Saturday, 8 May 2021

रामबाण योग :- 64 -:

रामबाण योग :- 64 -:

#- पाठा -

पाठा (Patha Plant) एक ऐसी लता है जिसे आपने अक्सर सड़कों या खेतों के किनारे की झाड़ियों में देखा होगा, आयुर्वेदिक ग्रंथों में पाठा (cyclea peltata) का भरपूर उल्लेख पाया जाता है। इसे दाइयों की जड़ी भी कहा जाता है क्योंकि अनेक प्रकार के स्त्री रोगों तथा प्रसव तथा बार-बार होने वाले गर्भपात आदि में यह काफी लाभकारी होता है। ग्रामीण इलाकों के लोगों को पाठा के बारे में जानकारी होती है और वे इसका कुछ बीमारियों में प्रयोग भी करते हैं, पाठा (Patha) आरोही लता जाति का एक पौधा (Patha Plant) है। यह पेड़ों के सहारे ऊपर चढ़ती है या जमीन पर फैलने है। इससे लता पर लता निकलती रहती है और इसकी लता पत्तों भरी होती है। इसकी लताएँ रेखित, पतली तथा रोमयुक्त होती हैं। इसके पत्ते गिलोय के पत्ते जैसे तथा सुगन्धित होते हैं। इसके पत्ते हल्के नुकीले तथा गोल, फूल छोटे औऱ सफेद रंग के और फल मकोय जैसे छोटे-छोटे होते हैं। फलों का रंग लाला होता है। पाठा (cyclea peltata) स्वाद में कड़वा तथा तीखा होता है। यह जल्दी पच जाता है लेकिन पेट के लिए गरम होता है। इसमें काफी मात्रा में फाइबर यानी रेशे होते हैं। यह कफ तथा वात को शान्त करता है।
पाठा के दो प्रकार हैंछोटा और बड़ा तथा गुण दोनों के समान हैं। इसके अतिरिक्त पाठा की दो और प्रजातियाँ हैं
  1. Stephania glabra (Roxb.)
  2. Cyclea peltata  (Lam.) Hook.f. & Thomson


#- संस्कृत में कहा गया है कि नास्ति मूलमनौषधम् यानी कोई भी ऐसी जड़ी नहीं है जिसको औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सके। इसी तरह पाठा भी एक बहुत ही गुणी औषधि है। पाठा का वानस्पतिक यानी लैटिन नाम सिसैम्पीलैस पेरिरा (Cissampelos pareira Linn.) तथा Syn-Cissampelos argentea Kunth. है। दक्षिण भारत में इसका वानस्पतिक नाम साइक्लिया पेल्टाटा Cyclea Peltata है। यह मेनिस्पर्मेसी (Menispermaceae) कुल का पौधा है। Hindi – पाठा, पाठ, पाढ, पाठी, पाढ़ी, पुरइन पाढ़ी, अकनड़ी English – Velvet leaf (वेल्वेट लीफ), आईस वाइन (Ice vine), परेरा (Pareira), फाल्स परेरा ब्रावा (False pareira brava) Sanskrit – पीलुफला, अम्बष्ठकी, पाठा, विद्धकर्णी, स्थापनी, श्रेयसी, पापचेली, प्राचीना, अश्मसुता, रसा, पापचेलिका, तिक्तपुष्पा, शिशिरा, वृकी, वृत्तपर्णी, वाटिका, सुस्थिरा, प्रतापिनी, मालती, त्रिशिरा, वीरा Garhwali – पहारी (Pahari)कहते है।

#- पाठा (abuta) प्राचीन काल से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। पाठा में विष का प्रभाव नष्ट करने, बड़े से बड़े घाव को ठीक करने और हड्डियों को जोड़ने के गुण होते हैं। यह शरीर में खून तथा माता के दूध को बढ़ाता है। पाठा भोजन पचाता है और बुखार को नष्ट करता है। पाठा दस्त और उल्टी बंद करता है और पेशाब करने में होने वाली कठिनाइयों को दूर करता है। डायबिटीज में यह लाभकारी है। लीवर को ठीक करके यह पीलिया ठीक करने में सहायक होता है। इसके सेवन से पेट की गैस समाप्त होती है और भूख खुल कर लगती है। पाठा की जड़ जोड़ों के दर्द में काम आती है। पाठा (cyclea peltata) का प्रयोग खाँसी, पथरी के कारण किडनी मे होने वाली सूजन, खून का बहना तथा पीरियड के दौरान ज्यादा खून बहना आदि समस्याओं को ठीक करता है। इन रोगों में पाठा का प्रयोग कैसे किया जाए, इसकी विधि नीचे दी जा रही हैः-

#- माइग्रेन - माइग्रेन यानी आधा सीसी एक प्रकार का सिरदर्द है जो सिर के केवल आधे हिस्से में होता है। इसका दर्द काफी असहनीय होता है। पाठा के जड़ का चूर्ण बनाकर नाक से सूँघने (नस्य लेने) पर आधासीसी या अधकपारी (माइग्रेन) के दर्द में बहुत आराम मिलता है।

