३- गौसंहिता-पञ्चगव्य
पञ्चगव्य चिकित्सा
१. सिरदर्द में गा़़़य के एक गिलास दूध में एक इलायची पकाकर पीने से लाभ होता है ।तथा गौदूग्ध और चूने का पानी सेवन करने से मूत्रकृच्छ (Dysurea) में आराम होता है ।
२. स्त्रियों के स्तन में दूध बढ़ाने के लिए सतावरचूर्ण एक चम्मच खाकर ,एक गिलास गर्मगौदूग्ध मे मिश्री दो चम्मच मिलाकर पीते रहने से महिलाओं में दूग्ध वृद्धि होती है ।
३. हृदयरेग में अर्जुनछालचूर्ण एक चम्मच खाकर,एक गिलास गर्म गौदूग्ध में गौघृत एक चम्मच तथा स्वादानुसार गुड़ मिलाकर खाते रहने से लाभ होता है ।
४. Abortion-बार-बार गर्भच्युित होना में महिलाओं को अश्वगन्धाचूर्ण ,एक चम्मच गर्म व मीठे गौदूग्ध के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है ।
५. महिलाओं में रक्तप्रदर (योनि से अत्यधिक रक्त गिरना) में एक चिकनी सूपारी को पानी के साथ पिसकर ,एक चम्मच गौघृत में मिलाकर एक गिलास शक्करमिश्रीत गौदूग्ध के साथ लाभ होने तक सेवन करना चाहिए ।
६. महिलाओं के बन्ध्यारोग (बांझपन) में अश्वगन्धा क्वाथ चार चम्मच ,गौघृत एक चम्मच मिलाकर शक्कर मिश्रीत गर्मगौदूग्ध के साथ आराम आने तक सेवन करना चाहिए ।
७. कर्णशूल (कानदर्द ) में आम के दो पत्ते व सेहुड़ के दो पत्ते लेकर उन पर गाय के घी का लेप कर आग पर सेंककर उसका रस निचोड़ कर कान में डालने से लाभ होता है ।
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८. सभी प्रकार के वायुदोषों में पाँच ग्राम हरडे़चूर्ण ,एक चम्मच गौघृत को मिलाकर ,गौदूग्ध के साथ पीने से कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगता है ।
९. शिरोत्पात ( Ciliary Congestion ) रोग में एक चम्मच गौघृत व तीन चम्मच शहद मिलाकर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर होता है ।
१०. नेत्रपुष्प (शुक्लफूला ) रोग में गौघृत में पुनर्नवा की जड़ को घिसकर आँखों में अंजन करने से रोग नष्ट होता है ।
११. कर्णशूल ( Otalgia ) में मदार (काला अर्क ) के पीले पत्तों पर गौघृत लगाकर उन्हे आग में तपाकर हाथों से रस निकाल लें दो-दो बूंद कान में डालते रहने से रोग ठीक होता है ।
१२. व्रणकाय( Insects Bugs ) (घाव) में हींग व नीम की छाल समान मात्रा में मिलाकर, पीसकर उसमें थोड़ा गौघृत मिलाकर लेप करने से नष्ट हाेता है ।
१३. नकसीर( Epistaxis )में ४-५ आॅवलो को ,दो चम्मच गौघृत भूनकर काॅजी में पीसकर सिर पर लेप करने से नासारक्त बंद होता है ।
१४. बादी बवासीर रोग मे थोडे से कूचला को गौघृत में घिसकर मस्सों पर लगाने से दर्द में तुरन्त लाभ होता है ।
१५. शीतपित्त में ५ ग्राम नीमपत्र,एक चम्मच गाय के घी में भूनकर दो आॅवले मिलाकर खाने से कुछ ही दिनों में शीतपित्त ,फोडे,घाव,रक्तविकार में लाभ होता है ।
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