Saturday 27 March 2021

रामबाण :- 23 -:

रामबाण :- 23 -:


#- आमवात - दालचीनी पत्रों के तैल को लगाने से आमवात में लाभ होता है।

#- चर्मरोग - शहद एवं दालचीनी को मिलाकर रोग ग्रसित भाग पर लगाने से कुछ ही दिनों में खुजली, खाज, फोड़ें, फुन्सियां जेसे रोग नष्ट हो जाते है।

#- नाडीव्रण - दालचीनी , आक का दूध तथा दारूहल्दी को पीसकर बत्ती बनाकर नाडीव्रण में डालने से नाडीव्रण रोग ( नाड़ी के अन्दर का घाव ) ठीक होता है।

#- दालचीनी पावडर या तैल घावों पर लगाने से घाव के कीड़ों को मारता है तथा घाव साफ करके घाव भरता है।

#- रक्तस्राव - फेफड़ों में रक्तस्राव हो , गर्भाशय में रक्तस्राव हो और अन्य किसी भी प्रकार के रक्तस्राव में दालचीनी का काढ़ा 10-20 मिलीग्राम सुबह , दोपहर, सायं पिलाने से रक्तस्राव मे लाभ होता है।

#- रक्तस्राव - शरीर में किसी भी अंग से रक्तस्राव होने पर एक चम्मच दालचीनी चूर्ण को एक कप पानी के साथ 2-3 बार सेवन करने से रोग मे लाभ होता है।

#- कोलैस्ट्राल - एक कप पानी में दो चम्मच मधु तथा 2-5 ग्राम दालचीनी चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन दिन लेने से कौलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है या एक कप पानी में एक इंच लम्बा दालचीनी का टुकड़ा रातभर भिगोकर सुबह उसका पानी पीने से भी कौलेस्ट्राल कम होता है।

#- ज्वर - एक चम्मच शहद में 5 ग्राम दालचीनी का चूर्ण मिलाकर सुबह सायं सेवन करने से शीत प्रधान संक्रामक ज्वर में लाभ होता है।

#- सूतिका सर्वरोग - त्रिकटू , पीपरामूल , दालचीनी , इलायची , तेजपात , अकरकरा के 1-2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ चटाने से सूतिका के सभी रोगों का शमन होता है।

#- वाजीकरण - 2-5 ग्राम दालचीनी चूर्ण , 10 ग्राम मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ पीने से बाजीकरण कर स्तम्भन को बढ़ाता है।

#- शिर शूल-बडी दुग्धिका के आक्षीर को मस्तक में लगाने से शिरशूल का शमन होता है तथा मुँह पर लगाने से मुहासे तथा दाद पर लगाने से दाद का शमन होता है।

#- नेत्रविकार-बड़ी दुग्धिका के 1-2 बूंद स्वरस को आंखों में डालने से नेत्रविकारों में लाभ होता है।

#- दंतरोग-दुद्धी मूल को चबाने तथा मुख में धारण करने से दंत रोगों में अत्यन्त लाभ होता है तथा दांत की वेदना का शमन होता है।

#- तोतलापन-1-2 ग्राम दुग्धिका चूर्ण को पान में रखकर चूसने से तोतलापन मिटता है।

#- श्वासकष्ट- बड़ी दुग्धिका का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से श्वासकष्ट (दमा) तथा जीर्ण श्वसनी संक्रमण में लाभ होता है।

#- फुफ्फुस- शोथ-दुग्धिका के पत्रों का क्वाथ बनाकर 5-10 मिली मात्रा में प्रयोग करने से फुफ्फुस शोथ में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका-दुग्धिका को चावल में पकाकर तैल मिलाकर चावल के साथ खाने से रक्तज-प्रवाहिका (रक्तयुक्त पेचिश) में लाभ होता है।

#- रक्तार्श- 2-3 ग्राम छोटी कटेरी तथा बड़ी दुग्धिका कल्क से विधि पूर्वक पकाए हुए गौघृत को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से रक्तार्श में लाभ होता है।

#- अतिमूत्रता-1 ग्राम बड़ी दुग्धिका मूल में 5 ग्राम गुड़ तथा 500 मिग्रा जीरक चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अतिमूत्रता में लाभ होता है।

#- श्वेतप्रदर- 1-2 ग्राम बड़ी दुग्धिका पत्र कल्क में मधु मिलाकर सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
पूयमेह-1-2 ग्राम दुग्धिका मूल चूर्ण का सेवन करने से फिरंग, सूजाक तथा अन्य मूत्र विकारों में लाभ होता है।
कामशक्तिवर्धनार्थ-दुग्धिका पञ्चाङ्ग को छाया में सुखाकर पीसकर 1-2 ग्राम चूर्ण में शर्करा मिलाकर खाने से कामशक्ति बढ़ती है।

#- दाद , दद्नु-दुग्धिका स्वरस को दद्रु में लगाने से लाभ होता है।

#- विस्फोट-समभाग करञ्ज बीज, तिल तथा सरसों के कल्क में दुग्धिका कल्क मिलाकर लेप करने से विस्फोट रोग का शमन होता है।

#- दुग्धिका कल्क में लवण मिलाकर लगाने से रोमकूपशोथ में लाभ होता है।पञ्चाङ्ग को पीसकर लेप करने से घाव, विद्रधि, सूजन तथा ग्रंथिशोथ में लाभ होता है।शल्य निक्रमणार्थ-जिस जगह पर कांटा चुभ गया हो तथा निकल ना रहा हो तो उस जगह पर दुग्धिका का आक्षीर लगाने से कांटा निकल जाता है।

