Saturday, 8 May 2021

रामबाण :- 61 -:

रामबाण :- 61 -:

#- कटू पटोल -

यह उत्तर भारत के मैदानी प्रदेशों मे सम्पूर्ण देश में पाया जाता है इसका फल कड़वा होता है तथा थोड़ा गोलाकार व फल का छिलका मोटा होता है । इसके पञ्चांग का प्रयोग औषधि कार्य मे किया जाता है। कटू पटोल का वानस्पत्तिक नाम - Trichosanthes ( ट्रिकोसैन्थीज कुकुमेराइना ) , कुल- Cucurbitaceae ( कुकुरबिटेसी ) , अंग्रेज़ी नाम- Wild bitter pointed gourd ( वाइल्ड बिटर पॉइन्टेड गुअर्ड ) कहते है। कटू पटोल तिक्त, कटू , शीत , पित्तकफशामक , वातकारक तथा मल को बाँधने वाला होता है। इसके मूल तथा बीज शीत , कृमिघ्न तथा विरेचक होते है । यह तापहर , क्षुधावर्धक , जीवाणुनाशक , हृद्य , बलकारक , तथा ज्वरोधी होता है । इसके पत्र तथा फल शीत , पाचक , रक्तशोधक , दीपक , विरेचक , कृमिघ्न , आर्तवजनन , वातानुलोमक , तथा बलकारक होते है। बीज आन्तरिक रूप में ज्वरघ्न तथा कृमिघ्न गुणों को प्रदर्शित करता है।

#- शिर:शूल - कटू पटोल के पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिरदर्द का शमन होता है।

#- इन्द्रलुप्त - कटू पटोल के पत्रस्वरस को सिर पर लगाने से इन्द्रलुप्त ( सिर की गंज ) में लाभ होता है।

#- नेत्ररोग - कटू पटोल के पत्रों की पुल्टीश बनाकर नेत्रों के बाहर चारों तरफ़ लगाने से नेत्ररोग में लाभ होता है।

#- श्वासनलिका शोथ - कटू पटोल पत्रों को पीसकर पुल्टीश बनाकर छाती पर लगाने से श्वासनलिका शोथ व दमा में लाभकारी होता है।

#- उदर विकार - कटू पटोल पत्र एवं बीज का क्वाथ बनाकर 5-10 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से कृमिरोग ( पेट के कीडे ) , विबन्ध , अग्निमांद्य , पिपासा तथा अजीर्ण में लाभ होता है।

#- पाण्डूरोग - कटू पटोल पत्र का फाण्ट बनाकर 10-20 मिली की मात्रा में पीने से पाण्डूरोग ( ख़ून की कमी ) में लाभ होता है।

#- ऊरूस्तम्भ - नमकरहित कम तैल में पकाये हुए कटू पटोल शाक का रूक्ष आहार के साथ सेवन करने से कफ तथा आमदोष का क्षय होकर , ऊरूस्तम्भ में लाभ होता है।

#- त्वक विकार - कटू पटोल पत्रों को पीसकर लगाने से रोमकूपशोथ ( रोऐं की सूजन ) , कण्डूरोग ( खुजली ) , श्वित्ररोग ( सफेद दाग ) , कुष्ठ रोग , व्रण एवं त्वचारोग मे लाभकारी होता है।

#- ज्वर - पटोल पत्र शाक का सेवन करना ज्वर में हीतकर होता है।

#- विषमज्वर - 10 मिली कटू पटोल पत्र फाण्ट को 10 मिली धान्यक फाण्ट के साथ मिलाकर प्रयोग करने से विषमज्वर ( मलेरिया ) तथा श्रमजन्य ज्वर ( थकान होने पर होने वाला बुखार ) में लाभ होता है।

#- ज्वर - कटू पटोल के बीज पत्रों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने ज्वर में लाभ होता है।

#- ज्वर - 5 मिली पत्रस्वरस में 1 ग्राम अदरक, 500 मिलीग्राम चिरायता व मधु मिलाकर सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।

#- कटू पटोल पत्रस्वरस को शरीर पर लगाने से ज्वरजन्य दाह का शमन होता है।

#- 10-20 मिलीग्राम कटू पटोल मूल स्वरस या क्वाथ को प्रात:काल लेने से पेट के कीडे मर जाते है।

#- ज्वर - कटू पटोल मूल स्वरस या क्वाथ को लेने से मौसमी परिवर्तन के कारण होने वाले बुखार , मलेरिया , डेंगू , या कोई भी बुखार नहीं होते है।

#- स्वानुभत योग , सर्पदंश - कटू पटोल की मूल को पानी मे पीसकर अत्यधिक पिलाते रहे और उल्टियाँ कराते रहे और नीम के पत्ते चबाकर देखते रहे की पत्ते मीठे लग रहे क्या , जबतक नीम के पत्ते मीठे लगते रहे तबतक पटोल मूल को पिलाते रहे और जब नीम के पत्ते कड़वे लगने लगे तब पटोलमूल पिलाना बन्द कर दे , ऐसा करने से सर्पदंश के रोगी का सारा विष उल्टी- दस्त के माध्यम से बाहर निकल जाता है और रोगी ठीक हो जाता है।किसी भी प्रकार के साँप ने काटा हो अवश्य ही ठीक होगा ।


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