Wednesday 3 March 2021

रामबाण -3:-

रामबाण -3:-


#- पुरानी खाँसी -- अपराजिता की जड़ का स्वरस दो तौले , स्वादानुसार शहद , गाय के गर्म दूध २५०ग्राम में ५० ग्राम अदरक पकाकर , शहद व जडस्वरस मिलाकर पिलाने से पुरानी खाँसी दूर होती है।

#- खाँसी , कफ, अस्थमारोग -- अपराजिता के बीजों को तवें भूनकर ठंडाकर चूर्ण बनाकर पिरोने गुड व सैंधानमक बराबर मात्रा में मिलाकर गरम पानी से लेना लाभकारी होता है तथा पत्तों का स्वरस देने से भी अस्थमा में लाभ होता है ।

#- खाँसी - गुड़हल की मूल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा मे शहद मिलाकर लेने से खाँसी में लाभ होता है।

#- शिरोरोग ( आधाशीशी , माइग्रेन ) -- अपराजिता के फूल तथा पत्तों का रस निकालकर ५-६ बूँद प्रतिदिन नाक में डाले अथवा बीज तथा जड़ के चूर्ण १/२ टी स्पुन गाय के दूध के साथ खाने से आधाशीशी रोग दूर होता है।

#- पाण्डूरोग -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर पीने से कामलारोग, पाण्डूरोग , पीलिया ठीक होते है । तथा यकृतरोग मे जड़ व बीज का पावडर छाछ के साथ देने कारगर लाभ है तथा अपराजिता की पतली- पतली जड़ आधा-आधा इंच के टुकड़े करके सूत के धागे को लालरंग में रंगकर सुखाकर इस धागे में जड़ के टुकड़ों को बाँधकर रोगी के गले में बाँधने से ये रोग ठीक होते है ।

#- हिचकी रोग -- अपराजिता के बीजों को हुक्का चिलम में रखकर धूम्रपान करने से हिचकीरोग में तुरन्त लाभ होता है ।

#- पसीने मे बदबू-- अपराजिता बीज पावडर व अदरक रस मिलाकर खाने से आठ दिन मे ही पसीने से बदबू आना बन्द हो जाती है।


#- गलगण्ड ( घेंघारोग ) -- सफ़ेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के घी या नवनीत में मिलाकर खाने से व गाय के मूत्र सफेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण मे मिलाकर गले पर लेप करने से तुरन्त लाभ आता है ।

#- पाचनतन्त्रव पेटरोग -- अपराजिता के दो से चार फूल प्रतिदिन खाने से पाचनतन्त्र मज़बूत होता है तथा पित्त को शुद्ध करती है पेट मे पानी आना व पेट बढ़ना तथा ऐसिडीटी, जलन , पेटदर्द व पाचन समस्या मे अपराजिता बीजचूर्ण को गाय के घी मे मिलाकर खाने से तुरन्त लाभ होता है तथा उबकाई , उल्टी ( वमन ) में अपराजिता के पत्तों के स्वरस देने से लाभ होता है तथा पेचिश मे बीज चूर्ण कारगर है तथा पेट को साफ़ करके रोगाणुओं को बाहर निकालता है

#- कर्णरोग - कान की सूजन मे अपराजिता के पत्तों की चटनी मे सैंधानमक मिलाकर लेप को गरम करके कान के चारों तरफ़ लेप करने से कान की सूजन दूर होती है तथा अपराजिता जड़ को सरसों तैल मे पकाकर थोड़ा गरम- गरम कान मे डालने से कान का दर्द दूर होता है ।

#- शुगर रोग - अपराजिता के दो फूल रोज़ प्रातःकाल ख़ाली पेट खाने से शुगर कन्ट्रोल रहती है या दो फूल की चाय पीने से शुगर लाभ होता है ।

#- हृदयरोग - अपराजिता के दो फूल या आधा चम्मच बीज या जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कोलैस्ट्राल कन्ट्रोल कर हृदय को मज़बूत करता है ।

#- अतिसार - अपराजिता की जडचूर्ण को गरम पानी से से शरीर अन्दर से सभी विषेले तत्व( टोक्सिन बाहर निकलते है तथा पेट साफ़ करती है और अपराजिता बीज चूर्ण पेचिश को रोकता है ।

#- त्रिदोषनाशक - अपराजिता पंचांग प्रातःकाल गरम पानी के साथ लेने से वात , पित्त, कफ का नाश कर शरीर को दोषमुक्त रखता है ।

