रामबाण योग :- 103 -:
बदर ( बेर )-
बदर जड़ी बूटी के बारे में शायद कम ही लोगों को पता है। लेकिन बदर के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। क्या आपको पता है कि बदर को बेर भी कहते हैं। आयुर्वेद में बदर या बेर सिरदर्द, नकसीर, मुँह के छाले, दस्त, उल्टी, पाइल्स, बवासीर जैसे कई बीमारियां ऐसी है जिसके लिए बदर के पत्ते, फल और बीज का इस्तेमाल किया जाता है। चरक के हृद्य, हिक्कानिग्रहण, उदर्द प्रशमन, विरेचनोपग, श्रमहर, स्वेदोपग गणों में तथा फलासव, कषाय एवं अम्लस्कन्ध में व सुश्रुत के आरग्वधादि एवं वातसंशमन में बदर या बेर का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेदीय-निघण्टुओं में बेर की कई प्रजातियों का वर्णन प्राप्त होता है। भावप्रकाश-निघण्टु में सौवीर, कोल तथा कर्कन्धु नाम से तीन प्रजातियों का एवं राजनिघण्टु में सौवीर, कोल, कर्कन्धु तथा घोण्टा नाम से बेर की चार प्रजातियों का वर्णन प्राप्त होता है।
यह लगभग 5-10 मी ऊँचा, शाखा-प्रशाखायुक्त, फैला हुआ, कंटकित तथा पर्णपाती छोटा वृक्ष होता है। इसकी तने की छाल खुरदरी, गहरे धूसर-कृष्ण अथवा भूरे रंग की, दरार युक्त, प्रबल तथा भीतर का भाग रक्ताभ रंग का व नवीन शाखाएं घने रोम वाली होती है। इसके पत्ते सरल, एकांतर, विभिन्न आकार के, 2.5-6.8 सेमी लम्बे एवं 1.5-5 सेमी चौड़े, दोनों ओर गोलाकार, ऊपर के पत्ते गहरे हरित रंग के एवं अरोमश तथा आधे पत्ते सघन सफेद अथवा भूरे रंग के मुलायम-सघन रोमश होते हैं। इसके फूल हरे-पीले रंग के तथा गुच्छों में होते हैं। इसके फल 1.2-2.5 सेमी व्यास या डाइमीटर के, गोल अथवा अण्डाकार, मांसल, कच्ची अवस्था में हरे व पके अवस्था में पीले और नारंगी से लाल-भूरे रंग के तथा पूर्णतया पकने पर लाल रंग के होते हैं। फलों के अन्दर गोल, कड़ी तथा खुरदरी गुठली होती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल सितम्बर से फरवरी तक होता है।
बदर या बेर (jujube in hindi) प्रकृति से मधुर, कषाय, अम्ल, गर्म, वात-पित्त कम करने वाले होते हैं। यह शक्ति बढ़ाने वाले, वीर्य या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने वाले, होते हैं। यह सांस संबंधी समस्या, खांसी, प्यास, जलन, उल्टी, नेत्ररोग, बुखार, सूजन, रक्तदोष, विबंध या कब्ज तथा आध्मान या अपच नाशक होते हैं।
बदर के फल मज्जा या पल्प मधुर, वात को दूर करने वाला, स्तम्भक, शीतल, दीपन, बलकारक, वृष्य तथा शुक्रल होती है। यह खांसी, सांस लेने में प्रॉबल्म, प्यास, दाह तथा उल्टी को कम करने वाला होता है। इसके पत्ता बुखार, जलन तथा विस्फोट नाशक होते हैं। बदर का बीज नेत्ररोग नाशक तथा हिक्का शामक होते हैं।
बदर का फूल कुष्ठ तथा कफपित्त कम करने वाले होते हैं। पके हुए बदर पित्तवातशामक, मधुर, शक्तिवर्द्धक, कफकारक, दस्त रोकने वाले, उल्टी में फायदेमंद, रक्त संबंधी रोग में फायदेमंद होते हैं। सूखे बदर कफवातशामक होते हैं। बेर का वानास्पतिक नाम Ziziphus mauritiana Lam. (जिजिपैंस मौरिशिएना) Syn-Ziziphus jujuba Lam होता है। बदर Rhamnaceae (रैम्नेसी) कुल का होता है। बेर को अंग्रेजी में Jujube (जूजूब) कहते हैं । Sanskrit-फेनिल, कुवल, घोण्टा, सौवीर, बदरी, कोली, कोल, पिच्छिला, अजप्रिया, उभयकण्टका, सुरस, फलशैशिर, वृतफल, गोपघोंटा, हस्तिकोली, गोपघोटी, बादिर, गूढ़फल, दृढ़बीज, कण्टकी, वक्रकण्टक, सुबीज, सुफल, स्वच्छ, स्वादुफल, स्वादुफला, कोलिक, उभयकण्टक, गुड़फल;
Hindi-
बेर
,
बैर
,
बहर
; कहते है।
बेर
या
बदर
(jujube in hindi)
में
कई
प्रकार
के
पोषक
तत्व
होते
हैं
जैसे
विटामिन
,
मिनरल
,
एन्टी
ऑक्सिडेंट
आदि।
बेर
देखने
में
तो
छोटे
होते
हैं
।
#- सिरदर्द - अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो बेर के जड़ तथा पिप्पली या बदर की छाल को पीसकर सिर पर लेप करने से सिर दर्द से छुटकारा मिलता है।
#- नेत्ररोग - बेर की छाल को पीसकर नेत्र के बाहर चारो तरफ लगाने से आँखों का दर्द कम होता है।
