मूत्ररोग ( पेशाब सम्बन्धी रोग )
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१ - पेशाब का रूक- रूककर आना :-
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गुर्दे की कमज़ोरी के कारण और दाने के साथ पत्ती , रेत अधिक खा जाने से यह रोग हो जाता है । सूखी घास अधिक खाने से और बाद में पानी पीने से भी यह रोग हो जाता है । इस रोग में पशु अधिक बेचैन रहता है । उसकी पेशाब रूक जाती है । वह पेशाब करने की बार - बार चेष्टा करता है । बार- बार उठता है । परन्तु बार - बार यत्न करने पर भी उसे पेशाब नहीं होती । रोगी पशु पाँव चौड़े करता हैं ।
१ - औषधि - अजवायन का तैल ६० ग्राम , मीठा तैल २४ ग्राम , रोगी पशु को तत्काल इन दोनों चीज़ों को मिलाकर , बोतल द्वारा , पिलाना चाहिए । इससे वह गोबर भी करेगा और उसे पेशाब भी अवश्य होगी । अगर एक मात्रा में आराम न हो तो आधे घन्टे बाद दूसरी बार इसी मात्रा में यह दवा पिलानी चाहिए ।
२ - औषधि - मिरचा १२० ग्राम , लहसुन १२० ग्राम , कालीमिर्च ६० ग्राम , ज़ीरा ६० ग्राम , फिटकरी ६० ग्राम , पानी ६ लीटर , सबको बारीक पीसकर पिलायें । पशु को घुमना - फिरना भी चाहिए ।
३ - औषधि - नौसादर ७२ ग्राम , पानी ४०० ग्राम , नौसादर को महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , रोगी पशु को पिलाया जाय । एक बार में आराम न हो , तो दूसरी बार , इसी मात्रा में , आधे घन्टे बाद पिलाया जाय ।
४ - औषधि - काँसे के फूल ३६ ग्राम , पलास के फूल १२० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , काँसे के फूल और पलाश को बारीक पीसकर , पानी में उबालकर , छानकर गुनगुना होने पर रोगी पशु को , चार - चार घन्टे बाद , आराम होने तक , पिलाया जाय ।
५ - औषधि - मोरपंखी के पौधे की पत्ती ६० ग्राम , शक्कर का पानी ५०० ग्राम , शक्कर के पानी में उबालकर , छह- छह घन्टे में यह दवा पिलायी जाय ।
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२ - पेशाब में ख़ून आना -:-
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गर्मी के कारण अचानक चोट लगने से यह रोग हो जाता है । इस रोग में पशु की पेशाब में ख़ून आता है । और पशु सुस्त रहता है । उसकी कमज़ोरी दिनों दिन बढ़ती जाती है । उसे साधारणँ ज्वर भी रहता है । उसे रक्तमिश्रित पेशाब होती है ।
१ - औषधि -:- गेहूँ का मैदा ४८० ग्राम , पानी १४४० ग्राम , एक बर्तन में पानी भरकर तथा उसमें हाथ से थोड़ा मैदा डालकर हिलाते रहना चाहिए । नहीं तो एकदम डालने पर गाँठें पड़ जायेगी और मैदा अच्छी तरह घुल नहीं सकेगा । रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक यह दवा पिलायी जाय।
२ - औषधि - नीम की हरी पत्ती १२० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , पानी २४० ग्राम , नीम की पत्ती को पीसकर तथा पानी मिलाकर , कपड़े द्वारा छानकर , बाद में घी को गुनगुना करके नीम की पत्ती के रस में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।
३ - औषधि - जामुन की अन्तरछाल ३० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , गाय का घी ३६० ग्राम , अन्तरछाल को बारीक कूटकर , पानी में मिलाकर , छान लेना चाहिए । फिर रस को दही के साथ घोटकर , रोगी पशु को दोनों समय , पिलाया जाय । और ध्यान रहे की रोगी पशु को क़ब्ज़ करनेवाली कोई वस्तु न खिलाया जाय ।
आलोक-:-
#- रोगी पशु को शीशम की पत्ती , बरसीम, हरे जौ आदि खिलाये जाय । और रोगी पशु को गाजर , नीम की पत्ती पीसकर पिलायी जाय । सुखी घास नहीं खिलानी चाहिए ।
#- दवा देने के पहले पशु को जुलाब देना आवश्यक है । रोगी पशु को जुलाब के लिए इन वस्तुओं का प्रयोग करे--
# - अरण्डी का तैल ५०० ग्राम , सेंधानमक या साधारण नमक ६० ग्राम , नमक को अरण्डी के तैल में मिलाकर गरम गुनगुना कर पिलाना चाहिए । और इसके बाद २ लीटर ऊपर अरण्डी का तैल और नमक का जुलाब बताया गया है उसे देने के आधे घन्टे बाद गोमूत्र देना चाहिए । गोमूत्र न मिले तो बकरी का मूत्र भी लिया जा सकता है । गाभिन पशु का मूत्र अधिक लाभदायक होता है ।
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