Monday 15 March 2021

रामबाण -: 18 :-

रामबाण -: 18 :-


#- व्रण कृमि - त्रिधारा सेहुंड के रस को घाव पर लगाने से घाव के कीड़े मर जाते है।

#- चर्मकील - त्रिधारा सेहुंड के शाखाओं से प्राप्त रस का लेप करने से चर्मकील, व्रण , त्वकरोग संक्रमण का शमन होता है।

#- त्रिधारा सेहुंड की शाखा को पीसकर गुनगुना करके अंगुली मे होने वाले घाव पर लेप करने से ठीक होता है।

#- नवीन नेत्र रोग - दन्ती ( वाइल्ड क्रोटोन Wild croton ) मूल स्वरस में मधु मिलाकर अञ्जन करने से नवीन नेत्र रोग तथा नेत्रशूल का शीघ्र शमन होता है।

#- दंतरोग - दन्तीमूल, सत्यनाशीमूल कासीस , वायविडंग और इन्द्रयव को समभाग मात्रा में लेकर चूर्ण बना ले, इस चूर्ण को दाँतो मे मलने से दन्तकृमि नष्ट होते है। तथा दांतरोगो का शमन होता है।

#- श्वास- कष्ट - 10-15 मिलीग्राम दन्तीपत्र क्वाथ का सेवन करने से श्वास कष्ट , फेफड़ों की सूजन तथा अफारा में लाभ होता है।

#- दूष्योदर का रोगी यदि शूल , पेट फूलना , अफारा तथा क़ब्ज़ से पीड़ित हो तो उसे दन्ती तथा द्रवन्ती के बीज के तैल का सेवन गौ-दधि के पानी , यूष , रस आदि के साथ कराने से लाभ होता है।

#- गुल्मरोग - 5-10 ग्राम दन्ती , द्रवन्ती मूल कल्क को गौ-दधि , गौ-तक्र , मद्य , मण्ड तथा सीधी के साथ सेवन करने से गुल्म तथा उदररोग में लाभ होता है ।

#- उदररोग - सैंधानमक , अजमोदा के साथ दन्ती के तैल का सेवन करने से उदर रोगों मे लाभ होता है। विरेचनार्थ - दन्ती तथा द्रवन्ती के कल्क से लिप्त गन्ने के टुकड़ों को पुटपाक - विधी से पकाकर , स्वरस निकालकर 10-15 मिलीग्राम मात्रा में पीने से सुखपुर्वक विरेचन ( दस्त ) होकर पेट साफ होता है।

#- विरेचनार्थ - गेहूँ का आटा , गुड तथा सैंधानमक में दंतीमूल क्वाथ को मिलाकर ( गूँथ कर ) दन्ती के तैल में तलकर निर्मित पुपूलिका ( पूड़े ) का सेवन करने से उत्तम विरेचन होता है।

#- विसुचिका - दन्ती , चित्रक तथा पिप्पली को समभाग मिलाकर जल के साथ पीसकर , गुनगुने जल के साथ पीने से विसुचिका में शीघ्र लाभ होता है।

#- अर्श - निशोथ , दन्ती , पलाश , चांगेरी , चित्रक के पत्र शाक को गौघृत तथा तैल मे पकाकर , गौ-दधि के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

#- अर्श - 5-10 मिलीग्राम दन्तयारिष्ट का सेवन करने से अग्नि दिप्त होती है , विकृत दोष एवं मल का अनुलोमन होकर ग्रहणी तथा बवासीर रोग में लाभ होता है।

#- पाण्डूरोग - 200 मिलीग्राम दन्ती स्वरस तथा दन्तीफलमज्जा के कल्क से 750 ग्राम गौघृत को स्नेह विधी से सिद्ध कर 5 ग्राम घृत का सेवन करने से यकृत - पॉलीहाउस शोथ तथा पाण्डूरोग का शमन करता है।

#- पाण्डूरोग - 20-25 ग्राम दन्ती चूर्ण में 16 गुना भैस का मूत्र मिलाकर चतुर्थांश शेष रहने तक पकाकर 20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से पाण्डूरोग में लाभ करता है।

#- पाण्डूरोग - पाण्डूरोग ( ख़ून की कमी ) मे सम्यक् स्नेहन के बाद विरेचन के लिए दंतीफल के सुखोष्ण क्वाथ से गम्भारी अथवा द्राक्षा मिला कर पीना चाहिए ।

#- पिलिया , कामला - 5 ग्राम दन्तीचूर्ण को शीतल जल के साथ सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है । तथा 5-10 ग्राम दन्तीमूल कल्क में दोगुना पुराना गुड मिलाकर खाने से कामला में अत्यन्त लाभ होता है।


#- प्रमेह - दन्ती तथा उत्तमारिणी के 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में गुड मधु तथा गौघृत मिलाकर अवलेह बनाकर सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।

#- रज:प्रवर्तनार्थ - समभाग सुराबीज , पिप्पली ' गुड, दन्ती, मदनपाल , कटू-तूम्बी फल के बीज तथा यवक्षार को थूहर के दूध की भावना देकर वर्ती ( बत्तियाँ ) बनाकर योनि मध्य में रखने से रजोवरोध नष्ट होकर पुन: मासिकधर्म की प्रवृति हो जाती है।

#- गर्भस्तम्भनार्थ - दन्तीमूल को चावल के धोवन से पीसकर , चावल के धोवन के साथ सेवन करने से गर्भ का स्तम्भन होता है तथा बलकारक होती है।

#- आमवात शूल - दन्तीबीज तैल को लगाने से आमवात के कारण उत्पन्न वेदना में अत्यन्त लाभ होता है।

#- संधिशूल - दन्ती के प्राप्त अक्षीर ( दूध ) को सन्धियों पर लगाने से संधिशूल का शमन होता है। तथा दन्ती छाल को पीसकर संधियों पर लगाने से संधिशूल का शमन होता है।

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#- ग्रन्थी, अर्बुदरोधी- भेदन :- दन्तीमूल , चित्रकमूल , थूहर तथा अर्क का दूध , गुड , भिलाना की गुठलियाँ तथा कसीस के कल्क को मिलाकर लेप करने से ग्रन्थी का भेदन होता है।

#- फुन्सियां - समभाग दन्ती तथा अरण्ड के बीज कल्क का लेप करने से समस्त दोषों से उत्पन्न फुन्सियों का शमन करता है ।

#- वर्ण - दन्ती को पीसकर घाव पर लगाने से घाव का शोधन होकर घाव जल्दी भरता है , दन्तीबीज तैल दुष्टव्रणशोधक है तथा दन्ती तैल को घाव लगाने से उस घाव मे आयी हूई टिटनेस ( धनुस्तम्भ ) को भी ठीक करता है।

#- पिडका - दन्ती के बीजों के साथ एरण्ड के बीजों को मिलाकर पीसकर पानी के साथ लेप करने से सभी दोषों से उत्पन्न पिडिकाओं का शमन होता है।

#- क्षतजन्य रक्तस्राव - शरीर मे कही पर चोट के कारण यदि रक्तस्राव हो रहा हो तो , दन्ती के पत्तों को पीसकर लगाने से रक्तस्राव का स्तम्भन होता है।

#- त्वचा रोग - दन्ती को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचाविकारों का शमन होता है।

#- शोथ - दन्तीमूल को पीसकर लेप करने से शोथ तथा वेदना का शमन होता है।



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