रामबाण योग :- 71 -:
#- पिप्पली -
पिप्पली एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद में पिप्पली की चार प्रजातियों के बारे में बताया गया है, लेकिन व्यवहार में छोटी और बड़ी दो प्रकार की पिप्पली ही आती हैं। पिप्पली की लता भूमि पर फैलती है। यह सुगन्धित होती है। इसकी जड़ लकड़ी जैसी, कड़ी, भारी और शयामले रंग की होती है। जब आप इसे तोड़ेंगे तो यह अन्दर से सफेद रंग की होती है। इसका स्वाद तीखा होता है। पिप्पली के पौधे (Pippali plant) में फूल बारिश के मौसम में खिलते हैं, और फल ठंड के मौसम में होते हैं। इसके फलों को ही पिप्पली (पीपली ) कहते हैं। बाजार में इसकी जड़ को पीपला जड़ के नाम से बेचा जाता है। जड़ जितना वजनदार व मोटा होता है, उतना ही अधिक गुणकारी माना जाता है। बाजार में जड़ के साथ-साथ गांठ आदि भी बेची जाती है।
#- पिप्पली का वानस्पतिक नाम पाइपर लांगम (Piper longum Linn.) है और यह पाइपरेसी (Piperaceae) कुल से है। -Hindi – पीपली, पीपर; उर्दू-पिपल (Pipal); Sanskrit – पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा, कृकला, कटुबीज, कोरङ्गी, श्यामा, सूक्ष्मतण्डुला, दन्तकफा, English – लॉन्ग पेपर (Long pepper), इण्डियन लौंग पीपर (Indian long pepper), ड्राईड कैटकिन्स (Dried catkins) कहते है।
#- दाँत दर्द - दांतों के रोग के इलाज के लिए 1-2 ग्राम पीपली चूर्ण में सेंधा नमक, हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांतों पर लगाएं। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।
#- दन्तशूल - पिप्पली चूर्ण में 3 ग्राम मधु और गाय का घी मिलाकर दिन में 3-4 बार दाँतों पर लेप करें। इससे दांत में ठंड लगने की परेशानी में लाभ मिलता है।
#- दन्तहर्ष - पीप्पली चूर्ण (pippali churna)में मधु एवं घी मिलाकर दांतों पर लेप करने से भी दांत के दर्द में फायदा होता है।
#- दाँत मे ठंडा लगना - 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण में 3 ग्राम मधु और गाय का घी मिलाकर दिन में 3-4 बार दाँतों पर लेप करें। इससे दांत में ठंड लगने की परेशानी में लाभ मिलता है।
#- हनुग्रह ,जबड़ा रोग - किसी व्यक्ति को जबड़े से संबंधित परेशानी हो रही हो तो उसे काली पिप्पली (kali pipli) तथा अदरक को बार-बार चबाकर थूकना चाहिए। इसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करना चाहिए। इससे जबड़े की बीमारी ठीक हो जाती है।
#- बच्चों के जब दांत निकल रहे होते हैं - तो उन्हें बहुत दर्द होता है। इसके साथ ही अन्य परेशानियां भी झेलनी पड़ती है। ऐसे में 1 ग्राम पिप्पली चूर्ण को 5 ग्राम शहद में मिलाकर मसूढ़ों पर घिसने से दांत बिना दर्द के निकल आते है।
#- बच्चों को खांसी या बुखार होने पर बड़ी पिप्पली को घिस लें। इसमें लगभग 125 मिग्रा मात्रा में मधु मिलाकर चटाते रहें। इससे बच्चों के बुखार, खांसी तथा तिल्ली वृद्धि आदि समस्याओं में विशेष लाभ होता है।
#- बच्चो का अधिक रोना - बच्चे अधिक रोते हैं तो काली पिप्पली (kali pipli)और त्रिफला का समान मात्रा लें। इनका चूर्ण बना लें। 200 मिग्रा चूर्ण में एक ग्राम गाय का घी और शहद विषम मात्रा मानें मिलाकर सुबह-शाम चटाने से लाभ होता है।
