रामबाण योग :- 81 -:
पिठवन ( पृश्निपर्णी ) -
पिठवन (Uraria picta) के अतिरिक्त पिठवन की (Uraria lagopoides) तथा (Uraria rufescens) आदि जातियां पाई जाती हैं। दोनों के गुणधर्म समान हैं तथा दोनों ही प्रकार के पिठवन दशमूल में लघुंचमूल के अंग हैं। इन पर वर्षाकाल में फूल तथा शीतकाल में फली आती है। अथर्ववेद में पृश्निपर्णी को जीवाणुनाशक, कमजोरी दूर करने वाला तथा मोटापा को कम करने वाला माना जाता है। बृहत्रयी में रक्तार्श या खूनी बवासीर, वातविकार या गठिया के इलाज में मददगार होता है। चरक-संहिता में सूजन को कम करने वाला माना जाता है।
पिठवन का वानास्पतिक नाम Uraria picta (Jacq.) Desv. ex DC. (युरेरिआ पिक्टा) Syn- Hedysarumpictum Jacq होता है। इसका कुल Fabaceae (फैबेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Dabra (डाब्रा) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पिठवन और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-पृश्निपर्णी, शृंगालविन्ना, पृथक्पर्णी, चित्रपर्णी, अहिपर्णी, कोष्टुविन्ना, सिंहपुच्छी, धावनी, तन्वी, क्रोष्टुकपुच्छिका, त्रिपर्णी, पूर्णपर्णी, कलसी, सिंहलांगुली, पिष्टपर्णी, कोष्टुकमेखला, दीर्घा, अतिगुहा, सिंहपुच्छिका, दीर्घपत्रा, चक्रपर्णी, शीर्णमाला, मेखला, लांगुलिका,ब्रह्मपर्णी, दीर्घपर्णी, सिंहपुष्पी, विष्णुपर्णी, गुहा, उपचित्रा; Hindi-पिठवन, शंकरजटा, डाब्रा; कहते है। पिठवन के फायदों के बारे में जानने से पहले उसके औषधीय गुणों के बारे में जान लेना सबसे जरूरी होता है। पिठवन वात-पित्त-कफ तीनों दोषो को हरने वाला, वीर्य को बढ़ाने वाला, गर्म, मधुर, और बुखार के जलन और दस्त से खून निकलने, प्यास तथा वमन यानि उल्टी के इलाज में मददगार होता है। पिठवन रसायन, बलकारक व स्तम्भक (Styptic) होता है। इसके अलावा बुखार, प्रतिश्याय या सर्दी-जुकाम, कफ रोग एवं दुर्बलता को दूर करने के लिए प्रयुक्त होती है। पृश्निपर्णी उल्टी और बुखार के इलाज में फायदेमंद होती है। यह सांस संबंधी समस्या, रक्तगत वात, रक्तार्श या खूनी बवासीर, हड्डियों के टूटने एवं आँख संबंधी समस्या के इलाज में फायदेमंद होती है।
#- प्रतिशयाय ( जुकाम, नज़ला ) पिठवन की 10 ग्राम जड़ को 400 मिली पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष का काढ़ा बनाकर और काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से प्रतिश्याय यानि सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।
#- आँखों की पिल्लरोग - ताम्र पत्ते में पृश्निपर्णी जड़, सेंधानमक तथा मरिच चूर्ण मिला कर काञ्जी से पीस कर आँखों में काजल की तरह लगाने से पिल्ल रोग से आराम मिलता है।
#- रक्तातिसार - अगर किसी कारणवश दस्त से खून आना बंद नहीं हो रहा है तो बकरी के दूध में आधा-भाग जल मिला कर समान मात्रा में सुगन्धबाला, नीलकमल, सोंठ तथा पृश्निपर्णी मिलाकर सिद्ध कर 10-20 मिली मात्रा में पीने से रक्तातिसार से आराम मिलता है।
#- रक्तप्रवाहिका - पिठवन की मूल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में 250 मिलीग्राम बकरी का दूध मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
#- रक्तार्श - शराब पीने की अधिकता से उत्पन्न शारीरिक समस्या में पिठवन और खिरैटी का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से अत्यन्त लाभ होता है। इसके अलावा बला की जड़ तथा पृश्निपर्णी के काढ़े से बना धान के लावे की पेया को पीने से बवासीर में होने वाले रक्तस्राव से जल्द राहत मिलती है।
