Saturday, 29 May 2021

रामबाण योग :- 101 -:

रामबाण योग :- 101 -:

कुन्दरू ( बिम्बीफल )-

हरी सब्जियों में मौजूद पोषक तत्व और फाइबर अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी हैं, इसीलिए डॉक्टर रोजाना हरी सब्जियों के सेवन की सलाह देते हैं। कुंदरू भी ऐसी ही एक हरी सब्जी है जो कई औषधीय गुणों से भरपूर है। सिरदर्द और कान के दर्द से राहत दिलाने के अलावा यह डायबिटीज और गोनोरिया जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में भी फायदा पहुंचाती है। कुंदरू का पौधा आमतौर पर खरपतवार या झाड़ियों के रूप में पाया जाता है। यह एक मौसमी सब्जी है जो दिखने में परवल के जैसी होती है। झाड़ी के रूप में फैले इस पेड़ के फूलों का रंग सफ़ेद होता है। इस सब्जी के सेवन से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है। आइये कुंदरू के बारे में विस्तार से जानते हैं । बिम्बी का वानस्पतिक नाम Coccinia grandis (Linn.) Voigt (कॉक्सीनिया ग्रेन्डिस) Syn-Coccinia cordifolia Cogn., Bryonia grandis Linn. है और यह Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसीकुल का पौधा है। Sanskrit : बिम्बी, रक्तफला , तुण्डिका , तुण्डी , तुण्डिकेरी, ओष्ठोपमफला, बिम्बिका, ओष्ठी, कर्मकारी, तुण्डिकेरिका, बिम्बा, बिम्बक, कम्बजा, गोह्वी, रुचिरफला, छर्दिनी, तिक्ततुण्डी, तिक्ताख्या, कटुका, कटुतुण्डिका; Hindi : कन्दूरी, बिम्बी, कुनली, कुनरी, कुन्दुरू कहते है। कुन्दरु कषाय, मधुर, शीत, लघु, रूक्ष, कफपित्तशामक, स्तम्भक, लेखन, रुचिकारक, प्रज्ञानाशक, वामक, विबन्धकारक, आध्मानकारक, स्तन्यकारक तथा वमनोपग होता है। यह तृष्णा, दाह, ज्वर, कास, श्वास, क्षय, रक्तपित्त, शोफ, पाण्डु, कामला, शोथ, मेद, शिरशूल, गुल्म तथा आभ्यन्तर विद्रधिशामक होता है। कुन्दरू का शाक मधुर, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, संग्राही, वातकारक तथा कफपित्तशामक होता है।इसके पुष्प तिक्त तथा पित्तशामक तथा विशेष रूप से कामला में लाभप्रद होते हैं। इसके फल मधुर, शीत, स्तम्भक, लेखन, गुरु, पित्तवातशामक, आध्मानकारक तथा विबन्धकारक होते हैं। इसके पत्रों के सार को 2-3 ग्राम प्रति दिन प्रयोग करने से 3 या 4 दिन में ही संक्रमित यकृत् शोथ को अपने विशिष्ट प्रभाव से कम कर देता है।
 

#- कर्णशूल - कान दर्द होने पर कुंदरू के पौधे के रस में सरसों का तेल मिलाकर 1-2 बूँद कान में डालें। इससे कान दर्द से आराम मिलता है। 
 
#- जीभ के दाने व छालें - अगर आपकी जीभ पर छाले निकल आए हैं तो कुंदरू के हरे फलों को चूसें। इससे छाले जल्दी ठीक होते हैं। 
 
#- श्वास रोग, शोथ - कुंदरू की पत्तियां और तने का काढ़ा 10-12 मिलीग्राम बनाकर पीने से सांस की नली की सूजन दूर होती है। इसके अलावा इसे पीने से सांस से जुड़ी बीमारियां में भी लाभ मिलता है।

#- आंत्रकृमि - आंतों में कीड़े पड़ना एक आम समस्या है और बड़ों की तुलना में बच्चे इस समस्या से ज्यादा परेशान रहते हैं। कुंदरू के पेस्ट में पकाए हुए गाय के घी की 5 ग्राम मात्रा का सेवन करने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।

#-पिलिया - बिमबीपत्र सार को 2-3 ग्राम प्रति प्रतिदिन प्रयोग करने से 3-4 दिन में ही संक्रमित यकृत शोथ व पिलिया को अपने विशिष्ट प्रभाव से स्वस्थ कर देता है।

#- मधुमेह - अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो 5 मिलीग्राम पत्र एवं मूल का स्वरस सेवन करने से डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।


#-सूजाक , गोनोरिया - गोनोरिया एक यौन संचारित रोग है और इसमें जननांगो के आस पास वाले हिस्सों में संक्रमण हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार कुंदरू की पत्तियों के रस की 5 मिली मात्रा का सेवन करें।

#- गठिया - कुंदरू की जड़ को पीसकर जोड़ों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और सूजन में लाभ मिलता है। 

#- त्वचारोग - त्वचा रोग होने पर कुंदरू की पत्तियों को तेल के साथ पकाएं और इसे छानकर त्वचा के प्रभावित हिस्से पर लगाएं।

#- कुष्ठ रोग - कुष्ठ रोग होने पर चित्रकमूल, बड़ी इलायची, कुन्दरू, अडूसा की पत्तियां, निशोथ, मदार पत्र और सोंठ इन द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। फिर पलाश से बने क्षार को गोमूत्र में घोलकर छान लें, इसके बाद इसे गोमूत्र की भावना देकर लेप बना लें। इस लेप को शरीर पर लगाकर कुछ देर धूप में बैठने से कुष्ठ में लाभ होता है।
 
#- घाव - कुंदरू की पत्तियों को गाय के घी में पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है। अगर घाव में पस भर गया तो नीमपत्र व फिटकरी डालकर क्वाथ बनाकर गुनगुने क्वाथ से घाव को धोकर साफ करके कुन्दरूपत्र स्वरस व घी मिश्रित लेप को लगायें।
 
#- बुखार - कुंदरू की जड़ और पत्तियों को पीसकर इसका रस निकाल लें। इस रस को पूरे शरीर पर लेप के रूप में लगाने से  बुखार में आराम मिलता है। 


#- बालग्रह दोष ( स्कन्दापस्मार ) - आयुर्वेद के अनुसार कुंदरू के उपयोग से बाल ग्रहों को दूर किया जा सकता है। अनन्ता, कुक्कुरी, बिम्बी तथा कौंच को बालक के गले में धारण कराने से बालगृह दूर होते हैं।

#- बालग्रह दोष ( पूतना प्रतिषेधार्थ )- काकतिन्दुक, चित्रफला (इन्द्रायण), बिम्बी तथा गुञ्जा को गले में धारण कराने से बालगृह दूर होते हैं।

#- बालग्रह दोष ( शीत पूतनाग्रह प्रतिषेधार्थ ) - कपित्थ , रास्ना, बिम्बी , प्राचीबल , बेल , नन्दीवृक्ष तथा भल्लातक का क्वाथ बनाकर बालक का परिषेक ( Sprinklings ) करने से शीतपूतनाग्रह दोष का निवारण होता है।

#- सर्पदंश/वृश्चिक दंश - सांप या बिच्छू के काट लेने पर यदि आप उस जगह पर कुंदरू के फल को पीसकर लगाएं तो यह जहर के प्रभाव को कम करने में मदद करता है।


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