Thursday, 20 May 2021

रामबाण योग :- 93 -:

रामबाण योग :- 93 -:

बेहडा -

बहेड़ात्रिफला (triphala) का एक अंग है। वसंत ऋतु में बहेड़ा के पेड़ (Bahera tree) से पत्ते झड़ जाने के बाद इस पर ताम्बे के रंग के नई टहनी या शाखा निकलते हैं। गर्मी के मौसम के आगमन तक इसी टहनी या शाका के साथ फूल खिलते हैं। वसंत के पहले तक इसके फल पक जाते हैं। बहेड़ा के फलों का छिलका कफनाशक होता है। यह कंठ और सांस की नली से जुड़ी बीमारी पर बहुत असर करती है। इसके बीजों की गिरी दर्द और सूजन ख़त्म करती है। बहेड़ा, आंवला, हरीतकी यह सब कफनाशक, योनिदोषनाशक, दूध को शुद्ध करने वाले और पाचक हैं। बहेड़ा विरेचक (Laxative) भी होता है। यह आमाशय को शक्ति देता है। आमाशय को ताकत देने वाली कोई भी दूसरी औषधि इससे बढ़कर नहीं है। इसका आधा पका फल रेशेदार और पाचक होता है। बहेड़ा बालों के लिए लाभकारी तथा मज्जा मदकारी होती है। बहेड़ा (Bibhitaki) का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी माना जाता है। आग से जलने के कारण हुए घाव पर भी बहेड़ा का तेल लाभकारी है। बहेड़ा (terminalia bellerica) वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को दूर करता है, लेकिन इसका मुख्य प्रयोग कफ-प्रधान विकारों में होता है। यह आँखों के लिए हितकारी, बालों के लिए पोषक होता है। इतना ही नहीं बहेड़ा असमय बाल पकने, गला बैठने, नाक सम्बन्धी रोग, रक्त विकार, कंठ रोग (लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस) तथा हृदय रोगों में फायदेमंद होता है। बहेड़ा कीड़ों को मारने वाली औषधि है। बहेड़े के फल की मींगी मोतियाबिन्द को दूर करती है। इसकी छाल खून की कमी, पीलिया और सफेद कुष्ठ में लाभदायक है। इसके बीज कड़वे, नशा लाने वाले, अत्यधिक प्यास, उल्टी, तथा दमा रोग का नाश करने वाले हैं। बहेड़ा (Bahera tree) का वानस्पतिक नाम Terminalia bellirica (Gaertn.) Roxb. (टर्मिनेलिया बेलेरिका) Syn-Myrobalanus bellirica Gaertn. है और यह Combretaceae (कॉम्ब्रेटेसी) कुल का है। इसका लैटिन नाम Belleric myrobalan (बेलेरिक मॉयरोबालान) है। English – सियामीस टर्मिनेलिआ (Siamese terminalia), बास्टर्ड मायरोबालान (Bastard myrobalan) , Hindi हल्ला, बहेड़ा, फिनास, भैरा, बहेरा; कहते है।
 


#- बालों के लिए हीतकर - बहेड़ा फल की मींगी का तेल बालों के लिए अत्यन्त पौष्टिक है। इससे बाल स्वस्थ हो जाते हैं।
 
#- नेत्रज्योति बढ़ना - बहेड़ा (belleric myrobalan)  चूर्ण 5 ग्राम और शक्कर 5 ग्राम को बराबर मात्रा में मिश्रण का सेवन आँखों की ज्योति को बढ़ाता है।

#- नेत्रज्योति - तिल का तेल, बहेड़ा का तैल, भांगरा का रस तथा विजयसार का काढ़ा लें। इनको लोहे के बर्तन में तेल में पकाएं। इसका रोज नस्य के रूप में प्रयोग करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।

#- नेत्रपीडा - बहेड़ा की छाल को पीसकर मधु के साथ मिलाकर लेप करने से आँख के दर्द का नाश होता है।

#- आँखों की सूजन व दर्द - बहेडे की मींगी के चूर्ण को मधु के साथ मिलाकर काजल की तरह लगाने से आँख के दर्द तथा सूजन आदि में लाभ होता है।

