Monday 15 March 2021

रामबाण -: 16 :-

रामबाण -: 16 :-

#- सिरदर्द - 10 ग्राम तेजपात ( इण्डियन बे लीफ Indian bay Leaf ) के पत्तों को जल में पीसकर , कपाल पर लेप करने ठंड या गर्मी से उत्पन्न शिर:शूल का शमन होता है।

#- सिर की जूएँ - तेजपात के 5-6 पत्तों को एक गिलास पानी में इतना उबाले कि पानी आधा रह जायें , इस पानी से रोज़ाना सिर की मालिश करने के बाद नहाए , इससे सिर की जूएें मर जाती है।

#- सर्दी - ज़ुकाम - चाय पत्ति की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी- ज़ुकाम , छींके आना , नाक बहना , जलन , सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।

#- खाँसी - ज़ुकाम - 5 ग्राम तेजपात छाल और 5 ग्राम छोटी पिप्पली को पीसकर , मिलाकर 500 मिलीग्राम चूर्ण को शहद के साथ चटाने से खाँसी - ज़ुकाम मे लाभ होता है।

#- नेत्रविकार - तेजपात को पीसकर आँख मे लगाने से नेत्रविकारों का शमन होता है।

#- दाँतो का मैल - तेजपात के पत्तों को बारीक चूर्ण सुबह- सायं दांतों पर मलने से दाँतो मे चमक आने लगती है। तथा धीरे- धीरे दाँतो का मैल साफ होने लगता है।

#- मसूड़ों से ख़ून आना - तेजपात के पत्तों की डण्ठल को चबाते रहने से मसूड़ों से ख़ून आना बन्द हो जाता है।

#- हकलाहट - तेजपात के पत्तों को नियमित रूप से चूसते रहने से हकलाहट धीरे- धीरे कम होने लगती है।

#- श्वास- दमा :- तेजपात व पीपल को 2-2 ग्राम की मात्रा में अदरक के मुरब्बे की चाशनी में बुरक कर चटाने से श्वास- कास मे लाभ होता है।

#- श्वास- कास :- सूखे तेजपात के पत्तों का चूर्ण एक चम्मच में एक कप गाय के गरम दूध के साथ सुबह- सायं नियमित सेवन करने से श्वास- कास में लाभ होता है।
#- खाँसी - एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से खाँसी में आराम मिलता है।

#- अरूची - तेजपात का रायता सुबह- सायं खाते रहने से अरूचि दूर होती है।

#- अध्मान ( पेट फुलना , अफारा ) - तेजपात के पत्तों का क्वाथ बनाकर पिलाने से पेट का फुलना , अतिसार आदि में लाभ होता है।

#- उबकाई - इसके 2-4 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उबकाई मिटती है।

#- वातज गुल्म - 2-4 ग्राम तेजपात छाल चूर्ण का सेवन करने से वातज गुल्म में लाभ होता है।

#- छर्दि - इलायची, लौंग दालचीनी , तथा तेजपात चूर्ण 1-4 ग्राम में शहद मिलाकर सेवन करने से छर्दि का शमन होता है। अथवा बिल्व , हरड़ , बेहडा, आँवला और पिप्पली , कालीमिर्च सोंठ के चूर्ण 1-4 ग्राम को शहद के साथ चाटने से भी छर्दि का शमन होता है।

#- अतिसार - 1-3 ग्राम तेजपात के पत्तों के चूर्ण में मिश्री तथा शहद मिलाकर सेवन करने से अतिसार तथा उदरशूल का शमन होता है।

#- पीलिया और पथरी - 5-6 पत्ते नियमित रूप से चबाने से रोग की तीव्रता कम हो जाती है।

#- यकृतवृद्धि - समभाग तेजपत्र , लहसुन , कालीमिर्च , लौंग तथा हल्दी के चूर्ण का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से यकृतविकारों में लाभ होता है।

#- सुख- प्रसवार्थ :- तेजपत्र के पत्तों की धूनी को योनि को देंने से बच्चा सुखपुर्वक पैदा होता है।

#- गर्भाशयशुद्धि - 1-3 ग्राम तेजपत्र चूर्ण को प्रात:सायं सेवन करने से गर्भाशय का शोधन होता है तथा तेजपात के क्वाथ में बैठने से भी गर्भाशय पीड़ा शान्त होती है ।

#- गर्भाशयशुद्धि - 40-60 मिलीग्राम तेजपत्रों का काढ़ा प्रसूता को प्रात: सायं पिलाने से दुषित रक्त तथा मल आदि निकल कर गर्भाशय शुद्ध हो जाता है ।

#- संधिवात - तेजपात के पत्तों को पीसकर जोड़ो पर लेप करने से सन्धिवात में लाभ होता है।

#- रक्तस्राव - शरीर के किसी अंग से रक्तस्राव हो रहा हो ऐसे में एक चम्मच तेजपत्र चूर्ण को एक कप पानी के साथ 2-3 बार सेवन करने से लाभ होता है ।

#- शरीरदौर्ग्धय - समभाग तेजपत्र , सुगन्धवाला , अगरू , हरीतकी एवं चंदन को पीसकर शरीर पर लगाने से पसीने से उत्पन्न होने वाली दुर्गन्ध का शमन होता है।

