१-गौ-संहिता
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१.उपनिषद्, महाभारत,चरकसंहिता,अष्टंागहृदय,भावप्रकाश,निघंटु,आर्यभिषेक,आिद ग्रंथों में तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गाई गई है ।
२.गाय तो भगवान की भगवान है, भूलोक पर गाय सर्वश्रेष्ठ प्राणी है ।
३.दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है ।दूध जो मृत्युलोक का अमृत है ।सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है,और माँ का दूध कम पड़ा तो वहाँ से गाय का दूध बच्चों के लिए अमृत सिद्ध हुआ है ।
४.गौदु््ग्ध मृत्युलोक का अमृत है मनुष्यों के लिए । शक्तिवर्धक,रोगप्रतिरोधक,रोगनाशक तथा गौदुग्ध जैसा दिव्य पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है ।
५.गौदुग्ध अत्यन्त स्वादिष्ट स्िनग्ध,कोमल,मधुर,शीतल,रूचीकर,बुद्धिवर्धक,बलवर्धक,स्मृति वर्धक ,जीवनीय,रक्तवर्धक,तत्काल वीर्यवर्धक ,बाजीकरण,्स्थिरता प्रदान करने वाला,ओजप्रदान करने वाला ,देहकान्ति बढ़ाने वाला सर्वरोगनाशक ,अमृत के समान है ।
६.आधुनिक मतानुसार गौदुग्ध में विटामिन "ए" पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं विटामिन "ए" रोग -प्रतिरोधक है जो आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है ।
७.गौदुग्ध शीतल होने से ऋतुओ के कारण शरीर में बढ़ने वाली गर्मी नियन्त्रण में रहती है वरन् हगंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है ।
८.गौदुग्ध जीर्णज्वर मानसिकरोग,शोथरोग,मुर्छारोग,भ्रमरोग,संग्रहणीरोग,पाण्डूरोग,जलन,तृषारोग,हृदयरोग शूलरोग,उदावर्तगुल्म ,रक्तपित,योनिरोग,और गर्भस्राव में हमेशा उपयोगी है ।
९.गौदुग्ध वात पित्तनाशक है,दमा,कफ,स्वास,खाँसी प्यास,भूख मिटाने वाला है ।गोलारोग,उन्माद,उदररोगनाशक है ।
१०.गौदुग्ध मू््त्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्यरोग के लिए लाभकारी है ।गौदुग्ध जीवनोउपयोगी पदार्थ अतन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है ।
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१.उपनिषद्, महाभारत,चरकसंहिता,अष्टंागहृदय,भावप्रकाश,निघंटु,आर्यभिषेक,आिद ग्रंथों में तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गाई गई है ।
२.गाय तो भगवान की भगवान है, भूलोक पर गाय सर्वश्रेष्ठ प्राणी है ।
३.दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है ।दूध जो मृत्युलोक का अमृत है ।सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है,और माँ का दूध कम पड़ा तो वहाँ से गाय का दूध बच्चों के लिए अमृत सिद्ध हुआ है ।
४.गौदु््ग्ध मृत्युलोक का अमृत है मनुष्यों के लिए । शक्तिवर्धक,रोगप्रतिरोधक,रोगनाशक तथा गौदुग्ध जैसा दिव्य पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है ।
५.गौदुग्ध अत्यन्त स्वादिष्ट स्िनग्ध,कोमल,मधुर,शीतल,रूचीकर,बुद्धिवर्धक,बलवर्धक,स्मृति वर्धक ,जीवनीय,रक्तवर्धक,तत्काल वीर्यवर्धक ,बाजीकरण,्स्थिरता प्रदान करने वाला,ओजप्रदान करने वाला ,देहकान्ति बढ़ाने वाला सर्वरोगनाशक ,अमृत के समान है ।
६.आधुनिक मतानुसार गौदुग्ध में विटामिन "ए" पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं विटामिन "ए" रोग -प्रतिरोधक है जो आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है ।
७.गौदुग्ध शीतल होने से ऋतुओ के कारण शरीर में बढ़ने वाली गर्मी नियन्त्रण में रहती है वरन् हगंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है ।
८.गौदुग्ध जीर्णज्वर मानसिकरोग,शोथरोग,मुर्छारोग,भ्रमरोग,संग्रहणीरोग,पाण्डूरोग,जलन,तृषारोग,हृदयरोग शूलरोग,उदावर्तगुल्म ,रक्तपित,योनिरोग,और गर्भस्राव में हमेशा उपयोगी है ।
९.गौदुग्ध वात पित्तनाशक है,दमा,कफ,स्वास,खाँसी प्यास,भूख मिटाने वाला है ।गोलारोग,उन्माद,उदररोगनाशक है ।
१०.गौदुग्ध मू््त्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्यरोग के लिए लाभकारी है ।गौदुग्ध जीवनोउपयोगी पदार्थ अतन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है ।
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