#- पीनस - पाठा का तेल जुकाम को ठीक करता है। पाठा के तेल की 1-2 बूँदें नाक में डालने से पुराने जुकाम में लाभ होता है।

#- मुखरोग - पाठा (patha), तेजोवती, रसाञ्जन तथा यवक्षार को बराबर मात्रा में मिला कर पीस कर बारीक चूर्ण बना लें। इस 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर 250-250 मिग्रा की गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली मुँह में रखकर चूसने से मुँह के रोगों में लाभ होता है।

#- अतिसार - पाठा पेट के लिए काफी लाभकारी होता है। विशेषकर पतले दस्त और पेचिश की स्थितियों में यह काफी लाभकारी साबित होता है।

#- दस्त रोग - गाय के घी में बनाई गई पाठा की सब्जी में गौदधि ( दही ) तथा अनार के रस को मिलाकर सेवन करने से दस्त बंद होते हैं।

#- अतिसार - एक ग्राम पाठा की जड़ तथा एक ग्राम आम की गुठली की मींगी को गाय के दूध से बने हुए दही में पीसकर पिएं। अथवा नाभि के चारों तरफ़ गोल घेरा बनाकर अदरक रस भरने से दाह तथा वेदना युक्त अतिसार में लाभ होता है।तथा तेजी के साथ बार-बार होने वाले पतले दस्त तथा दस्त के समय होने वाले दर्द में निश्चित लाभ होगा।

#- अतिसार - भैंस के दूध से बने दही के छाछ के साथ पाठा के पत्ते की चटनी 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से दस्त बंद होते हैं।

#- अतिसार - 50-50 ग्राम अंकोल, पाठा (abuta), दारुहल्दी तथा मुलेठी की चटनी की 500 मिग्रा की गोलियाँ बना ले। इसका सेवन करने से सभी प्रकार के दस्त में आराम होता है।

#- प्लीहोदर ,तिल्ली की सूजन - तिल्ली के बढ़ने से कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा होती हैं, जिनमें टॉयफायड यानी मियादी बुखार प्रमुख है। पाठा के सेवन से बुखार में आराम तो होता ही है, तिल्ली का सूजन भी दूर होता है।
1-2 ग्राम पाठा के जड़ की चटनी को चावल के धोवन के साथ पीने से तिल्ली की सूजन दूर होती है।

#- ग्रहणी ,अर्श - पाठा (cyclea peltata), अतीस, कुटज का छाल, नागरमोथा, कुटकी, धातकीफूल, रसौत तथा बेलफल के चूर्ण को मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 1-2 ग्राम मात्रा चावल के धोवन के साथ पीने से कब्ज, पेचिश, खूनी दस्त, बवासीर तथा गुदा के दर्द में लाभ होता है।

#- अर्श - धमासा, बेलफल का गूदा तथा जीरा और सोंठ में से किसी भी एक के चूर्ण में पाठा (patha) के चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में मिला लें। इस मिश्रण को गौतक्र ( छाछ ) में मिलाकर थोड़ा नमक मिलाकर सेवन करने से बवासीर के कारण होने वाले दर्द में आराम होता है।

#- अर्श - 200 मिली गौतक्र ( छाछ ) में 100 मिली अनार का रस, 500 मिग्रा जीरा, एक ग्राम अजवायन, 5 ग्राम गुड़, 500 मिग्रा सोंठ तथा एक ग्राम पाठा चूर्ण मिला लें। इसे पीने से बवासीर के रोगी को गैस का निकलना कम होता है तथा मल आराम से निकल जाता है।

#- मधुमेह - पाठा (patha), अगरु एवं हल्दी का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से कफ के कारण होने वाले प्रमेह यानी डायबिटीज में लाभ होता है।

#- प्रमेह, धातरोग - गुडूची यानी गिलोय और चित्रक के 10-20 मिली काढ़े में पाठा, कुटज, हींग, कुटकी तथा कूठ का 1-3 ग्राम चूर्ण अथवा कल्क (चटनी) मिला लें। इसका सेवन करने से पुरुषों को यौन रोगों से छुटकारा मिलता है।

#- मधुमेह - डायबिटीज यानि मधुमेह का रोगी यदि दवा ना लेना चाहता हो तो और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भोजन करने वाला हो तो उसे पाठा के गाढ़े आसव में अधिक मात्रा में मधु मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे (abuta) दवा लेने की रुचि पैदा होगी और भोजन करने में भी वह परहेज बरतने लगेगा।

#- सुखप्रसव - पाठा के जड़ की चटनी को प्रसव की अवस्था में स्त्री की योनि में लेप करने से सामान्य प्रसव कराने में मदद मिलती है तथा बिना प्रसव के समय कष्ट कम हो जाता है।

