रामबाण योग :- 78 -:
पुष्कर मूल -
वैदिक ग्रन्थों में पुष्करमूल का उल्लेख नहीं मिलता है। चरक-संहिता में सांस और हिक्का-निग्रहण-महाकषाय में एवं बुखार, गुल्म या ट्यूमर, प्रमेह या डायबिटीज, यक्ष्मा या तपेदिक, अर्श या पाइल्स, उदररोग या पेट के रोग, कास याखांसी, हृद्रोग या हृदयरोग, शिरोरोग या सिरदर्द, वातरोग या गठिया आदि कई प्रयोगों में पुष्करमूल का उल्लेख प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त सुश्रुत-संहिता के फलवर्ग में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। कई विद्वान कूठ तथा पुष्करमूल को एक ही औषधि मानते हैं परन्तु यह दोनों आपस में पूरी तरह से अलग होते हैं। भावप्रकाश निघण्टु में पुष्करमूल के अभाव में कूठ का प्रयोग बताया है। वर्तमान समय में पुष्करमूल के स्थान पर कूठ का प्रयोग करते है। इसकी मूल कच्ची अवस्था में छोटी मूली के आकार के जैसी पतली तथा मोटी कई पर्तो वाली हो जाती है। नवीन अवस्था में मूल छाल भूरे रंग की, भीतरी भाग पीला-सफेद रंग का, सूखे अवस्था में कठोर धूसर रंग की, तथा झुर्रीदार होती है। यह मूल वाह्य दृष्टि से कूठ के जैसी ही प्रतीत होती है, परन्तु कूठ की मूल इससे पूर्णत भिन्न होती है। पुष्करमूल का वानास्पतिक नाम Inula racemosa Hook.f. (इनूला रेसिमोसा) होता है। इसका कुल Asteraceae (ऐस्टरेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Oris root (ऑरिस रूट) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पुष्करमूल और किन-किन नामों से जाना जाता है। Sanskrit-पुष्करमूल, पुष्कर, पौष्कर, पद्मपत्र, काश्मीर, पद्मपत्रक, पुष्करिणी, वीरपुष्कर, पद्मवर्णक, पद्मकर्ण, ब्रह्वतीर्थ, श्वासारि, शूलघ्न; Hindi-पोहकरमूल, पुष्करमूल; Urdu-रासन (Rasana); कहते है।
पुष्करमूल प्रकृति से कड़वा, तीखा, गर्म, कफ-वात से आराम दिलाने वाला, बुखार, सूजन, सांस संबंधी समस्या, हिक्का, खांसी, पाण्डु या पीलिया, वमन या उल्टी, आध्मान या पेट, प्यास, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्या से राहत दिलाने में मदद करता है। इसकी मूल या जड़ व्रण या घाव, क्षत या चोट, अजीर्ण या अपच, अरुचि या खाने की इच्छा में कमी, आध्मान या पेट फूलने की बीमारी, जठरशूल या पेटदर्द, हृदय रोग, कुक्कुर खांसी, श्वासकष्ट या सांस में कष्ट, श्वसनिकाशोथ , अनार्तव (Ammenorrhea), कष्टार्तव (Dysmenorrhoea), त्वक् रोग या त्वचा रोग, फुफ्फुस या लंग्स में सूजन, रक्ताल्पता या रक्त की कमी, ज्वर या बुखार, शोथ या सूजन, सामान्य दौर्बल्य या सामान्य दुर्बलता, कान में सूजन, रोमकूप में सूजन तथा खालित्य (Baldness) में लाभदायक होती है।इसकी मूल लीवर को स्वस्थ रखने या क्रियाशीलता को बनाये रखने में मदद करता है।
#- मुखदुर्गन्ध - से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं, पुष्करमूल चूर्ण को दांतों पर मलने से दांत संबंधी रोग तथा मुख के बदबू दूर करने में मदद करता है।
#- कर्णशूल - कान दर्द से परेशान रहते हैं तो पुष्करमूल का औषधीय गुण इससे राहत दिलाने में बहुत मदद करता है। 1-2 बूंद पुष्कर मूल के रस को कान में डालने से कान दर्द से आराम मिलता है।
#- श्वास - कास ( दमा- खाँसी ) -1-2 ग्राम पुष्करमूल चूर्ण में मधु मिलाकर 10-20 मिली दशमूल काढ़े के साथ पीने से हिक्का, टी.बी., पार्श्वशूल (पाँजर में होने वाला दर्द) तथा हृदय में होने वाला दर्द में लाभ होता है।
#- उदरशूल ,श्वासनलिका शोथ व खाँसी -1-2 ग्राम पुष्कर मूल चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से पेटदर्द, खांसी तथा श्वसनिका (bronchiole) के सूजन को कम करने में मदद मिलती है।
#- हिचकी, हिक्कारोग- 1-2 ग्राम पुष्करमूल चूर्ण में 60 मिग्रा यवक्षार (saltpeter) तथा 500 मिग्रा काली मिर्च चूर्ण मिलाकर गर्म जल के साथ सेवन करने से सांस संबंधी समस्या तथा हिचकी में लाभ होता है।
