Tuesday 30 March 2021

रामबाण :- 26 -:

रामबाण :- 26 -:

#- कण्ठमाला - 1 ग्राम चालमोगरा फल गिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से कण्ठमाला मे लाभ होता है।
चालमोगरा के तैल को गाय के दूध से बने मक्खन में मिलाकर गाँठों पर लेप करने भी लाभ होता है।

#- क्षयरोग - तुवरक तैल की 5-6 बूँदों को गोदूग्ध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तथा गौ- मक्खन मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से क्षयरोग में लाभ होता है।

#- हैज़ा - तुवरकफल की गिरी के 1 ग्राम चूर्ण को जल में पीसकर 2-3 बार पिलाने से विसुचिका ( हैज़ा ) मे लाभ होता है।

#- मधुमेह - एक चम्मच तुवरकफलगिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से मूत्र-शर्करा ( पेशाब में शक्कर का जाना, मधुमेह ) कम हो जाती है , जब मूत्र में शक्कर जाना बंद हो जाये तो प्रयोग बंद कर दें।

#- मधुमेह - 1-2 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में 2-3 बार जल के साथ सेवन करने से मधुमेह मे लाभ होता है।

#- योनिदौर्गन्धय - तुवरक के क्वाथ से योनि का प्रक्षालन ( धोने ) से अथवा तुवरक कल्क की वर्ति ( बत्ती ) बनाकर योनि के अन्दर रखने से योनि से आने वाली दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।

#- उपदंश, व्रण - तुवरक के बीजों के साथ जंगली मूँग को मिलाकर यवकूट कर भांगरारस की 3 भावना देकर चौथे दिन महीन पीसकर उसमें थोड़ा चन्दन या नारियल तैल या आँवला तैल मिलाकर उबटन बनाकर उपदंश व्रणों पर लगायें , फिर 3-4 घन्टे बाद स्नान करने से लाभ होता है।

#- उपदंश ( Syphilis सिफ़लिस )- पूरे शरीर मे फैले हुआ सिफ़लिस रोग और पुरानी गठिया में तुवरकतैल की 5-6 बूँदों से शुरू करके मात्रा को बढ़ाते हुए 60 बूँद तक सेवन करने से उपदंश मे लाभ होता है । जब तक इस औषध का सेवन करे तबतक मिर्च- मसाले , खटाई का परहेज़ रखें। गाय के दूध व घी तथा मक्खन का अधिक प्रयोग करे।

#- गठिया रोग - 1 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से गठियारोग में आराम आता है।

#- दाद - तुवरकतैल में नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर दाद मे मालिश करने से एक माह के अन्दर मे ही दाद ठीक हो जाते है।

#- दाद - तुवरकतैल व नीमतैल मे आवश्यकतानुसार सफेद वैसलीन मिलाकर रख ले ! इस मरहम को दाद पर लगाने से दाद मे आराम आता है।

#- खाज- खुजली :- तुवरक तैल को एरण्डतैल मे मिलाकर उसमें गंधक , कपूर और नींबू का रस मिलाकर लगाने से खाज तथा खुजली में लाभ आता है।

#- पामा, छाजन, एक्ज़िमा रोग - तुवरक बीजों को छिलके सहित पीसकर एरण्डतैल में मिलाकर पामा पर लेप करने से पामा मिट जाता है।

#- पामा, छाजन- तुवरक बीजों को गोमूत्र में पीसकर 2-3 बार लेप करने से पामा रोग दूर होता है।

#- खुजली रोग- तुवरक बीजों को गोमूत्र मे पीसकर लगाने से खुजली रोग मे आराम आता है।

#- कुष्ठ रोग- कुष्ठ रोगी को पहले तुवरकतैल की 10 बूँद पिलानी चाहिए , जिससे वमन होकर शरीर के सब दोष बाहर आ जाये । तत्पश्चात 5-6 बूँदों को कैप्सूल मे डालकर या गाय के दूध व मक्खन में भोजनोपरान्त सुबह- सायं दें। धीरे- धीरे मात्रा बढ़ाकर 60 बूँद तक लें जायें , तुवरकतैल को नीमतैल मे मिलाकर बाह्य लेप करें , कुष्ठ की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषध सेवन करे तथा मिर्च- मसाले व खटाई न खायें।

#- घाव, व्रण - तुवरक बीजों को ख़ूब महीन पीसकर उनका बारीक चूर्ण घाव पर लगाने से रक्तस्राव ( ख़ून बहना ) बन्द हो जाता है और घाव को बढ़ने से रोकता है तथा घाव शीघ्रता से भरने लगता है।