#- खाँसी - पिप्पली को तिल के तेल में भूनकर पीस लें। इसमें मिश्री मिलाकर रख लें। इसे 1/2-1 ग्राम मात्रा में कटेली के 40 मिली काढ़ा में मिला लें। इसे पीने से कफज विकार के कारण होने वाली खांसी में विशेष लाभ होता है।
#- खाँसी - पिप्पली के 3-5 ग्राम पेस्ट को गाय के घी में भून लें। इसमें सेंधा नमक और शहद मिलाकर सेवन करें। इससे कफज विकार के कारण होने वाली खांसी में लाभ होता है।
#- बच्चो के बुखार, हिचकी - इसी तरह 500 मिग्रा पिप्पली चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे बच्चों की खांसी, सांसों की बीमारी, बुखार, हिचकी आदि समस्याएं ठीक होती हैं।
#- ज़ुकाम - पीपल, पीपलाजड़, काली मिर्च और सोंठ के बराबर-बराबर भाग का चूर्ण बना लें। इसकी 2 ग्राम की मात्रा लेकर शहद के साथ चटाते रहने से जुकाम में लाभ मिलता है।
#- जुकाम - पिप्पली के काढ़ा में शहद मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाने से भी जुकाम से राहत मिलती है ।
#- आवाज़ बैठना - गला बैठने (आवाज के बैठने) पर बराबर-बराबर मात्रा में पिप्पली तथा हर्रे लें। इनका चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को कपड़े से छानकर मधु मिला लें। इसका सेवन करने, तथा इसके बाद तीक्ष्ण मद्य का पान करने से कफज विकार के कारण गला बैठने की समस्या में लाभ होता है।
#- खाँसी - खांसी और सांसों से संबंधित बीमारी में पिप्पली का सेवन लाभ पहुंचाता है। इसके लिए पिप्पली, आमला, मुनक्का, वंशलोचन, मिश्री व लाख को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसे 3 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम गाय का घी और 4 ग्राम शहद में मिला लें। इसे दिन में तीन बार नियमित रूप से लेने से खांसी ठीक होती है। इसे आपको 10-15 दिन लेना होगा।
#- खाँसी - पिप्पली ,पीपलाजड़, सोंठ और बहेड़ा को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम तक, दिन में 3 बार शहद के साथ चटाने से खांसी में लाभ होता है। विशेषकर पुरानी खाँसी व बार-बार होने वाली खाँसी में यह अत्यन्त लाभदायक है।
#- श्वास रोग आदि - एक ग्राम पिप्पली चूर्ण में दोगुना शहद या बराबर मात्रा में त्रिफला मिला लें। इसे चाटने से सांसों के रोग, खांसी, हिचकी, बुखार, गले की खराश, साइनस व प्लीहा रोग में लाभ होता है ।
#- अनिद्रा रोग नींद ना आने की परेशानी में पिप्पली (Pipali) की जड़ के महीन चूर्ण बना लें। चूर्ण की 1-3 ग्राम तक की मात्रा को मिश्री के साथ सुबह और शाम सेवन करें। इससे पाचन संबंधी विकार ठीक होते हैं, और नींद अच्छी आती है। वृद्ध लोग इसका प्रयोग विशेष रूप से कर सकते हैं।
#- अनिद्रा - आधा चम्मच पिप्पली के जड़ के चूर्ण को गाय के गर्म दूध या पानी के साथ सेवन करने से अनिद्रा तुरंत आराम मिलता है। इससे नींद भी अच्छी आती है।
#- चोट- मोच :- शरीर के किसी भी अंग में चोट लगने या मोच आने के कारण दर्द हो रहा हो तो आधा चम्मच पिप्पली के जड़ के चूर्ण को गाय के गर्म दूध या पानी के साथ सेवन करने से तुरंत आराम मिलता है।
#- चोट-मोच - गाय के दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर प्रयोग किया जाये तो चोट, मोच के दर्द में बहुत लाभ होता है।
#- शूल , वातविकार - लौंग, अकरकरा, पीपर, देवदारु, शतावरी, पुनर्नवा, सौंफ, विधारा, पोहकरजड़, सोंठ तथा अश्वगंधा को समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से सामान्य कारणों से होने वाला अंगों के दर्द में लाभ होता है। इससे वातज विकार के कारण होने वाला दर्द भी ठीक होता है।
