Friday, 25 July 2014

२४ - गौ - चिकित्सा .खुजली ।

२४ - गौ - चिकित्सा .खुजली ।

######################## खुजली #########################

अक्सर देखने में आता है कि इस रोग में पशु के गले के बाल उड़ जाते है । गला छिदा- छिदा हो जाता है ।पशु किसी वृक्ष अथवा दीवार से गला रगड़ता हुआ नज़र आता है । यह रोग एक प्रकार के बारीक जन्तुओं से होता है और समय पाकर पुरे शरीर में फैल जाता है ।

१ - औषधि - मैनसिल ६० ग्राम , गन्धक १२० ग्राम , भिलावा २० नग, गाय का घी ४८० ग्राम , पहले इन सब चीज़ों को अलग - अलग पत्थर पर पीस लें । एक चीज को पीसने के बाद हाथ धोकर , फिर दूसरी चीज दूसरे पत्थर पर पीसें । फिर हाथ धोकर तीसरा,तीसरे पत्थर पर पीसें । इस प्रकार सबको अलग - अलग पीसना चाहिए । ऐसा न करने पर आग लग जाती है । भिलावें को भी अधकचरा कूट लेना चाहिए । बाद में इन्हें घी में पकना चाहिए । इसके लिए गाँव या शहर के बाहर कोई एकान्त स्थान चुनना चाहिए । इसका धुँआँ ज़हरीला होता है , इसलिए धुएँ से ख़ुद बचना चाहिए । पकाने के लिए गोबर के कण्डो का उपयोग करना चाहिए ।

मरहम बनाने की विधी -:- पहले लगभग १ किलोवाला मिट्टी का नया बर्तन लेकर उसमें घी डाल देना चाहिए । फिर गरम होने के बाद उसमें पहले मैनसिल , फिर गन्धक क्रमश: डालना चाहिए । अन्त में भिलावा डाल देना चाहिए । ध्यान रहे पकाते समय धुँआ शरीर को न लगने पाये । दवा हिलाने के लिए लकड़ी का एक लम्बा डंडा और बर्तन पकड़ने के लिए एक लम्बी सडासी का उपयोग करना चाहिए । मरहम बनाते समय बर्तन में जब हरे रंग का धुँआँ निकलने लगे तो उसे उठाकर पास में पानी भरें ( लगभग २० लीटरपानी का भोगना होना चाहिए ) भगोने में उँड़ेल देना चाहिए । जब मरहम ठन्डा हो जाय तो उसे हथेली से उठाकर, किसी बोतल में भर लिया जाय । रोगी पशु को दिन में दोपहर के समय धूप में इस मरहम की मालिश की जाय । पशु को मरहम चाटने नहीं देना चाहिए । अगर वह चाटने की कोशिश करें तो उसका मुँह बाँध देना चाहिए । उक्त मरहम का मनुष्य और कुत्ते पर भी प्रयोग किया जा सकता है ।
मनुष्य पर प्रयोग करने के बाद उस व्यक्ति को एक घंटे बाद गोबर से फिर साबुन से नहलाया जाय ।
आलोक -:- इस दवा को बनाने में अगर किसी व्यक्ति को असावधानी के कारण हानि पहुँचे तो उसका लेखक जवाबदार नहीं है ।इसे बनाते समय बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए ।

२ - औषधि - शु्द्ध गन्धक २४ ग्राम , गाय का दूध ९६० ग्राम , गाय का घी ६० ग्राम , पहले गन्धक को महीन पीसकर घी में पका लें । बाद में उसके दूध मिलायें । फिर रोगी पशु को रोज़ सुबह आठ दिन तक इसे पिलायें । जिस पशु को यह रोग हो जाये , उसे अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए ।

३ - औषधि - गाय का गरम गोबर या तुरन्त का गरम मूत्र में से कोई एक खुजली पर लगाये तो मनुष्य , पशु और कुत्ते , बकरी की बिमारी भी ठीक हो जायेगी ।


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