रामबाण योग :- 59 -:
#- परदेशी लांगली ,
वानस्पतिक नाम : Tridax procumbens Linn. (ट्राइडेक्स प्रोकम्बेन्स) Syn. Balbisia canescens Rich. कुल : Asteraceae (ऐस्टरेसी) अंग्रेज़ी में नाम : Mexican daisy (मैक्सिकन डेसी)
संस्कृत-संधानकरणी, व्रणरोपा, व्रणारी; हिन्दी-सदाहरी, परदेशी लांगली, देशी संजीवनी खल-मुरिया, तल-मुरिया, पथरचूर, पथरफोड़,
पाषाणभेद, संजीवनी बूटी; कन्नड़-गब्बु सना सावन्थी (Gabbu sanna savanthi), नेट्टु गब्बु सावन्थी (Nettu gabbu savanthi); तमिल-वेटटुक्काया (Vettukkaya), थालई (Thalai); तेलुगु-गड्डीचामन्थी (Gaddichamanthi); मलयालम-रूमपुट कनचिंग बजु (Rumput kanching baju)।
अंग्रेजी-ट्रॉयडॉक्स डेसी (Troidex daisy), कोट बटन (Coat buttons)। समस्त भारत में लगभग 2400 मी की ऊँचाई पर यह खरपतवार के रूप में पाया जाता है। यह 60 सेमी ऊँचा, दृढरोमी, भूशायी, शाकीय पौधा है। इसके पत्र अण्डाकार, 2-7 सेमी लम्बे एवं 1-4 सेमी चौड़े होते हैं। इसके पुष्प छोटे तथा पीत वर्ण के होते हैं।
इसका पत्र स्दंरोधी, केश्य, कवकरोधी तथा कृमिनाशक होता है। इसका पत्र-स्वरस वाजीकारक, पूयरोधी, कृमिनाशक एवं परजीवीनाशक होते हैं। यह अम्ल, कषाय, तिक्त, शीत, गुरू तथा स्निग्ध होता है।
इसमें यकृत्रक्षात्मक, व्याधिक्षमत्व नियामक, प्रमेहरोधी, सूक्ष्मजीवाणुरोधी तथा कैंसररोधी प्रभाव होता है।
#- बाल काले व घुंघराले - लांगली पञ्चाङ्ग को कूटकर समभाग सरसों का तेल मिलाकर, पकाकर, छानकर तेल को बालों में लगाने से बाल काले, घुंघराले होते है तथा रूसी आदि विकारों का शमन होता है।
#- श्वासनलिका शोथ - लांगली पत्र स्वरस 2-2 चम्मच का प्रयोग श्वासनलिका शोथ, प्रवाहिका एवं अतिसार में लाभकारी होता है।
#- प्रवाहिका - लांगली पत्र स्वरस 2-2 चम्मच प्रात-सायं सेवन करने से प्रवाहिका व उदर विकारों में अत्यन्त लाभ होता है।
#- अतिसार - 2-2 ग्राम लांगली पञ्चाङ्ग कल्क का प्रात-सायं सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- यकृत शोथ - 3 ग्राम लांगली पञ्चाङ्ग का क्वाथ बनाकर पीने से यकृत् शोथ आदि यकृत् विकारों व श्वास रोगों का शमन होता है।
#- प्रमेह - 2 भाग लांगली पत्र चूर्ण में 1 भाग पिसा हुआ चना मिलाकर प्रयोग करने से प्रमेह में लाभ होता है।
#- अर्शजन्य शोथ - लांगली पत्र कल्क को अर्श के मस्सों में लगाने से अर्शजन्य शोथ का शमन होता है।
#- आमवातजन्य वेदना - लांगली मूल चूर्ण को एरण्ड तैल में मिलाकर लेप करने से आमवातजन्य वेदना में लाभ होता है।
#- क्षतजन्य रक्तस्राव - लांगली पत्र-स्वरस को क्षत तथा व्रण में लगाने से क्षतजन्य रक्तस्राव का स्तम्भन व रोपण होता है।
#- घाव - लांगली पौधे के स्वरस में शहद तथा हल्दी मिलाकर घाव पर लगाने से घाव का शोधन तथा रोपण होता है व रक्त का स्तम्भन होता है।
#- अग्निदग्ध - लांगली पत्र-स्वरस में शहद तथा हल्दी मिलाकर दग्ध स्थान पर लगाने से फफोले नहीं पड़ते तथा दाह का शमन, रोपण होता है। यदि फोला पड़ गया है तो लेप करने से निशान नहीं पड़ते।
#- गठिया - लांगली पञ्चाङ्ग में एरण्ड तेल तथा सोंठ मिलाकर पाक करके मालिश करने से आमवातजन्य वेदना आदि वातज विकारों तथा शोथ का शमन होता है।
#- आन्तरिक व बाहृाशोथ - लांगली पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर सेवन करने से तथा बफारा देने से आन्तरिक व बाह्य शोथ में विशेष लाभ होता है।
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