Thursday, 6 May 2021

रामबाण योग :- 60 -:

रामबाण योग :- 60 -:

#- परवल ( पटोल ) ,

यह उत्तर भारत के मैदानी प्रदेशों में व आसाम, बंगाल, गुजरात में पाया जाता है। इसकी मुख्यत: तीन प्रजाति होती है। 1- पटोल ( परवल ) , 2- कटू पटोल ( कड़वा परवल , 3- भोज्यपरवल , ( मधुर परवल ,सब्जी में प्रयोग होने वाला परवल ) पटोल परवल व कटू पटोल ये जंगली प्रजाति होती है इन्हीं का आयुर्वेद में वर्ण मिलता है। हम आज पटोल ( परवल ) पर ही चर्चा करेंगे । इन्हीं का चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। मधुर परवल प्रा: य शाक- सब्ज़ियों मे प्रयोग किया जाता है। तिक्त द्रव्यों में पटोल विशेषत: वाशामक एवं वृष्य होने से श्रेष्ठ माना गया है वमनोपग रूप में एवं विसर्प , उदररोग , पाण्डूरोग , ग्रहणी आदि मे उपयोग होता है। पटोल व्रण्य , वृष्य , उष्ण , रोचन और दीपन है।

#- गर्भवती महिला - गर्भिणी स्त्री को आठवें मास में अन्य द्रव्यों के साथ पटोल मूल देने का विधान है । कुष्ठ , विद्रधि , तिमिर आदि व्याधियों में यह हीतकर है ।

#- शिर:शूल - परवल मूल को पीसकर सिर पर लेप करने से सभी प्रकार के सिरदर्द में लाभ होता है।

#- नेत्ररोग - परवल शाक को गौघृत में पकाकर सेवन करने से आँखों की बिमारियों में लाभ होता है।

#- मुखरोग - समभाग परवल , नीम , जामुन , आम , मालती के पत्रों का क्वाथ बनाकर गण्डूष धारण कर ( गरारा ) करने से मुखपाक आदि मुख विकारों का शमन होता है।

#- मुखरोग -परवल परवल पत्र क्वाथ को गाढ़ा कर , इसमें गैरिक ( गेरू ) चूर्ण और मधु मिलाकर मुख के भीतर लेप करने से मुखरोग में लाभ होता है।

#- प्रमेह - पटोल के पत्रों तथा फल का शाक सेवन प्रमेह मे पथ्य है।

#- अतिसार - समभाग परवल , जौं और धनियां के 10-20 मिलीग्राम क्वाथ को शीतल कर उसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टियाँ एवं अतिसार मे लाभ होता है।

#- अतिसार की अधिकता से गुदा में जलन - अतिसार की अधिकता से यदि गुदा में जलन तथा पाक हो तो समभाग परवल पत्र तथा मुलेठी क्वाथ से गुदाप्रक्षालन ( गुदा धोना ) करना हितकर होता है।

#- अम्लपित्त - समभाग परवल , त्रिफला तथा नीम के क्वाथ 10-20 मिलीग्राम में मधु मिलाकर पीने से पत्तश्लेष्मज शूल , बुखार , उलटी , अम्लपित्त तथा दाह का शमन होता है।

#- कामला रोग - परवल , कुटकी , सफेद चन्दन ,मुलेठी , गुडूची ,तथा पाठा से निर्मित क्वाथ का 10-20 मिली काढ़ा सेवन करने से कफज रोग , पित्तज रोग , कुष्ठ रोग , बुखार , विषविकार , उलटी , भूख न लगना तथा पिलिया रोग में लाभ होता है।

#- उपदंश - परवल पत्र , त्रिफला , निम्बछाल , चिरायता , खदिर तथा असन इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ 10-20 मिली में , 1 माशा शुद्ध गुग्गुलु मिलाकर पीने से , समस्त प्रकार के उपदंश में लाभ होता है।

#- वातव्याधि - पटोल पञ्चांग और यव को मिलाकर क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में मधु मिलाकर पीने से वातपित्तज्वर , दाह , तृष्णा आदि का शमन होता है।

#- वातरक्त - पटोल त्रिफला , कुटकी , गुडूची और शतावर इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ 10-20 मिली को पीने से दाहयुक्त वातरक्त में लाभ होता है।

#- ऊरूस्तम्भ - नमक रहित कम तैल में पकाये हुए परवल शाक को रूक्ष आहार के साथ सेवन करने से कफ तथा आम का क्षय होने से ऊरूस्तम्भ में लाभदायक होता है।

#- कुष्ठ रोग - नीम तथा परवल की पत्तियों का क्वाथ बनाकर प्रयोग करने से कुष्ठ मे लाभ होता है।

#- परवल के पत्ते , खदिर , नीम की छाल , त्रिफला तथा वेत्र ( वेत्त यानि वेतस , बेंत ) का क्वाथ बनाकर तिक्त पदार्थों के सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।

#- विसर्प - परवल के पत्ते व मुंग की दाल तथा आमलकी स्वरस से निर्मित क्वाथ 10-20 मिली में गौघृत मिलाकर पीने से विसर्प रोग में लाभ होता है।

#- मुसूरिका , खसरा - पित्तजन्य शीतला की प्रारम्भिक अवस्था में परवल के मूल एवं पत्र के क्वाथ ( 10-20 ) मिली में मुलेठी मूल स्वरस 5 मिली मिलाकर पीना चाहिए ।

