Monday, 7 July 2014

गौ - दधि ( दही )

१४-   गौसंहिता

                                  गौदधि
                              ..................

१.   सुप्रसिद्ध ग्रंथ भावप्रकाश  में गाय के दूध से बनी को श्रर्वश्रेष्ठ विशिष्ट गुणोवाली ,रूची तथा भूख बढ़ाने वाली,पुष्टिकारकतथा वायुनाशक कहा गया है ।

२. गौदधि को अनेक नाम से पुकारा जाता है क्षीरज,दधि,पयस्य,तक्रजन्म,नवनीतोद्भव,मांगल्य ।मीठी दहि कफनाशक एंव पित्तनाशक ,मेद,वायुदोष दूर कर ,खून को साफ़ करता है ।और यह   मूत्रल,सारक,दहक और कष्ट दूर करता है ।

३.  खट्टा दहि ,वातनाशक,पित्तकारक यह दस्त या अतिसार,प्लीहारोग तथा आतो के रोगों में विशेष लाभदायक है ।तथा अत्यन्त खट्टा दही -दीपन करने वाला,शरीर के रोगटें खडे करने वाला ,रक्तपितकारकऔर दाँत कौ खट्टे करने वाला होता है ।

४.  कसाय दही का महत्व - दही उष्ण अग्नि के प्रदीप्त करने वाली स्िनग्ध तथा कुछ कषाय होती है ।यह मूत्रल,विषमज्वर,अतिसार ,अरूचि में इसका प्रयोग किया जाता है ।यह बल और शुक्र को बढ़ाता है ।दही हृदय के लिए हानिकारक कोलेस्ट्राल को नियन्त्रित करती है तथा कैंसर चिकित्सा में उपयोगी है ।
   
५.  गरम किए गये दूध का का दही,लघु ,विष्टंभकारक वातल,और आंशिक शीतप्रद होता है ।गरम करके मलाई निकाले गये दूध का दही -ठण्डा ,लघु,विष्टंभकारक और आंशिक पित्तप्रद है ।चीनी मिश्रित दही खाने से पित और रक्तदोष का नाश करता है ।

६.   कालेरा से मुक्ति-गाय का दही या छाछ समान हिस्सों में लेकर अन्दर पानी डालकर पिलाएं इससे कालेरा से रक्षण प्राप्त होगा ।दही का अरूचि में इसका प्रयोग किया जाता है,यह बलऔर शुक्र को बढ़ाता है ।दही हृदय के लिए हानिकारक व कोलेस्ट्राल को नियन्त्रण करती है ।

७.  दही का प्रयोग अनिद्रा,संग्रहणीरोग में तथा दधिसर का प्रयोग अर्श (piles) में होता है शुक्रदौर्बल्य में तथा अम्लदधि का प्रयोग रजोधर्म में होता है ।वैज्ञानिकनुसार दही में लाभकारी विलक्षण गुण होते है ।गौदधि में सुक्ष्म जीवाणु आँतो में विषाणुओ की उत्पत्ति को रोकते है ।

८.  रात्रि में दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।दही को गरम करके नहीं खाना चाहिए,रक्तपित ,कफविकार तथा शोथ में दही का प्रयोग न करे,दही केअनियमित तथा अतिसेवन से ज्वर,कुष्ठ,पाण्डुरोग होते है ,

९.  गौदधि ,शुंठीचूर्ण,में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भांग का विष दूर होता है ,तथा सा-धारण कब्ज १५ ग्राम ईसबगोल का चूर्ण ,१००ग्राम दही में मिलाकर सुबह -शाम सेवन करे ।तथा मधुमयरोगी ५ग्राम भूनीमेथी चूर्ण ५० ग्राम ,गाय के दही में मिलाकर भोजन से पूर्व सेवन करे और बवासीर में जिमीकन्द के मुुद्दे को दही के साथ सेवन करे ।

१०. गर्भधारण हेतू- जब महिला गर्भधारण करे उसीदिन से चाँदी की कटोरी में दही जमाकर खिलाने से नौ महा बाद सुन्दर,दैविक गुणों से युक्त सन्तान पैदा होती है ।इससे प्रसव सामान्य होता है और विक्लांग सन्तान की संभावना नहीं रहती है ।

No comments:

Post a Comment