#- मोटापा - मोटापा को कम करने (वजन घटाने) के लिए पिप्पली का सेवन लाभदायक होता है। आप 2 ग्राम पिप्पली चूर्ण में मधु मिलाकर दिन में 3 बार कुछ हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करें। इससे मोटापा कम होता है। आपको यह ध्यान रखना है कि मोटापा कम करने के लिए पिप्पली चूर्ण के सेवन के एक घंटे तक जल को छोड़कर कुछ भी सेवन ना करें। जल का भी सेवन तब करना है जब बहुत अधिक प्यास लगी हो। इससे निश्चित तौर पर मोटापा कम हो जायेगा।
#- उल्टियाँ - पिप्पली, आमला, मुनक्का, वंशलोचन, मिश्री व लाख को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसके 3 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम गाय का घी और 4 ग्राम शहद में मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। इसे नियमित तौर पर 10-15 दिन लेने से उल्टी में लाभ होता है।
#- हिचकी , हिक्कारोग - पिप्पली व मुलेठी के चूर्ण को बराबर-बराबर मात्रा में मिला लें। चूर्ण के बराबर मात्रा में शक्कर मिलाकर रखें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
#- हिचकी रोग - 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण में बराबर मात्रा में शक्कर मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से भी हिचकी में लाभ मिलता है।
#- हिचकी रोग - पिप्पली, आमला, मुनक्का, वंशलोचन, मिश्री व लाख को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इसे 3 ग्राम चूर्ण में 1 ग्राम गाय का घी और 4 ग्राम शहद में मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से हिचकी ठीक होती है। आपको नियमित तौर पर 10-15 दिन लेना है।
#- जीर्णअतिसार , प्रवाहिका ,दस्त - बहुत अधिक दस्त हो रहा हो तो पिप्पली को पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में बकरी या गाय के दूध के साथ सेवन करें। इससे जीर्णअतिसार, प्रवाहिका , दस्त पर रोक लगती है।
#- उदरशूल व दुर्गन्धयुक्त अतिसार - पेट दर्द के लिए पीपल और छोटी हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करने पर पेट दर्द, पेट के मरोड़े व बदबूदार दस्त की परेशानी ठीक होती है।
#- पेटदर्द - पिप्पली के 2 ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम काला नमक मिलाकर गर्म जल के साथ सेवन करने से पेट दर्द का ठीक होता है।
#- पेटदर्द - एक भाग पिप्पली, एक भाग सोंठ और 1 भाग काली मिर्च, तीनों को बराबर-बराबर मिलाकर, महीन पीस लें। भोजन के बाद 1 चम्मच चूर्ण को गर्म जल के साथ दो बार नियमित रूप से कुछ दिन तक सेवन करें। इससे पेट दर्द ठीक होता है।
#- मंदाग्नि ,पाचनतन्त्र व खाँसी - पाचनतंत्र विकार को ठीक करने के लिए 250 ग्राम पीपल और 250 ग्राम गुड़ का पेस्ट बना लें। इसे 1 किलो गाय का घी, 4 लीटर बकरी का दूध (न मिलने पर गाय का दूध) में धीमी आग पर पकाएं। जब केवल घी मात्र रह जाये तो इस घी को पाचनतंत्र विकार और खांसी में प्रयोग करें। आपको केवल 1 चम्मच दिन में तीन बार सेवन करना है। इससे लाभ मिलता है।