#- मुसूरिका - अडूसा , नागरमोथा , चिरायता , त्रिफला , इंद्रजौं , जवासा , परवल पत्र तथा नीम त्वक का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में मधु मिलाकर पीने से कफजन्य शीतला में लाभ होता है।

#- व्रणशोथ - घाव को धोने के लिए परवल तथा नीम के पत्तों का क्वाथ का प्रयोग करना चाहिए ।

#- विदारिका - पक्व विदारिका का शस्त्र से भेदन करके गौघृतयुक्त परवल , नीम तथा तिल के कल्क को लेप करके बाँध देने से घाव की सफ़ाई हो जाती है तथा घाव ठीक से भरने लगता है।

#- शीतपित्त - पटोल फल की सब्जी गौघृत मे बनाकर खाने से शीतपित्त मे लाभ होता है।

#- मदात्यय रोग - परवल के युष को खट्टा करके जौ से बने हुए भक्ष्य पदार्थों के सेवन करने से मदात्यय रोग मे लाभ होता है।

#- विषमज्वर - इन्द्रजौं , परवल की पत्ती तथा कुटकी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से विषमज्वर में लाभ होता है तथा परवल पत्र , सारिवा , नागरमोथा , पाठा , कुटकी , तथा निम्ब , पटोल , त्रिफला , द्राक्षा , नागरमोथा तथा कुटज बीज का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली की मात्रा में पीने से सतत् ज्वर में लाभ होता है।

#- ज्वर - समभाग धनिया तथा परवल पत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में , पीने से ज्वर का शमन होता है।

#- ज्वर - परवल की पत्ती तथा परवल के फल का शाक बनाकर सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।

#- ज्वर - नीम तथा परवल से निर्मित यूष का सेवन करने से पित्त- श्लेष्मज - ज्वर में परवल पत्र तथा फल का सेवन सभी प्रकार के ज्वर में पथ्य है।

#- ज्वर - परवल पत्र तथा यव क्वाथ 10-20 मिली क्वाथ मे मधु मिलाकर पीने से पित्तज्वरदाह , तृष्णा आदि का शमन होता है।

#- ज्वर - परवल के पत्ते , नीम की छाल , त्रिफला , मुलेठी तथा बला का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली की मात्रा में पीने से पित्त - कफ ज्वर का शमन करता है।

#- ज्वर - परवल पत्र , यव , धनियां,मूँग , आँवला तथा रक्त चन्दन से निर्मित क्वाथ को 10-20 मिली की मात्रा में पित्तज तथा कफज- पित्तज ज्वरजन्य तृष्णा , उलटी तथा दाह का शमन होता है।

#- कफजज्वर - परवल , त्रिफला , कुटकी , सोंठ , वासा , गुडूची का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम क्वाथ मे मधु मिलाकर पान करने से कफज्वर में लाभ होता है।

#- पित्तकफज ज्वर - परवल , लाल चन्दन , मुर्वा , कुटकी , पाठा तथा गुडूची से निर्मित क्वाथ को पीने से पित्तकफज ज्वर , उलटी , दाह , खुजली , कण्डूरोग तथा विष रोगों में लाभ होता है।

#- ज्वर रोग - परवल , इन्द्रजौं , देवदारु , त्रिफला , नागरमोथा , मुनक्का , मुलेठी , गुडूची तथा अडूसा इन द्रव्यों से निर्मित 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में 6 माशा मधु मिलाकर पीने से सततज्वर , द्वितीयकज्वर , तृतीयकज्वर , एेकाहिकज्वर तथा नवज्वर में लाभ होता है।

#- एेकाहिकज्वर - परवल , त्रिफला , निम्बत्वक , मुनक्का , अम्लतास , वासा , इनसे निर्मित 10-20 मिली क्वाथ में 1 ग्राम मिश्री या 1 ग्राम शर्करा मिलाकर पीने से ऐकाहिकज्वर में लाभ होता है।

#- विषमज्वर - परवल , कुटकी , मुलेठी , हरीतकी तथा नागरमोथा , इन द्रव्यों का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से विषमज्वर में लाभ होता है।

#- जीर्णज्वर - परवल , नीमछाल , छोटी कटेरी , कुटज , गुडूची , नागरमोथा , इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ 10-20 मिलीग्राम की मात्रा मे मधु मिलाकर पीने से जीर्णज्वर में लाभ होता है।

#- रक्तपित्त - 5 मिलीग्राम परवल पत्र स्वरस में शहद मिलाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।

#- रक्तपित्त - परवल , हाऊबेर मूल , तथा समभाग लालचन्दन , चूर्ण 1-2 ग्राम को शर्करायुक्त चावल के धोवन के साथ पीने से अथवा परवल के पत्तों का हिम फाण्ट , स्वरस , क्ल्क , क्वाथ बनाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

#- मेदरोग - समभाग परवल पत्र तथा चित्रक के 20 मिलीग्राम क्वाथ में 500 मिलीग्राम सौंफ तथा 65 मिलीग्राम हींग का चूर्ण मिलाकर पीने से उदरगत मेदोवृद्धि का शमन होता है।

#- शोथ - पटोल शाक ( सब्जी ) का सेवन करने से सूजन उतरती है ।

#- त्रिदोषनाशक - पटोल फल की सब्जी खाने से त्रिदोष ( वात , पित , कफ ) का शमन करती है ।

#- कृमिरोग - पटोल पत्र स्वरस को 10-20 मिलीग्राम की मात्रा मे तीन चार दिन लेने से पेट के सभी कीडे मर जाते है।

#- वृष्य - पटोल फल की सब्जी को गौघृत में छौंककर खाने वीर्यवृद्धि होती है।



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