#- आँख रोग - इसके बीज के मज्जा के चूर्ण (Baheda churna) को शहद के साथ मिलाकर महीन पेस्ट बना लें। इसे रोज सुबह काजल की तरह लगाने से आँख का शुक्ररोग नष्ट होता है।


#- नेत्ररोग - नेत्र

रोग

में

 

बहेडा फल के चूर्ण 3-6 ग्रामकी मात्रा, शहद स्वादानुसार का

प्रयोग

फायदेमंद

होता

है

क्योंकि

आयुर्वेद

के

अनुसार

बहेड़ा

में

चक्षुष्य

गुण

पाया

जाता

है

जिससे

बहेड़ा

नेत्र

संबंधी

रोग

में

लाभ

पहुंचाता

है।


#- बेहडा फल मींगी व देशी मधु मिलाकर आँख मे अञ्जन करने से आँख की फूली ( मोतियाबिन्द ) को दूर करती है।

 


#- लालास्राव , अधिक लार बहना - 1½ ग्राम बहेड़ा में समान मात्रा में शक्कर मिला लें। इसे कुछ दिन तक खाने से अधिक लार बहने की परेशानी ठीक होती है।
 
#- श्वास रोग , खाँसी - बहेड़ा और हरड़ की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे 4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से दमा और खांसी में लाभ होता है।

#- खाँसी - बहेड़ा (belleric myrobalan) के बीज रहित फल के 3 से 6 ग्राम छिलके (जिन्हें पुटपाक करके निकाला है) को मुंह में रखकर चूसने से खांसी एवं दमा रोग में लाभ होता है।

#-दमा रोग, हिचकी - बहेड़ के फल की छाल के चूर्ण (10 ग्राम) में अधिक मात्रा में मधु मिला लें। इसे चाटने से दमा की गंभीर बीमारी तथा हिचकी में भी शीघ्र लाभ होता है।


#- गुर्दे की पथरी - बहेड़ा के फल के मज्जा के 3-4 ग्राम चूर्ण में मधु मिला लें। इसे सुबह-शाम चाटने से गुर्दे की पथरी की बीमारी में लाभ होता है।


#- खाँसी - बहेड़ा के छिलके को चूसने से खांसी में लाभ होता है। क्योकि यह त्रिदोषहर होता है।

#- खाँसी - बकरी के दूध में अडूसा, काला नमक और बहेड़ा डालकर पकाकर खाने से हर प्रकार की खांसी में लाभ होता है।

#- सूखी खाँसी - बहेड़ा के 10 ग्राम चूर्ण (Baheda churna) में शहद मिला लें। इसे सुबह और शाम भोजन के बाद चाटने से सूखी खाँसी तथा पुराने दमा रोग में बहुत लाभ होता है।

#- खासी-जुकाम - बहेड़ा फल को गाय के घी में चुपड़ लें। इसके ऊपर आटे का एक अंगुल मोटा लेप लगाकर पका लें। त्वचा के ताप के बराबर ठंडा होने पर इसके ऊपर का आटा निकाल लें। इसके बाद बहेड़ा के छिलके को चूसें। इससे खांसी, जुकाम, दमा तथा गला बैठने की समस्या में लाभ होता है।

#- खाँसी-जुकाम - बहेड़ा के एक फल को गाय के घी में डुबाकर, घास से लपेटें। इसे गाय के गोबर में बंद करके आग में पका लें। इसे बीजरहित कर मुंह में रख कर चूसें। इससे खांसी, जुकाम, दमा तथा गला बैठने जैसे रोगों का नाश होता है।

#- हृदय रोग - बहेड़ा के फल के चूर्ण तथा अश्वगंधा चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में लेकर गुड़ मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।


#- पाचनशक्तिवर्धनार्थ - बहेड़ा फल के 3-6 ग्राम चूर्ण (Baheda churna) को खाने के बाद सेवन करने से पाचनशक्ति ठीक होती है।