#- नाडीशूल - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर खाने से नाडीशूल ( नसों मे होने वाला दर्द ) बन्द हो जाता है

#- व्रण , घाव, कुष्ठ - तुवरक बीज , भल्लातक-भिलावा बीज , बाकुची मूल , चित्रकमूल , अथवा शिलाजीत का चिरकाल तक सेवन करने से कुष्ठ मे लाभ होता है।

#- महाकुष्ठ, कण्डू तथा चर्मरोग - तुवरकतैल को लगाने से महाकुष्ठ , कण्डूरोग, चर्मरोग व त्वकरोगों मे लाभ होता है।

#- मुर्छा रोग - चालमोगरा ( तुवरक बीज ) बीज चूर्ण को मस्तक पर मलने से मुर्छा दूर होती है।

#- रक्तशोधनार्थ - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर या गाय के मक्खन के साथ भोजन के आधा घन्टे पश्चात सुबह- सायं खाने से रक्त का शोधन होकर रक्तजविकारों का शमन होता है।

#- रक्तजविकार - तुवरकतैल , नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर लेप करने से रक्त विकारों मे लाभ होता है।

#- रसायनार्थ - तुवरक रसायन का सेवन करने से मनुष्य वली , पलित, आदि व्याधियों से मुक्त होकर स्मृतिवान तथा रसायन गुणों से युक्त हो जाता है । इसका प्रयोग सावधानीपुर्वक करना चाहिए क्योंकि यह अमाशय को हानि पहुँचाता है । तैल को गौ- मक्खन मे मिलाकर या कैप्सूल मे भरकर भोजन के बाद लेना चाहिए । यदि तैल के सेवन से किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है तो गाय के दूध व घी को खिलाना चाहिए ।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधी -

#- नेत्रशूल - तगर के पत्तों को पीसकर आँखों के बाहर चारों तरफ़ लेप करने से आँख का दुखना बन्द हो जाता है।

#- पिल्लरोग , आँखों में कीच आना - तगर को हरीतकी स्वरस मे पीसकर अञ्जन करने से पिल्ल नामक नेत्ररोग में लाभ होता है।

#- मूत्रविकार - 1-2 ग्राम तगर चूर्ण को शर्करा के साथ मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार का शमन होता है।

#- मासिकधर्म सम्बंधी विकार- तगर 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिलीग्राम क्वाथ का सेवन करने से मासिकधर्म का नियममन होता है। यह निद्राकारक है। तथा पुरातन प्रेमह मे लाभकारी है।

#- योनिरोग - तगर , बड़ी कटेरी , सैंधानमक तथा देवदारु का क्वाथ बनाकर , इसमें तिल तैल मिलाकर पाक कर ले , इस तैल में रूई का फाहा भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल का शमन होता है ।

#- संधिवात - 1 ग्राम तगर चूर्ण में 65 मिलीग्राम यशद भस्म देने से गठिया , पक्षाघात , गले के रोग तथा सन्धिवात इत्यादि रोगों में लाभ होता है ।

#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।

#- घाव व्रण - पुराने घावों और फोड़ो पर तगर को पीसकर लेप लेप करना चाहिए । इससे घाव जल्दी भर जाता है। तथा घाव दुषित नहीं होता है।

#- अपस्मार - तगर का फाण्ट 15-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से अपस्मार तथा योषाअपस्मार मे लाभ होता है।

#-अपस्मार - 500 मिलीग्राम तगर चूर्ण को दिन में दो बार शहद के साथ उन्माद , अपस्मार तथा आक्षेप में लाभकारी होता है।

#- प्रलाप , पागलपन - तगर से साथ समभाग अश्वगन्धा , पित्तपापड़ा , शंखपुष्पी , देवदारु , कुटकी, ब्राहृी, निर्गुण्डी , नागरमोथा , अम्लतास , छोटी हरड़ , तथा मुनक्का सबको मिलाकर यवकूट करके , क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे सेवन करने से लाभ होता है।

#-स्नायु रोग एवं बॉयैटे - तगर के मूल को कूटकर उसमें 4 भाग जल व बराबर मात्रा में तिल का तैल मिलाकर मंदाग्नि पर पकायें , पकने पर छानकर रखें। इसके प्रयोग से बॉयैटें मिटते है । सभी तरह के स्नायु शूल व नसों की कमज़ोरी मे यह लाभप्रद है।

#- मक्षिका दंश, मक्खी के काटने पर- मक्षिका दंश स्थान पर कालीमिर्च , तगर , सोंठ तथा नागकेशर को पीसकर लेप करना हितकर होता है।


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