#- पिप्पली कल्प - छोटी पिप्पली 1 नग लेकर गाय के दूध में 10-15 मिनट उबालें। पहले पिप्पली खाकर ऊपर से गाय का दूध पी लें। अगले दिन 2 पिप्पली लेकर गाय का दूध में अच्छी तरह उबालकर पहले पिप्पली खा लें, फिर दूध पी लें।इस प्रकार 7 से 11 पिप्पली तक सेवन करें। जिस तरह आपने एक-एक पिप्पली को बढ़ाया था उसी तरह कम करते जाएं। यदि अधिक गर्मी ना लगे तो अधिकतम 15 दिन में 15 पिप्पली तक भी इस विधि को आजमा सकते हैं। यह कल्प कफ, अस्थमा, सर्दी, जुकाम व पुरानी खाँसी में लाभ मिलता है। इससे पाचन-तंत्र, मंदाग्नि , गैस, अपच आदि रोग भी दूर होते हैं। पिप्पली युक्त दूध का सेवन सुबह करें। दिन में सादा आहार लें। यह ध्यान रखें कि घी, तेल व किसी प्रकार की खट्टी चीज ना लें।
#- पाचनतन्त्र दुरुस्त - इसके अलावा पिप्पली, भांग और सोंठ की बराबर-बराबर मात्रा लेकर चूर्ण बना लें। इसकी 2 ग्राम की मात्रा को शहद में मिलाकर दिन में दो या तीन बार भोजन से पहले सेवन करें। इससे खाना सही से पचता है, और पाचनतंत्र ठीक रहता है।
#- कब्जरोग - पिप्पली का प्रयोग कब्ज में फायदेमंद होता है। पिप्पली की जड़ और छोटी इलायची को बराबर-बराबर में लेकर महीन चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में गाय के घी के साथ सुबह और शाम सेवन करने से कब्ज में लाभ होता है।
#- आँतरोग। आंत्रवृद्धि - आंतों के रोग में पिप्पली, जीरा, कूठ, बेर और गाय के गोबर को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसे कांजी के साथ खूब महीन पीसकर लेप करें। इससे लाभ होता है। यह शुरुआती स्थिति में ही लाभ पहुंचाता है।अधिक वृद्धि होने पर शल्यकर्म ही आंत्रवृद्धि चिकित्सा है।
#- उदावर्त रोग ( जिन रोगों में वायु का घुमाव नीचे से ऊपर की और हो जाता है उसे उदावर्त रोग कहते है ) - पिप्पली जड़ को पीसकर गाय के दूध और अडूसे के रस में मिलाकर पीने से उदावर्त रोग व आंतों के रोग में लाभ होता है।
#- बवासीर - बवासीर में लाभ लेने के लिए आधा चम्मच पिप्पली के चूर्ण में बराबर मात्रा में भुना जीरा, तथा थोड़ा-सा सेंधा नमक मिला लें। इसे गौतक्र ( छाछ ) के साथ सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे बवासीर में फायदा होता है।
#- अर्श के मस्सें - पिप्पली, सेंधा नमक, कूठ और सिरस के बीजों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लें। इसे सेंहुड (थूहर) या बकरी के दूध में मिलाकर लेप करने से बवासीर के मस्से खत्म हो जाते हैं। सेहुण्ड का दूध तीक्ष्ण होता है, इसलिए मस्सों पर सावधानी से लगाएं।
#- सिरदर्द - सिर दर्द में आराम पाने के लिए पिप्पली, काली मिर्च, मुनक्का, मुलेठी और सोंठ चूर्ण को मिला लें। इसके 2 ग्राम चूर्ण को गाय के मक्खन में पकाएं। इसे छानकर एक से दो बूँद नाक में डालने से सिर दर्द ठीक होता है।
#- सिरदर्द - पिप्पली को पानी में पीसकर लेप करने से भी सिर का दर्द ठीक होता है।
#- सर्दी का सिरदर्द - पिप्पली चूर्ण को नाक के रास्ते लेने ( नस्य ) से सर्दी के कारण होने वाले सिर दर्द से राहत मिलती है।
#- आधाशीशी - पीपल और वच चूर्ण को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दिन में दो बार दूध या गर्म जल के साथ सेवन करें। इससे अधकपारी ठीक होता है।
#- आँख रोग - आंख की बीमारी में पिप्पली का खूब महीन चूर्ण बना लें। इसे आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों का धुंधलापन, रतौंधी व जाला आदि रोगों में लाभ मिलता है।
