Saturday 13 March 2021

#- जीवन्ती , मैहत्वपूर्ण रसायन व त्रिदोषहर है।


#- जीवन्ती , रसायन व त्रिदोषहर है।
जीवन्ती Leptadenia ( लैप्टेडेनिया ) , कुल - Asclepiadaceae ( एसक्लीपिएडेसी ) है।
संस्कृत - जीवन्ती, जीवनी, जीवा, जीवनीया, मधुस्रवा , माड्गल्यनामधया , शाकश्रेष्ठा , डोडा; हिन्दी - जीवन्ती , डोडी; कन्नड़ - डोडीसोप्पू , पालातीगाबल्ली ; गुजराती - क्षीरखोडी , नहानीडोडी ; तमिल - पलैक्कोडी ,पलाकुडई , तेलुगु - कालासा , मुक्कूतुम्मुड , मराठी - डोडी , रायदोडी , मलयालम - अतापतियन , अताकोदियन , अंग्रेज़ी - कार्क स्वॉलो वर्ट ( Cork Swallow Wort ) कहते है।


जीवन्ती :- भारत में यह उपहिमालय के क्षेत्रों तथा दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में 900 मी की ऊँचाई तक पायी जाती है। इसके अतिरिक्त गुजरात , उत्तर प्रदेश , पंजाब और दक्षिण भारत में भी प्राप्त होती है। जीवन्ती के शाक को शाकों में श्रेष्ठ शाक माना जाता है। चकसंहिता के जीवनीय दशेमानि एवं मधुरस्कन्ध के अन्तर्गत जीवन्ती का उल्लेख मिलता है। जीवन्ती स्वर्णजीवन्ती एवं ह्रस्व तथा दीर्घजीवन्ती आदि इसके भेद माने गये है । कुछ विद्वान लोग Dendrobium Macrei को तथा Dregia volubilis को जीवन्ती मानते है । पंजाब में जिउन्ती ( Cimicifuga foetida ) को जीवन्ती नाम दिया है , वस्तुत: यह जीवन्ती से भिन्न है । वास्तविक जीवन्ती Leptadenia reticulta ही है।

बाह्य स्वरूप - यह सुन्दर , अक्षीरी फैलने वाली लता है । इसका नया काण्ड , अनेक शाखायुक्त ! श्वेताभ , मृदुरोमश होता है । इसकी छाल दरार- युक्त होती है। इसके पत्र सरल , विपरीत 2.5-5.0 सेमी लम्बे एवं 2-4.5 सेमी चौड़े , अण्डाकार - ह्रदयकार , स्निग्ध , सरलधारयुक्त , अध:पृष्ठ पर नीलाभ श्वेत रजयुक्त होते है । इनका आधार प्राय: गोला या नुकीला होता है । इसके पुष्प हरिताभ - पीत श्वेत वर्ण के होते है । इसकी फलियाँ बेलनाकार , 6.3-7.5 सेंटीमीटर लम्बे, 1.2-1.8 सेंटीमीटर व्यास की , सीधी , चिकनी , नुकीली तथा स्निग्ध होती है । बीज 1.2 सेंटीमीटर लम्बे , संकीर्ण - अण्डाकार होते है । इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से फ़रवरी तक होता है ।


रासायनिक संगठन - जीवन्ती के मूल कन्द में फ्रुकटोसन पाया जाता है। शाखाओं एवं प्रतान में एलीफेटिक ईस्टर , स्टग्मास्टेरॉल , लेप्टाकुलेटिन , एमायरिन , हेन्ट्रएकोन्टैनॉल, सिटोस्टेराल , ल्युटिओलिन, डाईओमेटिन नामक फ्लेवोनॉयड एवं ल्युटीकोलीन पाये जाते है।
इसकी फलभित्ति में क्वर्सेटिन , आईसोक्वर्सेटिन , रूटिन, हायपेरोसाइड पाए जाते है।इसके बीज में मेसोईनोसिटॉल तथा इसके मोनोमेथिल ईथर पाए जाते है । सम्पूर्ण पौधे में स्टग्मास्टेरॉल पाया जाता है।
इसके पत्र में लेप्टाडेन , डायोसमेटिन , फ्लेवोनॉयड तथा सिटोस्टेराल पाया जाता है।

आयुर्वेदीय गुण- कर्म एवं प्रभाव -

#- जीवन्ती मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध , त्रिदोषहर, रसायन, बलकारक , चक्षुष्य , ग्राही , आयुष्य , बृंहण , वीर्यर्धक , कण्ठय, स्वर्य, जीवनीय , धातुवर्धक , सूतबंधनीय ( पारद को बाँधने वाली ) , वृष्य , श्वासहर , स्नेहोपग ( स्नेहन में सहायक ) , वय: स्थापन , तथा स्तन्यकारक होती है।

