१८ - गौ - चिकित्सा .चौकाघाव ।
।। आर ( चौक्का )पिरानी ( पैणी ( छड़ी )मे चोंचदार कील द्वारा बैल व भैंसा की गुदाद्वार में ज़ख़्म होना।।
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कभी-कभी किसान बैल व भैंसें को पैंणी में कील लगाकर ,वज़न खींचने के लिए या तेज़ दौड़ाने के लिए इसका उपयोग करता है । या पशु के मलद्वार में डंडा , लकड़ी चलाने से उसको घाव हो जाते है और ख़ून चालू हो जाता है।
१ - औषधि - पानी ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही २००० ग्राम , मसूर की दाल जली हुई ३६० ग्राम , पहले मसूर की दाल को तवे पर पूरी तरह भून लें । फिर उसे महीन पीसकर , चलनी से छानकर , दही में मिलाकर ख़ूब मथकर उसमें पानी मिला कर रोगी पशु को अच्छे होने तक , दिन में तीन बार पिलायें ।
२ - औषधि - गँवारपाठा ( घृतकुमारी ) गूद्दा ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , पानी २४० ग्राम ( २ लीटर) पहले गँवारपाठा के गूद्दे को दही में मथकर पानी मिला लें ।और रोगी पशु को अच्छे होने तक दिन में तीन बार पिलाते रहें ।
३ - औषधि - बेल फल का गूद्दा ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , बेल के गूद्दा को पानी में मथे । फिर उसे छानकर दही में मथकर रोगी पशु को ,अच्छे होने तक दिन में तीन बार पिलायें ।
४ - औषधि - मेंथी के बीज ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , पानी २००० ग्राम , में गलाये । फिर दही में उसे मथकर रोगी पशु , अच्छा होने तक ,दिन में दो बार पिलायें ।
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