Sunday, 13 July 2014

गौ- महिमा - ३ .

१३-  गौसंहिता
                          ..............शास्त्रोक्त.............

१.  गवां  दृष्ट्या  नमस्कृत्य  कुर्याच्चैव  प्रदक्षिणम् ।
     प्रदक्षिणी   कृता   तेन    सप्तद्वीपा   वसुन्धरा ।।

अर्थात- गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एंव समस्त सुख देने वाली ।वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गौऔ की प्रदक्षिणा करनी चाहिए ।

२.  गाव: श्रेष्ठा पवित्राश्च पावना जगदात्मा ऋते दधि घृतेनह न यज्ञ: संप्रवतर्ते
     पयसा हविषा दध्ना शक्रता मूत्र चर्मणा अस्थिमिक्ष्यचोप कुर्वन्ति वालै: क्षंगैक्ष्च भारत
     गोभिस्तुल्यम न पश्यामि धनं कििञ्चदाच्युत गावो लक्ष्म्य: सदा मूलं गोषु पाश्मा न विद्यते:

अर्थात- भगवान कृष्ण ने कहा -
  हे अर्जुन !इस संसार में गाय श्रेष्ठ,पवित्र,पावन और उत्तम है ।उसके दूध एंव घी के बिना संसार में कोई यज्ञ सम्पादित नहीं होता है ।हे पार्थ ! गाय का दूध ,दही,घी,मूत्र,चमड़ी, बाल,हड्डियँा हमारा उपकार करती है । हे अच्युत ! इस संसार म े गाय के समान और कोई धन नहीं देखता ,गाय वास्तव में सम्पत्ति का मूल है । गाय के प्रति पापाचार मत करो ।

३.  यदा  देवेषु  वेदेषु  गमोषु  विप्रेषु  साधुषु ।
धर्मे  मयि  च  विद्वेष:  स  वाँ आशु  विनश्यति ।।

अर्थात - कोई भी प्राणी जब देवता,वेद,गाय,ब्राह्मण,साधु,धर्म,एंव मुझ(परमात्मा) से द्वेष करने लगता है ,तब शीघ्र ही उसका विनाश हो जाता है ।यह सर्वकालिक विधान है ।

४.  अष्टैश्वर्यमयी लक्ष्मी गोमय वसते सदा ।
      चत्वार: सागरा: पूर्णास्तस्या एंव पयोधरा: ।।

अर्थात - गाय के गोबर में आठ एश्वर्य से सम्पन्न लक्ष्मी तथा स्तनो में जल से परिपूर्ण चारों समुद्र निवास करते है ।

५.  िस्नग्धं विपाके मधुरं दीपनं बलवर्द्धनम् ।
    वातापहं पवित्रञ्च  दधि, गव्यं रूचीप्रदम् ।।

अथार्त- गाय की दही िस्नग्ध,विपाक में मधुर,अग्निदीपक बलवर्धक,वातनाशक ,पवित्र और रूचीकर होता  है ।

६.  यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदक्षीरं चित् कृणुथा सुप्रतीकम ।
      भद्रं  गृहं   कृणुथ  भद्रवाचो  बृहद्वो  वय ़उच्चते  सभासु ।।

अर्थात - गौओ ! तुम कृश शरीर वाले व्यक्ति को हृष्ट- पुष्ट कर देती हो एंव तेजोहीन को देखने में सुंदर बना देती हो ।इतना ही नहीं ,तुम अपने मंगलमय शब्द से हमारे घरों को मंगलमय बना देती हो । इसी से सभाओं में तुम्हारे ही महान यश का गान होता है ।

७.  शान्ति  कान्ति  बल  बुद्धि  दे, पेयो  में  बहुमूल्य ।
      सचमुच  में  गौदुग्ध   "मृदु"  होता  अमृत  तुल्य ।।

८.  शीतलता,  बल, सौष्ठव  दे   करता   कल्याण  ।
      गोघृत  "मृदु" करता हमें  नूतन शकित प्रदान ।।

९.  पेट  रोग  सब  शान्त  कर,  जाग्रत  करता चक्र ।
     "मृदू" देवों  के  लिए  भी,  दुर्लभ   गोदधि   तक्र ।।

१०.  जीवन  में  आरोग्य  का  सर्व  सुलभ  यह सुत्र ।
      "मृदु" उठ  नित्य  निहार  मुँह  सेवन  कर गोमूत्र ।।
   

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