#- नकसीर - कुछ लोगों को अत्यधिक गर्मी या ठंड के कारण भी नाक से खून बहने की समस्या होती है। बेर वृक्ष के पत्तों को पीसकर कनपटी पर लेप करने से नकसीर बन्द हो जाती है।
#- मुखपाक व मसूडो से रक्त बहना - बेर के पत्र फाण्ट में नमक मिलाकर गरारा करने से मुख के घाव एवं मसूड़ों से होने वाली ब्लीडिंग व गले का दर्द कम होता है।
#- मुँह के छालें - बेर तथा बबूल की छाल को मिलाकर, काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुख के छाले मिट जाते हैं।
#- खाँसी-जुकाम - मौसम बदला कि नहीं बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े सबको सर्दी-खांसी की शिकायत हो जाती है। बेर के पत्ते को गाय के घी में भूनकर, पीसकर सेंधानमक मिला कर चाटने से स्वरभेद तथा खांसी की समस्या से राहत मिलती है।
#- वातज कास - 2-4 ग्राम बेरमज्जा चूर्ण को गौदधि अथवा दही के पानी के साथ सेवन करने से वातज-कास में लाभ होता है।
#- खाँसी - समान मात्रा में दंती, द्रंती, तिल्वक तथा गाय का घी में भुने हुए बेर के पत्ते के चूर्ण (1-2 ग्राम) में सेंधानमक मिलाकर कोष्ण (गुनगुने) जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
#- कण्ठप्रदाह - बेरपत्र फाण्ट में नमक मिलाकर गरारा करने से कण्ठप्रदाह ( गले की जलन ) दूर होती है
।
#- स्तन्यवृद्धि - अगर डिलीवरी के बाद ब्रेस्ट में दूध की कमी है तो बेर का सेवन इस तरह से करने में जल्दी लाभ मिलता है। बेर के जड़ को चबा कर धीरे-धीरे चूसने से एक सप्ताह में दूध (स्तनपान कराने वाली महिलाओं में) की वृद्धि होने लगती है।
#- उलटी , कफज छर्दि - समान भाग में जामुन तथा खट्टे बेर के चूर्ण (1-2 ग्राम) में मधु मिलाकर चाटने से कफ के कारण होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
#- जी मिचलाना, वमन - बेर मज्जा को लौंग तथा मिश्री के साथ मिलाकर खाने से उल्टी के अनुभूति से लाभ मिलता है।
#- अतिसार – बेर से निर्मित जूस में घी मिला कर चावल के साथ भोजन में प्रयोग करने से अतिसार में लाभ होता है।
# - दस्त -1-3 ग्राम बेर के जड़ के छाल के चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से अतिसार या दस्त में लाभ होता है।
#- अतिसार - समान मात्रा में बेर, अर्जुन, जामुन, आम, शल्लकी तथा वेतस के छाल के चूर्ण (1-2 ग्राम) में शर्करा तथा मधु मिला कर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- ख़ूनी अतिसार - 5-10 मिली बदर पत्ते के रस या1-2 ग्राम बेर छाल को पीसकर अजा दूध तथा मधु मिलाकर सेवन करने से दस्त से खून आना बंद होता है।
#- ख़ूनी अतिसार - समान मात्रा बेर जड़ के पेस्ट (1-2 ग्राम) तथा तिल के पेस्ट में मधु एवं गाय का दूध मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार में लाभ होता है।
#- प्रवाहिका - अगर खान-पान में गड़बड़ी के वजह से पेचिश हो गया है तो बेर का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी राहत मिलती है। दही के साथ बेर के पत्तों के चूर्ण (1-2 ग्राम) का सेवन करने से प्रवाहिका या पेचिश में लाभ होता है।
#- मूत्रकृच्छ - मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। बेर इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है। बेर के पत्तों को पीसकर नाभि के नीचे (पेडू) पर लगाने से मूत्र त्याग के समय होने वाली जलन तथा असहनीय वेदना से राहत मिलती है।
#- श्वेतप्रदर - महिलाओं को वैजाइना से सफेद पानी आने की समस्या सबसे ज्यादा होती है और इसी कारण उन्हें सबसे ज्यादा कमजोरी का भी सामना करना पड़ता है। इससे राहत पाने के लिए समान मात्रा में गाय का घी, गुड़ तथा कर्कन्धु (छोटी बेर) चूर्ण (1-2) को खाने से प्रदर रोग में लाभ होता है।
#- श्वेतप्रदर - 1-2 ग्राम बेर के जड़ के चूर्ण को गुड़ के साथ खाने से प्रदर रोग या सफेद पानी आने की समस्या में लाभ होता है।
#- वीर्य विकार - आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं। बेर की गुठली की मज्जा को गुड़ के साथ पीसकर खाने से शुक्र संबंधी समस्या में लाभ होता है तथा शरीर पुष्ट होता है।