#- भगंदर - पिठवन के 8-10 पत्तों को पीसकर लेप करने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- भगंदर - 10 मिली पिठवन पत्ते के रस का नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से भगन्दर रोग में लाभ होता है।
#- भगन्दर - पिठवन के पत्तों में थोड़ा कत्था मिलाकर, पीसकर लेप करने से या कत्था तथा काली मिर्च समान मात्रा में मिलाकर, पीसकर पिलाने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- प्लीहावृद्धि - 10-20 मिली पिठवन पत्ता तथा जड़ के रस को पिलाने से प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
#- प्लीहा रोग - पृश्निपर्णी के पञ्चाङ्ग को मोटा-मोटा कूटकर छाया में सुखाकर रखें। सुबह शाम 10 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिली पानी में पकाएं, जब 100 मिली काढ़ा शेष रहे तब छानकर पिएं। इससे प्लीहावृद्धि, जलोदर, यकृत् व उदर सम्बन्धित रोगों में लाभ होता है।
#- सुखप्रसव, ( टोटका ) - पिठवन की जड़ों को पीसकर, इसका लेप नाभि, वस्ति(bladder) और योनि पर करने से बच्चा सुख से उत्पन्न हो जाता है, बच्चा होते ही लेप को धो दें।
#- अस्थिभग्न ( टोटका ) - 5 ग्राम पिठवन मूल के चूर्ण में 2 ग्राम हल्दी चूर्ण मिलाकर 21 दिन तक सेवन करने से लाभ होता है।
#- प्रबल वातरक्त - 200 मिली बकरी के दूध में 5 ग्राम पिठवन मूल को डालकर, पकाकर, छानकर इसमें मधु एवं शर्करा मिलाकर पीने से वातरक्त या गठिया के दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
#- व्रणरोपनार्थ - पृश्निपर्णी, केवाँच बीज, हल्दी, दारुहल्दी, चमेली, मिश्री तथा काकोल्यादि गण की औषधियों से पकाये हुए गाय के घी को व्रण पर लगाने से तथा खाने से व्रण या घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
#- कफजन्य मदात्यय - बला और पृश्निपर्णी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मदात्ययजन्य तृष्णा का शमन होता है।
#- अतिसार - समान मात्रा में शालपर्णी तथा पृश्निपर्णी को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़े में मधु मिला कर मात्रानुसार सेवन कराने से अतिसार या दस्त से आराम मिलता है।
#- रक्तपित्त , नकसीर - मसूर तथा पृश्निपर्णी के क्वाथ से निर्मित यवागू का सेवन रक्तपित्त में हीतकर होता है।
#- ज्वर ( टोटका ) - अच्छी तरह से फूले फलें पिठवन के पौधे की जड़ों को लाल धागे मे बाँधकर मस्तक पर धारण करने से ज्वर का शमन होता है।
#- विष चिकित्सा - 10 मिली पिठवन पञ्चाङ्ग के रस में शक्कर मिलाकर देने से वत्सनाभ (monkshood) के विष में लाभ होता है।
#- बाल रोग ( बच्चों) - समभाग शालपर्णी तथा पृश्निपर्णी को समान मात्रा में लेकर क्वाथ बना लें, 10-20 क्वाथ में मधु मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- रसायनार्थ - पिठवनमूल चूर्ण 3 ग्राम, 2 मिलीग्राम पुत्रजीवक पत्रस्वरस व 3 ग्राम पुत्रजीवक बीज चूर्ण मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने से त्रिदोषनाशक व वीर्यवर्धक,रसायन और दुर्बलता का नाश करता है क्योकि यह बलकारक व स्तम्भक व बाजीकर होता है।
#- दीर्घायु पुत्र प्राप्ति हेतू ( टोटका ) - रुद्राक्ष की तरह पुत्रजीवक बीजों की माला गले में धारण करते है । पुत्रजीवक के बीजों को धागे में गुथकर पुत्र प्राप्ति के लिए स्त्रियाँ गले में पहनती है। तथा बच्चो के गले में भी पहनाई जाती है जिससे बच्चे स्वस्थ बने रहे । इसके बीज , पत्र या जड़ को दूध के साथ सेवन करने से मृत्वत्सा ( जिसके बालक मर जाते है ) को दीर्घायु पुत्र प्राप्ति होती है।
Sent from my iPhone
No comments:
Post a Comment