#- जीवन्ती रक्तपित्त , क्षय, दाह, ज्वर, श्वास तथा कास- नाशक होती है।
#- जीवन्ती के फल मधुर, बृंहण तथा धातुवर्धक होते है ।
#- जीवन्ती का तैल केश्य , कफवर्धक , गुरू, वातपित्तशामक , शीत , मधुर तथा अभिष्यन्दी होता है।
#- जीवन्ती का शाक , समस्त शाकों में श्रेष्ठ है। यह अग्निरोपक , पाचक, बलकारक, वर्ण्य , बृंहण , मधुर,बस्तिशोधक तथा पित्तशामक होता है।
#- जीवन्ती पत्र तथा मूल प्रशीतक , चक्षुष्य , मृदुकारी , बलकारक , परिवर्वर्तक , उत्तेजक , वाजीकर , कफनि: सारक तथा स्तन्यवर्धक होते है । यह चूहों पर स्तन्यजनन क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
#- इसके वायवीय भागो का सार कवकरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
#- जीवन्ती अनाक्सीकारक गुण प्रदर्शित करता है।

औषधिय प्रयोग मात्रा एवं विधी :-

#- नक्तान्ध्य , रतौंधी - जीवन्ती के 5-10 ग्राम पत्तों को गौघृत में पकाकर नित्य सेवन करने से रतौंधी मे लाभ होता है।
#- मुखरोग - समभाग जीवन्ती कल्क तथा गोदूग्ध से विधिवत तैल पाक कर उसमें मधु तथा आठवाँ भाग राल मिलाकर मुख तथा ओष्ठ के घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
#- पार्श्व शूल - जीवन्ती के मूल कल्क में दो गुणा तैल मिलाकर , लेप करने से पसलियों की वेदना का शमन होता है।
#- कास ( खाँसी )- 10-12 ग्राम जीवन्ती आदि द्रव्यों से बने चूर्ण में विषम मात्रा में मधु तथा गौघृत मिलाकर खाने से कास ( खाँसी ) मे लाभ होता है।
#- राजक्ष्मा - 5-10 ग्राम जीवन्त्यादिघृत का सेवन करने से राजक्ष्मा में लाभ होता है ।
#- अतिसार - पुटपाक विधी से निकालते हुए 10 मिलीग्राम जीवन्ती स्वरस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर गौ- तक्र ( छाछ ) पीने से अतिसार में लाभ होता है।
#- अतिसार :- जीवन्ती - शाक को पकाकर गो-दधि ( गाय के दूध से बनी दही ) , अनार तथा गौघृत के साथ मिलाकर खाने से अतिसार मे लाभ आता है।
#- पित्तज शोथ - जीवन्ती को पीसकर पैत्तिक - शोथ पर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है ।
#- योनि- व्यापद( योनिविकार) :- जीवन्ती से सिद्ध गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से योनिव्यापद ( योनिविकारों ) का शमन होता है।
#- संधिशोथ - जीवन्ती की मूल तथा ताज़े पत्रों को पीसकर लगाने से संधिवात तथा शूल का शमन होता है।
#- त्वचा रोग, व्रण, घाव- जीवन्ती कल्क की लूगदी बनाकर तीन दिन तक व्रण पर बाँधने से व्रण भर जाता है।
#- व्रण - जीवन्ती के पत्रों को पीसकर घाव पर लेप करने से घाव जल्दी भर जाता है ।
#- त्वकविकार - जीवन्ती , मंजिष्ठा , दारूहल्दी , तथा कम्पिल्लक के क्वाथ एवं तूतिया ( नीली थोथा ) के कल्क से पकाए गौघृत तथा तैल में सर्जरस तथा मोमदेशी मिलाकर मलहम की तरह प्रयोग करने से बिवाई फटना , चर्मकुष्ठ , एककुष्ठ ,किटिभ कुष्ठ तथा अलसक मे शीघ्र लाभ होता है।
#- ज्वरजन्य दाह - जीवन्ती मूल से बनाये काढ़े ( 10-30 ) मिलीग्राम में गौघृत मिलाकर सेवन करने से बुखार के कारण होने वाली जलन कम होती है।
#- शोथ - जीवन्त्यादि द्रव्यों का यवागू बनाकर , गौघृत तथा तैल से छौंक कर , वृक्षाम्ल के रस से खट्टा कर सेवन करने से अर्श , अतिसार , वातगुल्म , शोथ तथा हृदय रोग का शमन होता है तथा जठराग्नि की वृद्धि होती है।




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