Sunday, 13 July 2014

२१-गौसंहिता

२१-गौसंहिता
 ़़़़़़़़गोबर,गोमय ़़़़़़़़़़

१. लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्वमड्गंला ।
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन ।।

अर्थात- गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है ,इसिलिए गोबर से लेपन करना चाहिए ।

२. सामान्यता गोमय कटु,उष्ण ,वीर्यवर्धक ,त्रिदोषशामक तथा कुष्ठघ््न ,छर्दिनिग्रहण,रक्तशोधक,श्वासघ््न और विष्घ््न है ।यह विष नाशक है विषों में गोमय-स्वरस का लेप एंव अंजन उपयोगी साबित हुए है ।गाय का गोबर तिमिर रोग में ,नस्य रूप में प्रयुक्त होता है ।बिजौरा नींबू की जड़,गौघृत,मन:शिला को गोमय में पीसकर लेप करने से मुख की कान्ति बढ़ती है ।
३. आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है ।ताज़ा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एंव कीटाणु नाशक है ।

४. सर्पदंश ,विषधर साँप ,बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है अति विषाक्त्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा हृदय को सुरक्षित रखता है ।बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है ।

५. पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्माद ,अपस्मार शोथ ,उदररोग,बवासीर ,भगंदर ,कामला,विषमज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है ।मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्ननायुतंत्र को परिपुष्ट करता है ।

६. चेन्नई के डा. किंग के अनुसार गाय के गोबर किटाणु मारने की क्षमता रहती है ,इसमें ऐसी बिमारी के समय दूषित पानी में गाय का गोबर पानी में मिलाकर पानी शुद्ध कर उपयोग से प्लेग नहीं होता है ।और जिस भाग में बिजली का करन्ट लगा हो उस भाग पर गाय का गोबर लगाने से बिजली के करन्ट के असर में कमी अाती है ।

७. गाय के गोबर से बनी राख का उपयोग किसान भाई अपनी फसल को किटाणुओ ,बिमारीयों व जीवजन्तुओ से बचाने के लिए आदिकाल से प्रयोग करते आ रहे है ।

८. वैज्ञानिकों के अनुसार सेन्द्रिय खाद से पैदा किया आनाज खाने से हार्टअटैक नहीं होता है ।क्योंकि देशी खाद से शरीर द्वारा चाही गयी ४००मिलीग्राम मैग्निशियम तत्व की मात्रा मिलती है ।जो रासायनिक खाद में नहीं मिलती है ।मेग्नेशियम तत्व शरीर में रक्तप्रवाह के लिए रहना आवश्यक है ।

९. अग्निहोत्र जो कि यज्ञ काआधार है पुरातन वैदिक विज्ञान की अनमोल देन है ।गोबर से बनी यज्ञ समिधा का गौघृत के साथ उपयोग आदि काल से करते आ रहे है ।अग्निहोत्र से कई क्षेत्रों में जैसे कृषि ,वातावरण,जैव प्रजन्न व मनचिकित्सा तथा प्रदुषण दूर करने में विस्मयकारी रूप से लाभ होता है ।

१०. गोबर के कंडों से किये गये अग्निहोत्र से सूक्ष्मऊर्जा,तरगें ,एंव पौष्टिक वायु वातावरण में नि:सृत होते है ।जिसमें वनस्पतियों को पोषण प्राप्त होकर फसल में वृद्धि होती है ।पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार तथा दूग्ध की गुणवत्ता में और प्रमाण में वृद्धि होती है ।केचुएँ व मधुमक्खियों में भी वृद्धि पायी जाती है ।अग्निहोत्र का भस्म एक उत्तम खाद है एंव कीटनियंत्रक औषध बनाने में भी उपयोगी है ।अग्निहोत्र की भस्म से बीज प्रक्रिया एंव बीज संस्कार अंकुरण अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से होता है ।


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