#- दस्त - बहेड़ा के पेड़ (baheda tree) की 2-5 ग्राम छाल और 1-2 नग लौंग को पीसकर 1 चम्मच शहद में मिला लें। इसे दिन में 3-4 बार चटाने से दस्त में लाभ होता है।

#- दस्त - बहेड़ा के 2-3 भुने हुए फल का सेवन करने से दस्त की गंभीर बीमारी व जीर्णअतिसार भी ठीक हो जाती है।

#- मूत्रदाह व गुर्दे की पथरी - बहेड़ा (vibhitaki) के फल के मज्जा के 3-4 ग्राम चूर्ण में मधु मिला लें। इसे सुबह-शाम चाटने से पेशाब में जलन व अश्मरी की समस्या में लाभ होता है।

#- पित्तज मधुमेह - बहेड़ा, रोहिणी, कुटज, कैथ, सर्ज, सप्तपर्ण तथा कबीला के फूलों का चूर्ण बना लें। इसे 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 चम्मच मधु के साथ मिलाकर सेवन करें। इससे पित्त विकार ( पित्तज प्रमेह ) के कारण हुए डायबिटीज में लाभ होता है।


#- कामोत्तेजना - 3 ग्राम बहेड़ा के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने से लाभ होता है। इसे रोज सुबह-शाम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है और काम भावना बढ़ती है।

#- दुग्ध शोधन दूध पिलाने वाली माताओं के स्तन मे जब दूध दुषित हो जाये बेहडा फल चूर्ण मधु मिलाकर सेवन करने से दुग्ध का शोधन होता है।

#- योनिदोष - बेहडा फल , आँवला , हरीतकी समभाग मिलाकर चूरण बनाकर 6 ग्राम चूर्ण में बराबर मात्रा मे गाय का घी मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से योनिदोष दूर होते है।
 
#- त्वचारोग, कण्डूरोग - बहेड़ा (vibhitaki) फल की मींगी का तेल खाज, खुजली आदि त्वचा रोग में लाभकारी है तथा जलन कम करने वाला है। इसकी मालिश से खुजली और जलन की परेशानी ठीक हो जाती है।
 
#- पित्तजविकार - बहेड़ा और जवासे के 40-60 मिली काढ़े में 1 चम्मच गाय का घी मिला लें। इसे दिन में तीन बार पीने से पित्तजज्वर और कफजज्वर से हुए बुखार में लाभ होता है।

#- पित्तज्वर - बहेड़ा के मज्जा को पीसकर शरीर पर लेप करने से पित्तज बुखार से होने वाली जलन कम होती है।

#- बेहडा के बीजों की गिरी का चूर्ण 5 ग्राम मे मधु मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है क्योकि यह वेदनाशामक व शोथहर होता है।

#- सूजन - बहेड़ा के बीजों को पीस कर लेप करने से सभी प्रकार की सूजन, जलन और दर्द  का नाश होता है।

#- बहेड़ा की मींगी का लेप करने से पित्तजज्वर व पित्तज विकार के कारण आयी सूजन पर लेप करने से ठीक होती है।
 
 
#- कफ निस्सारण - श्वास की समस्या अधिकतर कफ दोष के बढ़ने की वजह से होती है जिसमें श्वसन नली में बलगम इकठ्ठा होना शुरू हो जाता है। बहेड़ा फल चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में मधु मिलाकर प्रयोग करें क्योकि बेहडा में कफ शामक गुण पाया जाता है साथ ही इसके उष्ण होने के कारण यह बलगम को पिघला कर आराम देने में सहयोगी होता है। 
 
#- पाचनशक्तिवर्धनार्थ - बहेड़ा फल चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में भोजनोपरान्त सेवन करने से पाचनशक्ति तीव्र होती है क्योकि बेहडा में उष्ण गुण पाए जाने के कारण यह अग्नि को तीव्र कर पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करता है।

#- बेहडाफल चूर्ण 6 ग्राम मधुमिलाकर सेवन करने से पेट के कीडे मर जाते है।  


#- नुक़सान - बहेड़ा (vibhitaki) का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी हो सकती है।
 


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