#- सुखप्रसव - 1-2 ग्राम पाठा के पत्रों को गाय के दूध में मिलाकर पीने से मूढ़ गर्भजन्य व्यथा में शीघ्र लाभ होता है।

#- आसन्नप्रसवा स्त्री का कष्ट - प्रसव के दौरान यदि महिला को अधिक कष्ट हो रहा हो तो योनि में पाठा मूल को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से प्रसव सुखपुर्वक होता है।

#- गर्भपात - पाठा (abuta) का उपयोग गर्भपात की समस्या को भी दूर करता है। 1-2 ग्राम पाठा के पत्तों को गाय के दूध में पीसकर पीने से असमय होने वाले गर्भपात में लाभ होता है।

#- आवर्तदोष , मासिकधर्म - पाठा, त्रिकटु तथा कुटज की छाल काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पीने से मासिक धर्म से संबधित रोगों में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - पाठा की जड़ को चावल के धोवन के साथ पीसकर कुष्ठ रोगों के घावों पर लेप करें। इससे कुष्ठ रोग ठीक होता है।

#- स्तन्यवर्धक - माता का दूध बढ़ाने के लिए तथा उसकी शुद्धि के लिए पाठा का प्रयोग काफी लाभकारी है। पाठा (patha), सोंठ आदि दूध को शुद्ध करते हैं और उसे बढ़ाते हैं तथा पुरानी स्तन्य ( मातृ दुग्ध ) संबंधित बीमारियों का शीघ्र निवारण होता है । इन द्रव्यों का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से स्तन सुडौल (पुष्ट) होता है तथा दूध भी बढ़ता है।

#- स्तन्यशोधनार्थ - इससे माँ के दूध से संबधित अन्यान्य बीमारियाँ जैसे दूध पचना, कम आना आदि भी ठीक हो जाती हैं। पाठा, मूर्वा, चिरायता, देवदारु, सोंठ, इन्द्रयव, सारिवा तथा कुटकी का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली काढ़ा को पीने से माँ का दूध शुद्ध होता है।

#- अस्थिभग्न - हड्डी टूटने पर पाठा के पत्तों को पीस कर लेप कर दें। इससे हड्डियां ठीक से जुड़ जाती हैं।

#- व्रण - पाठा (abuta) घावों को ठीक करने में भी सक्षम है। पीव से भरे घाव घाव को ढकने के लिए पाठा के पत्तों का प्रयोग किया जाता है।

#- घाव , कारबंकल - ढेर सारे मुंह वाले घाव यानी कारबंकल को भी पाठा ठीक करता है। 1-2 ग्राम पाठा के जड़ के चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से कारबंकल ठीक होता है।

#- दुष्टव्रणशोधक - पाठा पंचांग के क्वाथ से घाव को धोने तथा पाठामूल के चूर्ण 3 ग्राम को शहद मे मिलाकर खाने घाव अन्दर बाहर से शोधन होकर रोपण होता है।

#- विद्रधि - 1-2 ग्राम पाठा मूल चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से अंतविद्रधि का शमन होता है।

#- एक्ज़िमा - पाठा के पत्ते को पीसकर लेप करने से एक्जीमा, घाव, आग से जले हुए अंग पर तथा खुजली आदि में लाभ होता है।

#- पाठा में एंटीवायरल गुण होते हैं। हाल ही में हुए शोध अध्ययनों में पाया गया है कि यह डेंगू के वायरस पर भी काफी प्रभावी है।

#- ज्वर - पाठा, खस एवं सुगन्धवाला (एक जड़ी जिसे नेत्रबाला भी कहते हैं) को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में पीने से पेट में पड़ा अनपचा भोजन पच जाता है और बुखार दूर होता है।

#- मलेरिया - पाँच ग्राम पाठा के जड़ को 200 मिली गाय के दूध में पका लें। इसे तीन दिन तक सुबह-शाम सेवन करने से ठंड और कंपकंपाहट सहित आने वाला मलेरिया बुखार उतर जाता है।

#- सूजन - पाठा में एंटी इनफ्लैमेट्री यानी सूजनरोधी गुण होते हैं। पाठा (patha), हल्दी, छोटी कटेरी, मोथा, जीरा, पिप्पली, पिप्पली का जड़, चव्य, चित्रक तथा सोंठ सभी को पीस कर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गर्म पानी में मिलाकर सूजन वाले स्थान पर लेप करने से सूजन दूर होती है।

#- सूजन - पाठा (abuta) तथा पञ्चकोल का घोल बनाकर उसमें गाय का घी या तेल से छौंक लगाकर सेवन करें। इससे सूजन आदि रोगों में लाभ होता है।

#- सर्पदंश व कीटदंश - पाठा मूल को गोमूत्र मे घिसकर दंश स्थान पर लगाये और पाठा पंचांग का काढ़ा बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पिलाने से लाभ होता है।

#- कृमिरोग - पाठा पत्रस्वरस में पाठामूल स्वरस मिलाकर पिलाने से पेट के कीडे मर कर बाहर निकल जाते है।


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