिस - किसी भी प्रकार के चर्मरोग में या सोराइसिस में थूहर का स्वरस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में सरसों का तैल मिलाकर लगाने से रोग अवश्य ठीक होता है ।
#- कर्णशूल - त्रिधारा सेहुंड , थूहर ( ट्राईएन्गुलर स्पर्ज Triangular spurge ) त्रिधारा थूहर की शाखाओं से प्राप्त स्वरस को 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।

#- कफनिस्सारणार्थ - त्रिधारा थूहर काण्ड को भूनकर स्वरस निकालकर 5 मिली स्वरस में टंकण तथा मधु मिलाकर प्रयोग करने से कफ का निस: सरण ( बलगम बाहर निकलता है ) होता है।

#- खाँसी - त्रिधारा सेहुंड का स्वरस में अडूसा के पत्तों को पीसकर 250 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर प्रात:सायं 1-1 गोली लेकर चूसने से लाभ होता है।

#- उदर रोग - 5 मिलीग्राम त्रिधारा सेहुंड का मूल स्वरस का सेवन करने से आध्मान , उद्वेष्ट तथा अजीर्ण में लाभ होता है।

#- उदरकृमि - त्रिधारा सेहुंड की मूल को हींग के साथ पीसकर वस्त्र पर लगाकर उदर पर बाँधने से उदरकृमियों का नि:सरण होकर कीड़े बाहर निकलते है।

#- उपदंश रोग - त्रिधारा मूल छाल का क्वाथ 10-20 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से उपदंश तथा जीर्ण आमवात में लाभ होता है।

#- सूजाक - त्रिधारा सेहुंड के दूध या स्वरस में चने का बेसन मिलाकर , आग पर पकाकर 250 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर प्रात: सायं 1-1 गोली का सेवन करने से सूजाक में लाभ होता है।

#- वातरक्त - त्रिधारा सेहुंड के तने का क्वाथ बनाकर परिसिंचन करने से वातरक्त में लाभ होता है।

#- आमवात - त्रिधारा सेहुंड की शाखाओं को कूटकर स्वरस निकालकर लेप करने से आमवात में लाभ होता है।

#- सन्धिशोथ - त्रिधारा सेहुंड के तने से निकला हुआ दूध में सुहागा तथा नमक मिलाकर गुनगुना करके लगाने से संधिशूल तथा संधिशोथ का शमन होता है।

#- संधिवात - त्रिधारा सेहुंड के तने प्राप्त दूध में नीम की निम्बौली का तैल मिलाकर लेप करने से संधिशोथ तथा संधिपीडा का शमन होता है।


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