#- रोगाणुनाशक - अपराजिता पंचांग को प्रातःकाल गरम पानी से लेने पर रोगों का नाश करता है ।

#- रक्तरोधक - अपराजिता पंचांग का उपयोग करने से ख़ून साफ होकर शरीर को पुष्ट होता है ।

#- रोगप्रतिरोधक - अपराजिता पंचांग अपार रोगप्रतिरोधक क्षमता निर्माण तर व्यक्ति को निरोगी काया देने मे समर्थ है ।

#- रक्तरोधक-- शरीर मे छेदन, भेदन व कटने आदि पर जो ख़ून निकलता है उसमें अपराजिता के पत्तों का रस लगाने से ख़ून का बहना बन्द हो जाता है ।

#- पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।

#- कायाकल्प - अपराजिता पंचांग व्यक्ति की कायाकल्प करने अभूतपूर्व क्षमता रंखता है ।

#- स्तन संकोचक - किसी भी कारण से महिलाओं के स्तन ढीले हो गये हो या लटक गये हो तो अपराजिता के फूल,पत्ते,छाल,जड़ का पेस्ट बनाकर रात्रि मे सोते समय स्तनों पर लगाये सोये तो ७-८ दिन मे ही स्तन सुडौल व पुष्ट होकर ढीलापन व लटकन समाप्त होती है ।

#- रोगाणुनाशक - अपराजिता पंचांग को प्रातःकाल गरम पानी से लेने पर रोगों का नाश करता है ।

#- रक्तरोधक - अपराजिता पंचांग का उपयोग करने से ख़ून साफ होकर शरीर को पुष्ट होता है ।

#- रोगप्रतिरोधक - अपराजिता पंचांग अपार रोगप्रतिरोधक क्षमता निर्माण तर व्यक्ति को निरोगी काया देने मे समर्थ है ।

#- रक्तरोधक-- शरीर मे छेदन, भेदन व कटने आदि पर जो ख़ून निकलता है उसमें अपराजिता के पत्तों का रस लगाने से ख़ून का बहना बन्द हो जाता है ।

#- श्वासरोग - अपराजिता के बीजों को तवे पर भूनकर पावडर बना ले, पुराना गुड व सैंधानमक अडूसा फूल या पत्ति का चूर्ण को मिलाकर गरम पानी के साथ लेने से श्वासरोग ठीक होता है ।

#- आँखरोग - अपराजिता के पत्तों को पीसकर टिक्की बनाकर खीरे की तरह आँखों पर रखने आँखरोग ठीक होते है ।
#- कण्ठशोधक -- अपराजिता जड़,पुष्प का चूर्ण, मुलेठी चूर्ण , हल्दी को मिलाकर काढ़ा बनाकर गरारें करने से या सभी चूर्ण को मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने स्वर मधुर होता है तथा कण्ठ सूजन पर पत्तों का लेप लगाने से तुरन्त लाभ होता है ।

#- पाराबन्धनकर्ता - अपराजिता के पंचांग का प्रयोग पारे को बाँधने के लिए उत्तम मानते है।

#- बुखार - अपराजिता के जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ पिलाने से बुखार ठीक होता है तथा उपरोक्त माला बनाने की विधी से माला बनाकर पहनाने से बार- बार आने वाले बुखार से मुक्ति मिलती है ।

#- नासारोग -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस की ५-५ बूँदे नाक मे डालने से तथा बीजों का पावडर बनाकर बीजों का रस का नस्य लेने से नासारोग दूर होते है ।

#- अण्डकोषवृद्धि ( पोत्तो में पानी उतरना ) -- अपराजिता के बीजों को पीसकर गौमूत्र में मिलाकर गरम करके हलवा जैसा पेस्ट बनाकर निवाया- निवाया ( त्वचा न जले इतना गरम ) लेकर एक कपड़े के ऊपर फैलाकर पेस्ट को अण्डकोष पर लगोंट की सहायता से बाँधने पर तुरन्त आराम आता है।

#- सूजाक ( लिंग में सूजन ) -- अपराजिता की ताज़ी जड़ का स्वरस आधा कप मे छ: कालीमिर्च पावडर मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

#- मूत्रवर्धक -- अपराजिता के दो से चार फूल का सेवन करने मूत्र सम्बंधी समस्या दूर होकर अधिक पेशाब आने लगता है और गुर्दो की सफ़ाई भी हो जाती है ।