#- हृदय रोग - हृदय संबंधी समस्याओं से परेशान हैं तो पुष्करमूल का इस तरह से उपयोग करने पर जल्दी आराम मिलेगा। 1-2 ग्राम पुष्कर मूल चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से हृदय में दर्द, सांस में कष्ट, खांसी तथा हिक्का में लाभ होता है।
#- अरूचि - अगर लंबे बीमारी के बाद खाने की रूची चली गई है तो पुष्कर मूल का मुरब्बा बनाकर खाने से अरुचि से राहत मिलती है।
#- उदर दाह - पेट दर्द से हाल बेहाल है तो पुष्करमूल का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है। पुष्कर मूल के साथ समान मात्रा में एरण्डमूल, इन्द्रयव तथा धमासा मिलाकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा पिलाने से गुल्म या ट्यूमर के कारण उत्पन्न पेट दर्द तथा जलन से जल्दी आराम मिलती है।
#- मासिक विकार - 1-2 ग्राम पुष्कर मूल चूर्ण का सेवन करने से आर्तव विकारों (मासिक-विकार) में लाभ होता है।
#- गठिया रोग - पुष्करमूल का औषधीय गुण गठिया के दर्द से आराम दिलाने में बहुत मदद करता है।
#- जोडो के दर्द -पुष्कर मूल के बीजों को पीसकर लगाने से आमवात तथा जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
#-संधिशूल व संधिशोथ -2 ग्राम पुष्कर मूल चूर्ण में समान मात्रा में अश्वगंधा तथा चोपचीनी चूर्ण मिलाकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
#- कटिशूल - पुष्कर मूल को पीसकर कमर में लगाने से कमर दर्द से जल्दी आराम पाने में आसानी होता है।
#- कण्डूरोग, खुजली -पुष्करमूल को गोमूत्र के साथ पीसकर, पेस्ट बनाकर लेप करने से कण्डू या खुजली से राहत मिलती है।
#- क्षत, चोट- -पुष्करमूल को पीसकर घाव, क्षत (चोट) तथा सूजन में लगाने से अत्यन्त लाभ मिलता है।
#- त्वचारोग -पुष्करमूल का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोने से त्वचा रोगों में लाभ होता है।
#- शारीरिक बदबू -1-2 ग्राम पुष्करमूल चूर्ण को (21 दिन तक) शहद के साथ सेवन करने से शरीर के बदबू में आराम मिलता है।
#- ज्वर - पुष्करमूल का 1-2 ग्राम क्वाथ का प्रयोग ज्वर चिकित्सा उपयोग होता है।
#- दुर्बलता - 1-2 ग्राम पुष्करमूल चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटने से दुर्बलता मिटती है।
#- शोथ - पुष्करमूल चूर्ण में समभाग पुनर्नवा, हरीतकी , दारूहल्दी , तथा सोंठ मिलाकर 1-2 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र के साथ सेवन करने से शोथ का शमन होता है।
#- ज्वर - पुष्करमूल , कटेरीमूल , चिरायता , कुटकी, सोंठ , गुडूची , सबको बराबर मात्रा में लेकर क्वाथ बना ले 10-30 मिलीग्राम क्वाथ में शहद मिलाकर पीने से ज्वर का शमन होता है।
#- कफज्वर - पुष्करमूल , तुलसीपत्र , तथा छोटी पीपल को बराबर मात्रा में मिलाकर , पीसकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह सायं पीने से कफज्वर में लाभ होता है।
#- ज्वरनाशक - पुष्करमूल , कटेरीमूल , सोंठ, गिलोय, को समभाग लेकर क्वाथ बनाकर पीने से सन्निपात ज्वर, कफज्वर तथा श्वास, कास, अरूचि मे लाभ करता है।
#- बच्चो के श्वास रोग- पुष्करमूल तथा अतिस चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर मात्रानुसार माता के दुग्ध या गाय के दुग्ध के साथ पिलाने से ज्वर , श्वास , पसली की पीड़ा आदि रोग ठीक होते है।
#- बाल रोग - पुष्करमूल चूर्ण को माता के दूध के साथ पीसकर पिलाने से बाल रोगों का शमन होता है।
#- उदरकृमि - पुष्करमूल चूर्ण तथा सहजन बीज चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से उदर कृमियों का शमन होताहै।
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#- बच्चो के कफज विकार - पुष्करमूल का फाण्ट बनाकर बच्चो को पिलाने से कफज विकारों का शमन होता है।
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