Friday 5 March 2021

रामबाण :- 6-

रामबाण :- 6-

#- अक्षिव्रण ( आंख मे घाव )- जूफा Hyssop ( हाईसोप ) के पत्रों को पीसकर आँख में लगाने से अक्षिव्रण ( घाव) का रोपण होता है।

#- दन्तशूल - जूफा पत्रों का फाण्ट बनाकर , गरारा करने से दन्तशूल का शमन होता है।

#- कण्ठ प्रदाह - जूफा के पत्तों का क्वाथ बनाकर गरारा करने से कण्ठप्रदाह ( गले की जलन ) में लाभ होता है।

#- कास - छोटी केशर , पिस्ता के फूल , दालचीनी , वसा , सोंठ पुष्करमूल , कुलिऩ्जन तथा जूफा के क्वाथ ( 20-30 ) मिलीग्राम में खदिर सार मिलाकर पीने से कास में शीघ्र लाभ होता है।

#- कास- जूफा के सुक्ष्म कल्क 2-4 ग्राम को शक्कर की चासनी में मिलाकर सेवन करने से कास का शीघ्र शमन करता है।

#- श्वास - जूफा के पुष्पों का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से श्वास कष्ट तथा जीर्ण श्वसनिका शोथ में लाभ होता है।

#- उदरकृमि - पत्र सत् से निर्मित मिष्ठोदक में मधु मिलाकर सेवन करने से उदरकृमियों ( गोलकृमि ) का शमन होता है।

#- उदरशूल - जूफा के पत्तों का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में पीने से उदरशूल का शमन होता है।

#- यकृत प्लीहा विकृति - जूफा का फाण्ट बनाकर 10-30 मिली मात्रा मे पीने से यकृत तथा प्लीहा - विकृति में लाभ होता है।

#- घृष्टव्रण ( घाव) - जूफा पत्रों को पीसकर लेप करने से घृष्टव्रण में लाभ होता है।

#- तंत्रिका विकार -जूफा का फाण्ट बनाकर 15-30 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से तंत्रिका- विकारों का शमन होता है।

#- योषाअपस्मार - जूफा के पत्रों का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम में पीने से योषाअपस्मार में लाभ होता है।

#- मस्तक शूल - ज्वार Broom Corn ( ब्रुम कार्न ) के रस को मस्तक पर लगाने से शिर: शूल का शमन होता है।

#- नेत्ररोग - ज्वार के आटे का अञ्जन करने से नेत्ररोग मे लाभ होता है।

#- पूतिकर्ण , कान से मवाद आना - कान से यदि पूय निकल रहा हो तो ज्वार के रस को गुनगुना करके 1-2 बूँद कान में डालने से अत्यन्त लाभ होता है

#- दाँत रोग - ज्वार के बीजों को जलाकर उनकी राख से मंजन करने से दाँतो का हिलना , मसूड़ों से ख़ून आना , तथा मुखदौर्गन्धय आदि का शमन होता है।

#- श्वास- कास :- ज्वार के भूने हुए बीजों को गुड के साथ खाने से खाँसी , साँस फुलाना , तथा साँस की नली की सूजन आदि रोगों में लाभ होता है।

#- पाचन विकार - ज्वार के बीजों का सेवन करने से क़ब्ज़ , पित्तज विकार तथा अन्य पाचन- सम्बंधी विकारों में लाभ होता है।

#- आमातिसार - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर , रोटी को ठंडा करके गौ-दधि मे डालकर खाने से आमातिसार में लाभ होता है।

#- अर्श - ज्वार के भूने हुए बीज तथा काण्ड स्वरस का सेवन करने से ख़ूनी तथा बादी बवासीर में लाभ होता है।

#- यकृतप्लीहा रोग , पाण्डूरोग - 5 मिलीग्राम ज्वार काण्ड स्वरस का सेवन करने से पाण्डूरोग में लाभ होता है।

#-वृक्कवस्ति रोग - ज्वार का काढ़ा बनाकर 10-20 मिलीग्राम में पीने से वृक्क तंथा वस्तिगत विकारों का शमन होता है।

