१८- गौसंहिता
़़़़गौघृत के अन्य उपयोग ़़़़़़
१. गौघृत का भारतवर्ष के लोग प्राचीनकाल से ही उपयोग करते आए है ।घृत के सेवन के द्वारा शक्ति ,आोज़ और दीर्घ आयु की प्राप्ति करते थे हिन्दू धर्म में यज्ञ का महत्वपुर्ण स्थान है ।इस यज्ञ में घी का प्रयोग ही श्रेष्ठ माना जाता है ।तात्पर्य यह है कि घी का सम्बन्ध हमारे दैनिक जीवन से है औषधि विज्ञान से है और हमारे आर्थिक ,धार्मिक एंव सांस्कृतिक विश्वासों से जूड़ा हुआ है ।गौघृत का सेवन लाभकारी व कल्याणकारी है ।
२. गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से अत्यन्त महत्वपुर्ण। गैस निकलती है ।जैसे- इथीलीन आक्साइड,प्रोपलीन आक्साइड ,फार्मलडीहाईड इत्यादि बनती है । इथीलीन आक्साइड गैस ,जीवाणु रोधक होती है । वैज्ञानिक प्रोपलीन आक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षा का आधार मानते है ।इस गैस का आॅपरेशन थियेटर को शुद्ध करने में किया जाता है ।
३. घृतवै दैवामन्नम्" गौघृत देवताओं का भोजन तथा प्राणियों में जीवनीयशक्ति का संचार करने वाला है ।तथा श्रेष्ठ गुणों को देने वाला है ।
४. घृतस्य स्तोकं सकृद आश्नाम् -- ऋग्वेद १०/८५/१३ घृतस्य स्तोकं सकृद
आश्नाम् (शतपथ ११/५/२० दोनों जगह यह कथन ऋषिका उर्वशी का है ।
इसलिए देव यज्ञ में शुद्ध गौघृत का विधान है ,देवता इसी से प्रसन्न होते है ।
५. गीता में घी में पके स्िनग्ध आहार को तमोगुण हरने वाला व सात्विक गुणोंवाला कहा गया है । गीता (१७ / ८ ) घृतं प्राश्य विशुद्धयति ( मनु - ५ / १०३ ) गौघृत विष का भी नाश करता है । सर्पदंश वालों के विष को दूर करने के लिए गाय का घी पिलाने का विधान है ।
५. हिन्दूधर्म में छोटे बच्चों को जातक संस्कार के समय सोने की शलाका से मधु व गौघृत चटाया जाता है ।इससे बालक का स्वर मधुर व मेधा का विषेश विकास होता है ।
६. आयुर्वेद व रसोईशास्त्र ( पाकशास्त्र ) की दृष्टि से भी अन्नदोष को दूर करने के लिए भोजनसामग्री में गौघृत व अजवायन डालने का विधान है । जिससे भोजन बासी होने पर भी शुद्ध रहता है और भोजन सड़ता नहीं है क्योंकि अजवायन फफूदीनाशक व जठराग्नि को तेज करने वाली होती है ।
७. आयुर्वैघृतम् ( तैति . सं . २/ ३ / २ / २ ) गाय के घी का दीपक जलाना लाभप्रद है इसके निकट बैठकर की गयी उपासना विषेश फलवती होती है । इससे कई दूषित कीटाणु नष्ट हते हो जाते है ।
८. हिन्दुधर्मानुसार मृत व्यक्ति के शरीर पर गौघृत का लेप करने से उसकी देह से निकलने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते है ।
९- जिस घर में घी का दीपक नहीं जलता उस घर में भूत- प्रेत का निवास माना जाता है ।मनु के अनुसार शुद्ध भोजन में ही घी लेना चाहीए ।जूठा भोजन किसी को भी नहीं देना चाहिए ।
१०- नवनीत :- गाय का मक्खन हितकारी वीर्य वर्द्धक वर्णकारक ,बलकारक,अग्नि प्रदीपक तथा वात ,पित्त ,रूधीर विकार ,लकवा ,खाँसी को दूर करता है ।गाय का नवनीत अत्यन्त बलप्रद और पुष्टिदायक है ।भगवान कृष्ण को नवनीत सर्वाधिक प्रिय था ।
़़़़गौघृत के अन्य उपयोग ़़़़़़
