१५- गौसंहिता -पञ्चगव्य
..............पञ्चगव्य - चिकित्सा............
१ - छाया शुष्क अनार के पत्तों को बारीक पीसकर ६ ग्राम प्रात: काल गाय के दूध से बनी छाछ के साथ या ताज़े पानी के साथ प्रयोग करें ,इससे पेट के सब कीड़े दूर हो जाते है ।
२ - पाण्डुरोग - छाया शुष्क अनार पत्र का महीन चूर्ण ६ ग्राम को प्रात: गाय के दूध से बनी छाछ तथा उसी छाछ के पनीर के साथ सेवन करें ।
३ - अनार के ८-१० पत्रों को पीस टीकिया बना गरम घी में भूनकर बाँधने से अर्श के मस्सों मे लाभ होता है ।
४ - मन्दाग्नि - सारिवा मूल का चूर्ण ३ ग्राम की मात्रा मे प्रात: एवं सायं दूध के साथ सेवन करने से पाचन क्रिया बढ़ती है ।जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा रक्त पित्त दोष का नाश होता है ।
५ - गर्भपात - सारिवा मूल का फांट तैयार कर उसमें गाय का दूध और मिश्री मिलाकर सेवन कराने से गर्भवती स्त्री को गर्भपात का भय नहीं रहता । गर्भ धारण से पहले ही यह फांट पिलाना आरम्भ कर दें ।गर्भ धारण हो जाने के बाद से प्रसवकाल तक देने से बच्चा नीरोग और गौरवर्ण का उत्पन्न होता है ।
६ - मूत्रविकार- इसकी छोटी जड़ को केले के पत्ते में लपेटकर आग की भूमि में रख दें ।जब पत्ता जल जायें तो जड़ को निकाल कर भूनें हुए ज़ख़ीरे और शक्कर के साथ पीसकर ,गाय का घी मिलाकर सुबह - शाम लेने से मूत्र और वीर्य संबंधी विकार दूर होते है । मूत्रेन्द्रिय पर इसकी जड़ का लेप करने से मूत्रेन्द्रिय की जलन और दाह मिटती है ।
७ - अश्मरी- अश्मरी एवं मूत्रकृच्छ में सारिवा मूल का ५ ग्राम चूर्ण गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है ।
८ - दाह- अन्नतमूल चूर्ण को गाय के घी में भूनकर ५०० मिलीग्राम से १ ग्रामतक चूर्ण ,५ ग्राम शक्कर के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से चेचक, टायफाइड आदि के बाद की शरीरस्थगमर्मी दूर हो जाती है ।
९ - मूर्छा - १००-२०० ग्राम मुनक्का को गाय के घी में भूनकर थोड़ा सेंधानमक मिला ,नित्य ५-१० ग्राम तक खाने से चक्कर आना बन्द हो जाता है ।
१० - उर:क्षत - मुनक्का और धान की खीले १०-१० ग्राम को १००ग्राम जल में भिगो देवें । २ घंटा बाद मसल छानकर उसमें मिश्री ,शहद ,और गाय का घी ६-६ ग्राम मिलाकर उगली से बार बार चटायें उर: क्षत में परम लाभ होता है ।तथा वमन की यह दिव्य औषधि है ।
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