२३ - गौ - चिकित्सा .कान पकना ।
####################### कान का पकना ########################
कान पर मारने या अन्य प्रकार से चोट लगने पर या स्वयं अपने आप कान पक जाते है । कभी- कभी खरोंच पड़ने से भी कान पक जाता हैं ।
१ - औषधि - नीम की पत्ती ४०० ग्राम , साफ़ पानी २८२० ग्राम नीम की पत्ती को भाँग की तरह बारीक पीसकर पानी के साथ उबालना चाहिए । जब आधा पानी रह जाय तो गुनगुना होने पर पिचकारी से कान धोना चाहिए । एनिमा से भी धो सकते हैं । उबालें हुए पानी को प्रयोग में लाने से पहले छान लेना चाहिए । कान धोने के बाद रूई से घाव सुखा देना चाहिए । अगर कान में पानी रह जाय तो मुँह तथा गर्दन टेढ़ी करके पानी को निकाल देना चाहिए ।
२ - औषधि - नारियल का तैल ६ ग्राम , बेकल ( ब्रह्मपादप ) की हरी पत्तियाँ ६ ग्राम , बेकल की हरी पत्तियों को तवें पर भूनकर जला देंना चाहिए और बारीक पीसछानकर , इसके बाद बीमार पशु के कान में डाल देना चाहिए । दवा डालने के बाद रूई की डाट लगा देनी चाहिए ।
आलोक-:- नारियल का तैल डालकर फिर कान में ख़ूब ठूँसकर भर समय सुबह ,रोज़ाना ,अच्छा होने तक लगायें ।
३ - औषधि - ब्रह्म डंडी,कमर( ट्रकोलैप्सस ग्लेबेटीमा ) की पत्ती का रस निकालकर कान में १०-१५ बूँद डालकर रूई लगा दें। और ठीक होने तक रोज़ लगायें।
४ - औषधि - गर्भिणी गाय का गोमूत्र १२० ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , ताज़ा गोमूत्र ठीक रहता है यदि बाँसी हो तो उसे गरम कर लें और नीला थोथा मिलाकर ( मिलाने पर झाग उठता है,उससे डरना नही चाहिए ) पिचकारी से या एनिमा से धोना चाहिए । इसमें गोमूत्र के अलावा बकरी का मूत्र भी चलता है । गर्भिणी गाय के गोमूत्र में नीला थोथा डालते ही गैस तैयार होगी । उससे डरना नहीं चाहिए । उससे डरना नहीं चाहिए ।
५ -( औषधि - कण्डैल या बधरेंडी ) रतनजोत का दूध कान में १० - १५ बूँद डालकर रूई लगा देनी चाहिए । इससे आराम होगा ।
आलोक-:- उपर्युक्त इलाज नीम के गरम पानी से धोकर किये जाने चाहिए ।
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