१. गौघृत का भारतवर्ष के लोग प्राचीनकाल से ही उपयोग करते आए है ।घृत के सेवन के द्वारा शक्ति ,आोज़ और दीर्घ आयु की प्राप्ति करते थे हिन्दू धर्म में यज्ञ का महत्वपुर्ण स्थान है ।इस यज्ञ में घी का प्रयोग ही श्रेष्ठ माना जाता है ।तात्पर्य यह है कि घी का सम्बन्ध हमारे दैनिक जीवन से है औषधि विज्ञान से है और हमारे आर्थिक ,धार्मिक एंव सांस्कृतिक विश्वासों से जूड़ा हुआ है ।गौघृत का सेवन लाभकारी व कल्याणकारी है ।
२. गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से अत्यन्त महत्वपुर्ण। गैस निकलती है ।जैसे- इथीलीन आक्साइड,प्रोपलीन आक्साइड ,फार्मलडीहाईड इत्यादि बनती है । इथीलीन आक्साइड गैस ,जीवाणु रोधक होती है । वैज्ञानिक प्रोपलीन आक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षा का आधार मानते है ।इस गैस का आॅपरेशन थियेटर को शुद्ध करने में किया जाता है ।
३. घृतवै दैवामन्नम्" गौघृत देवताओं का भोजन तथा प्राणियों में जीवनीयशक्ति का संचार करने वाला है ।तथा श्रेष्ठ गुणों को देने वाला है ।
४. घृतस्य स्तोकं सकृद आश्नाम् -- ऋग्वेद १०/८५/१३ घृतस्य स्तोकं सकृद
आश्नाम् (शतपथ ११/५/२० दोनों जगह यह कथन ऋषिका उर्वशी का है ।
इसलिए देव यज्ञ में शुद्ध गौघृत का विधान है ,देवता इसी से प्रसन्न होते है ।
५. गीता में घी में पके स्िनग्ध आहार को तमोगुण हरने वाला व सात्विक गुणोंवाला कहा गया है । गीता (१७ / ८ ) घृतं प्राश्य विशुद्धयति ( मनु - ५ / १०३ ) गौघृत विष का भी नाश करता है । सर्पदंश वालों के विष को दूर करने के लिए गाय का घी पिलाने का विधान है ।
५. हिन्दूधर्म में छोटे बच्चों को जातक संस्कार के समय सोने की शलाका से मधु व गौघृत चटाया जाता है ।इससे बालक का स्वर मधुर व मेधा का विषेश विकास होता है ।
६. आयुर्वेद व रसोईशास्त्र ( पाकशास्त्र ) की दृष्टि से भी अन्नदोष को दूर करने के लिए भोजनसामग्री में गौघृत व अजवायन डालने का विधान है । जिससे भोजन बासी होने पर भी शुद्ध रहता है और भोजन सड़ता नहीं है क्योंकि अजवायन फफूदीनाशक व जठराग्नि को तेज करने वाली होती है ।
७. आयुर्वैघृतम् ( तैति . सं . २/ ३ / २ / २ ) गाय के घी का दीपक जलाना लाभप्रद है इसके निकट बैठकर की गयी उपासना विषेश फलवती होती है । इससे कई दूषित कीटाणु नष्ट हते हो जाते है ।
८. हिन्दुधर्मानुसार मृत व्यक्ति के शरीर पर गौघृत का लेप करने से उसकी देह से निकलने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते है ।
९- जिस घर में घी का दीपक नहीं जलता उस घर में भूत- प्रेत का निवास माना जाता है ।मनु के अनुसार शुद्ध भोजन में ही घी लेना चाहीए ।जूठा भोजन किसी को भी नहीं देना चाहिए ।
१०- नवनीत :- गाय का मक्खन हितकारी वीर्य वर्द्धक वर्णकारक ,बलकारक,अग्नि प्रदीपक तथा वात ,पित्त ,रूधीर विकार ,लकवा ,खाँसी को दूर करता है ।गाय का नवनीत अत्यन्त बलप्रद और पुष्टिदायक है ।भगवान कृष्ण को नवनीत सर्वाधिक प्रिय था ।
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