रामबाण योग :- 69 -:
#- पाषाणभेद -
पाषाणभेद एक पौधा है जिसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। पाषाणभेद का शाब्दिक अर्थ है कि पत्थरों को तोड़ देना और यही इस औषधि का प्रमुख गुण है। पाषाणभेद का मुख्य उपयोग पथरी के इलाज में किया जाता है। इस जड़ी-बूटी में ऐसे औषधीय गुण हैं जो पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में मदद करते हैं। इस पौधे के विषय में बहुत मतभेद हैं। कई विद्वानों ने भिन्न-भिन्न पौधों को पाषाणभेद माना है। इस पौधे का तना छोटा और पत्तियां अंडाकार होती हैं। पाषाणभेद की पत्तियों की लम्बाई पुष्पकाल में 5-15 सेमी और सर्दियों में लगभग 30 सेमी तक लम्बी होती है। इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद और गुलाबी रंग के होते हैं। पाषाणभेद के बीजों का आकर पिरामिड जैसा होता है। इसकी जड़ों और पत्तियों को औषधि के रूप में इस्तेम्माल किया जाता है। बाजार में इसके भूरे रंग के कड़े, खुरदुरे एवं झुर्रीदार छालयुक्त सूखे टुकड़े मिलते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है।
पाषाणभेद का वानस्पतिक नाम Bergenia ciliata (Haw.) Sternb. (बर्जेनिआ सिलिएटा) Syn-Bergenia ligulata (Wall.) Engl. var. ciliata (Royle.) Engl., Saxifraga ligulata Wall है। यह Saxifragaceae (सेक्सिप्रैंगेसी) कुल का पौधा है। आइये जानते हैं अन्य भाषाओं में इस पौधे को किन नामों से जाना जाता है। Sanskrit : पाषाणभेद, अश्मभेद, गिरिभेद, अश्मघ्न, पाषाणभेदक, Hindi: पाषानभेद, पत्थरचूर; उर्दू-पाषान भेद (Pashan bed), कहते है।पाषाणभेद मधुर, कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, तीक्ष्ण तथा त्रिदोषहर होता है। यह सारक, अश्मरी-भेदक, वस्तिशोधक तथा मूत्रविरेचक होता है।यह अर्श, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, हृद्रोग, योनिरोग, प्रमेह, प्लीहारोग, शूल, व्रण, दाह, शिश्नशूल तथा अतिसार-नाशक होता है।
इसका पौधा पूयरोधी, तिक्त तथा कषाय होता है।यह स्नायुरोग, अधरांगवाॉत, गृध्रसी, व्रण, ग्रन्थिशोथ, विषाक्तता, कण्डु तथा कुष्ठ में लाभप्रद होता है।
#- नेत्ररोग - आंखों से जुड़े रोगों के इलाज में भी पाषाणभेद बहुत उपयोगी है। इसके लिए पाषाणभेद के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लगाएं। इसे लगाने से अभिष्यंद (आंखों में जलन और पानी बहने की समस्या) में लाभ मिलता है।
#- कर्णरोग - अगर आप कान दर्द से परेशान हैं तो पाषाणभेद के उपयोग से आप दर्द से राहत पा सकते हैं. इसके लिए पाषाणभेद की पत्तियों के रस की एक-दो बूंदें कान में डालें तो इससे दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
#- मुखपाक - पाषाण भेद की ताज़ी मूल को चबाने से मुखपाक ( मुँह के अन्दर घाव ) में लाभ होती है।
#- मुँह के छालें - पाषाणभेद की पत्तियों को चबाने से मुँह के छालें दूर होते है।
#- पथरी - पाषाणभेद चूर्ण में सोलह गुना गोमूत्र तथा चार गुना गाय का घी मिलाकर विधिवत् सिद्ध करके सेवन करने से पथरी के इलाज में लाभ होता है।
#- पथरी - पाषाणभेद की पत्तियों के रस की 5 एमएल मात्रा को बताशे में डालकर खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
#- पथरी - 20-30 मिली पाषाणभेद काढ़े में शिलाजीत, खाँड़ या मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज पथरी के इलाज में फायदा मिलता है।
#- पथरी - 2-4 ग्राम पाषाणभेद चूर्ण को शिलाजीत तथा मिश्री मिले हुए गाय के दूध के साथ पीने से पित्त की पथरी (पित्ताश्मरी) में लाभ होता है।
#- पथरी - समभाग पाषाणभेद, वरुण की छाल, गोखरू, एरण्ड मूल, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी तथा तालमखाना मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से पथरी के इलाज में लाभ मिलता है।
