रामबाण योग :- 82 -:
पोतकी ( पोई ) -
Basella alba Linn. (बैसेला ऐल्बा) Syn-Basella rubra Linn,कुल : Basellaceae (बैसेलेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Indian Spinach (इण्डियन स्पिनिच), वाइन स्पिनिच (Vine spinach)।,संस्कृत-पोतकी, उपोदकी, मालवा, अमृतवल्लरी; हिन्दी-पोय (शाक), पोय का साग, पोई का साग; कहते है।
यह भारत में प्राय सर्वत्र जलयुक्त स्थानों के समीप तथा समशीतोष्ण प्रदेशों में विशेषतया पश्चिम बंगाल, सीलोन तथा आसाम में पाई जाती है। यह श्वेत, लाल भेद से दो प्रकार की होती है। चरक-संहिता तथा सुश्रुत-संहिता के सूत्र-स्थान में उपोदिका नाम से इसके गुण-धर्मो का उल्लेख मिलता है। यह मांसल, चिकनी, बहुवर्षायु, फैलने वाली तथा शाखायुक्त, स्निग्ध, लम्बी व आरोही लता है। इसके काण्ड चिकने तथा बहुशाखित होते हैं। शाखा-श्वेत अथवा रक्त वर्ण की होती है। इसके पत्र हृदयाकार अथवा गोलाकार, 5-7.5 सेमी चौडे, चमकीले हरे वर्ण के मांसल तथा पुराने पत्र लाल चिन्ह युक्त होते हैं। पोई मधुर, कटु, शीत, रूक्ष, स्निग्ध, पिच्छिल, वातपित्तशामक, कफकारक, बलकारक, बृंहण, वृष्य, रुचिकारक, विष्टम्भी, निद्राकर, शुक्रल, तृप्तिकारक, अकण्ठ्य, पथ्य, भेदनी, पुष्टिकारक, मदघ्नी तथा आलस्य कारक होती है। यह रक्तपित्त तथा मदनाशक होती है। जंगली पोतकी तिक्त, कटु, उष्ण तथा रुचिकारक होती है।पोतकी की मूल रक्तिमाकर होती है। इसके काण्ड तथा पत्र मधुर, शीतल, मृदुकारी, वाजीकारक, मृदु-विरेचक, रक्तस्दंक, क्षुधावर्धक, अवसादक, मूत्रल, प्रशामक, तथा बलकारक होते हैं। इसका पत्र-स्वरस प्रशामक, मृदु-विरेचक तथा मूत्रल होता है।
#- अतिसार - अतिसार के रोगी की जठराग्नि यदि प्रदीप्त हो तो पोई के पत्रशाक को अधिक गौघृत में पकाकर उसमें दही तथा अनार का रस मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
#- छर्दि ( उलटी ) - 10-15 मिली पोतकी मूल क्वाथ को पीने से पित्ताधिक्य के कारण होने वाली छर्दि तथा आतों से संबन्धित बीमारियों में लाभ होता है।
#- अरूचि - पोतकी पत्र एवं काण्ड का शाक बनाकर सेवन करने से विबन्ध, आध्मान तथा अरुचि में लाभ होता है।
#- अर्श - खट्टे बेर के चूर्ण और पोई के पत्रशाक को तक्र के अनुपान के साथ सेवन करने से बवासीर के कारण होने वाले रक्तस्राव का स्तम्भन होता है।
#- बवासीर - पोईपत्र-शाक (सब्जी/साग) को अकेले या अन्य शाकों (बथुआ आदि) के साथ मिलाकर, गौघृत तथा तैल में भूनकर, गौदधि ( दही ) तथा अनार के रस से पकाकर, धनियाँ एवं सोंठ का चूर्ण मिलाकर खाने से बवासीर में लाभ होता है।
#- पथरी - पोतकी के पत्तों को पीसकर पीने से गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है।
#- सुखप्रसवार्थ , ( टोटका )- पोई मूल कल्क में तिल तैल मिलाकर आसन्नप्रसवा त्री की योनि में लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
#- सूजाक - 5-10 मिली पोतकी पत्र-स्वरस को पिलाने से मूत्रदाह तथा सूजाक में लाभ होता है।
#- अर्बुद - मर्म स्थान पर उत्पन्न अर्बुद में काञ्जी तथा गौतक्र ( छाछ ) से पीसे हुए पोई पत्र कल्क में सेंधानमक मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
#- अर्बुद - पोई-पत्र को पीसकर अर्बुद पर रखकर, पोई के पत्रों से ढक कर, बाँध देते हैं। इसी तरह प्रतिदिन कल्क एवं पत्र बदलने से मर्म तथा अन्य स्थान पर उत्पन्न अर्बुद, शत्र अथवा क्षार प्रयोग के बिना ही नष्ट होने लगते हैं।
#- अर्बुद - पोई पञ्चाङ्ग कल्क का लेप करने से पूययुक्त फोड़े (Pustules) तथा शोथयुक्त अर्बुद (Inflammatory tumours) में लाभ होता है।
#- व्रण - पोई के पत्तों को पीसकर, उसमें थोड़ा गौघृत मिलाकर लुगदी बना कर घाव पर बाँधनी चाहिए। इससे घाव का शीघ्र रोपण होता है।
#- पाददारी ( बिवाई फटना )- पैर का फटना में समभाग पोई, सरसों, नीम, केला, कूष्माण्ड तथा ककड़ी को जलाकर, क्षार, जल बनाकर, उससे पके तैल में सेंधानमक डाल कर पैरों की मालिश करने से पैरों की बिवाई ठीक होती है।
#- शोथ- पोईमूल मूल को पीसकर, लेप करने से शोथ का शमन होता है।
#- क्षत - काण्ड व पोईपत्र-कल्क का लेप करने से मुंहासे, क्षत, चर्मकील तथा पैंसियों का शमन होता है।
#- कुष्ठ रोग - पोईपत्र एवं काण्ड को पीसकर लगाने से कुष्ठ तथा खुजली में लाभ होता है।
#- पित्ती रोग - पोई के पत्रों को पीसकर, उसका स्वरस निकालकर लगाने से पित्ती (शीतपित्त) रोग में लाभ होता है।
#- अग्निदग्ध - आग से जले हुए स्थान पर पोई के पत्तों को पीसकर लगाने से छाले नहीं पड़ते।
#- जलन ( दाह ) - पोईपत्र-स्वरस को लगाने से दाह (जलन) का शमन होता है।
#- मद रोग - पोई-शाक तथा गौदधि ( दही ) से निर्मित यवागू का सेवन करने से मद्यपानजन्य मदरोग का शीघ्र शमन होता है।
#- टोटका - पोई मूल अथवा पोई की समग्र बेल को सिर पर बांधने से नींद अच्छी आती है।
#- वृश्चिक विष - 3-5 पोतकी के पत्तों को पानी में पीसकर पिलाने से वृश्चिक विष जन्य वेदना, दाह, शोथ आदि प्रभावों का शमन होता है।
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