#- कामला तथा पाण्डूरोग - ज्वार के भूट्टे को अग्नि में भूनकर खाने से पाण्डूरोग तथा कामला मे लाभ होता है।
#- प्रेमह - भूने हुए ज्वार के भूट्टों का सेवन प्रेमह मे पथ्य होता है। ज्वार भूट्टे खाने से लाभ होता है।

#- प्रेमह - 5-10 मिलीग्राम ज्वार काण्ड ( तना ) स्वरस को पीने से प्रेमह में लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - 5-10 मिलीग्राम ज्वार के तने का रस पीने से मूत्रकृच्छ आदि मूतविकारों तथा गुर्दे के रोगों में लाभ होता है।

#- प्रदर रोग - ज्वार के भूने भूट्टे का सेवन करने से प्रदर रोग मे लाभ होता है।

#- संधिवात तथा पक्षाघात - ज्वार के दानों को उबालकर , उनका रस निकालकर उसमें समभाग एरण्ड तैल मिलाकर लेप करने से संधिवात तथा पक्षाघात में लाभ होता है।

#- व्रण , घाव- ज्वार को पीसकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है।

#- त्वचा रोग - ज्वार के हरे पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने से त्वचा विकारों मे अत्यन्त लाभ होता है।

#- कण्डू रोग - ज्वार के तने की गाँठों को पीसकर , उसमें एरण्ड का तैल मिलाकर लगाने से खुजली मिटती है।

#- मुँहासे - ज्वार को पीसकर उसमें थोड़ा सा कत्था मिलाकर चेहरे पर लगाने से मुँहासे दूर होते है।

#- स्थौल्य , मोटापा - ज्वार के आटे से निर्मित पदार्थों का सेवन करने से मोटापा घटता है।

#- दौर्बल्य - व्याधि अथवा अन्य कारणों से उत्पन्न दौर्बल्य में ज्वार से बने पदार्थों का सेवन करने से दुर्बलता का शमन होता है।

#- अन्तर्दाह , जलन - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर रात में रख दें , सुबह उसमें कुछ श्वेत ज़ीरा भूनकर मिला ले तथा गौ- तक्र के साथ खाने से जलन मिटती है।

#- धतूरे का विष - ज्वार के स्वरस मे , शक्कर तथा समान भाग गोदूग्ध मिलाकर 20 मिलीग्राम मात्रा में प्रात:सायं , दोपहर पिलाने से धतूरे का विष शान्त हो जाता है।

#- शिर:शूल - दालचीनी ,यूथिका ( जूही ) आदि द्रव्यों का चूर्ण तथा इनसे पकाये तैल को 1-2 बूँद नाक में डालने से सिरशूल का शमन होता है।

#- नेत्रदाह - जूही के पुष्पों को नेत्रों पर रखने से नेत्रों को शीतलता मिलती है या पुष्पों को पीसकर लूगदी बनाकर आँखों के ऊपर व चारों और लगाने से आँखों की जलन का शमन होता है।

#- कर्णशूल - जूही के पत्तों को तिल के तैल में मिलाकर पकाकर छानकर 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल में लाभ होता है।

#- मुखपाक - जूही के पत्रों को चबाने से मुखपाक में लाभ होता है तथा जूही के पत्तों को पकाकर गरारा करने से मुखपाक में लाभ होता है।

#- मुखपाक - जूही के पत्तों में दारूहल्दी और त्रिफला मिलाकर उनका काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुखपाक में लाभ होता है।

#- दंतशूल - जूही के पुष्प तथा मूल कल्क को शूलयुक्त दाँत पर रगड़ने से शीघ्र वेदना का शमन होता है।

#- अतिसार - जूही के पत्तों के स्वरस से बनाये खडयुष ( 10-20 ) मिलीग्राम में गौघृत , अम्ल तथा लवण मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।