#- आँख रोग - एक भाग पिप्पली और दो भाग हरड़ को मिलाकर पानी के साथ खूब महीन पीस लें। इसकी बत्तियां बना लें और इसे पीसकर आंखों में लगाने से आंखों के बहने, आंखों के धुंधलेपन, आंखों में होने वाली खुजली आदि रोगों में लाभ होता है।
#- रतौंधी - पिप्पली को गौमूत्र में घिसकर काजल की तरह लगाएं। इससे भी रतौंधी में भी लाभ होता है।
आंखों की पुतली की बीमारी के लिए 10-20 मिली पिप्पली काढ़ा बना लें। इसमें शहद मिलाकर गरारा करें। इससे अधिमांस रोग में लाभ होता है।
#- कानदर्द - कान के दर्द में पिप्पली चूर्ण को निर्धूम अंगारे पर रखें। इससे जो धुँआ निकले, उसमें कान पर लगाएं। इससे कान दर्द ठीक होता है।
#- पिलिया, ऐनिमिया - पाण्डु या एनीमिया रोग के लिए एक भाग शहद, 2 भाग गाय का घी, 4 भाग पिप्पली, 8 भाग मिश्री, 32 भाग गाय का दूध, और 6-6 भाग दालचीनी, तमाल पत्र, इलायची, नागकेशर लें। सबको अच्छी तरह मसलकर-पकाकर लड्डू बना लें। रोज एक लड्डू का सेवन करने से एनीमिया रोग में लाभ होता है। आप घी और मिश्री की मात्रा को आवश्यकतानुसार बढ़ाकर भी प्रयोग कर सकते हैं।
#- मासिकधर्म - मासिक धर्म विकार में पिप्पली, सोंठ, मरिच और नागकेशर को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को गाय के घी में मिलाकर गाय के दूध के साथ खाने से माहवारी संबंधित विकारों में लाभ होता है। इससे गर्भाशय से संबंधित विकार और दर्द भी ठीक होता है। यह मासिक धर्म के समय होने वाले दर्द व हार्मोन्स के विकारों में भी यह लाभ पहुंचाता है। महिलाओं को इसे दो-तीन माह तक सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
#- सुखप्रसव - प्रसव को आसान बनाने के लिए 3 ग्राम पीपली जड़ में 3 ग्राम पुष्कर जड़ मिलाएं। इसे 400 मिली पानी में पकाएं। जब यह 100 मिली की मात्रा में बच जाए तो इसे छानकर थोड़ा-सा शहद व हींग मिलाकर मिलाकर पिलाएं। इससे प्रसव पीड़ा में बढ़ौतरी होती है, और प्रसव तुरंत हो जाता है।
#- आंवल (अपरा/Placenta - प्रसव के बाद आंवल (अपरा/Placenta) गिराने के लिए तुरन्त ही इस काढ़ा को ठण्डा करके पिला देना चाहिए।
#- प्रसूतिकाल में अत्यधिक रक्तस्राव - प्रसूति स्त्री के अत्यधिक रक्तस्राव को बंद करने के लिए पिप्पली चूर्ण को गाय के घी में मिलाकर चटाना चाहिए।
#- वीर्यदोष - वीर्य दोष को ठीक करने के लिए राल, पीपर तथा मिश्री को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाएं। 1-2 ग्राम मात्रा में तीन दिन तक गाय के दूध के साथ सेवन करें। इससे वीर्य रोग में फायदा होता है।
#- स्तन्यवर्धनार्थ - जिन महिलाओं को स्तनों में दूध की कमी की शिकायत होती है, वे 2 ग्राम पिप्पली फल के चूर्ण में आधा चम्मच शतावर मिलाकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे प्रसूता के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
#- स्तन्यवर्धनार्थ - पिप्पली, सोंठ और हरड़ के चूर्ण को समान मात्रा में लें। लगभग 3 ग्राम चूर्ण को गुड़ में मिलाएं। इसमें थोड़ा गाय का घी मिलाकर दूध के साथ दिन में दो बार खिलाने से भी स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दूध की वृद्धि होती है। यह प्रयोग लगभग दो माह तक करें।
#- सायटिका - पीप्पली व सोंठ दोनों के मिश्रण में ( सिद्ध ) पकाएं हुए तैल की मालिश करने से ऊरूस्तम्भ और गृध्रसी ( साइटिका ) में लाभ होता है।
