रामबाण योग :- 88 -:
राजबला-
वानस्पतिक नाम : Sida cordata (Burm.f.) Borssum. (सिडा कॉरडेटा)
Syn-Sida veronicaefolia Lam. S. Humilis Cav. कुल : Malvaceae (मालवेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Snake mallow (स्नेक मेलो), संस्कृत-राजबला, प्रसारिणी, सुप्रसरा; हिन्दी-बननियार, भिउन्ली, खरेंटी, फरीद बूटी; कहते है।
समस्त भारत के मैदानी भागों, जंगलों तथा गांवों के आसपास की परती जमीन में लगभग 1050 मी की ऊँचाई तक राजबला के स्वयंजात पौधे पाए जाते हैं।
यह भूशायी अथवा उच्चभूस्तारी-आरोही, अत्यधिक अथवा अल्प रोमश, 0.5 मी ऊँचा, बहुवर्षायु शाकीय पौधा होता है। इसका काण्ड शाखित, अल्प विरल रोमों से आवरित तथा ग्रंथिल होता है। इसके पत्र सरल, एकांतर, 1-5 सेमी लम्बे एवं चौड़े, गोलाकार से अण्डाकार होते हैं। इसके पुष्प पाण्डुर पीतवर्ण के होते हैं। इसके फल 2-2.5 मिमी लम्बे तथा बीज एकल, 2 मिमी लम्बे, भूरे-कृष्णाभ वर्ण के, अण्डाकार होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल सितम्बर से जनवरी तक होता है। राजबला तिक्त, उष्ण, गुरु, त्रिदोषशामक, सारक, शुक्रवर्धक, बलकारक, व्रणसन्धान करने वाली तथा वातरक्तशामक होती है।
#- अजीर्ण - प्रतिदिन प्रात सायं 10 मिली राजबला मूल स्वरस को पीने से अजीर्ण में लाभ होता है।
#- प्रवाहिका - राजबला के पौधे के सत्व में शर्करा मिलाकर शर्बत बनाकर सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।
#- मूत्रदाह - राजबला फल तथा पुष्पों में शर्करा मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से मूत्रदाह में लाभ होता है।
#- शुक्रमेह - दो माह तक प्रतिदिन दिन में दो बार राजबला पौधे के जलीय सत्व में शर्करा मिलाकर सेवन करने से शुक्रमेह, प्रवाहिका में लाभ होता है।
#- पूयमेह - राजबलामूल त्वक् का काढ़ा बनाकर पीने से पूयमेह, मूत्रकृच्छ्र तथा श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
#- अतिसार- राजबलापत्र स्वरस का प्रयोग गर्भावस्था जन्य अतिसार की चिकित्सा में किया जाता है।
#- व्रण - राजबला पत्र को पीसकर लगाने से क्षत एवं व्रण का शोधन तथा रोपण होता है।
#- युवान पीडिका राजबला पत्र स्वरस को त्वचा में लगाने से युवान-पिडकाओं का शमन होता है।
#- आतपघात - राजबलामूल का हिम बनाकर पीने से आतपघात जन्य विकारों में लाभ होता है।
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