# - मूत्राशय पथरी -- अपराजिता के जड़ चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पिलाने से मूत्राशय की पथरी ठीक होती है ।

# - मूत्र मे जलन -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस को गाय के धारोष्ण दूध के साथ देने से भंयकर से भयंकर जलन तुरन्त शान्त होती है ।

# - शुक्राणु वर्धक -- प्रातःकाल ख़ाली पेट सफेद अपराजित के २-४ सूखे पुष्प पीसकर शहद मिलाकर चाटने से शुक्राणु तीव्रता से वृद्धि करती है तथा शुक्राणुओं को पुष्ट करता है यह सफेद बछड़े वाली गाय का दूध होगा तो सन्तानोत्पत्ति मे बेटा ही होगा ऐसी मान्यता है ।

#- सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।

# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।

# - अपराजिता के पुष्पों की चाय पीने पर एनर्जीबुस्टर का काम करती है । तथा अपराजिता पुष्पों को ठंडे दूध या शर्बत मे ग्रैन्डर मे घुमाकर पीने से चुस्ती- फुर्ती व मानसिक व शारीरिक थकान को दूर करती है तथा मस्तिष्क वर्धन करती है और शरीर मे रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है तथा शरीर मे से विजातीय तत्वों को निकालकर शरीर शोधन करती है ।

#- शिर:शूल - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को गाय के दूध से बने मक्खन तथा मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से शिर: शूल में लाभ होता है ।

#- भगंदर - 2-4 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शक्कर , मिश्री तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने के बाद गाय का दूध पीने से भगन्दर में लाभ होता है।
है।

#- उपदंश - सोंठ , गोखरू , वायविडंग , दालचीनी को समभाग लेकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को प्रतिदिन मधु मिलाकर 5-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से उपदंश, प्रेमह , व्रण , वातरोग , एवं कुष्ठ रोग का शमन करता है इस अवधि मे परहेज़ का ध्यान अवश्य रखे ।

#- दौर्बल्य - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को दो गुणा शक्कर मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होकर शरीर में ताक़त का संचार होता है ।

#- इन्द्रलुप्त ( सिर के बाल झड़ना )- गाय के मूत्र में गुड़हल के फूलों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल बढ़ते है तथा गंजापन दूर होता है।

#- बालों का पोषण - गुड़हल के पत्तों को पीसकर लूगदी बनाकर उसमें एक चम्मच गौघृत मिलाकर बालों में लगाकर दो- ढाई घन्टे बाद सिर धोना, इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ , मज़बूत , घने व लम्बे करके बालों को पोषण मिलता है तथा सिर की खुशकी दूर होती है व सिर मे शीतलता मिलती है।

#- बाल चमकीले व घने होना- गुड़हल के ताज़े फूलों के रस में सम्भाग ज़ैतून का तैल मिलाकर आग में पका लें । जब केवल तैल शेष रह जायें तो शीशी में भरकर रख लें। प्रतिदिन बालों की जड़ो में लगाने से बाल चमकीले और लम्बे होते है।

#- बाल काले व घनें- गुड़हल के फूल और भृंगराज के फूलों को भेड़ के दूध में पीसकर लोहे के पात्र में रखें , सात दिन बाद निकालकर भृंगराज के पंचाग के रस में मिलाकर बालों में लगाकर बाल धोने से बाल काले हो जाते है।

#- लौहभस्म , आँवला चूर्ण तथा जपा- पुष्प ( गुड़हल पुष्प ) से निर्मित कल्क का शिर में लेप करने से बाल लम्बे समय तक काले रहते है।

#- दारूणक रोग ( बालों में रूसी )- गुड़हल पुष्प स्वरस में समभाग तिल तैल मिलाकर उबालें , तैल शेष रहने पर उसको उतार- छानकर काँच की शीशी में भरकर रख लें, इस तैल को सिर में लगाने दारूणक ( रूसी ) समाप्त हो जाती है।

#- मुँह के छालें - गुड़हल की जड़ को साफ करके , धोकर एक- एक इंच के टुकड़ों को काटकर रख लें , दिन में दो- तीन बार एक - एक टुकड़ा लेकर चबा- चबाकर थूकते जायें , एक दो दिन में छालें ठीक हो जायेगें ।