#- साइटिका - इसी तरह 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण को 100 मिली गौमूत्र और 10 मिली अरंडी के तेल के साथ मिला लें। इसे दिन में दो बार पिलाने से भी साइटिका में लाभ होता है।
#- साइटिका - आधा चम्मच पिप्पली चूर्ण में 2 चम्मच अरंडी के तेल मिला लें। इसे नियमित तौर पर सुबह-शाम सेवन करने से साइटिका में लाभ होता है।
#- ज्वर - बुखार को ठीक करने के लिए आधा चम्मच पिप्पली चूर्ण को शहद के साथ सेवन करें। इससे सूतिका बुखार, गंभीर बुखार और कफ के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
#- ज्वर - 1 ग्राम पीप्पली मूल चूर्ण को मधु मिलाकर गाय के दूध का सेवन बुखार के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है क्योंकि पीपली में आयुर्वेद के अनुसार ज्वरहर गुण होता है जिससे पीपली बुखार को कम करने में मदद करती है।
#- हृदय रोग - इसी तरह 3 ग्राम पिप्पली जड़ चूर्ण में 2 ग्राम गाय का घी और 5 ग्राम शहद मिलाकर दिन में तीन बार चाटें। इसके साथ गाय का गर्म दूध पिएं। इससे खांसी के साथ होने वाली गंभीर बुखार, तथा हृदयरोग में भी लाभ होता है।
#- श्वास रोग, बुखार - पिप्पली ( पीपर ), नीम, गिलोय, सोंठ, देवदारु, अडूसा, भारंगी, नेत्रवाला, पीपराजड़ तथा पोहकर जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से सांसों की बीमारी के साथ-साथ खांसी वाले बुखार में लाभ होता है।
#- ज्वर - बुखार को दूर करने के लिए 3 ग्राम पिप्पली को 1 गिलास पानी में पकाएं। जब यह एक चौथाई रह जाए तो इसे छान लें। इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से यह स्रोतस स्थित कफ और गुरूता को हटाने वाला , अग्निप्रदीपक , वात कफजन्य रोगों को दूर करने वाला तथा ज्वरनाशक है।
#- लीवर दौर्बल्य - पीप्पली चूर्ण 2-4 ग्राम ,1 चम्मच शहद मिलाकर के सुबह- सायं सेवन लीवर को स्वास्थ्य बनाये रखने में मदद करता है क्योंकि इसमें पिपेरिन नामक तत्व पाया जाता है जो कि लीवर की कोशिकाओं को स्वस्थ रखकर लीवर के कार्य करने की क्षमता को बढ़ाता है। तथा यकृत वृद्धि को रोकता है।
#- शरीर दर्द - 1 ग्राम पीप्पली मूल चूर्ण गाय के गर्म दूध के साथ लेने से शरीर के दर्द में पीपली का सेवन करने शीघ्र फायदेमंद होता है और नींद भी अच्छी आती है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार पीप्पली में दर्दनिवारक गुण पाया जाता है साथ हि आयुर्वेद के अनुसार भी पीपली में वात शामक गुण होता है और वात का प्रकुपित होना ही शरीर में दर्द का कारण होता है।
#- अस्थमा - 1 ग्राम पीप्पली चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से अस्थमा के लक्षणों को कम करने की एक अचूक औषधि है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार पीपली में कफ को शांत करने का गुण होता है, इसलिए ये कफ को शांत कर अस्थमा के लक्षणों को कम करता है।
#- जीवाणुरोधी - 1 ग्राम पीप्पली चूर्ण मधु में मिलाकर सेवन करने से जीवाणु के संक्रमण से बचाने में पीपली सहायक होती है। एक रिसर्च के अनुसार पीपली में जीवाणुरोधी क्रियाशीलता पायी जाती है जिसके कारण पीपली संक्रमण को रोकने में सहायक होती है।
#- प्लीहावृद्धि - तिल्ली (प्लीहा) के बढ़ने की समस्या में 2 से 4 ग्राम पिप्पली चूर्ण में 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे सुबह-शाम नियमित रूप से देने से लाभ होता है।