#- पथरी - पाषाणभेद, वरुण छाल, गोखरू तथा ब्राह्मी के 20-30 मिली काढ़े में शिलाजीत तथा ककड़ी के बीज व गुड़ मिलाकर पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
#- खाँसी - खांसी से लिए पाषाणभेद के जड़ के चूर्ण को 1-2 ग्राम मात्रा में लें और इसे शहद के साथ खाएं। इसके सेवन से खांसी के साथ-साथ फेफड़ों से जुड़े रोगों से आराम मिलता है।
#- मुँह के छालें - मुंह में छाले होना एक आम समस्या है। इसके लिए तुरंत एलोपैथी दवा नहीं खाना चाहिए बल्कि घरेलू उपायों से इसे ठीक करने की कोशिश करें। मुंह में छाले होने पर पाषाणभेद की ताज़ी जड़ों और पत्तियों को चबाएं। इससे मुंह के छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं।
#- कब्ज और पेचिश : 1-2 ग्राम पाषाणभेद की जड़ के पेस्ट को पानी में उबाल लें और पानी सूख जाए तो इस मिश्रण का उपयोग करें। यह कब्ज दूर करने में मदद करता है। इसी तरह जड़ के पीसते को ताजे जल के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ मिलता है।
#- दस्त - 1-2 ग्राम पाषाणभेद की पत्तियों के चूर्ण को गौतक्र ( छाछ ) के साथ मिलाकर पीने से दस्त में आराम मिलता है।
#- मूत्ररोग - मूत्र संबंधित कई बीमारियां होती हैं जैसे पेशाब कम होना, पेशाब करते समय दर्द या मूत्र मार्ग में संक्रमण (यूटीआई) आदि। विशेषज्ञों के अनुसार इन समस्याओं में पाषाणभेद का उपयोग करना लाभदायक होता है। इसके लिए नल, पाषाणभेद, दर्भ, गन्ना, खीरा और ककड़ी के बीज को बराबर मात्रा में लेकर कूट लें या पीस लें। इसमें 8 गुना गाय का दूध डालकर क्षीरपाक करें। इसमें चौथाई मात्रा में गाय का घी मिलाकर पीने से कम पेशाब होने की समस्या (anuria) में आराम मिलता है।
#- मूत्ररोग - पाषाणभेद, अमलतास, धमासा, हरीतकी, निशोथ, पुष्करमूल, सिंघाड़ा, ककड़ी के बीजों और गोखरू से निर्मित 10-20 मिली काढ़ा बनाएं। इस काढ़े में शहद मिलाकर पीने से पेशाब के दौरान दर्द व कम पेशाब होने जैसी समस्याओं में लाभ मिलता है।
#- मूत्रकृच्छ - पाषाणभेद , अम्लतास ,धमासा, हरीतकी , गोखरू से निर्मित 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में शहद मिलाकर पीने से पीड़ा तथा दाहयुक्त मूत्रकृच्छ व मूत्राघात का शमन होता है।
#- ल्युकोरिया - एक गंभीर समस्या है जिसमें योनि से सफ़ेद रंग का तरल निकलता रहता है, इसे सफेद पानी की समस्या भी कहते हैं। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पाषाणभेद का काढ़ा बनाकर 20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर पिएं। इससे योनिस्राव और मूत्र संबंधी समस्याओं में आराम मिलता है।
#- ल्युकोरिया - 20-25 मिली पाषाणभेद के काढ़े में फिटकरी भस्म तथा मिश्री मिलाकर पीने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
#- योनिस्राव - पाषाणभेद का क्वाथ बनाकर 20 मिलीग्राम क्वाथ मे मधु मिलाकर पीने से योनिस्राव तथा मूत्रविकारों का शमन होता है।
#- अावर्त विकार - 1-2 ग्राम पाषाणभेद मूल चूर्ण का सेवन करने से आवर्त विकार में लाभ होता है।
#- घाव - पाषाणभेद के तने के रस को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। इसके अलावा पाषाणभेद की जड़ का पेस्ट लगाने से भी घाव जल्दी ठीक होते हैं और जलन कम होती है।
#- पाषाणभेद की मूल को पीसकर विद्रधि में लगाने से पूय ( मवाद ) का नि:सरण होकर विद्रधि में लाभ होता है।
#- रोमकूपशोथ - पाषाणभेद मूल कल्क को रोमकूपों की सूजन , क्षत , अग्निदग्ध , व्रण पर लगाने से लाभ होता है।
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