#- शवसनीगत शलेष्मिक - कला शोथ - गुड़हल के पुष्प का क्वाथ बनाकर 15-30 मिलीग्राम की मात्रा लेने से शवसनीगत शलेष्मिक कला- शोथ ( श्वास नली की सूजन ) में लाभकारी होता है।

#- कास - 15 मिलीग्राम गुड़हल स्वरस को शहद में मिलाकर दिन में तीन- चार बार लेने से खाँसी - ज़ुकाम मे लाभ होता है।

#- कफनष्कासनार्थ - गुड़हल के पुष्प का फाण्ट बनाकर पीने से कफनि:सरण ( कफ का बाहर निकलना ) होकर कफज विकारों का शमन होता है।

#- अतिसार - गुड़हल के 10 मिलीग्राम पत्तों का रस लेकर सेवन करने से पेटदर्द व दस्तों में लाभ होता है।

#- रक्तातिसार ( रक्त का अधिक बहना) - गुड़हल की 10-15 कलियों को 2 चम्मच गौघृत में तलकर उसमें 5 ग्राम मिश्री व 2 ग्राम नागकेशर मिलाकर प्रात: सायं सेवन करने से ख़ून का बहना व ख़ूनी बवासीर में लाभ होता है।
#- रक्ताल्पता ( ख़ून की कमी)- गुड़हल फूल का एक चम्मच चूर्ण , आधा चम्मच सोफ चूर्ण, एक चम्मच मिश्री मिलाकर गाय के दूध में मिलाकर पात: काल पीने से कुछ ही दिनों में ख़ून की कमी दूर होकर शरीर मे स्फूर्ति आयेगी बलवृद्धि होकर चेहरा लाल होकर कान्तिमान बनेगा तथ सौन्दर्य चमकेगा ।

#- गर्भकाल मे बालक - गुड़हल की मूल व फूलों का क्वाथ बनाकर 20-40 मिलीग्राम क्वाथ को प्रात: काल पिलाने से गर्भ स्थित बालक की पुष्टी होती है।

#- सूज़ाक - गुड़हल की 11 पत्तियों को साफ जल में पीस- छानकर उसमें यवक्षार 8 ग्राम व मिश्री 25 ग्राम मिलाकर इसकी थोड़ी - थोड़ी मात्रा को प्रात: सायं दो बार पीने विशेष लाभ होता है।

#- सूज़ाक - गुड़हल का प्रथम दिन 1 पुष्प , दूसरे दिन 2 पुष्प तथा पाँचवे दिन 5 पुष्प मिश्री मिलाकर खायें, तथा फिर 1-1 पुष्प प्रतिदिन घटाते हुए दसवें दिन एक पुष्प खायें तथा पथ्य- परहेज़ से रहे , इससे सूज़ाक मे अवश्य लाभ होता है।

#- गर्भ-निरोधनार्थ - गुड़हल के पुष्पों को काँजी में पीसकर , 50 ग्राम तक पुराना गुड मिलाकर , मासिकधर्म के समय तीन दिन तक खाने से स्त्री गर्भधारण नहीं करती है ।

#- प्रदर रोग - गुड़हल के 12 पुष्प की कलियों को गाय के दूध में पीसकर स्त्री को पिलाने से तथा भोजन में दूध का प्रयोग करने से शीघ्र ही श्वेत व रक्तप्रदर में लाभ होता है।

#- प्रदर रोग- गुड़हल की 5 कलियों को गौघृत में तलकर प्रात: सात दिन तक मिश्री के साथ खाने तथा गाय का दूध पीने से श्वेत-रक्तप्रदर रोगों में लाभ होता है।

#- फिरंग रोग ( लिंग-शिशन पर दाने या घाव )- गुड़हल के पंचाग को रात्रिपर्यन्त पानी मे भिगोकर प्रात: मसलकर , मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।

#- मासिकधर्म - विकार :- गुड़हल के 5 पुष्पों को 1चम्मच गौघृत में तलकर स्वादानुसार मिश्री के साथ मिलाकर खाने से मासिक- विकारों में लाभ होता है।

#- पौरूषत्व वर्धनार्थ - गुड़हल के पुष्पों या पत्तों को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर समभाग मिश्री या खाण्ड मिलाकर 40 दिनों तक 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पुरूषत्व की वृद्धि होती है।

#- श्वित्र रोग ( सफेद दाग )- गुड़हल के चार पुष्पों को प्रात: सायं 2 वर्ष तक सेवन करने से श्वित्र - सफेद दाग में लाभ होता है।


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