#- मूत्राघात - 5 ग्राम जूही की जड़ को , 100 मिलीग्राम बकरी के दूध में पकाकर , छानकर सेवन करने से मूत्रविकारों में लाभ मिलता है ।

#- जूही मूल तथा कुलथी से निर्मित काढ़ा 10-20 मिलीग्राम का सेवन करने से मूत्रशर्करा तथा मूत्रकृच्छ का शमन होता है।

#- योनि विकार - पीली जूही की जड़ को पीसकर योनि पर लगाने से योनि- विकारों में अत्यन्त लाभ होता है।

#- योनि दाह व दौर्गन्ध्य - जूही के पुष्पों को पीसकर योनि पर लेप करने से योनि की शिथिलता योनिदाह व योनिदौर्गन्धय का शमन होता है।

#- पैर बिवाई - जूही पत्रों को पीसकर लगाने से बिवाई मिटती है ।

#- दाद - जूही की मूल तथा पत्रों को पीसकर लगाने से त्वचागत रोगों , विशेषकर दाद तथा कण्ठरोग में अति लाभ करता है।

#- व्रण, नासूर - पीली जूही की छाल को पीसकर व्रण ( घाव ) या नासूर पर लगाने से शीघ्र ही लाभ होता है।

#- रक्तपित्त - परवल , शलेष्मातक , चौपतिया जूही , वटवृक्ष के अँकुर तथा निर्गुंडी पत्र शाक को गौघृत से संस्कारित कर तथा ऑवला व अनार रस मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।

#- क्षतक्षीण - जूही के पुष्पों को पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से क्षतक्षीण मे लाभ होता है।

#- मक्षिका दंश, मक्खी के काटने पर- मक्षिका दंश स्थान पर कालीमिर्च , तगर , सोंठ तथा नागकेशर को पीसकर लेप करना हितकर होता है।

#-स्नायु रोग एवं बॉयैटे - तगर के मूल को कूटकर उसमें 4 भाग जल व बराबर मात्रा में तिल का तैल मिलाकर मंदाग्नि पर पकायें , पकने पर छानकर रखें। इसके प्रयोग से बॉयैटें मिटते है । सभी तरह के स्नायु शूल व नसों की कमज़ोरी मे यह लाभप्रद है।

#- प्रलाप , पागलपन - तगर से साथ समभाग अश्वगन्धा , पित्तपापड़ा , शंखपुष्पी , देवदारु , कुटकी, ब्राहृी, निर्गुण्डी , नागरमोथा , अम्लतास , छोटी हरड़ , तथा मुनक्का सबको मिलाकर यवकूट करके , क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे सेवन करने से लाभ होता है।

#- अपस्मार - तगर का फाण्ट 15-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से अपस्मार तथा योषाअपस्मार मे लाभ होता है।

#- 500 मिलीग्राम तगर चूर्ण को दिन में दो बार शहद के साथ उन्माद , अपस्मार तथा आक्षेप में लाभकारी होता है।

#- घाव व्रण - पुराने घावों और फोड़ो पर तगर को पीसकर लेप लेप करना चाहिए । इससे घाव जल्दी भर जाता है। तथा घाव दुषित नहीं होता है।

#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।

#- संधिवात - 1 ग्राम तगर चूर्ण में 65 मिलीग्राम यशद भस्म देने से गठिया , पक्षाघात , गले के रोग तथा सन्धिवात इत्यादि रोगों में लाभ होता है ।

#- योनिरोग - तगर , बड़ी कटेरी , सैंधानमक तथा देवदारु का क्वाथ बनाकर , इसमें तिल तैल मिलाकर पाक कर ले , इस तैल में रूई का फाहा भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल का शमन होता है ।

#- मूत्रविकार - 1-2 ग्राम तगर चूर्ण को शर्करा के साथ मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार का शमन होता है।

#- मासिकधर्म सम्बंधी विकार- तगर 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिलीग्राम क्वाथ का सेवन करने से मासिकधर्म का नियममन होता है। यह निद्राकारक है। तथा पुरातन प्रेमह मे लाभकारी है।


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