#- राजक्ष्मा रोग - टीबी की बीमारी में 250 ग्राम पीपल और 250 ग्राम गुड़ का पेस्ट बना लें। इसे 1 किलो गाय का घी, 4 ली बकरी का दूध (न मिलने पर गाय का दूध) में धीमी आग पर पकाएं। जब केवल घी मात्र रह जाये तो इसका प्रयोग करें। आपको केवल 1 चम्मच दिन में तीन बार सेवन करना है। इससे लाभ मिलता है।
#- ह्रदय रोग - पिप्पली जड़ और छोटी इलायची को बराबर-बराबर लेकर महीन चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम तक की मात्रा में गाय के घी के साथ सुबह और शाम सेवन करने से हृदय रोगों में लाभ होता है।
#- हृदय रोग - पिप्पली चूर्ण में बराबर मात्रा में बिजौरे नींबू की जड़ की छाल का चूर्ण मिला लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट अर्जुन के काढ़े के साथ सेवन करें। इससे हृदय रोग जैसे- छाती में दर्द या छाती के अन्य गंभीर रोगों में लाभ होता है।
#- कीटदंश - जब जहरीला कीड़ा काट ले तो पिप्पली के प्रयोग से लाभ मिलता है। पिप्पली (pippallu) को पीसकर विषैले जंतुओं के डंक वाले लगाने से बहुत लाभ होता है।
#- अधिमांस ( शरीर में आँख - नाक आदि मे अधिक माँस बढ़ने को अधिमांस कहते है ) - 10-20 मिलीग्राम पिप्पलीक्वाथ में शहद मिलाकर गरारे करने से अधिमांस रोग में लाभ होता है।
#- प्रतिश्याय व स्वरभंग - पिप्पली , पिपलामूल , कालीमिर्च और सोंठ के समभाग चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चटाते रहने से अथवा पिप्पलीक्वाथ में शहद मिलाकर थोड़ा- थोड़ा पिलाने से प्रतिश्याय व स्वरभंग में लाभ होता है।
#- श्वास- कास, कफरोग :- 1 ग्राम पिप्पली चूर्ण में 2 ग्राम शहद मिलाकर चाटने से श्वास , कास , हिचकी , ज्वर , गले की ख़राश , व प्लीहारोग , में लाभ होता है। यह मधु पिप्पली योग कफरोग में बहुत कारगर सिद्ध होता है।
#- हिचकी, श्वास, कफरोग, ज्वर , पीनस रोग - 1 ग्राम पिप्पली चूर्ण समभाग त्रिफला मिलाकर दिन में तीन बार सुबह ख़ाली पेट व दोपहर, रात्रि को भोजन से आधा घन्टा पहले शहद मिलाकर भोजन के समय चाटने से हिचकी श्वास , कफ , ज्वर, पीनस में लाभ होता है।
#- संग्रहणी रोग - पिप्पली , भाँग , सोंठ के समभाग चूर्ण को 2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार भोजन से पहले सेवन करते रहने से संग्रहणी में लाभ होता है।
#- मेलेरिया व हृदयरोग - 3 ग्राम पिप्पली चूर्ण में 2 ग्राम गौघृत और मधु 5 ग्राम , मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से तथा इसके साथ गाय का गर्म दूध पीने से कास सहित विषमज्वर में तथा हृदयरोगियों में लाभ होता है।
#- श्वास- कासयुक्त ज्वर - पिप्पली , नीम,सोंठ , गिलोय, देवदारु ,अडूसा , भारंगी , सुगन्धबाला , पिपलामूल , पोखरमूल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वास , कासयुक्त ज्वर का शमन होता है।
#- पेट के कीडे - पिप्पली व पिपलामूल 1 ग्राम चूर्ण मधु मिलाकर खाने से पेट के कीडे मर जाते है।
#- पिप्पली रसायन - 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण व मिश्री पावडर व एक चम्मच गाय का घी मिलाकर गाय के दूध के साथ खाने से भूख को बढ़ाकर बलवर्धन करता है तथा वीर्यविकारों को शान्त कर बाजीकरण व वीर्यवृद्धि करता है तथा रसायन होने के कारण सातों धातुओं को पुष्ट करके कामशक्ति को बढ़ाता है।
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