#- गठिया - आजकल अर्थराइटिस की समस्या उम्र देखकर नहीं होती है। दिन भर एसी में रहने के कारण या बैठकर ज्यादा काम करने के कारण किसी भी उम्र में इस बीमारी का शिकार होने लगे हैं। इससे राहत पाने के लिए बेर का इस्तेमाल ऐसे कर सकते हैं। बेर के छाल का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में सेवन करने से आमवात तथा वातरक्त (गठिया) में लाभ होता है।
मुसूरिका ( स्मॉल पॉक्स ) - स्मॉल पॉक्स के कष्ट से राहत पाने के लिए बेर का इस्तेमाल ऐसे करना फायदेमंद होता है। 1-2 ग्राम बेर फल चूर्ण को गुड़ के साथ सेवन करने से स्मॉल पॉक्स की परेशानी कम होती है।
#- कुष्ठ , पामा , खुजली - बेर की जड़ का काढ़ा बनाकर, उसमें चावलों को पकाकर खाने से खुजली में लाभ होता है।
#- दाद - बेर वृक्ष से प्राप्त निर्यास को बकरी के दूध में मिलाकर मिलाकर लेप करने से दद्रु या रिंगवर्म से छुटकारा मिलता है।
#- पित्तज विकार - 10-12 ग्राम बेर की गुठली की मज्जा का चूर्ण खिलाने से पित्तज संबंधी रोगो में लाभ मिलता है।
#- घाव, छत - बेर की मूल का चूर्ण बनाकर घावों पर छिड़कने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
#- फोड़े - पुराने घाव तथा फोड़ों पर बदर ( बेर ) की छाल का चूर्ण डालने से भी लाभ होता है।
#- दुष्टव्रण - विद्रधि तथा फोड़े को जल्दी पकाने के लिए बेर के कोमल पत्तों को पीसकर गुनगुना करके लगाना चाहिए ।
#- नासूर व्रण - बेर के पत्तों और नीम के पत्तों को पीसकर नासूर पर लगाने से नासूर मिट जाता है।
#- तेज़ बुखार - बुखार में यदि शरीर का ताप बहुत बढ़ गया है तो बेर के पत्तों एवं रीठे के झाग को शरीर पर लेप करने से लाभ होता है।
#- मोटापा - बेर के पत्ते के काढ़े से बने पेय को कांजी के साथ पीने से मोटापा घटता है। बेर खाने के फायदे से वजन कम होने में मदद मिलती है।
#- विटामिन - अगर आप विटामिन सी के लिए कोई प्राकृतिक स्त्रोत ढूंढ रहे है तो बेर आपके लिये एक अच्छा साधन है, क्योंकि बेर में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है जो कि आपकी विटामिन -सी की कमी दूर करने में मदद करता है।
#- हृदय रोग - दिल के लिये फायदेमंद बेर का सेवन होता है, क्योंकि बेर कार्डिक टॉनिक होने के साथ – साथ यह कोलेस्ट्रॉल को भी नहीं बढ़ने देता है जिससे दिल यानि हृदय अपनी नियमित गति से काम करता पाता है।
#- डायरिया - 6-8 बेर का सेवन पेट की समस्या जैसे डायरिया में बहुत लाभकारी होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार बेर में कषाय रस होता है जो कि डायरिया में मल प्रवृति को नियंत्रित करने में सहायता करता है और पेट की समस्या में लाभ देता है।
#- घाव - बेर की जड़ से बने काढे से घाव को धोने पर घाव को जल्दी भरने में मदद मिलती है साथ ही कषाय गुण होने के कारण ये घाव से होने वाले स्त्राव को भी नियंत्रित करता है।
#- अनिद्रा - बेर के बीज में निद्रा को लाने का गुण पाया जाता है इसलिए इसका प्रयोग औषधि के रूप में निद्रा को लाने के लिए किया जाता है।
#- अग्निदग्ध , दाह - बदर के पत्ते, नीम पत्ता तथा रीठा के पेस्ट से उत्पन्न झाग का लेप करने से जलन कम होता है।
#- प्रलाप - ब्राह्मी तथा बेर की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से प्रलाप में लाभ होता है।
#- बिच्छुदंश - बेर छाल को पीसकर बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लेप करने से बिच्छु काटने पर जो दर्द ,सूजन और दाह आदि होता है उससे राहत मिलती है।
#- बिच्छुदंश - गूलर तथा बेर के कोमल पत्तों को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से विष प्रभाव के कारण उत्पन्न दाह, वेदना तथा सूजन में भी लाभ होता है।
#- अर्श - बेरपत्र क्वाथ में रोगी को बैठाकर अवगाहन करने से अर्श के कारण उत्पन्न वेदना का शमन होता है।
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