#- सर्पविष-बड़ी दुग्धिका के 5 ग्राम पत्तों में 2 ग्राम काली मिर्च मिलाकर पीसकर खाने से सर्पविष जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- मधुमेह - 10-30 मिली दारुहल्दी के काढ़ा को मधु के साथ नियमित सेवन करने से डायबिटीज रोग में लाभ होता है।


#- लिवर - तिल्ली रोग - दारुहरिद्रा की जड़ की छाल से बने काढ़ा 10-30 मिली को पीने से लिवर और तिल्ली से जुड़े विकार ठीक होते हैं।
 


#- विषैले कीटदंश - दारुहल्दी आदि द्रव्यों से बने गौराद्य घी का प्रयोग करें। इससे विषैली कीड़े-मकौड़े और अन्य कीटों के काटने वाले स्थान पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
 


#- सर्पदंश - सांप के काटने पर भी दारुहल्दी बहुत फायदा करता है। हल्दी एवं दारुहल्दी का विविध प्रयोग सांप के काटने के स्थान पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
 

#- नेत्र अञ्जन - मधु और रसौत से बने अञ्जन का प्रयोग करें। इससे आंखों के लाल होने जैसी बीमारी में फायदा होता है।

 #- अर्जून रोग- रसोत तथा मधु से निर्मित अंजन का प्रयोग करने से अर्जून रोग में लाभ होता है।


#- रसौत को स्त्री के दूध के साथ घिसें। इसमें मधु मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान के बहने और कान में घाव होने की बीमारी में लाभ होता है।
 


#- नासारोग - रसौत, अतिविषा, नागरमोथा तथा देवदारु का पेस्ट बना लें। इस तेल में पकाएं। इस  तेल को 1-2 बूंद नाक में देने से जुकाम में लाभ होता है।
 


#- ख़ूनी बवासीर - रसौत को रात भर पानी में भिगोएं। इसे छानकर गाढ़ा बना लें। जब यह एक चौथाई बच जाए तो इसमें छाया में सुखाए हुए नीम के पत्तों का बारीक चूर्ण मिलाएं। इसका 250 मिग्रा की गोलियां बना लें। इसका सेवन करने से बवासीर और खूनी बवासीर में लाभ होता है।
 


#- कुष्ठ रोग - रसौत को तेल या गाय के घी में पकाएं। इससे स्नान करने या पीने या लेपर करने से या फिर घाव पर रगड़ने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।

#- कुष्ठ रोग - 10-12 ग्राम रसौत को 1 महीने तक 15-20 मिली गोमूत्र में घोल कर पिएं। इसके साथ ही इससे शरीर पर लेप करने से कुष्ठ में शीघ्र लाभ होता है।
 


#- साइनस - रसौत, हल्दी, दारुहल्दी, मंजीठ, नीम के पत्ते, निशोथ, तेजोवती और दन्ती का पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट का लेप करने से साइनस की बीमारी में लाभ होता है।
 


#- ग्रहपद्रव - 10 मिली कूष्माण्ड फल का रस लें। इसमें दारुहल्दी (जो पुष्य नक्षत्र में जमा किए गए हों) की छाल को महीन रूप से पीस लें। इसे दोनों आंखों पर काजल की तरह लगाने से ग्रहोपद्रव शान्त होते हैं।

 #- ग्रहबाधा - ( अहिपूतना ) पित्त तथा कफदोष नाशक द्रव्यों से सिद्ध 15-25 मिलीग्राम जल में 2 ग्राम मधु तथा 1 ग्राम शुद्ध रसोत मिलाकर धात्री को पिलाने से तथा लेप बनाकर शिशु के गुदा प्रदेश एवं व्रण पर लेप करने से शीघ्र रोग का निवारण होता है।

#- शिशु गुदपाक- शिशु को गुदपाक हो तो रसोत को जल या गाय के दूध में पीसकर गुदा में लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।

#- शिशु गूदारोग - शिशु को गुदा से संबंधित बीमार हो जाए जैसे गुदा लाल हो गया हो और दर्द हो रहा हो तो दारुहरिद्रा का प्रयोग फायदा देता है। रसौत को जल या गाय के दूध में पीस लें। गुदा में लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।

#- शिशु गुदापाक - पित्त-कफज विकार को ठीक करने वाले द्रव्यों वाले 15-25 मिली जल में 2 ग्राम मधु और 1 ग्राम शुद्ध रसौत मिलाएं। इसे स्तनपान कराने वाली माता को पिलाएं, और लेप बनाकर शिशु के गुदा और घाव पर लेप के रूप में लगाएं। इससे पित्त और कफज विकार जल्दी ठीक होते हैं।

 #- रोमसंजननार्थ - हाथी दाँत की भस्म में शुद्ध रसोत मिलाकर लेप करने से रोमसजनन होता है।


#- मोटापा - मोटापा कम करने के लिए दारुहरिद्रा के रसांजन का प्रयोग करना बहुत लाभ देता है।
अरणी की छाल काढ़ा के साथ 1-2 ग्राम रसांजन को लंबे समय तक तक सेवन करने से मोटापा घटता है।



#- हृदयरोग - रसौत तथा मधु से बने अञ्जन का प्रयोग करने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है।


दारुहरिद्रा (daruharidra) के इस्तेमाल की मात्रा ये होनी चाहिएः-
चूर्ण- 0.5-3 ग्राम
रस- 1-2 ग्राम
काढ़ा- 50-100


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