#- मकडी विष - समभाग मंजिष्ठा , नागकेशर , तेजपात तथा हल्दी को पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से मकडी के विष से उत्पन्न प्रभावों का शमन होता है।

#- कर्णशूल - तेजोवती तुम्बरू ( टूथेक ट्री Toothache tree ) हिंगू , तुम्बरू तथा सोंठ के कल्क से सरसों के तैल को पकाकर छानकर 1-2 बूँद तैल को कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।

#- कर्णशूल - सरसों के तैल में तुम्बरू को पकाकर , 1-2 बूँद कान में डालने से कानदर्द का दर्द मिटता है।

#- मुखरोग - पिप्पली , अगरू , दारूहल्दी , तज , यवक्षार , रसोत , पाठा , तुम्बरू तथा हरीतकी का चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण को मधु के साथ मिलाकर कवल धारण करने से मुखरोगों का शमन होता है।

#- मसूड़ों से रक्तस्राव - तुम्बरू , हरीतकी , इलायची आदि के चूर्ण को दाँतो एवं मसूड़ों पर धीरे- धीरे मालिश करने से मसूड़ों में होने वाली व्याधियाँ जैसे रक्तस्राव , खुजली तथा वेदना का शमन करता है।

#- दंतविकार - तुम्बरू के फल एवं बीज चूर्ण को दाँतो पर रगड़ने तथा इसकी शाखा से दातून करने से दंतविकारों का शमन होता है।

# दन्त पीड़ा - तुम्बरू छाल का क्वाथ बनाकर गरारा करने से दाँतो की पीड़ा का शमन होता है।

#- पार्श्वशूल - , पुष्करमूल, हींग, सौवर्चलनमक, विडनमक, सैंधानमक , तुम्बरू तथा हरीतकी से निर्मित 1-2 ग्राम चूर्ण को जौं के क्वाथ के साथ पीने से पार्श्वशूल , हृदयशूल , तथा वस्तिशूल का शमन होता है ।

#- हिक्का रोग - 5 ग्राम तेजोवत्यादिघृत का सेवन करने से हिक्का , वातज अर्श , ग्रहणी , हृदयरोग , पार्श्वशूल आदि में लाभ होता है।

#- अजीर्ण - हरीतकी, तीनों नमक , यवक्षार , हिंगु , पुष्करमूल , तथा तुम्बरू त्वक चूर्ण का सेवन उष्ण जल के साथ करने से अजीर्ण लाभ होता है।

#- आंत्रशोथ - 10-20 मिली तुम्बरू त्वक क्वाथ या फाण्ट का सेवन करने से आँतों की सूजन का शमन होता है।

#- अग्निंमाद्य - 1-2 ग्राम तुम्बरू बीज चूर्ण में मिश्री मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि का दीपन होता है।

#- अतिसार - 1-2 ग्राम छाल चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से अतिसार तथा अग्निंमाद्य मे लाभ होता है।

#- अर्श - तुम्बरू , पाठा , कारवी , विडंग , देवदारु तथा चावल को गौघृत में मिलाकर बवासीर के मस्सों का धूपन करने से अर्श में लाभ होता है।

#- अर्श - गजीपीपल , पंचकोल, तुम्बरू , तथा धनियां , आदि द्रव्यों को पीसकर , उससे पेया , दाल आदि आहार द्रव्य सिद्ध कर अनारदाना आदि अम्ल पदार्थ मिलाकर गौघृत , तैल आदि से संस्कृत कर पीने अथवा उपरोक्त कल्क से गौघृत का पाक करके सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है तथा अर्श मे लाभ होता है।

#- ऊरूस्तम्भ - तुम्बरू कल्क का लेप करने से ऊरूस्तम्भ मे लाभ होता है।

#- गठिया - तुम्बरू छाल का क्वाथ बनाकर 15-30 मिलीग्राम मात्रा में पीने से गठिया रोग में लाभ होता है।तथा तुम्बरू की लकड़ी की छड़ी बनाकर पकड़कर चलने से भी गठिया मे लाभ होता है।

#- त्वकविकार - तुम्बरू कल्क का लेप करने से त्वचारोगों मे लाभ होता है।

#- विसुचिका - तुम्बरू छाल का क्वाथ बनाकर 15-20 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से विसुचिका में लाभ होता है।

#- अपतंत्रक, वातोन्माद, हिस्टीरिया - समभाग तुम्बरू , पुष्करमूल , हींग, अम्लवेतस , हरीतकी तथा तीनों नमक ( विड,सौवर्चल,सैंधव ) के 1-2 ग्राम चूर्ण को जौ क्वाथ के साथ सेवन करने से अपतंत्रक रोग में लाभ होता है।

#- पित्तविकार - 25-30 मिलीग्राम बेल शर्बत में 1-2 ग्राम तुम्बरू बीज चूर्ण मिलाकर पीने से पित्तविकार में लाभ होता है।

#- श्वसनिका - शोथ - तोदरी ( पैपरग्रास pepper grass ) तोदरी के बीजों का फाण्ट बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से श्वसनिका- शोथ में लाभ होता है।

#- अतिसार - पञ्चांग का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से जीर्णअतिसार में लाभ होता है।


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